वह सोसाइटी ही खराब थी
Red Circle Society- सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुनील सीरीज- 12
रात के अंधेरे में सहायता तलाशता वो आगंतुक सुनील के फ्लैट में जैसे आसमान से टपका था । सुनील नहीं जानता था कि वो एक अजनबी की सहायता करने के चक्कर में एक ऐसी बड़ी और संगठित संस्था से दुश्मनी मोल ले चुका था जिसके अस्तित्व तक को कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं था । संस्था के सदस्य राजनगर के सभ्य समाज के अभिन्न अंग थे और वे सब अब सुनील की जान के पीछे हाथ धो कर पड़े थे। Red Circle Society सुनील सीरीज का 12 वां उपन्यास है जो सन् 1966 में प्रकाशित हुआ था।
सुनील ब्लास्ट नामक समाचार पत्र का प्रेस रिपोर्टर है। एक रात को प्रेमपाल नामक व्यक्ति जान बचाने के लिए सुनील के फ्लैट में घुस जाता है।
तभी प्रेमपाल के दुश्मन भी वहीं पहुँच जाते हैं। खैर पहुँच तो पुलिस भी वहाँ जाती है।
वहाँ से सुनील को पता चलता है राजनगर में एक रेड सर्किल सोसायटी सक्रिय है।
प्रेमपाल कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “आपने कभी रैड सर्कल सोसायटी का नाम सुना है ?”
“रैड सर्कल सोसायटी !” - सब-इंस्पेक्टर एकदम चौंक पड़ा ।
“रैड सर्कल सोसायटी !” - सुनील बोला - “अमेरिकन पत्रिकाओं में और सर आर्थर कानन डायल के उपन्यासों में ऐसी सोसायटियों का बहुत जिक्र आता है ।”
“लेकिन मैं किसी उपन्यास की बात नहीं कर रहा हूं ।” - प्रेमपाल बोला - “मैं आपके सामने एक हकीकत ब्यान कर रहा हूँ।”
और हकीकत यह थी कि यह सोसाइटी कहने को देश की शासन व्यवस्था बदलना चाहती है लेकिन यह अपराधी लोगों का समूह है, जो ब्लैकमेलिंग और हत्या जैसे अपराध करती है।
अब सुनील का काम था इस सत्य को परखना और रेड सर्कल सोसाइटी के प्रमुख का पता लगाना।
हां, यह तो संभव सी बात है सुनील अंत में पता लगा ही लेता है कि अपराधी कौन है।
उपन्यास में सुनील के मित्र रमाकांत का वर्णन भी है जो सुनील का सहयोग करता है। हालांकि रमाकांत का किरदार स्वयं कम सक्रिय रहता है उसके कुछ आदमी उसके कहने पर सुनील की मदद करते हैं, जैसे - जौहरी।
उपन्यास बहुत ही साधारण से कथानक पर आधारित है। इसी कथानक पर मैंने क ई काॅमिक्स और बाल कहानियाँ पढी हैं। इसलिए यह उपन्यास मुझे उपन्यास के तौर पर बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा।
और विशेष तौर पर अपराधी का पता लगाने का जो तरीका दर्शाया गया है वह सुनील, सुरेन्द्र मोहन पाठक और एक जासूसी उपन्यास के दृष्टिकोण से तर्कसंगत नहीं लगता।
यह एक साधारण से कथानक आधारित सामान्य उपन्यास है। बस एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास - रेड सर्कल सोसायटी
लेखक - सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन - 1966
सुनील सीरीज- 12
Red Circle Society- सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुनील सीरीज- 12
रात के अंधेरे में सहायता तलाशता वो आगंतुक सुनील के फ्लैट में जैसे आसमान से टपका था । सुनील नहीं जानता था कि वो एक अजनबी की सहायता करने के चक्कर में एक ऐसी बड़ी और संगठित संस्था से दुश्मनी मोल ले चुका था जिसके अस्तित्व तक को कोई स्वीकार करने को तैयार नहीं था । संस्था के सदस्य राजनगर के सभ्य समाज के अभिन्न अंग थे और वे सब अब सुनील की जान के पीछे हाथ धो कर पड़े थे। Red Circle Society सुनील सीरीज का 12 वां उपन्यास है जो सन् 1966 में प्रकाशित हुआ था।
सुनील ब्लास्ट नामक समाचार पत्र का प्रेस रिपोर्टर है। एक रात को प्रेमपाल नामक व्यक्ति जान बचाने के लिए सुनील के फ्लैट में घुस जाता है।
तभी प्रेमपाल के दुश्मन भी वहीं पहुँच जाते हैं। खैर पहुँच तो पुलिस भी वहाँ जाती है।
वहाँ से सुनील को पता चलता है राजनगर में एक रेड सर्किल सोसायटी सक्रिय है।
प्रेमपाल कुछ क्षण चुप रहा और फिर बोला - “आपने कभी रैड सर्कल सोसायटी का नाम सुना है ?”
“रैड सर्कल सोसायटी !” - सब-इंस्पेक्टर एकदम चौंक पड़ा ।
“रैड सर्कल सोसायटी !” - सुनील बोला - “अमेरिकन पत्रिकाओं में और सर आर्थर कानन डायल के उपन्यासों में ऐसी सोसायटियों का बहुत जिक्र आता है ।”
“लेकिन मैं किसी उपन्यास की बात नहीं कर रहा हूं ।” - प्रेमपाल बोला - “मैं आपके सामने एक हकीकत ब्यान कर रहा हूँ।”
और हकीकत यह थी कि यह सोसाइटी कहने को देश की शासन व्यवस्था बदलना चाहती है लेकिन यह अपराधी लोगों का समूह है, जो ब्लैकमेलिंग और हत्या जैसे अपराध करती है।
अब सुनील का काम था इस सत्य को परखना और रेड सर्कल सोसाइटी के प्रमुख का पता लगाना।
हां, यह तो संभव सी बात है सुनील अंत में पता लगा ही लेता है कि अपराधी कौन है।
उपन्यास में सुनील के मित्र रमाकांत का वर्णन भी है जो सुनील का सहयोग करता है। हालांकि रमाकांत का किरदार स्वयं कम सक्रिय रहता है उसके कुछ आदमी उसके कहने पर सुनील की मदद करते हैं, जैसे - जौहरी।
उपन्यास बहुत ही साधारण से कथानक पर आधारित है। इसी कथानक पर मैंने क ई काॅमिक्स और बाल कहानियाँ पढी हैं। इसलिए यह उपन्यास मुझे उपन्यास के तौर पर बिलकुल भी अच्छा नहीं लगा।
और विशेष तौर पर अपराधी का पता लगाने का जो तरीका दर्शाया गया है वह सुनील, सुरेन्द्र मोहन पाठक और एक जासूसी उपन्यास के दृष्टिकोण से तर्कसंगत नहीं लगता।
यह एक साधारण से कथानक आधारित सामान्य उपन्यास है। बस एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास - रेड सर्कल सोसायटी
लेखक - सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन - 1966
सुनील सीरीज- 12
रोचक। पाठक जी के कई उपन्यास औसत ही लगते हैं। ऐसे में इसका औसत निकलना बड़ी बात नहीं। फिर भी विषय वस्तु उत्सुतकता जगाता है। देखना पड़ेगा एक बार पढ़कर।
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