Friday, 10 December 2021

481. दौलत के दीवाने - अमित श्रीवास्तव

दौलत खून मांगती है।
दीवाने दौलत के- अमित श्रीवास्तव
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में अमित श्रीवास्तव एक नवोदित लेखक हैं। सन् 2017 में 'फरेब' के पश्चात नवम्बर 2021 में प्रकाशित 'दौलत के दीवाने' इनका द्वितीय उपन्यास है। दोनों ही उपन्यासों में इनकी लेखन क्षमता पल्लवित होती नजर आती है। प्रथम उपन्यास 'फरेब' एक मर्डर मिस्ट्री था तो द्वितीय उपन्यास 'दौलत के दीवाने' एक थ्रिलर उपन्यास है। 
दौलत के दीवाने - अमित श्रीवास्तव
लेखक अमित श्रीवास्तव जी के साथ

दौलत के दीवाने- अमित श्रीवास्तव
   यह कहानी है चेन्नई के द्वीप पर सदियों पुराने छुपे अकूत खजाने की। जैसे पाना तो हर कोई चाहता है, लेकिन यह हर किसी के लिए संभव नहीं था। क्योंकि दौलत खून मांगती है। प्रथम बार उस खजाने को देखने वाले भी दौलत की हवस में खून का सौदा कर बैठे थे। बाद में इस खजाने को पाने वाले लोग भी खून का खेल खेलने से पीछे नहीं हटे। 


     संजय सक्सेना और राजीव भाटिया अण्डरवर्ल्ड के दो खूंखार नाम हैं। जो पर्यटन के लिए अजमेर आते हैं। यहाँ उनकी मुलाकात रंजीत नायर से होती है। जो करोड़ों की अथाह दौलत को पाने के  सपने देखता है।
   वहीं रघुवीर चौधरी भी एक दौलत मंद शख्सियत है। वह एक‌ मिशन के लिए कुछ लोगों को एकत्र करता है, इसका मिशन रणथम्भौर के जंगलों में बसे आदिवासी लोगों से संबंधित होता है।
वहीं एक और या कहें तृतीय पार्टी है चंचल भटनागर की। उसका खेल सब से निराला है। और अंत तो पाठक सोच भी नहीं सकता।
सब लोग इस दौलत को पाना तो चाहते हैं, लेकिन जिन लोगों को दौलत की जानकारी है, उस द्वीप का रास्ता जानते हैं, वह सब नेपथ्य से बाहर हैं।
     शहर का इंस्पेक्टर किशोर सिंह भाटी अपराध का दुश्मन है। भाटी एक ईमानदार पुलिस ऑफ़िसर था। भाटी बाहर से सख्त और अंदर से नरम था।
    जब उसे पता चलता है कि शहर में कुछ खतरनाक लोगों का प्रवेश हो चुका है तो वह अपने सहयोगी निरंजन सिंह के साथ सक्रिय हो जाता है।- "कोई भी क्राइम करने से पहले एक बार भाटी को याद कर लेना। क्योंकि मैं भूत हूँ; आसानी से पीछा नहीं छोड़ता।"
       लेकिन किशोर सिंह भाटी को यह नहीं पता था कि शहर में आखिर खिचड़ी पक कौन सी रही है। अपराधियों और घटनाओं को देख कर उसका अनुभव कहता है- "जितना सीधा इस कहानी का पेंच दिख रहा है, कहानी उतनी सीधी दिखाई नहीं देती। ज़रूर कुछ गड़बड़ है। बहुत बड़ी गड़बड़ है, जो अभी मेरी समझ में नहीं आ रही। पर आगे ज़रूर समझ में आएगी। .....।" भाटी मूँछों पर ताव देकर बोला।
        लेकिन दौलत के दीवाने इसी बातों से कहां डरने वाले थे। आखिर सब निकल पड़ते हैं एक खतरनाक मिशन पर। एक ऐसा मिशन जहाँ खतरा था, जहाँ मौत थी।
   उपन्यास को मुख्यतः दो भागों में विभक्त कर सकते हैं‌। एक चैन्नई जाने से पूर्व और एक उसके पश्चात। मुझे इस उपन्यास का चैन्नई से पूर्व वाला भाग बहुत रोचक लगा। विशेष कर रणथम्भौर के जंगलों में‌ बसे आदिवासी मिशन‌ की कहानी रोंगटे खड़े करने वाली है।
      उपन्यास में जहाँ संजय सक्सेना और राजीव भाटिया का किरदार जितना बड़ा दिखाया गया है, वह अंत आते-आते उतना प्रभावशाली नहीं रहता।
     वहीं उपन्यास में जोजफ और इंस्पेक्टर किशोर सिंह भाटी दोनों अपना प्रभाव छोड़ने में पूर्णतः सफल रहे हैं। जोजफ का  किरदार जहाँ-जहाँ राजीव-संजय के साथ आता है वहाँ पाठकों के चेहरे पर मुस्कान ला देता है। वहीं यह भी एक प्रश्न उठता है कि जोजफ एक एक्सपर्ट ताला तोड़ है। उसका इस मिशन में कोई विशेष योगदान नहीं है, फिर भी वह मिशन में शामिल है।
"यह है जोजफ डिसूजा। किसी भी तरह की तिजोरी खोल देना इसके बायें हाथ का खेल है। कारीगर आदमी है। अब रणथम्भौर के जंगलों में कौनसी तिजोरी खोलनी थी।
वहीं एक और पात्र है प्रवीण राणा।
"यह प्रवीण राणा है। इन सबमें सबसे ज्यादा पढ़ा-लिखा और होशियार बन्दा। परिस्थिति के हिसाब से निर्णय लेने में माहिर। कम्प्यूटर और मोबाइल का एक्सपर्ट व्यक्ति है। हर तरह के कोड तोड़ने में माहिर। ऑनलाइन ठगी का मास्टरमाइंड।
   इस बंदे का भी आदिवासी लोगों के मध्य क्या काम था?
    वर्तमान में जहाँ लोकप्रिय साहित्य में मर्डर मिस्ट्री ही लिखी जा रही है, ऐसे दौर में एक थ्रिलर उपन्यास का होना गर्मी के महीने में बारिश की ठण्डी फुहार की तरह है।
    उपन्यास रोचक है। और बड़ी विशेषता यह है की इसकी गति तीव्र है, कहीं पर नीरसता नहीं है। मध्यम भाग से पूर्व तक तो यह भी पता नहीं चलता की मिशन क्या है?
   आप यह समीक्षा पढकर यह मत सोच लेना की हमें तो पता चल गया यह चेन्नई के टापू के पर स्थित दौलत की कहानी है‌। क्योंकि दौलत का पता जानने वाले लोग गायब हैं।
  ठहरो, अभी रणथम्भौर के जंगल भी बाकी है। और वहाँ के 'जमाली' और रमेश बंजारा से तो परिचय अभी बाकी है मेरे दोस्त।
    अगर रणथम्भौर के जंगलों जैसे मिशन‌ पर एक विस्तृत उपन्यास लिखा जाये तो साहित्य में श्रीवृद्धि ही होगी।

 उपन्यास रोचक है, मनोरंजन करने में सक्षम है। अगर आप कुछ अलग पढना चाहते हैं तो यह उपन्यास आपको पसंद आ सकता है। 

  उपन्यास में मुझे यह भी अच्छा लगा कि लूट की योजना आदि बनाने में समय खराब नहीं किया गया अर्थात् परम्परागत लूट वाली कहानियों से कुछ तो अलग है।
और अंत में-
"जाकर अपनी महबूबा को कह देना। पाँच हजार करोड़ की दौलत की तरफ किसी ने नजर उठाने की कोशिश की तो वह दूसरे दिन का सूरज नहीं देख पाएगा।" हिंसक स्वर में राजन सिंह चिल्ला पड़ा।

उपन्यास-  दौलत के दीवाने
लेखक  -   अमित श्रीवास्तव
प्रकाशन-   बुक कैफे
उपन्यास समीक्षा

1 comment:

  1. उपन्यास के प्रति रुचि जगाता आलेख। जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी।

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