सात मौतें और बीस लाख के हीरे
हत्यारे- सुरेन्द्र मोहन पाठक
रहस्य के धागे, सुनील सीरीज का ग्यारहवां उपन्यास
प्रस्तुत उपन्यास सुनील सीरीज का ग्यारहवां उपन्यास है जो बीस लाख की लूट पर आधारित एक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास का कथानक तीव्र गति और रोचकता लिये हुये है। यह कहानी है चार दोस्तों की जीवन, चौधरी, तिवारी और मोहन लाल नामक चार लूटेरों की। उन्हें एक सूचना मिली। - “सेठ गूजरमल के नौकर ने उसे विशालगढ़ में किसी को ट्रंक काल करके यह कहते सुना था कि वह आज रात की गाड़ी से बीस लाख रुपये का माल लेकर विशालगढ़ आ रहा था।”
और इन चारों मित्रो ने उस बीस लाख की रकम को लूटने का एक फुलप्रूफ प्लान निर्मित किया।
लेकिन जैसा की लूट के दौरान होता है, एक मित्र के हृदय में बेईमानी आ गयी। और उसने बीस लाख रूपये का वह माल गायब कर दिया।
इन मित्रों की आपसी भाग दौड़ के दौरान एक दुर्घटना में संयोग से सुनील भी इन से टकरा जाता है। और वहीं सुनील को मिलता है सी. बी. आई. कैप्टन पिंगले जो सुनील से कहता है- “यह पुलिस केस है। हत्यारों की इस पार्टी में, जिनका एक सदस्य चौधरी अभी मारा गया है, किन्हीं विशिष्ट कारणों से सी बी आई के लोग भी दिलचस्पी ले रहे हैं,....।"
इस एक्सीडेंट में सुनील को दो नाम और मिलते हैं एक सुधा और दूसरा हरीचन्द। सुधा मृत चौधरी की पत्नी है और हरीचन्द वह व्यक्ति है जिसकी अन्त समय में चौधरी ने मदद की थी।
वह बीस लाख की रकम कहां है कोई नहीं जानता। पर उस बीस लाख की रकम में सबकी दिलचस्पी थी और उस दिलचस्पी में एक-एक कर कत्ल होते चले गये। क्योंकि कुछ लोगों की दिलचस्पी कम करने का 'हत्यारे' के पास यही एक तरीका था की संबंधित लिये लिये लोगों को ही कम कर दिया जाये
तो आखिर वह हत्यारा कौन था जो इतनी दिलचस्पी से लोगों का कत्ल कर रहा था?
आखिर वह बीस लाख की रकम कहां गायब हो गयी?
सी.बी. आई. कैप्टन पिंगले का इसमें क्या रोल था?
यह सब तो सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास 'हत्यारे'(रहस्य के धागे) को पढकर ही जाना जा सकता है।।
इस कथानक में बहुत से उपन्यास लिखे गये हैं, विशेषकर बैंक डकैती के सारे उपन्यास इसी कथानक को छूते हैं। पर फिर भी 'हत्यारे' उपन्यास इसलिए पठनीय है की कहानी में तीव्रता और रोचकता है।
सुनील चक्रवर्ती एक प्रेस रिपोर्टर है जो 'ब्लास्ट' समाचार पत्र के लिए काम करता है।
उपन्यास में सुनील की सहायता उसका दोस्त यूथ क्लब का मालिक रमाकांत अपने दो कर्मचारियों दिनकर और जौहरी के द्वारा करता है।
चार दोस्तों की दोस्ती में बीस लाख की रकम दरार पैदा कर देती है। जब चौधरी का एक्सीडेंट हुआ तो घटनास्थल पर सुनील उपस्थित था। चौधरी उसे दो नाम बता कर मर गया- एक सुधा और दूसरा हरीचन्द।
अब चौधरी के तीन दोस्तों को लगता है की चौधरी सुनील को कुछ बताकर मरा है, सुनील को लगता है सुधा और हरीचन्द को रकम का पता है। वहीं कैप्टन पिंगले सुनील को बताता है इन चारों के पीछे CBI लगी है।
सुनील जब सुधा से मिलता है तो वह कहती है उसने लम्बे समय से अपने पति चौधरी को देखा तक नहीं और हरीचन्द का कहना है वह चौधरी को पहले कभी जानता तक नहीं।
वहीं चौधरी के चारों दोस्त और पिंगले सुधा के पीछे पड़े है कि वह दौलत का परा बताये और सुधा कहती है मुझे पता नहीं।
और इसी चक्कर में एक एक कर कत्ल होते चले जाते हैं।
उपन्यास में एक दो जगह तो खलपात्र भी सुनील पर हावी हो जाते हैं।
“कभी-कभी बातचीत के मुकाबले में मेरी एकदम एक्शन में आस्था हो जाती है । अभी तो तुमने केवल ट्रेलर देखा है । इस फायर का कमाल यह था कि गोली की गरमी के तनिक आभास के अतिरिक्त तुम्हारे चेहरे पर एक खरोंच तक नहीं आई है, क्योंकि मैं तुम्हे सही सलामत देखना चाहता हूं वरना ये ही गोली बड़ी आसानी से तुम्हारे दिल में से भी गुजर सकती थी । अगर अब भी तुम यही जवाब दोगे कि चौधरी ने मरने से पहले कुछ नहीं कहा था तो मजबूरन मुझे तुम्हें चौधरी के पास भेजना पड़ जायेगा और सुनील, तुम जिन्दा रहना चाहते हो या मरना चाहते हो, इस बात का फैसला करने के लिये तुम्हें मैं केवल एक मिनट दूंगा ।”
प्रभुदयाल का वर्णन-
सुनील चक्रवर्ती के उपन्यासों में इंस्पेक्टर प्रभुदयाल की विशेष भूमिका होती है, पर प्रस्तुत उपन्यास में प्रभुदयाल का नाम दो बार ही आता है। स्वयं प्रभुदयाल कहीं भी उपस्थित नहीं।
सुधा- वहां कोई प्रभुदयाल नाम का इन्स्पेक्टर था, जो एक-एक सवाल कम से कम दस-दस बार पूछता था मुझसे।
- वहीं एक बार सुनील प्रभुदयाल का नाम लेता है।
इस पूरी कहानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका है कर्मचन्द की। वह भी लूट के माल में हिस्सेदारी चाहता है और उसके लिए षड्यंत्र रचता है। अगर देखा जाये तो यही वो पात्र है जो पूरे कथानक को आगे बढाता है, कथा में ट्विस्ट पैदा करता है।
लेकिन पूरे कथानक में यह कहीं पता नहीं चलता की कर्मचन्द को इस लूट की खबर कैसे लगी।
हत्यारे- सुरेन्द्र मोहन पाठक
रहस्य के धागे, सुनील सीरीज का ग्यारहवां उपन्यास
प्रस्तुत उपन्यास सुनील सीरीज का ग्यारहवां उपन्यास है जो बीस लाख की लूट पर आधारित एक थ्रिलर उपन्यास है। उपन्यास का कथानक तीव्र गति और रोचकता लिये हुये है। यह कहानी है चार दोस्तों की जीवन, चौधरी, तिवारी और मोहन लाल नामक चार लूटेरों की। उन्हें एक सूचना मिली। - “सेठ गूजरमल के नौकर ने उसे विशालगढ़ में किसी को ट्रंक काल करके यह कहते सुना था कि वह आज रात की गाड़ी से बीस लाख रुपये का माल लेकर विशालगढ़ आ रहा था।”
और इन चारों मित्रो ने उस बीस लाख की रकम को लूटने का एक फुलप्रूफ प्लान निर्मित किया।
लेकिन जैसा की लूट के दौरान होता है, एक मित्र के हृदय में बेईमानी आ गयी। और उसने बीस लाख रूपये का वह माल गायब कर दिया।
इन मित्रों की आपसी भाग दौड़ के दौरान एक दुर्घटना में संयोग से सुनील भी इन से टकरा जाता है। और वहीं सुनील को मिलता है सी. बी. आई. कैप्टन पिंगले जो सुनील से कहता है- “यह पुलिस केस है। हत्यारों की इस पार्टी में, जिनका एक सदस्य चौधरी अभी मारा गया है, किन्हीं विशिष्ट कारणों से सी बी आई के लोग भी दिलचस्पी ले रहे हैं,....।"
इस एक्सीडेंट में सुनील को दो नाम और मिलते हैं एक सुधा और दूसरा हरीचन्द। सुधा मृत चौधरी की पत्नी है और हरीचन्द वह व्यक्ति है जिसकी अन्त समय में चौधरी ने मदद की थी।
वह बीस लाख की रकम कहां है कोई नहीं जानता। पर उस बीस लाख की रकम में सबकी दिलचस्पी थी और उस दिलचस्पी में एक-एक कर कत्ल होते चले गये। क्योंकि कुछ लोगों की दिलचस्पी कम करने का 'हत्यारे' के पास यही एक तरीका था की संबंधित लिये लिये लोगों को ही कम कर दिया जाये
तो आखिर वह हत्यारा कौन था जो इतनी दिलचस्पी से लोगों का कत्ल कर रहा था?
आखिर वह बीस लाख की रकम कहां गायब हो गयी?
सी.बी. आई. कैप्टन पिंगले का इसमें क्या रोल था?
यह सब तो सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास 'हत्यारे'(रहस्य के धागे) को पढकर ही जाना जा सकता है।।
इस कथानक में बहुत से उपन्यास लिखे गये हैं, विशेषकर बैंक डकैती के सारे उपन्यास इसी कथानक को छूते हैं। पर फिर भी 'हत्यारे' उपन्यास इसलिए पठनीय है की कहानी में तीव्रता और रोचकता है।
सुनील चक्रवर्ती एक प्रेस रिपोर्टर है जो 'ब्लास्ट' समाचार पत्र के लिए काम करता है।
उपन्यास में सुनील की सहायता उसका दोस्त यूथ क्लब का मालिक रमाकांत अपने दो कर्मचारियों दिनकर और जौहरी के द्वारा करता है।
चार दोस्तों की दोस्ती में बीस लाख की रकम दरार पैदा कर देती है। जब चौधरी का एक्सीडेंट हुआ तो घटनास्थल पर सुनील उपस्थित था। चौधरी उसे दो नाम बता कर मर गया- एक सुधा और दूसरा हरीचन्द।
अब चौधरी के तीन दोस्तों को लगता है की चौधरी सुनील को कुछ बताकर मरा है, सुनील को लगता है सुधा और हरीचन्द को रकम का पता है। वहीं कैप्टन पिंगले सुनील को बताता है इन चारों के पीछे CBI लगी है।
सुनील जब सुधा से मिलता है तो वह कहती है उसने लम्बे समय से अपने पति चौधरी को देखा तक नहीं और हरीचन्द का कहना है वह चौधरी को पहले कभी जानता तक नहीं।
वहीं चौधरी के चारों दोस्त और पिंगले सुधा के पीछे पड़े है कि वह दौलत का परा बताये और सुधा कहती है मुझे पता नहीं।
और इसी चक्कर में एक एक कर कत्ल होते चले जाते हैं।
उपन्यास में एक दो जगह तो खलपात्र भी सुनील पर हावी हो जाते हैं।
“कभी-कभी बातचीत के मुकाबले में मेरी एकदम एक्शन में आस्था हो जाती है । अभी तो तुमने केवल ट्रेलर देखा है । इस फायर का कमाल यह था कि गोली की गरमी के तनिक आभास के अतिरिक्त तुम्हारे चेहरे पर एक खरोंच तक नहीं आई है, क्योंकि मैं तुम्हे सही सलामत देखना चाहता हूं वरना ये ही गोली बड़ी आसानी से तुम्हारे दिल में से भी गुजर सकती थी । अगर अब भी तुम यही जवाब दोगे कि चौधरी ने मरने से पहले कुछ नहीं कहा था तो मजबूरन मुझे तुम्हें चौधरी के पास भेजना पड़ जायेगा और सुनील, तुम जिन्दा रहना चाहते हो या मरना चाहते हो, इस बात का फैसला करने के लिये तुम्हें मैं केवल एक मिनट दूंगा ।”
प्रभुदयाल का वर्णन-
सुनील चक्रवर्ती के उपन्यासों में इंस्पेक्टर प्रभुदयाल की विशेष भूमिका होती है, पर प्रस्तुत उपन्यास में प्रभुदयाल का नाम दो बार ही आता है। स्वयं प्रभुदयाल कहीं भी उपस्थित नहीं।
सुधा- वहां कोई प्रभुदयाल नाम का इन्स्पेक्टर था, जो एक-एक सवाल कम से कम दस-दस बार पूछता था मुझसे।
- वहीं एक बार सुनील प्रभुदयाल का नाम लेता है।
इस पूरी कहानी में एक महत्वपूर्ण भूमिका है कर्मचन्द की। वह भी लूट के माल में हिस्सेदारी चाहता है और उसके लिए षड्यंत्र रचता है। अगर देखा जाये तो यही वो पात्र है जो पूरे कथानक को आगे बढाता है, कथा में ट्विस्ट पैदा करता है।
लेकिन पूरे कथानक में यह कहीं पता नहीं चलता की कर्मचन्द को इस लूट की खबर कैसे लगी।
सुनील द्वारा कैप्टन पिंगले की कार के नम्बरों की जाँच करवाने की बात बहुत बचकानी सी प्रतीत होती है। किसी और तरीके से भी यह काम किया जा सकता था।
अगर आपने बैंक डकैती या अन्य कोई लूट पर आधारित उपन्यास पढे हैं तो यह कथा वैसी ही है, पर मुझे अच्छा यह लगा की उपन्यास में कहीं उलझाव नहीं, अनावश्यक विस्तार नहीं है। एक सामान्य सी और तेज रफ्तार कथा आपको प्रभावित करती है।
'हत्यारे' उपन्यास का एक नाम और है वह है - रहस्य के धागे। हालांकि यह नाम क्यों परिवर्तित किया गया इसका कहीं वर्णन नहीं है।
उपन्यास- हत्यारे (,रहस्य के धागे)
लेखक - सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन- 1966
सुनील सीरीज- 11
अगर आपने बैंक डकैती या अन्य कोई लूट पर आधारित उपन्यास पढे हैं तो यह कथा वैसी ही है, पर मुझे अच्छा यह लगा की उपन्यास में कहीं उलझाव नहीं, अनावश्यक विस्तार नहीं है। एक सामान्य सी और तेज रफ्तार कथा आपको प्रभावित करती है।
'हत्यारे' उपन्यास का एक नाम और है वह है - रहस्य के धागे। हालांकि यह नाम क्यों परिवर्तित किया गया इसका कहीं वर्णन नहीं है।
उपन्यास- हत्यारे (,रहस्य के धागे)
लेखक - सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन- 1966
सुनील सीरीज- 11
सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का एक और उपन्यास है बीस लाख की रकम से संबंधित- बीस लाख का बकरा।
समीक्षा-
बीस लाख का बकरा- सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुनील सीरीज के अन्य उपन्यासों की समीक्षा
- पुराने गुनाह, नये गुनहगार
- समुद्र में खून
- होटल में खून
- बदसूरत चेहरे
- ब्लैकमेलर की हत्या
- हांगकांग में हंगामा
- मूर्ति की चोरी
- शैतान की मौत
- रिपोर्टर की हत्या
- आस्तीन के साँप
रोचक उपन्यास लग रहा है। जल्द ही पढ़ने की कोशिश रहेगी।
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