Thursday, 31 October 2019

241. सुहाग की साँझ- ओमप्रकाश शर्मा

प्यार और नफरत की मार्मिक रचना। 
सुहाग की सांझ- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा।
   
       
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मैंने ओमप्रकाश शर्मा जी के अधिकांश जासूसी उपन्यास पढे हैं। लेकिन अब निरंतर दो सामाजिक उपन्यास पढकर उनको और भी गहराई जा जाना है, हालांकि यह जानना अभी भी अधूरा ही है। लेकिन इतना अवश्य पता चला है की सामाजिक उपन्यासों के क्षेत्र में ऐसी मार्मिक रचनाएं कम ही देखने को मिलती हैं।
       'सांझ का सूरज' प्यार और प्यार में उपजी नफरत की एक ऐसी कहानी है जो आदि से अंत तक सम्मोहित सी करती चली जाती है।
       कहानी में कहीं समय का वर्णन तो नहीं मिलता फिर भी कहीं कहीं हल्का सा आभास है की कहानी सन् 1950-70 के मध्य की है।

भुटान की सीमा से लगे तेजपुर से लेकर असम की उत्तरी सीमा कमेंग तक सड़क बनाने का काम कहा जाता है की ग्यारह वर्षों से चल रहा है। (पृष्ठ- प्रथम)
       ये कहानी यहीं की है, सड़क विभाग के कार्मिक सहायक इंजिनियर सुरेश की है। आयु तीस वर्ष, रंग गोरा...आयु के अनुसार कुछ दुबला सा दिखाई देने वाला। कर्मठ और मितभाषी। (पृष्ठ-तृतीय)
      एक है बेला। जिसके जीवन में दुख के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। सामाजिक बंधन और प्रेम के बीच में वह भटक सी जाती है। वह स्वयं को एक असफलत नारी मानती है। - असफल स्त्री का प्रतीक किसी को देखना हो तो मुझे देखे। प्रेमी, पति और पिता के प्रति मैं वफादार रहना चाहती थी और किसी के प्रति भी नहीं रह पायी। (पृष्ठ---)
       दोनों के साथ अगर कुछ समान है तो वह है उनका दुर्भाग्य। जो दोनों को आखिर एक जगह एकत्र कर देता है। - दुर्भाग्य से बचने के लिए चाहे कितना तेज दौड़े परंतु वह सदा चार कदम आगे दौड़ता है। (पृष्ठ---)
        उपन्यास में कुछ और भी पात्र हैं और उनकी संक्षिप्त कहानियाँ वर्णित है‌। हर आदमी का अपना-अपना दुख है। कोई उस दुख से भागना चाहता है तो कोई उसके साथ जीवन बिताना चाहता है। लछिया जहां दुख से भागना चाहती है वहीं चर्च के फादर उस दुख के साथ जीना चाहते हैं।
        वहीं जीवनराम एक ऐसा पात्र है जो किसी के सुख दुख में स्वयं को समाहित कर लेता है।

'सुहाग की साँझ' उपन्यास एक ऐसी स्त्री की कहानी है जो अपने सामाजिक जिम्मेदारी और प्रेम के बीच में अटक गयी है। उसका दिल कहीं है और शरीर कहीं है। प्रेम और त्याग के मध्य उसका असमंजस उपन्यास में चित्रित है। उपन्यास का अंत करुणापूर्ण है।
लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की अनमोल धरोहर है यह उपन्यास।
रोचक, पठनीय और संग्रहणीय।

उपन्यास- सुहाग की साँझ
लेखक-  ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक
प्रकाशक- जनप्रिय पब्लिकेशन
पृष्ठ- -      95

2 comments:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। पढ़ने की इच्छा जाग गयी है।

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  2. अत्यंत रोचक।

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