तलाश एक हत्यारे की।
पत्रकार की हत्या- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा
जगत, जगन और बंदूक सिंह का कारनामा।
पत्रकार की हत्या नामक उपन्यास जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखा गया एक मर्डर मिस्ट्री कथानक है।
एक पत्रकार की हत्या और स्थानीय पुलिस की नाकामी के पश्चात खुफिया विभाग के तीन जासूसों द्वारा मामले की पुन: खोजबीन।
बात तो जनपद के शहर सुमेरपुर की है, परंतु इसकी गूंज प्रांत की विधान सभा तक पहुंच गई।
बात ही कुछ ऐसी थी।
सुमेरपुर जिले तक सीमित दैनिक पत्र था- आज का समाचार।................
........…..सचमुच ही वह आम जनता का अखबार था और किसानों, मजदूरों तथा दलित वर्ग के प्रति समर्पित था।
राकेश एक सच्चा पत्रकार था। वह जनता की समस्याओं जो अपने दैनिक पत्र 'आज का समाचार' में बहुत अच्छे तरीके से लिखता था। सत्य का पक्षधर था यह समाचार पत्र।
सत्य के दुश्मन ज्यादा ही होते हैं। यही स्थिति राकेश के साथ हुयी। एक दिन रिपोर्टिंग से लौटते वक्त सुमेरपुर पुल पर उनकी हत्या कर दी गयी। जब स्थानीय पुलिस हत्यारे की तलाश में नाकाम रही तो खुफिया विभाग के तीन जासूस जगत, जगन और बंदूक सिंह को मैदान में आना पड़ा।
दरअसल यह एक पत्रकार की हत्या का मामला है। हमारे समाचार पत्र जनता के विभिन्न समुदाय के प्रतिनिधि होते हैं और उनकी कायरतापूर्ण हत्या का विशेष प्रयोजन किसी वर्ग की चेतना की आकांक्षा को दबा देना होता है। प्रयत्न यही होता है कि पत्रकार की हत्या मतलब है समाचार पत्र की हत्या। इस मामले में ऐसा तो नहीं हो सका है, फिर भी एक स्वतंत्र चेतना के पत्रकार की हत्या का हत्यारों के लिए उद्देश्य यही है। इसी कारण हमारे विभाग ने यह केस स्वीकार किया है। (पृष्ठ-11)
जासूस वर्ग की एक विशेषता यह है की वे लड़ाई-झगड़े और हिंसा से दूर रहते हैं। उनका अपराधी को पकड़ने का तरीका मानसिक होता है। एक जाल बिछाना और उसमें सबूत सहित अपराधी को फंसाना। इसी चक्कर में उपन्यास में बहुत से पात्रों के साथ संवाद बहुत लंबे हो जाते हैं।
जगन और बंदूक सिंह की जोड़ी अक्सर अच्छी लगती है। बंदूक सिंह राजस्थान का राजपूत है इसलिए कभी-कभी उसका राजपूती खून खौल उठता है। वहीं राजेश धैर्य से काम करने वाला व्यक्ति है।
प्रस्तुत उपन्यास में कई ऐसे प्रसंग हैं जहां अपराधी को वक्त से पहले दबोचा जा सकता था लेकिन अपनी रणनीति के कारण ऐसा करते नहीं। जब तक सबूत एकत्र न हो तब तक अपराधी पर हाथ नहीं डालते।
प्रस्तुत उपन्यास में अब देखना ये है की जासूसी मित्र कैसे असली हत्यारे तक पहुंचते हैं। उनकी कार्यशैली क्या है। हालांकि मध्य भाग के उतरार्ध में कातिल का पता चल जाता है। उसके पश्चात तो सिर्फ जाल बिछाना बाकी रह जाता है।
उपन्यास में पात्रों की सख्या ही इतनी ज्यादा है की किसी एक पात्र पर ध्यान केन्द्रित करना मुश्किल है। उपन्यास में पहले से ही तीन जासूस हैं और अंत में राजेश का प्रवेश व्यर्थ ही दिखा दिया गया है।
उपन्यास में बहुत से ऐसे पात्र हैं जिनका कोई महत्व उपन्यास में नजर नहीं आता। उनके साथ लंबे-लंबे संवाद पृष्ठ में बढोतरी के अतिरिक्त कुछ कर्म के नहीं।
उपन्यास में एक मात्र पुल की महारानी को याद रखा जा सकता है, वह भी सहानुभूति के साथ।
"जानते हो मैं कौन हूँ।"
"हमें किसी के बारे में भी जानने की जरूरत नहीं है।"
"मैं इस पुल की महारानी हूँ। (पृष्ठ-46)"
उपन्यास पात्रों का एक परिचय
जगत, राजेश- दोनों जासूस
जगन, बंदूक सिंह- दोनों जासूस
राकेश- आज का समाचार पत्र का मालिक और संवाददाता
सुधा- राकेश की पत्नी
बिहारी लाल- पत्र संपादक
रामसरण- पुलिस प्रमुख
रोशनी/लक्ष्मी- उपन्यास का एक विशेष पात्र
रोज,नसरीन- क्लब डांसर
किसना- एक किसान
सोना/सोनवती- किसना की पत्नी
हीरा बाई, मोती बाई- तवायफ
आशा, फिरोजा- वेश्या
आफताब- वेश्या संरक्षण
भोलाराम- एक पात्र
जयकिशन- कारखाने का मालिक
राजा साहब- फैक्टरी मालिक
अलका- राजा साहब की पुत्रवधु
केसर - एक बदमाश व्यक्ति
चिमन- केसर का साथी
ठाकुर बुधराम-
कुंदन- बुधराम का ड्राइवर
इकबाल, रमजानी, मोहनलाल- ड्राइवर
अजीज, छदम्मी- गौण मात्र
उपन्यास में उक्त पात्रों के अतिरिक्त और भी कुछ गौण पात्र उपस्थित हैं।
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी की कुछ विशेषता उनके सभी उपन्यासों में मिल जाती हैं। जैसे भारतीय संस्कृति के का चित्रण, बुराई का अंत, नैतिक मूल्यों का समर्थन आदि।
ओमप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास जासूसी होते हुए भी कहीं हिंसक या अश्लील नहीं हैं। जासूसी वर्ग भी नैतिक मूल्यों का समर्थक नजर आता है।
उपन्यास में बहुत से कथन/संवाद मिलते हैं जो शर्मा जी के विचारों के वाहक नजर आते हैं। शर्मा जी सिर्फ उपन्यासकार ही नहीं बल्कि एक अच्छी मानवीय दृष्टि भी रखते थे। निम्न उदहारणों से आप समझ सकते हैं।
- हर देश भयानक हथियार बना लेना चाहता है और....दूसरी ओर जीवन रक्षक दवाएं भी इजाद हो रही हैं। (पृष्ठ-15)
- संसार की आबादी बढने से जाहिर है बेरोजगारी बढती है और बेरोजगारी बढने से अपराध बढते हैं। (पृष्ठ-15)
- पुलिस स्टेशन प्रशासन की पहली कड़ी होता है। ....जब पुलिस स्टेशन ही सो रहा होता है तो क्या यह नहीं समझना चाहिए कि पूरा प्रशासन ही सो रहा होता है। (पृष्ठ-22)
- आप की जाति स्त्री है और मेरी जाति पुरुष है। इंसानों में तो दो ही जाति हुआ करती है, जानवरों की बात जुदा है। (पृष्ठ-132)
उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री पर आधारित है। एक पत्रकार की हत्या और फिर खुफिया विभाग के जासूसों द्वारा अपने तरीके से हत्यारे की खोजबीन करना।
उपन्यास में अनावश्यक वार्तालाप और घटनाएं उपन्यास की गति को धीमा करती हैं। कुछ संशोधन के साथ उपन्यास रोचक हो सकता था।
उपन्यास में कोई नयापन या विशेषता नहीं है। उपन्यास न पढे तो भी चलेगा।
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उपन्यास- पत्रकार की हत्या
लेखक- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक
प्रकाशक- राधा पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 230
ओमप्रकाश शर्मा जी के अन्य उपन्यासों की समीक्षा- उपन्यास समीक्षा
पत्रकार की हत्या- जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा
जगत, जगन और बंदूक सिंह का कारनामा।
पत्रकार की हत्या नामक उपन्यास जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखा गया एक मर्डर मिस्ट्री कथानक है।
एक पत्रकार की हत्या और स्थानीय पुलिस की नाकामी के पश्चात खुफिया विभाग के तीन जासूसों द्वारा मामले की पुन: खोजबीन।
बात तो जनपद के शहर सुमेरपुर की है, परंतु इसकी गूंज प्रांत की विधान सभा तक पहुंच गई।
बात ही कुछ ऐसी थी।
सुमेरपुर जिले तक सीमित दैनिक पत्र था- आज का समाचार।................
........…..सचमुच ही वह आम जनता का अखबार था और किसानों, मजदूरों तथा दलित वर्ग के प्रति समर्पित था।
राकेश एक सच्चा पत्रकार था। वह जनता की समस्याओं जो अपने दैनिक पत्र 'आज का समाचार' में बहुत अच्छे तरीके से लिखता था। सत्य का पक्षधर था यह समाचार पत्र।
सत्य के दुश्मन ज्यादा ही होते हैं। यही स्थिति राकेश के साथ हुयी। एक दिन रिपोर्टिंग से लौटते वक्त सुमेरपुर पुल पर उनकी हत्या कर दी गयी। जब स्थानीय पुलिस हत्यारे की तलाश में नाकाम रही तो खुफिया विभाग के तीन जासूस जगत, जगन और बंदूक सिंह को मैदान में आना पड़ा।
दरअसल यह एक पत्रकार की हत्या का मामला है। हमारे समाचार पत्र जनता के विभिन्न समुदाय के प्रतिनिधि होते हैं और उनकी कायरतापूर्ण हत्या का विशेष प्रयोजन किसी वर्ग की चेतना की आकांक्षा को दबा देना होता है। प्रयत्न यही होता है कि पत्रकार की हत्या मतलब है समाचार पत्र की हत्या। इस मामले में ऐसा तो नहीं हो सका है, फिर भी एक स्वतंत्र चेतना के पत्रकार की हत्या का हत्यारों के लिए उद्देश्य यही है। इसी कारण हमारे विभाग ने यह केस स्वीकार किया है। (पृष्ठ-11)
जासूस वर्ग की एक विशेषता यह है की वे लड़ाई-झगड़े और हिंसा से दूर रहते हैं। उनका अपराधी को पकड़ने का तरीका मानसिक होता है। एक जाल बिछाना और उसमें सबूत सहित अपराधी को फंसाना। इसी चक्कर में उपन्यास में बहुत से पात्रों के साथ संवाद बहुत लंबे हो जाते हैं।
जगन और बंदूक सिंह की जोड़ी अक्सर अच्छी लगती है। बंदूक सिंह राजस्थान का राजपूत है इसलिए कभी-कभी उसका राजपूती खून खौल उठता है। वहीं राजेश धैर्य से काम करने वाला व्यक्ति है।
प्रस्तुत उपन्यास में कई ऐसे प्रसंग हैं जहां अपराधी को वक्त से पहले दबोचा जा सकता था लेकिन अपनी रणनीति के कारण ऐसा करते नहीं। जब तक सबूत एकत्र न हो तब तक अपराधी पर हाथ नहीं डालते।
प्रस्तुत उपन्यास में अब देखना ये है की जासूसी मित्र कैसे असली हत्यारे तक पहुंचते हैं। उनकी कार्यशैली क्या है। हालांकि मध्य भाग के उतरार्ध में कातिल का पता चल जाता है। उसके पश्चात तो सिर्फ जाल बिछाना बाकी रह जाता है।
उपन्यास में पात्रों की सख्या ही इतनी ज्यादा है की किसी एक पात्र पर ध्यान केन्द्रित करना मुश्किल है। उपन्यास में पहले से ही तीन जासूस हैं और अंत में राजेश का प्रवेश व्यर्थ ही दिखा दिया गया है।
उपन्यास में बहुत से ऐसे पात्र हैं जिनका कोई महत्व उपन्यास में नजर नहीं आता। उनके साथ लंबे-लंबे संवाद पृष्ठ में बढोतरी के अतिरिक्त कुछ कर्म के नहीं।
उपन्यास में एक मात्र पुल की महारानी को याद रखा जा सकता है, वह भी सहानुभूति के साथ।
"जानते हो मैं कौन हूँ।"
"हमें किसी के बारे में भी जानने की जरूरत नहीं है।"
"मैं इस पुल की महारानी हूँ। (पृष्ठ-46)"
उपन्यास पात्रों का एक परिचय
जगत, राजेश- दोनों जासूस
जगन, बंदूक सिंह- दोनों जासूस
राकेश- आज का समाचार पत्र का मालिक और संवाददाता
सुधा- राकेश की पत्नी
बिहारी लाल- पत्र संपादक
रामसरण- पुलिस प्रमुख
रोशनी/लक्ष्मी- उपन्यास का एक विशेष पात्र
रोज,नसरीन- क्लब डांसर
किसना- एक किसान
सोना/सोनवती- किसना की पत्नी
हीरा बाई, मोती बाई- तवायफ
आशा, फिरोजा- वेश्या
आफताब- वेश्या संरक्षण
भोलाराम- एक पात्र
जयकिशन- कारखाने का मालिक
राजा साहब- फैक्टरी मालिक
अलका- राजा साहब की पुत्रवधु
केसर - एक बदमाश व्यक्ति
चिमन- केसर का साथी
ठाकुर बुधराम-
कुंदन- बुधराम का ड्राइवर
इकबाल, रमजानी, मोहनलाल- ड्राइवर
अजीज, छदम्मी- गौण मात्र
उपन्यास में उक्त पात्रों के अतिरिक्त और भी कुछ गौण पात्र उपस्थित हैं।
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी की कुछ विशेषता उनके सभी उपन्यासों में मिल जाती हैं। जैसे भारतीय संस्कृति के का चित्रण, बुराई का अंत, नैतिक मूल्यों का समर्थन आदि।
ओमप्रकाश शर्मा जी के उपन्यास जासूसी होते हुए भी कहीं हिंसक या अश्लील नहीं हैं। जासूसी वर्ग भी नैतिक मूल्यों का समर्थक नजर आता है।
उपन्यास में बहुत से कथन/संवाद मिलते हैं जो शर्मा जी के विचारों के वाहक नजर आते हैं। शर्मा जी सिर्फ उपन्यासकार ही नहीं बल्कि एक अच्छी मानवीय दृष्टि भी रखते थे। निम्न उदहारणों से आप समझ सकते हैं।
- हर देश भयानक हथियार बना लेना चाहता है और....दूसरी ओर जीवन रक्षक दवाएं भी इजाद हो रही हैं। (पृष्ठ-15)
- संसार की आबादी बढने से जाहिर है बेरोजगारी बढती है और बेरोजगारी बढने से अपराध बढते हैं। (पृष्ठ-15)
- पुलिस स्टेशन प्रशासन की पहली कड़ी होता है। ....जब पुलिस स्टेशन ही सो रहा होता है तो क्या यह नहीं समझना चाहिए कि पूरा प्रशासन ही सो रहा होता है। (पृष्ठ-22)
- आप की जाति स्त्री है और मेरी जाति पुरुष है। इंसानों में तो दो ही जाति हुआ करती है, जानवरों की बात जुदा है। (पृष्ठ-132)
उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री पर आधारित है। एक पत्रकार की हत्या और फिर खुफिया विभाग के जासूसों द्वारा अपने तरीके से हत्यारे की खोजबीन करना।
उपन्यास में अनावश्यक वार्तालाप और घटनाएं उपन्यास की गति को धीमा करती हैं। कुछ संशोधन के साथ उपन्यास रोचक हो सकता था।
उपन्यास में कोई नयापन या विशेषता नहीं है। उपन्यास न पढे तो भी चलेगा।
आप इन दिनों कौनसा उपन्यास पढ रहे हो, कमेंट करें।
उपन्यास- पत्रकार की हत्या
लेखक- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक
प्रकाशक- राधा पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 230
ओमप्रकाश शर्मा जी के अन्य उपन्यासों की समीक्षा- उपन्यास समीक्षा
पत्रकार की हत्या- ओमप्रकाश शर्मा |
जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी सचमुच बहुत शानदार लिखते हैं. मैं उनका बेहद प्रशंसक हूँ.
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