Thursday, 22 April 2021

435. द ट्रेल- अजिंक्य शर्मा

अजिंक्य शर्मा जी का सातवां उपन्यास
द ट्रेल- अजिंक्य शर्मा, मर्डर मिस्ट्री
''अपराधी चाहे कितना ही शातिर क्यों न हो, अपने पीछे सबूतों की एक ट्रेल छोड़ जाता है।’’-हितेश खिड़की से बाहर झांकते हुए ऐसे बोला, जैसे अपने-आप से बात कर रहा हो।
''क्या?’’-शैली चौंक उठी।
''क्या हुआ?’’-हितेश ने खिड़की से अंदर सिर करके सवालिया नजरों से शैली की ओर देखा।
''आपने...अभी क्या कहा?’’
''अपराधी चाहे कितना ही शातिर क्यों न हो, अपने पीछे सबूतों की एक ट्रेल छोड़ जाता है।’’
''ये तो विश्वास सर कहा करते थे। इंस्पैक्टर एक्स सीरिज के उनके उपन्यासों की टैगलाइन यही होती है।’’
''अच्छा?’’ (उपन्यास अंश)
यह दृश्य है अजिंक्य शर्मा जी के सातवें उपन्यास 'द ट्रेल' का, जो की एक मर्डर मिस्ट्री आधारित उपन्यास है। कहते हैं अपराधी अपराध करते वक्त कुछ न कुछ निशान (ट्रेल) छोड़ ही जाता है।  और उन्हें सबूतों को ढूंढता है उपन्यास 'द ट्रेल'।
  रंजीत विश्वास एक प्रसिद्ध जासूसी उपन्यासकार है। प्रसिद्ध उपन्यासकार होने के साथ-साथ वह अरबपति है, एक पब्लिकेशन का स्वामी है और उसकी हवेली (मैंशन) 'व्हाइट कैसल'  में और उसके सानिध्य कुछ परिवार भी पलते हैं।
  लेकिन एक दिन रंजीत विश्वास अपने कमरे में मृत पाये जाते हैं, किसी ने छुरा मार कर उनकी हत्या कर दी।
    लेकिन रंजीत विश्वास मरते वक्त एक वाक्य लिख जाते हैं। -' यूनाइटेड वी राइज'।    सभी के लिए यह शब्द आश्चर्यजनक है कि एक आदमी मरते वक्त कातिल का नाम न लिख कर एक अजीब वाक्य लिख कर गया है।
'' 'यूनाईटेड वी राइज’ का क्या चक्कर है सर?’’-एसआई दीवार पर खून से लिखी इबारत को देखते हुए धीमे स्वर में बोला।
  रंजीत विश्वास की बेटी समान नर्स शैली और इंस्पेक्टर अनुराग कश्यप इस पहेली को हल करने की कोशिश करते हैं।
   लेकिन इस कोशिश में जहाँ इंस्पेक्टर अनुराग को कुछ अजीब जानकारियां मिलती हैं जैसे ताज और पांच पक्षी वहीं शैली पर उसी मैंशन में जान लेवा हमला भी होता है। और फिर एक कत्ल और...
शैली अपने कमरे में बैड पर करवटें बदल रहीं थीं। रात काफी हो चुकी थी लेकिन उसकी आंखों में नींद का नामोनिशान तक नहीं था। एक और खून...। ये हो क्या रहा था? नहीं-उसके दिमाग ने कहा-ये दूसरा खून नहीं था। ये तीसरा खून हो सकता था।
    इसके बाद उपन्यास में काफी घुमावदार एक के बाद एक
घटनाएं घटित होती हैं और रहस्य बढते जाते हैं और समाधान कहीं नजर नहीं आते।
     उपन्यास मर्डर मिस्ट्री है और उपन्यास में दो मर्डर होते हैं। लेकिन इसके साथ-साथ कुछ और घटनाएं भी पाठक को प्रभावित करती हैं तथा उपन्यास को प्रभावशाली बनाती हैं।
जैसे शैली पर हमला, ताज और पांच पक्षियों का रहस्य, भदौरिया परिवार का चरित्र, अभिषेक का स्वभाव और लेखक की विदेश यात्रा से जुड़ी घटनाएं आदि।
  पाठक के मस्तिष्क में पढते वक्त दो प्रश्न तो अवश्य चलते है कि कातिल कौन है और रंजीत विश्वास मरते वक्त 'यूनाईटेड वी राइज' क्यों लिखा।

     उपन्यास के पात्र बहुत संदिग्ध हैं, कोई अपने कर्म से तो कोई अपने स्वभाव से। यही कारण है कि कातिल का सहज अनुमान नहीं लगया जा सकता।
  
उपन्यास में रंजीत विश्वास की नर्स शैली। जिसे रंजीत विश्वास अपनी बेटी के समान मानता है का किरदार बहुत प्रभावित है। वह एक ऐसा पात्र है जो उपन्यास के आरम्भ में ही अपना एक छवि स्थापित कर लेता है। और आगे भी यही पात्र विभिन्न मुसीबतों से संघर्ष करता नजर आता है।
  लेकिन आरम्भ से एक बात स्पष्ट स्थापित की जा रही थी कि शैली एक जासूस बनेगी लेकिन उपन्यास में उसका काम अच्छा है लेकिन उस स्तर का नहीं जितना की उसे स्थापित करने, कसीदे गढने में समय लिया गया।
   कुछ बातें (पांचवां पक्षी) उसे संयोग से पता चलती हैं और कातिल का भी उसे कोई बताता है।
- प्रिंसेज हेलेन रोज का किस्सा भी उपन्यास की कहानी का कोई आवश्यक अंग नजर नहीं आता।

उपन्यास के पात्र-
उपन्यास में पात्रों की संख्या काफी है। हालांकि कहानी के अनुसार सही है। कुछ पात्र पाठक को प्रभावित करते हैं।
रंजीत विश्वास- प्रसिद्ध जासूसी उपन्यासकार
प्रभात- रंजीत विश्वास का पुत्र
निधि- रंजीत विश्वास की भतीजी
अभिषेक- रंजीत विश्वास का भतीजा
शैली-    नर्स, और रंजीत विश्वास की स्नेहपात्रा
बलराज- रंजीत विश्वास का ममित्र
माणिक भाई- रंजीत विश्वास का मित्र, ज्वैलर्स
भदौरिया- पब्लिकेशन का संचालक
अशोक-  भदौरिया का बेटा
अंजना- भदौरिया की बेटी
राकेश- पब्लिकेशन का एकाउंटेंट
हितेश कश्यप- पुलिस इंस्पेक्टर
अनुराग सिंह- ए.एस. आई.
सिल्विया- नौकरानी
ऐनी- सिल्विया की पुत्री

- उपन्यास से एक बात स्पष्ट होती है कि लेखक भविष्य में इन पात्रों को लेकर एक टीम गठित कर उपन्यास लिख सकते हैं।
यहाँ में दो बाते कहना चाहता हूँ।
- अगर मात्र मर्डर मिस्ट्री जैसे उपन्यास लिख कर इन पात्रों से मर्डर मिस्ट्री हल करवानी है तो कोई नयापन न होगा।(वैसे 'द ट्रेल' में हितेश को छोडकर और किसी ने अपना प्रभाव नहीं छोड़ा, हालांकि स्थापित शैली को किया गया है)
- 'हेमराज-आरूषि हत्याकांड' जैसे बहुत से अनसुलझे रहस्य आज भी यथावत हैं। अगर यह टीम और लेखक ऐसे वास्तविक प्रसंगों को नया आयाम दे तो एक नया अध्याय लिख सकते हैं।

- अगर कहानी सहजता से लिखी जाये तो हास्यप्रसंग स्वयं ही कहानी में शामिल हो जाते हैं, जैसा की प्रस्तुत रचना में है।
कुछ कथन, संवाद पाठक को हँसा जाते हैं।
- ''नहीं। पक्का तो नहीं है। असल में मैं कुछ बड़ा करना चाहता हूं। लेकिन समझ नहीं पा रहा हूं कि क्या करूं?’’
''शादी कर लो।’’
''फिर वही।’’-प्रशांत माथे पर हाथ मारकर बोला।
''शादी कर लो। बच्चा पैदा करो। उसे बड़ा करो।’’


  अजिंक्य शर्मा जी की एक विशेषता है जो अन्यत्र कहीं दृष्टि में नहीं आयी। इनके सभी उपन्यासों में कुछ प्रसंग या संवाद ऐसे होते हैं जो प्रस्तुत उपन्यास का पूर्व उपन्यास के साथ सहसंबंध स्थापित करते हैं।
  हालांकि इस से कहानी पर कोई असर नहीं होता।
- अजिंक्य शर्मा जी का सातवां उपन्यास 'द ट्रेल' है। और सभी उपन्यासों कोरोना का वर्णन है जो उपन्यास को समसामयिक बनाता है।
- वे दोनों जाकर रेलिंग से टिक गए। अभिषेक की नजरें मरीजों के परिजनों पर थीं।
''क्या हुआ?’’-हितेश बोला।
''देखो इन्हें।’’-वो अफसोस भरे स्वर में बोला-''कोरोना के डर के कारण लोग हॉस्पिटल, बल्कि डॉक्टर के पास भी फटकने तक से डर रहे हैं लेकिन ये बेचारेे यहां रहने के लिए मजबूर हैं।’’

'द ट्रेल' उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री रचना है। एक कत्ल और मृतक द्वारा कुछ संकेत छोड़ जाना। पर मजे की बात है 'द ट्रेल' में 'ट्रेल' (निशान, सबूत) के आधार पर कातिल की पहचान नहीं होती। अगर सबूतों को केन्द्र में रखा जाता तो शीर्षक सार्थक होता।
  यह एक विस्तृत उपन्यास है जो मनोरंजन भी करता है अपने विस्तृत आकार के कारण नीरस भी।
मर्डर मिस्ट्री जैसा उपन्यास है, जैसा होता है, कुछ नयापन नहीं है। अजिंक्य शर्मा जी से जो उम्मीद की जाती है, जैसा वो लिखते हैं ऐसा मुझे इस उपन्यास में कुछ नजर नहीं आया।
इनका पिछला उपन्यास 'ब्रेकिंग न्यूज- वहशी कातिल' लघु कलेवर का था, और प्रस्तुत उपन्यास को अनावश्यक विस्तार देकर शायद पिछले उपन्यास की भरपाई करने की कोशिश की गयी है।
उपन्यास- द ट्रेल
लेखक-   अजिंक्य शर्मा
प्रकाशन- eBook on Kindle
अजिंक्य शर्मा जी के अन्य उपन्यासों की समीक्षा

2 comments:

  1. Please upload review of lash ki zinda ankhe or kahar ankho ka by tiger

    ReplyDelete
    Replies
    1. टाइगर के उपन्यास हैं
      1. लाश की जिंदा आँखें
      2. करिश्मा आँखों का।
      बहुत समय पहले पढे थे, अब मेरे पास उपलब्ध नहीं हैं। अगर कहीं से मिले तो समीक्षा अवश्य लिखूंगा।
      दोनों उपन्यास बहुत रोचक हैं।

      Delete

शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज

गिलबर्ट सीरीज का प्रथम उपन्यास शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज ब्लैक ब्वॉय विजय की आवाज पहचान कर बोला-"ओह सर आप, कहिए शिकार का क्या...