जम्मू के डाॅन से बलराज गोगिया की टक्कर
राघव की वापसी - अनिल सलूजा
बलराज गोगिया सीरीज-
#साठ लाख सीरीज +
नमस्ते पाठक मित्रो,आज प्रस्तुत है एक्शन लेखक अनिल सलूजा जी के पात्र 'बलराज गोगिया' शृंखला के उपन्यास 'राघव की वापसी' की समीक्षा । यह एक एक्शन प्रधान और 'लंगड़ा यार / साठ लाख' शृंखला का उपन्यास है। जिसमें बलराज गोगिया, राघव और सुनीता जम्मू के एक गैंगस्टर से टकराते नजर आये हैं।
सर्वप्रथम हम राघव की वापसी उपन्यास का प्रथम पृष्ठ पढते हैं।
खुली अलमारी के सामने खड़ी सुनीता ने बांये हाथ मे पकड़ी पांच-पांच सौ के नोटों की गड्डी में से बारह नोट गिन कर बाकी नोट अलमारी के लॉकर में रखे और अलमारी बन्द कर वापिस मुड़ी तो नजर सामने कुर्सी पर बैठे राघव पर पड़ी जो हाथ में पकड़े रिमोट के सामने टी.वी. का चैनल बदल रहा था।
उसकी इकलौती लटक रही टांग आगे-पीछे झूल रही थी और घुटने के पास कटी हुई दूसरी टांग कुर्सी से थोड़ी आगे निकली हुई थी।
कमरे में जहां राघव बैठा था-वहां तीन कुर्सियां और पड़ी थीं और दो कुर्सियां सामने थीं और एक उसके बाईं तरफ थी।
बीच में साधारण-सी सेंटर टेबल रखी थी।
कोने में रखा टी.वी. भी साधारण था और वो एक ऊंची टेबल पर रखा हुआ था। राघव के पीछे दीवार के साथ लग कर एक तख्तपोश लगा था-जिस पर रुई के गद्दे पर साफ सुधरी चादर बिछी थी।
राघव के पीछे दीवार के साथ लग कर एक तख्तपोश लगा था-जिस पर रुई के गद्दे पर साफ सुधरी चादर बिछी थी।
यह उनका ड्राईंगरूम भी था और राघव का बेडरूम भी था। वह उसी तख्तपोश पर सोता था।
सुनीता का कमरा पीछे वाला था-और वहीं उसके बराबर में ही किचन बनी हुई थी।
रघुनाथ मन्दिर से करीब दो किलीमीटर दूर पटेल रोड पर यह दो कमरों का मकान ले रखा था उन्होंने... ।
करीब सवा दो महीने पहले बलराज गोगिया के साथ यहा आये थे दोनों...। मगर बलराज गोगिया एक हफ्ता भी नही
रहा यहां। पांच दिन बाद सुनीता की सुबह नींद खुली तो बलराज गोगिया गायब मिला उसे । उसकी जगह वहाँ एक पत्र पड़ा था-जिस पर लिखा था कि राघव की टांग दोबारा लगवाना उसका सबसे पहला मकसद है। सो वह उसके लिये साठ लाख का बंदोबस्त करने जा रहा है। साथ में यह भी लिखा था कि जब तक वह वापिस नहीं आता वो दोनों वहीं रहें।
उस रोज सुनीता और राघव बहुत रोये थे।
(राघव की वापसी- अनिल सलूजा उपन्यास का प्रथम पृष्ठ)
सुनीता और राघव की टांग कटने के विषय में विस्तृत रूप से जानने के लिए पढें- काला खून, मौत की बाहों में, पैट्रोल बम ।
जम्मू में बड़े साहब का शासन चलता है। जी हां, बड़े साहब ।
"यह बड़ा साहब है कौन...?"
"उनका नाम सुमेर सिंह है। जम्मू में बड़े साहब की इजाजत के बिना पत्ता भी नहीं हिल सकता...। यहां की पुलिस, यहां की राजनीति, बड़े साहब की बदौलत ही चलती है सर ।"
"यह क्या बकवास कर रहे हो तुम...? क्या वो कानून से भी ऊपर है?"
"वो कानून से ऊपर ही है बड़े साहब... (87)
बलराज गोगिया के मित्र राघव की एक टांग कट चुकी थी और डाक्टर ने कहा साठ लाख रुपये लगेंगे टांग वापस जुड़ जायेगी। तब बलराज गोगिया अपने मित्र राघव और सुनीता (बलराज की प्रेयसी) को जम्मू में एक छोड़कर स्वयं साठ लाख की व्यवस्था करने हेतु निकल गया। बलराज गोगिया ने साठ लाख की व्यवस्था भी कर ली और जब वह ट्रेन से जम्मू लौट रहा था तब एक हादसे के चलते उसने वह रुपया गवा दिया और स्वयं एक चक्कर में फंस गया और पानीपत में एक बैंक डकैती में उसे शामिल होना पड़ा । यह कहानी 'हारा हुआ जुआरी' में आप पढ सकते हैं।
अब वापस चलते हैं जम्मू की ओर यहां राघव और सुनीता भाई बहन के रूप में रह रहे हैं। राघव एक खतरनाक हत्यारा लेकिन अत्यंत छोटे कद और एक टांग के कारण वह असहाय सा नजर आता है। तभी तो लोग उसके विषय में कहते हैं- विश्वास नहीं हो रहा था कि वो दस साल का नजर आने वाला बच्चा हकीकत में एक बेहद खतरनाक मुजरिम है।(223) यहां राघव रूप कुमार के नाम से रह रहा है।
जम्मू में बड़े साहब का आतंक है और बड़े साहब का छोटा भाई है जालिम सिंह ।
जालिम सिंह करीब सवा छह फीट लम्बा सांड सरीखा चेहरे
से ही खूंखार नजर आने वाला व्यक्ति था।( पृष्ठ-15)
पक्का बदमाश था वह, सो लोग उससे डरते थे ।
पुलिस में भी उसकी पैंठ थी । (पृष्ठ-16)
जालिम सिंह ब्याज पर पैसा देने और फिर जालिम तरीके से उसे वापस वसूलने में यकीन रखने वाला आदमी था। वह सुमेर सिंह का भाई था, स्वयं जालिम था और उसे लोगों में अपना भय देखने का जुनून था।
और एक दिन जालिम सिंह ने जनता के सामने सुनीता के थप्पड़ मार दिया और उसी रात जालिम सिंह की लाश उसके कमरे में पाई गयी।
तब उपन्यास में प्रवेश होता है बड़े साहब सुमरे सिंह का जो अपने भाई के हत्यारे का ढूंढ रहा है। और इसी चक्कर में वह निर्दोष लोगों को भी मारता है। लेकिन उसे हत्यारा नहीं मिलता।
वह अपनी खीझ मिटाने के लिए सुनीता को अपना शिकार बनाता है और अपने घर पर अपने साथियों के सामने वह सुनीता को निर्वस्त्र करता है।
वहीं इंस्पेक्टर अशोक पण्डित जो की सुमेर सिंह के लिए काम करता है। उसे राघव पर शक होता है और वह अपनी कार्यवाही जारी रखता है। जब सुनीता उल्टे कपड़े पहनकर घर पहुंचती है तो वह राघव और अशोक पण्डित को वहाँ उपस्थिति पाती है।
मेन गेट के पीछे आ कर उसने जैसे ही दरवाजा खोला-
वह बुरी तरह से चौंक उठा।
सामने सुनीता खड़ी थी।
बिखरे हुए बाल-सूखे हुए आंसुओं से भरा चेहरा-आंखों के नीचे काले दायरे-बिल्कुल उजड़ी नजर आ रही थी वह।
और जब अशोक पण्डित की नजर उसके कपड़ों पर पड़ी
तो वह गहरी सांस छोड़कर रह गया।
उलटे कपड़े पहने हुए थी वह।
कमीज और शलवार की सिलाई बाहर नजर आ रही थी-जो इस तरफ इशारा करती थी कि उसके साथ कुछ अनर्थ हुआ है।
उसके पीछे मौहल्ले की तीन औरतें भी खड़ी थीं। (पृष्ठ- 65)
यहां सुनीता अशोक पण्डित और राघव के सामने अपनी व्यथा बताती है और सौगंध खाती है।
"हां... मेरे साथ अनर्थ हुआ है-उस कुत्ते सुमेर ने मेरे को अपने दसियों गुलामों के सामने नंगा किया...।" उसने झटके ने राघव को देखा- "तेरी बहन को उस कुत्ते ने नंगा किया था राघव और याद रख-यह जो उलटे कपड़े मैंने पहन रखे हैं-यह भब तभी सीधे होंगे जब उस कुत्ते की मौत होगी। उससे पहले में हर कपड़ा ऐसे ही उलटा पहनूंगी।"(66)
ऐसे समय में कहानी में प्रवेश होता है बलराज गोगिया का जो पानीपत बैंक वैन की डकैती, धोखाधड़ी के पश्चात भी एक बड़ी रकम के साथ जम्मू पहुंचता है और वहाँ उसे पता चलता है सुनीता और राघव के साथ क्या बीती है।
और यहां से संघर्ष आरम्भ होता है जम्मू के डाॅन सुमेर सिंह और बलराज गोगिया के मध्य ।
जहां अधिकांश पुलिस वाले सुमेर सिंह के समर्थक हैं तो वहीं ईमानदार पुलिसवालों की भी कमी नहीं है। ऐसा ही एक पुलिसवाला है...जो कभी सुमरे सिंह से गहरी चोट खा चुका है।- "मेरे लिये मेरी वर्दी से बढ़कर कोई नहीं। इस वर्दी की रक्षा करना, इस पर कोई दाग न लगने देना ही मेरा सबसे पहला और सबसे बड़ा धर्म है। (88)
जहां एस.पी. ... सुमेर सिंह का साथी हैं वहीं ईमानदार पुलिस का बलराज गोगिया को साथ मिलता है क्योंकि पुलिस का मानना है- मगर कई बार कानून को बचाने के लिए अगर कानून को तोड़ा जाये तो वो पाप नहीं होता।(225)
सुमरे सिंह और बलराज गोगिया की इस टक्कर में सुमेर सिंह के पास अथाह दौलत, ताकत, पुलिस, नेताओं का साथ और इसलिए वह बलराज गोगिया को कहता है-अबे तू तो मेरा नाखून भी नहीं छू सकता- मेरी गर्दन तक क्या पहुंचेगा ! तू मेरी ताकत नहीं जानता हरामजादे-सुमेर सिंह वो पहाड़ है-जिसे अकेला चना तो क्या पूरी फौज भी नहीं तोड़ सकती।" (175)
अब कौन जीतेगा और कौन हारेगा यह तो एक्शन उपन्यासों में तय ही होता है लेकिन महत्वपूर्ण यह होता है लेखक महोदय उसे किस तरह से प्रस्तुत करते हैं। अनिल सलूजा जी की यही विशेषता है की उनके उपन्यासों का प्रस्तुतीकरण अच्छा होता है, चाहे कहानी नयी नहीं है पर उनके पास कहानी कहने की कला है।
इनके उपन्यासों की कहानी पूर्णत फिल्मी होती है वहीं प्रस्तुत उपन्यास और अन्य कुछ उपन्यासों में तो यह भी देखने को मिलता है की सारा खेल एक तरफा होता है। यहां भी बलराज गोगिया अपराधी सुमेर सिंह को चोट पर चोट देता है पर सुमेर सिंह की तरफ से सिर्फ बलराज को खोजने का काम होता है, और उसमें भी उसे सफलता नहीं मिलती। वहीं सुमेर सिंह की एक भतीजी बलराज गोगिया का साथ देती है क्योंकि सुमेरे सिंह ने उसके दो प्रेमियों की हत्या करवा दी और अब कविता की शादी वह अपनी पसंद के, अपने जैसे युवक से करवाना चाहता है।
लेखक महोदय अगर कहीं एक दो दृश्य ऐसे बना सकते थे जहां सुमेर सिंह बलराज गोगिया पर भारी पड़ता । पूरा उपन्यास एक तरफा ही चलता है। बलराज गोगिया एक एक कर के सुमेर सिंह के सिपहसालार खत्म कर रहा है, उसके अड्डे तबाह कर रहा है, सुमेर सिंह को धमकी दे रहा है तो सुमेर सिंह.... कुछ भी नहीं कर पाता।
उपन्यास के पात्र चरित्र चित्रण-
उपन्यास के मुख्य पात्रों का संक्षिप्त परिचय यहां दिया जा रहा है।
बलराज गोगिया- यह एक अपराधी है। बलराज गोगिया अपने साथी राघव की कटी टांग को जुड़वाने के लिए साठ लाख की व्यवस्था करने के लिए संघर्ष करता है। लेकिन प्रस्तुत उपन्यास में कहानी थोड़ी अलग यहाँ वह अपनी पत्नी के साथ हुये दुर्व्यवहार का बदला लेता है।
वह अपराधी है पर अच्छे दिल का व्यक्ति भी है।
लोगों के बलराज गोगिया के प्रति विचार देखें-
-वह पुलिस में वांछित एक अपराधी है। मगर वो, वो अपराधी नहीं-जैसे दूसरे होते हैं। उसके सीने में जज्बात हैं। वह दूसरों के दुख को अपना समझने वाला है-वह भावुक है और अण्डरवर्ल्ड की दुनिया में रह कर भी वह पाक-साफ है।"(227)
निम्नलिखित कथन से लगता है कभी बलराज गोगिया कभी परायी स्त्री की तरफ देखता और उसे भोगता भी था लेकिन सुनीता का साथ मिलने के बाद वह बदल गया है बाकी सब वह परिस्थितियों के अनुसार चलता है।
- "त... तुम बहुत ही खूबसूरत हो...। ल... लेकिन मैं अपनी पत्नी को धोखा नहीं दे सकता।" कह कर वह उठा और उसके पैरों में पड़ी नाइटी उठाकर उसे पहनाते हुए बोला- "मेरे कुछ उसूल हैं कविता-जब तक मैं हर तरफ से मजबूर न हो जाऊं-तब तक मैं किसी पराई स्त्री को हाथ नहीं लगाता...। तुम बहुत ही खूबसूरत हो...। मगर मैं अपने उसूलों से बंधा हुआ हूं। हां, तुम्हारी भूख शांत करने का वादा करता हूं मैं...। मेरा दोस्त तुम्हें ऐसा खुश करेगा कि तुम मुझे भूल जाओगी।"(160)
बलराज गोगिया ने चाहे डकैती की हो या फिर अपने मित्र राघव के लिए साठ लाख की व्यवस्था वह कभी लालची व्यक्ति नहीं बना। उसने 'हारा हुआ जुआरी' में साठ लाख रुपए एक जरूरत मंद औरत को दे दिये थे।
प्रस्तुत उपन्यास में भी वह सुमेर सिंह के खजाने की प्राप्ति के लिए कोई दिलचस्पी नहीं लेता-
"मैं लालची आदमी नहीं हूं सर-और न ही में चाहता हूं कि खून बहा कर कमाई दौलत से अपना पेट भरूं...। में तो शराफत की जिन्दगी जीना चाहता हूं-एक आम आदमी की तरह लोगों की भीड़ में गुम हो जाना चाहता हूं-लेकिन ऊपर वाले को शायद मंजूर नहीं कि में चैन से बैठ सकूं। तभी तो कुत्ते की तरह कभी इस गली-कभी उस गली भागता फिरता हूं...।"-260
बलराज गोगिया का मानना है की किसी भी ताकत को चुनौती देने के लिए दिमाग होना आवश्यक है और इसी दिमाग के बल पर वह सुमेर सिंह को शिकस्त देता है-
-लड़ाईयां फौज की संख्या से नहीं जीती जातीं-दिमाग से जीती जाती हैं...।" बलराज गोगिया ने अपनी कनपटी ठकठकाई।(159)
राघव-
यह बलराज गोगिया का साथी है और इसकी एक टांग कट चुकी है, कद इसका नौ-दस के बच्चे जितना है लेकिन यह बहुत ही खतरनाक और बेरहम है।
राघव का जिन्न
बेचारी सपना ने जादुई जिन्न के पूरे आकार को देखा ही कहां था। वह खासियत राघव को गॉड-गिफ्ट थी कि वह अपनी मर्जी से जादुई जिन्न को घटा-बढ़ा सकता था।(19)
मैंने तुम्हारे बारे में जाना है-तुम्हारे पास जादुई जिन्न है, जो तुम्हारी मर्जी पर अपना कद घटा-बढ़ा सकता है...।" "फिक्र मत करो...।" राघव मुस्कुराया- "चाय-वगैरह पी लें, उसके बाद तुम्हें जादुई जिन्न के नजारे दिखाऊंगा।"-171
उपन्यास के कुछ घटनाक्रम प्रभावित करते हैं। इस उपन्यास का एक घटनाक्रम देखें जब डाॅन सुमेर सिंह अपने एक छोटे गुर्गे को आदेश देता है और मौत को सामने देखे वह गुर्गा सुमेर सिंह को भी खरी खोटी सुना देता है।
"भाड़ में जा...।"
"क्या...?" बुरी तरह से बौखला उठा सुमेर सिंह।
"भाड़ में जा तू और तेरा माल भी भाड़ में जाये...।"
"हरामजादे-नमकहरामी कर रहा है?"
"अरे, कैसा मालिक है तू? यहां हम बारूद के बीच बैठे जान और और बारूद को आग लगी हुई है-और तेरे को हमारी जान की बजाये अपने माल की पड़ी हुई है? लानत है तेरे पर! ....(274)
उपन्यास के कुछ महत्वपूर्ण संवाद देखें जो काफी प्रभावशाली हैं । हालांकि अनिल सलूजा जी के उपन्यासों में सूक्तिनुमा संवादों की जगह बहुत कम होती है ।
"जब किसी का पतन शुरू होता है-तब उससे इसा कोई-न-कोई गलती हो जाती है जो उसे मौत की तल जाती है। (पृष्ठ- 285)
"औरत जब तक चुप रहती है-तब तक वह शांत रहती है-मगर -मगर जब यो बिफर जाये तो उसके आगे कोई नहीं ठहर सकता।"(288)
- जिसका दिल सच्चा होता है- जिसमें दूसरों के लिए कुछ करने का जज्चा होता है, भगवान भी उनकी मदद करता है।(302)
अनिल सलूजा जी का प्रस्तुत उपन्यास 'राघव की वापसी' अपने शीर्षक को सार्थक करता प्रतीत नहीं होता । या फिर इसे इस दृष्टि से देखें की अपनी टांग कट जाने के पश्चात राघव कभी एक्शन करता नहीं दिखा होगा (हालांकि राघव की टांग कटने और उसके पश्चात के उपन्यासों में से मैंने 'मुझे मौत चाहिए' और 'हारा हुआ जुआरी' ही पढें हैं जिनमें राघव का किरदार गौण है) और इस उपन्यास में वह एक्शन दृश्यों में खतरनाक होता नजर आया है।
वहीं मात्र वापसी की बात करें तो अपने यार राघव के लिए साठ लाख की व्ववस्था करके बलराज गोगिया लौटा है। कहां से लौटा है यह आप 'हारा हुआ जुआरी' में पढ सकते हैं । प्रस्तुत उपन्यास में जम्मू से माता वैष्णो देवी के दर्शन करने जाते हैं और वहां से सीधे पहुंचते हैं मुम्बई में'नृशंसक' से टकराते है और वहा होते हैं इनके पुराने साथी इंस्पेक्टर शिंदे, अण्डरवर्ल्ड डाॅन हुकूमत शाह और उसके साथी । यह कहानी आप उपन्यास 'नृशंसक' में पढें।
प्रस्तुत उपन्यास एक्शन दृश्यों की दृष्टि से एक रोचक रचना है जिसे एक बार मनोरंजन की दृष्टि से पढा जा सकता है।
अंत में बलराज- गोगिया के विषय में चंद शब्द कविता के माध्यम से-
कविता के होठों पर विजयी मुस्कान उभर आई। सीना चौड़ा हो गया- "मैंने तुमसे कहा था न मैंने अंडरवर्ल्ड के हर छोटे-बड़े खलीफा को रीड किया है। तुम दोनों के बारे में तो कुछ ज्यादा ही रीड किया है, क्योंकि तुम अण्डरवर्ल्ड में अपनी मर्जी से नहीं आये-बल्कि अण्डरवर्ल्ड में धकेले गये हो। कीचड़ में रह कर भी कमल हो तुम। ऐसा दूसरा मेरे को अभी तक कोई नजर नहीं आया जो कोयले की कोठरी में घुस कर भी बिना दाग के निकला हो। हां- राघव के बारे में जरूर सुना था कि यह एक खूंखार हत्यारा था...।" उसने राघव की तरफ देखा ।
उपन्यास- राघव की वापसी
लेखक- अनिल सलूजा
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अनिल सलूजा जी के अन्य उपन्यासों की समीक्षाफंदा
हारा हुआ जुआरी
मुझे मौत चाहिए
नृशंसक
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