Tuesday, 22 September 2020

380. शहर बनेगा कब्रिस्तान- वेदप्रकाश कांबोज

जब मुंबई शहर पर छाये संकट के बादल
शहर बनेगा कब्रिस्तान- वेदप्रकाश काम्बोज


बम्बई के मुख्यमंत्री को सूचित किया जाता है कि इस शहर में हमने एक खतरनाक एटम बम रखा हुआ है, जो अब से छत्तीस घण्टे बाद यानि शनिवार रात के दस बजे फट जायेगा और दुनिया के नक्शे से इस खूबसूरत शहर को नेस्तानाबूद करके एक विशाल कब्रिस्तान में बदल देगा। (उपन्यास अंश)
           वे खतरनाक मुजरिम थे जो सन् 1993 के मुंबई सिरियल बम ब्लास्ट की तरह एक बार फिर मुंबई को दहला देना चाहते थे वे मुंबई को कब्रिस्तान बनाने की जिद्द पर थे।  उनकी खतरनाक साजिश के आगे सी.बी.आई. भी बेबस थी। उनका कोई सुराग न था और बम ब्लास्ट होने के 36 घण्टे पहले उन्होंने अपनी मांग मुख्यमंत्री के समक्ष रखी।
- वह खतरनाक मुजरिम कौन थे?
- आखिर उनकी योजना क्या थी?
- उस योजना के पीछे कौन था?
- क्या CBI उस योजना को नाकाम कर पायी? 
   वेदप्रकाश काम्बोज जी द्वारा लिखा गया 'शहर बनेगा कब्रिस्तान' एक थ्रिलर उपन्यास है। जैसा की थ्रिलर उपन्यास का अंत लगभग पता होता है लेकिन उसका प्रस्तुतीकरण महत्व रखता है।

    यहाँ हम बात इसी प्रस्तुतीकरण की करे तो यह बहुत प्रभावशाली और रोचक है। जो पल प्रतिपल यह सोचने पर विवश करता है की आगे क्या होगा। इसी जिज्ञासा वश पाठक उपन्यास को पढता चला जाता है।

    उपन्यास की कहानी एक अलग घटनाक्रम से आरम्भ होती है। कहानी आरम्भ होती है एक शातिर चोर जूही से जो की एक सी.बी. आई. वाले की मुँह बोली बहन भी है।
       यानि मुझे उड़ते हुए प्लेन में से हीरे चुराने है?" जूही राणा ने अपने सामने बैठे व्यक्ति को अजीब सी नजरों से देखते हुए बोला। क्योंकि वह विचित्र योजना उसी की थी।(उपन्यास अंश)
   दूसरी कहानी आतंकवादियों की चलती है जो हर काम करने के पश्चात अपने पीछे के सबूत खत्म कर देते हैं।

    वहीं आतंकवादियों की इस खतरनाक साजिश का चंद लोगों को ही पता होता है और उनके उपर दायित्व है बम को खोजना, आतंकवादियों का पता लगाना और शहर को बचाना लेकिन समय धीरे-धीरे आगे बढ रहा था।
        आंतकवादियों के अलटीमेटम की अवधि समाप्त होने में अब सिर्फ तीन घण्टे से भी कम समय रह गया था। मगर अभी तक न उन आतंकवादियों का कुछ पता चल पाया था और न उस विध्वंसक बम का। (उपन्यास अंश)
   अब उपन्यास में यही रोचकता है की आखिर सी.बी. आई. उस लक्ष्य तक कैसे  पहुंचती है। यह इतना रोचक है की कल्पनातीत है। हालांकि इसके साथ-साथ कुछ और भी रोचक घटनाएं चलती रहती हैं। जैसे आतंकवादियों के घटनाक्रम, जूही के कारनामे आदि।
उपन्यास के पात्र
  उपन्यास में पात्रों की संख्या ज्यादा ही है। पात्रों की संख्या आरम्भ में तो कुछ असमंजस पैदा करती है लेकिन बाद में सब पात्रों को सहजता से समझा जा सकता है।

संदीप गांधी- CBI एजेंट
गौरव गांधी
इरफान- CBI एजेंट
विनय राखाल
जूही
सांवत-
रेणुका- सेक्रेटरी
इनायत अली- एक बांग्लादेशी
आयशा सिद्दीकी- नर्स।
रहमान सिद्दीकी
इंस्पेक्टर- रानाडे
नारायण आप्टे- सी बी आई चीफ, मुंबई
राधेश्याम वर्मा- मकान मालिक
गजानन राव- प्रधानमंत्री
वलवंत साहनी- प्रधानमंत्री सचिव
शंकर राव- प्रधानमंत्री का पुत्र
माधव भौंसले- मुंबई मुख्यमंत्री
नार्लिकर- पुलिस कमिश्नर
सुदर्शन सिंह- वित्त मंत्री
कृष्णन- डाक्टर
कमला पंवार/ रुखसाना/ सुनीता शर्मा
रामदेव कांटा-
रेहाना
सुहेल
शीराजी
टोनी फर्नांडीस- बार मैंन
मारिया- डांसर
दीनानाथ जुत्सी- फोटोग्राफर
 
उपन्यास में कुछ पात्र अपराधी किस्म के हैं लेकिन देशद्रोही नहीं है। वही पात्र जब देश के लिए जान की बाजी लगाने को तैयार होते हैं तो उनकी भूमिका और भी प्रभावशाली हो जाती है।

              प्रस्तुत उपन्यास आतंकवाद को आधार बना कर लिखा गया एक तेज रफ्तार थ्रिलर उपन्यास है। कहानी बहुत ही रोचक और घुमावदार है। कथानक पाठक को प्रभावित करने में पूर्णतः सक्षम है। आदि से अंत तक रोचक और पठनीय उपन्यास।
उपन्यास- शहर बनेगा कब्रिस्तान
लेखक-    वेदप्रकाश कांबोज
प्रकाशक- 

2 comments:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। मिलता है तो पढ़ता हूँ।

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