तेरह लोगों के सामूहिक हत्याकाण्ड की कहानी।
रात गवाह है- किश्वर देसाई, उपन्यास
इस अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त रचना के शीर्षक ने ही मुझे आकृष्ट कर लिया था। और वहीं पढने की इच्छा ने उपन्यास को मेरे पुस्तकालय में वृद्धि कर दी। समयाभाव के चलते उपन्यास पठन में देरी हो गयी।
यह उपन्यास भारतीय समाज में पुत्र मोह और पुत्री को बोझ समझने जैसी विचारधारा को एक नाबालिग के दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।
उपन्यास के आवरण पृष्ठ पर लिखित कुछ अंश पढें।
यह उपन्यास एक चौदह साल की लड़की दुर्गा के जीवन का सजीव चित्रण है। दुर्गा पंजाब के एक बड़े- से घर में अकेली पाई गयी। खामोश, डरी हुई और परिवार के तेरह सदस्यों के सामूहिक हत्याकांड की एकमात्र संदिग्ध आरोपी। हर कोई मानता है कि सामूहिक हत्याकाण्ड जो अंजाम तक दुर्गा ने ही पहुंचाया, लेकिन सिमरन को इस पर विश्वास नहीं। सिमरन जो शराब की लत में डूबी और लगातार सिगरेट फूंकने वाली दिल्ली की समाजसेविका है, जिसका मानना है कि दुर्गा संदिग्ध से ज्यादा पीड़ित है।
सिमरन रहस्य से पर्दा उठाने की कोशिश करती है कि सामूहिक हत्याकाण्ड की उस रात को वाक ई क्या हुआ था? वह दुर्गा के पास जाती है तथा जालंधर और यहाँ के लोगों के बीच वह बेचैन महसूस करती है। उनमें दुर्गा के रहस्यमय टयूटर हरप्रीत सर, उसकी कुरूप पत्नी, उच्चवर्गीय अमरिंदर कौर, तथा उसका पति रामनाथ शामिल हैं।
जिस अन्याय और विभिन्न रहस्यों से उसका वास्ता पड़ता है, वह उसे भीतर तक झकझोर कर रख देता है और सिमरन ठान लेती है कि जब तक पूरा सच नहीं जान लेगी, चैन से नहीं बैठेगी।
डर से कंपा देने वाला यह पहला उपन्यास है जो परम्पराओं में बंधे भारत की विसंगत और दारूण परिस्थितियों को उद्घाटित करता है।
- क्या एक चौदह साल की लड़की एक कुकृत्य कर सकती है?
- क्या वजह रही होगी इस काण्ड के पीछे?
- दुर्गा क्यों खामोश थी?
- कौन थे असली हत्यारे?
मानवीय संवदेना से भरा यह उपन्यास मात्र एक मर्डर मिस्ट्री नहीं है। इसे मर्डर मिस्ट्री की दृष्टिकोण से पढना भी सही नहीं है। यह उपन्यास तो हमारे समाज में नारी के प्रति समाज के दृष्टिकोण को परिभाषित करता नजर आता है।
दुर्गा का जीवन सामान्य जीवन न था। वह उस घर की सदस्य थी जहाँ एक पुत्र की चाह में पुत्रियाँ आ गयी। परिवार चाहे धार्मिक था लेकिन पुत्र मोह हद से ज्यादा था।
वहीं दूसरी तरफ समाजसेविका सिमरन भी 45 वर्ष की उम्र में अविवाहित है। उसके लिए आरोपी दुर्गा को झना इतना आसान न था। दुर्गा की खामोशी हर रहस्य पर पर्दा डाल रही थी।
उपन्यास जैसे -जैसे आगे बढता है तो वैसे-वैसे नये रहस्य सामने आते रहते हैं। धीरे-धीरे कड़ी से कड़ी जोड़कर सिमरन जो शृंखला बनाती है, जो तस्वीर सामने आती है वह बहुत भयावह है। कुछ विषयों को उपन्यास में उठाया गया है।
हमारे समाज में आज भी पुत्र मोह के चलते बेटियों को निम्नतर समझा जाता है। कहीं कहीं तो नवजात बच्चियों को मार दिया जाता है।
- आज भी भारतीय पुलिस का आरोपी के प्रति नजरिया नकारात्मक है।
- अपराधी सुधारगृह तो यातनागृह बन गये हैं।
ऐसे बहुत से समसामयिक विषयों को इस उपन्यास में उजागर किया गया है।
उपन्यास को अगर मर्डर मिस्ट्री की दृष्टि से देखा जाये तो यह एक नहीं अनेक अधूरे उत्तरों के साथ खत्म हो जाता है। मुख्य प्रश्न भी यथावत रहता है। बस एक घटना बन कर रह जाता है। लेकिन यह उपन्यास तो एक समाजसेविका के मानवीय दृष्टिकोण से लिखा गया है। इसलिए इसमें उन्हीं बातों को दर्शाया गया है जो नारी के प्रति समाज में व्याप्त है।
उपन्यास में कुछ छोटी-छोटी खामियां है जो उपन्यास को प्रभावित करती नजर आती हैं।
यह उपन्यास मैंने सण्डे मार्केट दरियागंज दिल्ली से खरीदा था। मात्र 50₹ में। यह किश्वर देसाई के अंग्रेजी उपन्यास Witness the Night का हिन्दी अनुवाद है।
उपन्यास के आवरण पृष्ठ पर लिखी बातें मुझे आकर्षक लगी। उपन्यास का शीर्षक और 'तेरह लोगों की हत्या, एकमात्र आरोपी, एक दिल छू लेने वाली कहानी'। समाचार पत्र में क ई बार ऐसे सामूहिक हत्याकाण्ड के बारे में पढा है। कई बार तो ऐसे सामूहिक हत्याकाण्ड भी पढे हैं जिसमें कोई लड़की मुख्य आरोपी रही है। मेरी जिज्ञासा यही रही की आखिर एक लड़की ने ऐसा कदम क्यों उठाया। क्या वजह रही होगी इस प्रकरण के पीछे।
संवाद- कुछ संवाद जो मुझे अच्छे लगे।
दुनियां ने जिसका एक बार बचपन लूट लिया...तो तय है की उसका बचपन अब दोबारा नहीं लौट सकता। (पृष्ठ-23)
जब देश की चालीस फीसदी जनता मुफीद शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण नहीं पा सकती तो मानसिक समस्याएं ज्यादा होंगी ही। (पृष्ठ-120)
निष्कर्ष-
'रात गवाह है' अंग्रेजी उपन्यास 'witness the night' का हिन्दी अनुवाद है। उपन्यास सामूहिक हत्याकाण्ड की तह तक पहुंचने की एक समाजसेविका की कोशिश का परिणाम है।
यह उपन्यास मूलतः भावनाओं को लेकर लिखा गया है। इसे एक मर्डर मिस्ट्री की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता।
हमारे समाज में औरत के प्रति समाज के दृष्टिकोण को उजागर करता है यह उपन्यास पठनीय है।
उपन्यास- रात गवाह है।
(Witness the Night)
लेखिका- किश्वर देसाई
पृष्ठ - 240
मूल्य- 150
ISBN- 978 81 216 1580 8
प्रकाशक- हिन्द पॉकेट बुक्स/ फुल सर्कल
www.hindpocketbooks.in
रात गवाह है- किश्वर देसाई, उपन्यास
इस अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त रचना के शीर्षक ने ही मुझे आकृष्ट कर लिया था। और वहीं पढने की इच्छा ने उपन्यास को मेरे पुस्तकालय में वृद्धि कर दी। समयाभाव के चलते उपन्यास पठन में देरी हो गयी।
यह उपन्यास भारतीय समाज में पुत्र मोह और पुत्री को बोझ समझने जैसी विचारधारा को एक नाबालिग के दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है।
उपन्यास के आवरण पृष्ठ पर लिखित कुछ अंश पढें।
यह उपन्यास एक चौदह साल की लड़की दुर्गा के जीवन का सजीव चित्रण है। दुर्गा पंजाब के एक बड़े- से घर में अकेली पाई गयी। खामोश, डरी हुई और परिवार के तेरह सदस्यों के सामूहिक हत्याकांड की एकमात्र संदिग्ध आरोपी। हर कोई मानता है कि सामूहिक हत्याकाण्ड जो अंजाम तक दुर्गा ने ही पहुंचाया, लेकिन सिमरन को इस पर विश्वास नहीं। सिमरन जो शराब की लत में डूबी और लगातार सिगरेट फूंकने वाली दिल्ली की समाजसेविका है, जिसका मानना है कि दुर्गा संदिग्ध से ज्यादा पीड़ित है।
सिमरन रहस्य से पर्दा उठाने की कोशिश करती है कि सामूहिक हत्याकाण्ड की उस रात को वाक ई क्या हुआ था? वह दुर्गा के पास जाती है तथा जालंधर और यहाँ के लोगों के बीच वह बेचैन महसूस करती है। उनमें दुर्गा के रहस्यमय टयूटर हरप्रीत सर, उसकी कुरूप पत्नी, उच्चवर्गीय अमरिंदर कौर, तथा उसका पति रामनाथ शामिल हैं।
जिस अन्याय और विभिन्न रहस्यों से उसका वास्ता पड़ता है, वह उसे भीतर तक झकझोर कर रख देता है और सिमरन ठान लेती है कि जब तक पूरा सच नहीं जान लेगी, चैन से नहीं बैठेगी।
डर से कंपा देने वाला यह पहला उपन्यास है जो परम्पराओं में बंधे भारत की विसंगत और दारूण परिस्थितियों को उद्घाटित करता है।
- क्या एक चौदह साल की लड़की एक कुकृत्य कर सकती है?
- क्या वजह रही होगी इस काण्ड के पीछे?
- दुर्गा क्यों खामोश थी?
- कौन थे असली हत्यारे?
मानवीय संवदेना से भरा यह उपन्यास मात्र एक मर्डर मिस्ट्री नहीं है। इसे मर्डर मिस्ट्री की दृष्टिकोण से पढना भी सही नहीं है। यह उपन्यास तो हमारे समाज में नारी के प्रति समाज के दृष्टिकोण को परिभाषित करता नजर आता है।
दुर्गा का जीवन सामान्य जीवन न था। वह उस घर की सदस्य थी जहाँ एक पुत्र की चाह में पुत्रियाँ आ गयी। परिवार चाहे धार्मिक था लेकिन पुत्र मोह हद से ज्यादा था।
वहीं दूसरी तरफ समाजसेविका सिमरन भी 45 वर्ष की उम्र में अविवाहित है। उसके लिए आरोपी दुर्गा को झना इतना आसान न था। दुर्गा की खामोशी हर रहस्य पर पर्दा डाल रही थी।
उपन्यास जैसे -जैसे आगे बढता है तो वैसे-वैसे नये रहस्य सामने आते रहते हैं। धीरे-धीरे कड़ी से कड़ी जोड़कर सिमरन जो शृंखला बनाती है, जो तस्वीर सामने आती है वह बहुत भयावह है। कुछ विषयों को उपन्यास में उठाया गया है।
हमारे समाज में आज भी पुत्र मोह के चलते बेटियों को निम्नतर समझा जाता है। कहीं कहीं तो नवजात बच्चियों को मार दिया जाता है।
- आज भी भारतीय पुलिस का आरोपी के प्रति नजरिया नकारात्मक है।
- अपराधी सुधारगृह तो यातनागृह बन गये हैं।
ऐसे बहुत से समसामयिक विषयों को इस उपन्यास में उजागर किया गया है।
उपन्यास को अगर मर्डर मिस्ट्री की दृष्टि से देखा जाये तो यह एक नहीं अनेक अधूरे उत्तरों के साथ खत्म हो जाता है। मुख्य प्रश्न भी यथावत रहता है। बस एक घटना बन कर रह जाता है। लेकिन यह उपन्यास तो एक समाजसेविका के मानवीय दृष्टिकोण से लिखा गया है। इसलिए इसमें उन्हीं बातों को दर्शाया गया है जो नारी के प्रति समाज में व्याप्त है।
उपन्यास में कुछ छोटी-छोटी खामियां है जो उपन्यास को प्रभावित करती नजर आती हैं।
यह उपन्यास मैंने सण्डे मार्केट दरियागंज दिल्ली से खरीदा था। मात्र 50₹ में। यह किश्वर देसाई के अंग्रेजी उपन्यास Witness the Night का हिन्दी अनुवाद है।
उपन्यास के आवरण पृष्ठ पर लिखी बातें मुझे आकर्षक लगी। उपन्यास का शीर्षक और 'तेरह लोगों की हत्या, एकमात्र आरोपी, एक दिल छू लेने वाली कहानी'। समाचार पत्र में क ई बार ऐसे सामूहिक हत्याकाण्ड के बारे में पढा है। कई बार तो ऐसे सामूहिक हत्याकाण्ड भी पढे हैं जिसमें कोई लड़की मुख्य आरोपी रही है। मेरी जिज्ञासा यही रही की आखिर एक लड़की ने ऐसा कदम क्यों उठाया। क्या वजह रही होगी इस प्रकरण के पीछे।
संवाद- कुछ संवाद जो मुझे अच्छे लगे।
दुनियां ने जिसका एक बार बचपन लूट लिया...तो तय है की उसका बचपन अब दोबारा नहीं लौट सकता। (पृष्ठ-23)
जब देश की चालीस फीसदी जनता मुफीद शिक्षा, स्वास्थ्य और पोषण नहीं पा सकती तो मानसिक समस्याएं ज्यादा होंगी ही। (पृष्ठ-120)
निष्कर्ष-
'रात गवाह है' अंग्रेजी उपन्यास 'witness the night' का हिन्दी अनुवाद है। उपन्यास सामूहिक हत्याकाण्ड की तह तक पहुंचने की एक समाजसेविका की कोशिश का परिणाम है।
यह उपन्यास मूलतः भावनाओं को लेकर लिखा गया है। इसे एक मर्डर मिस्ट्री की दृष्टि से नहीं देखा जा सकता।
हमारे समाज में औरत के प्रति समाज के दृष्टिकोण को उजागर करता है यह उपन्यास पठनीय है।
उपन्यास- रात गवाह है।
(Witness the Night)
लेखिका- किश्वर देसाई
पृष्ठ - 240
मूल्य- 150
ISBN- 978 81 216 1580 8
प्रकाशक- हिन्द पॉकेट बुक्स/ फुल सर्कल
www.hindpocketbooks.in
उपन्यास मुझे रोचक लग रहा है। अपनी पढ़े जाने वाली किताबों की सूची में इसे जोड़ दिया है। वक्त मिलते ही इसे पढ़ूँगा।
ReplyDeleteकाफी अच्छी विषय वस्तु है।
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