Tuesday, 11 June 2019

207. बंदर की करामात- सुरेन्द्र मोहन पाठक

बंदर का खतरनाक मनोरंजक कारनामा
बंदर की करामात- सुरेन्द्र मोहन पाठक, उपन्यास
सुनील और जुगल किशोर सीरिज

सुनील सीरिज का 17 वां उपन्यास
समाचार पत्र ब्लास्ट के रिपोर्टर सुनील के मित्र जुगल किशोर उर्फ बन्दर ने रोमांच अनुभव प्राप्त करने के लिये एक ऐसे बखेड़े में टांग फंसा डाली थी जो कि ऊपर से देखने में तो साधारण सा लगता था। लेकिन बन्दर की इस करामात के चक्कर में पड़ कर ऐसी स्थिति पैदा हो गई कि सुनील को लगा जैसे उसके और बंदर के गले में फांसी का फंदा पड़ने वाला है। ( उपन्यास के आवरण पृष्ठ से)
बंदर की करामात- सुरेन्द्र मोहन पाठकनी
सुनील चक्रवर्ती 'ब्लास्ट' नामक समाचार पत्र का रिपोर्टर है। और बंदर उसका दोस्त। भला बंदर भी कोई नाम हुआ? बंदर का वास्तविक नाम जुगल किशोर था...लेकिन हर कोई उसे बंदर ही कहता था। 
बंदर एक बेहद दुबला-पतला तीखे नाक नक्श वाला सुंदर था। लेकिन उसके व्यक्तित्व का सबसे अधिक महत्वपूर्ण अंग था उसका चश्मा।

          बंदर लड़कियों का दीवाना था और लड़किया अक्सर उसे मूर्ख बना देती थी, लेकिन बंदर फिर भी खुश था। और इस बार भी जुगल एक लड़की के चक्कर में बुरा फंस गया।
एक अजनबी लड़की ने बंदर के सामने एक आॅफर रखा। वह आॅफर था एक फ्लैट से एक रिवाॅल्वर को चुराना। और वह फ्लैट था कमल मेहरा का।
           मित्रता के नाते सुनील भी उसके साथ हो लिया। लेकिन वहाँ परिस्थितियाँ ऐसी पलटी की सुनील को उस बखेड़े में टांग फसानी पड़ गयी‌। और टांग ऐसी फंसी की एक हत्या के जुर्म में फांसी का फंदा नजर आने लगा।
- आखिर वह लड़की कौन थी?
- वह उस रिवाॅल्वर को क्यों चुराना चाहती थी?
- क्या बंदर और सुनील ने हत्या की थी?
- आखिर दोनों इस चक्कर से कैसे निकले?
- आखिर इस पूरे प्रकरण के पीछे क्या रहस्य था?


        यह एक छोटा सा उपन्यास है लेकिन कथानक के स्तर पर काफी रोचक है। कहीं कोई अनावश्यक संवाद, दृश्य या घटना नहीं है जो कहानी के प्रवाह को धीमा करे।
सुनील चक्रवर्ती अपने मित्र जुगल किशोर उर्फ बंदर की मदद करने के चक्कर में कमल मेहरा से टकरा जाता है।
लेकिन यह टक्कर दोनों को बहुत भारी पड़ती है।
'क्या हो गया है?'- सुनील हैरानी से बोला।
'कमल मेहरा भगवान को प्यारे हो गये।' बंदर बोला।
'कब, कैसे, कहां।'

इसी कमल मेहरा की हत्या का आरोप जुगल किशोर और सुनील पर आता है।
यही से उपन्यास का असली कथानक आरम्भ होता है। एक ऐसे व्यक्ति की हत्या का आरोप जिसकी उन्होंने एक बार शक्ल देखी थी।
आखिर कौन इन दोनों को कमल मेहरा की हत्या के आरोप में फंसाना चाहता था। जब सुनील इस केस पर निकला तो उसके सामने एक पुराने रहस्य खुलते गये।

        उपन्यास का आरम्भ जुगल किशोर उर्फ बंदर से होता है लेकिन अंत में जुगल किशोर कहीं नजर नहीं आता। उपन्यास में सब इंस्पेक्टर प्रभु दयाल है लेकिन उसका किरदार प्रभावी नहीं है।
सुनील मान सिंह रोड़ पर जौहरी के साथ एक मकान में जाता है। वहाँ पर सुनील जो अनुमान लगाता है वह बिलकुल सही होते हैं। लेकिन अनुमान लगाने का तरीका मात्र सस्पेंश बनाने जैसा होता है न की कोई 'विशेष तथ्य' पर आधारित।

निष्कर्ष-
बंदर की करामात एक छोटा सा किंतु रोचक उपन्यास है। यह एक थ्रिलर कथानक है। रोचक है। पाठक को कहीं निराश नहीं करेगा। यह एक पठनीय रचना है।
उपन्यास - बंदर की करामात 
लेखक-    सुरेन्द्र मोहन पाठक
संस्करण-  दिसंबर, 1967
प्रकाशक- सुमन पॉकेट बुक्स, दिल्ली
शृंखला-   सुनील सीरिज, 17

2 comments:

  1. आप विवेक अग्रवाल की अपराध जगत पर आधारित माफिया सिरीज की छह किताबें या रक्तगंध जैसी किताबें जरूर पढ़ें, शायद आपकी यह शिकायत दूर हो जाए कि अपराध कथाओं और उपन्यास में कहानी के तत्व नहीं होते हैं। उनकी दो दर्जन किताबां उपलब्ध हैं।

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    1. विवेक अग्रवाल जी की रचनाएँ पढने की कोशिश रहेगी। आपने अच्छी जानकारी दी, धन्यवाद।

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