सिंगला मर्डर केस- सुरेन्द्र मोहन पाठक, मर्डर मिस्ट्री, मध्यम स्तर।
- हिमेश सिंगला एक पचास वर्ष का गंजा व्यक्ति था जो विग लगाकर अपना बचाव करता था।
- हिमेश सिंगला मामूली शक्ल- सूरत वाला व्यक्ति था लेकिन औरतों का रसिया था।
- हिमेश सिंगला एक लम्पट प्रवृत्ति वाला व्यक्ति था जो एक रात अपने घर के ड्राइंगरूम में मरा पड़ा था।
हिमेश सिंगला की अस्वाभाविक मौत या हत्या के शक के दायरे में कई लोग आते हैं।
हिमेश सिंगला का एक भाई है शैलेष सिंगला जिसके बुलावे पर ब्लास्ट समाचार पत्र के रिपाॅर्टर सुनील चक्रवर्ती का इस केस में हस्तक्षेप होता है। सुनील ही वह व्यक्ति है जो असली कातिल तक पहुंचता है।
- एक बड़े सम्पन्न परिवार का रोशन चिराग बताया जाता है। यानि कि फाईनांशल फैमिली बैकग्राउंड तो बढ़िया है ही, ऊपर से ब्रोकेज का उसका अपना बिजनेस भी ऐन फिट है। कैसानोवा जैसी छवि का आदमी था और सोसायटी के लिहाज से पेज थ्री पर्सनैलिटी माना जाता था। (पृष्ठ-16)
और एक दिन इसी पर्सनैलिटी की कोई हत्या कर देता है।
वो एक सॊफाचेयर बैठा हुआ था जबकि किसी ने उसका भेजा उड़ा दिया था। (पृष्ठ-17)
उसके घर में, उसी की गन से, उसी के सोफाचेयर पर किसी ने उसकी हत्या कर दी। इंस्पेक्टर प्रभुदयाल इस केस की जाँच करता है और दूसरी तरफ पत्रकार सुनील चक्रवर्ती भी इस केस पर कार्यरत है। लेकिन दोनों का तरीका अलग-अलग है। पुलिस की जाँच में एक व्यक्ति स्वयं को कातिल के तौर पर पुलिस के समक्ष प्रस्तुत करता है लेकिन वह सुनील को कातिल नजर नहीं आता।
एक आदमी अपनी जुबानी कहता है की वो कातिल है, तुम कहते हो नहीं है। (पृष्ठ-189)
सुनील जो की एक खोजी पत्रकार है वह इस मर्डर केस पर कार्य करता है। इसके लिए वह समय-समय पर अपने मित्र रमाकांत और पुलिस विभाग से भी जानकारी एकत्र करता है। सुनील का अपना एक अलग तरीका है जो पुलिस विभाग से अलग है। इस मर्डर की छानबीन पुलिस भी करती है लेकिन सुनील चक्रवर्ती अपने तरीके से पुलिस से कुछ ज्यादा सक्रिय है लेकिन जहां उसे पुलिस की जरूरत होती है वह पुलिस की मदद लेता है।
उपन्यास में एकमात्र रमाकांत ही ऐसा व्यक्ति है जो कुछ स्तर तक प्रभावित करता है स्वयं सुनील भी कोई अच्छा प्रभाव पाठक पर स्थापित नहीं कर पाता।
- यूथ क्लब के रमाकांत का अंदाज ही निराला है- "मैं कार पर यहाँ से निकला तो मोड़ पर ही एक्सीडेंट हो गया। फौरन मैंने महाराज को फोन खड़काया तो जानते हो क्या जवाब मिला?"
- "क्या?"
- कार कुंभ राशि थी और उसके लिए उस शनिवार की भविष्यवाणी थी कि गैराज से ..बाहर न निकाले।"
- "क्या कहने।"
- "दो राशियां क्लैश कर गयी इसलिए नतीजा उलट हुआ।" (पृष्ठ-163)
रमाकांत का बोलने का अंदाज उपन्यास को कुछ हद तक संभालने में सक्षम है।
उपन्यास मूलतः एक मर्डर मिस्ट्री है। जो एक कत्ल से आरम्भ होकर एक -एक संदिग्ध से होकर आगे बढती है। उपन्यास में या पात्रों में भी ज्यादा रोचकता या कहानी में कोई घूमाव नहीं बस एक जगह जब एक पात्रों स्वयं को कातिल के तौर पर प्रस्तुत करता है तो कुछ रोचकता बढती है।
- उपन्यास इतनी धीमी रफ्तार से आगे बढता है की पाठक उकता जाता है। कहानी का अनावश्यक विस्तार और धीमी गति और उस पर एक जैसे दृश्य उपन्यास के पाठन को बाधित करते हैं। पत्रकार सुनील के पास भी ज्यादा संभावनाएं नहीं है वह बस चंद पात्रों से प्रश्न-उत्तर करता रहता है जिससे सभी दृश्य एक जैसे नजर आते हैं।
उपन्यास कहानी के स्तर पर अच्छी है लेकिन प्रस्तुतीकरण इसका अच्छा न हो सका
निष्कर्ष-
प्रस्तुत उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री है जिसे सुनील नामक पत्रकार हल करता है। उपन्यास की रफ़्तार बहुत ही धीमी है। इसलिए उपन्यास ज्यादा दिलचस्प नहीं बन पाया। उपन्यास नीरस ज्यादा लगता है।
उपन्यास को बस एक बार पढा जा सकता है।
--------------------
उपन्यास- सिंगला मर्डर केस
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ- 263
मूल्य- 100₹
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असली अपराधी - सुरेन्द्र मोहन पाठक
थ्रिलर।
उपन्यास के साथ एक और कहानी उपलब्ध है लगभग पचास पृष्ठ की यह कहानी उपन्यास पर भारी पड़ती है। जो लगभग 250 पृष्ठ का उपन्यास न कर सका वह मनोरंजन 50 पृष्ठ की कहानी कर गयी।
यह कहानी भी एक मर्डर मिस्ट्री है। तीन व्यापारिक दोस्त हैं,बंसल, माथुर और विनोद बाली।
एक व्यापारिक बात पर माथुर और बाली की आपस में बहस होती है और उसी रात माथुर का कत्ल हो जाता है। कत्ल का इल्जाम आता है विनोद बाली पर।
यह कहानी क्रिमिनालोजिस्ट विवेक आगाशे सीरिज की है। "मैं क्रिमिनालोजिस्ट हूँ। अब तक दिल्ली में फेमस हो चुकी 'क्राइम क्लब' का संचालक हूँ।"
'मुझे हर उस मर्डर केस में दिलचस्पी है जिसमें मुझे कोई पेच दिखाई दे।"
और उस पेच के बल विवेक आगाशे इस केस को देखता है। अपने स्तर पर कार्यवाही करता है।
विनोद बाली अपने पक्ष में जो भी सबूत इकटे करता है वे भी एक-एक कर गायब हो जाते हैं। विवेक आगाशे भी इस घटना हैरान है।
कहानी में रहस्य शुरु से अंत तक जबरदस्त है। कहानी स्वयं में बांधने में सक्षम है।
पाठक भी आश्चर्यचकित होता है की आखिर ये सब कैसे हो रहा है हालांकि पाठक भी यहाँ एक जासूस बनतानजर आता है लेकिन यह लेखक की प्रतिभा है की वो असली कातिल तक किसी जो भी पहुंचने नहीं देता।
कहानी जबरदस्त, रोचक और पठनीय है।
- हिमेश सिंगला एक पचास वर्ष का गंजा व्यक्ति था जो विग लगाकर अपना बचाव करता था।
- हिमेश सिंगला मामूली शक्ल- सूरत वाला व्यक्ति था लेकिन औरतों का रसिया था।
- हिमेश सिंगला एक लम्पट प्रवृत्ति वाला व्यक्ति था जो एक रात अपने घर के ड्राइंगरूम में मरा पड़ा था।
हिमेश सिंगला की अस्वाभाविक मौत या हत्या के शक के दायरे में कई लोग आते हैं।
हिमेश सिंगला का एक भाई है शैलेष सिंगला जिसके बुलावे पर ब्लास्ट समाचार पत्र के रिपाॅर्टर सुनील चक्रवर्ती का इस केस में हस्तक्षेप होता है। सुनील ही वह व्यक्ति है जो असली कातिल तक पहुंचता है।
- एक बड़े सम्पन्न परिवार का रोशन चिराग बताया जाता है। यानि कि फाईनांशल फैमिली बैकग्राउंड तो बढ़िया है ही, ऊपर से ब्रोकेज का उसका अपना बिजनेस भी ऐन फिट है। कैसानोवा जैसी छवि का आदमी था और सोसायटी के लिहाज से पेज थ्री पर्सनैलिटी माना जाता था। (पृष्ठ-16)
और एक दिन इसी पर्सनैलिटी की कोई हत्या कर देता है।
वो एक सॊफाचेयर बैठा हुआ था जबकि किसी ने उसका भेजा उड़ा दिया था। (पृष्ठ-17)
उसके घर में, उसी की गन से, उसी के सोफाचेयर पर किसी ने उसकी हत्या कर दी। इंस्पेक्टर प्रभुदयाल इस केस की जाँच करता है और दूसरी तरफ पत्रकार सुनील चक्रवर्ती भी इस केस पर कार्यरत है। लेकिन दोनों का तरीका अलग-अलग है। पुलिस की जाँच में एक व्यक्ति स्वयं को कातिल के तौर पर पुलिस के समक्ष प्रस्तुत करता है लेकिन वह सुनील को कातिल नजर नहीं आता।
एक आदमी अपनी जुबानी कहता है की वो कातिल है, तुम कहते हो नहीं है। (पृष्ठ-189)
सुनील जो की एक खोजी पत्रकार है वह इस मर्डर केस पर कार्य करता है। इसके लिए वह समय-समय पर अपने मित्र रमाकांत और पुलिस विभाग से भी जानकारी एकत्र करता है। सुनील का अपना एक अलग तरीका है जो पुलिस विभाग से अलग है। इस मर्डर की छानबीन पुलिस भी करती है लेकिन सुनील चक्रवर्ती अपने तरीके से पुलिस से कुछ ज्यादा सक्रिय है लेकिन जहां उसे पुलिस की जरूरत होती है वह पुलिस की मदद लेता है।
उपन्यास में एकमात्र रमाकांत ही ऐसा व्यक्ति है जो कुछ स्तर तक प्रभावित करता है स्वयं सुनील भी कोई अच्छा प्रभाव पाठक पर स्थापित नहीं कर पाता।
- यूथ क्लब के रमाकांत का अंदाज ही निराला है- "मैं कार पर यहाँ से निकला तो मोड़ पर ही एक्सीडेंट हो गया। फौरन मैंने महाराज को फोन खड़काया तो जानते हो क्या जवाब मिला?"
- "क्या?"
- कार कुंभ राशि थी और उसके लिए उस शनिवार की भविष्यवाणी थी कि गैराज से ..बाहर न निकाले।"
- "क्या कहने।"
- "दो राशियां क्लैश कर गयी इसलिए नतीजा उलट हुआ।" (पृष्ठ-163)
रमाकांत का बोलने का अंदाज उपन्यास को कुछ हद तक संभालने में सक्षम है।
उपन्यास मूलतः एक मर्डर मिस्ट्री है। जो एक कत्ल से आरम्भ होकर एक -एक संदिग्ध से होकर आगे बढती है। उपन्यास में या पात्रों में भी ज्यादा रोचकता या कहानी में कोई घूमाव नहीं बस एक जगह जब एक पात्रों स्वयं को कातिल के तौर पर प्रस्तुत करता है तो कुछ रोचकता बढती है।
- उपन्यास इतनी धीमी रफ्तार से आगे बढता है की पाठक उकता जाता है। कहानी का अनावश्यक विस्तार और धीमी गति और उस पर एक जैसे दृश्य उपन्यास के पाठन को बाधित करते हैं। पत्रकार सुनील के पास भी ज्यादा संभावनाएं नहीं है वह बस चंद पात्रों से प्रश्न-उत्तर करता रहता है जिससे सभी दृश्य एक जैसे नजर आते हैं।
उपन्यास कहानी के स्तर पर अच्छी है लेकिन प्रस्तुतीकरण इसका अच्छा न हो सका
निष्कर्ष-
प्रस्तुत उपन्यास एक मर्डर मिस्ट्री है जिसे सुनील नामक पत्रकार हल करता है। उपन्यास की रफ़्तार बहुत ही धीमी है। इसलिए उपन्यास ज्यादा दिलचस्प नहीं बन पाया। उपन्यास नीरस ज्यादा लगता है।
उपन्यास को बस एक बार पढा जा सकता है।
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उपन्यास- सिंगला मर्डर केस
लेखक- सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशक- राजा पॉकेट बुक्स- दिल्ली
पृष्ठ- 263
मूल्य- 100₹
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असली अपराधी - सुरेन्द्र मोहन पाठक
थ्रिलर।
उपन्यास के साथ एक और कहानी उपलब्ध है लगभग पचास पृष्ठ की यह कहानी उपन्यास पर भारी पड़ती है। जो लगभग 250 पृष्ठ का उपन्यास न कर सका वह मनोरंजन 50 पृष्ठ की कहानी कर गयी।
यह कहानी भी एक मर्डर मिस्ट्री है। तीन व्यापारिक दोस्त हैं,बंसल, माथुर और विनोद बाली।
एक व्यापारिक बात पर माथुर और बाली की आपस में बहस होती है और उसी रात माथुर का कत्ल हो जाता है। कत्ल का इल्जाम आता है विनोद बाली पर।
यह कहानी क्रिमिनालोजिस्ट विवेक आगाशे सीरिज की है। "मैं क्रिमिनालोजिस्ट हूँ। अब तक दिल्ली में फेमस हो चुकी 'क्राइम क्लब' का संचालक हूँ।"
'मुझे हर उस मर्डर केस में दिलचस्पी है जिसमें मुझे कोई पेच दिखाई दे।"
और उस पेच के बल विवेक आगाशे इस केस को देखता है। अपने स्तर पर कार्यवाही करता है।
विनोद बाली अपने पक्ष में जो भी सबूत इकटे करता है वे भी एक-एक कर गायब हो जाते हैं। विवेक आगाशे भी इस घटना हैरान है।
कहानी में रहस्य शुरु से अंत तक जबरदस्त है। कहानी स्वयं में बांधने में सक्षम है।
पाठक भी आश्चर्यचकित होता है की आखिर ये सब कैसे हो रहा है हालांकि पाठक भी यहाँ एक जासूस बनतानजर आता है लेकिन यह लेखक की प्रतिभा है की वो असली कातिल तक किसी जो भी पहुंचने नहीं देता।
कहानी जबरदस्त, रोचक और पठनीय है।
सही कहा असली अपराधी ज्यादा बढ़िया थी
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