कहानी लड़कियों के अपहरण की
काला भूत- कुशवाह कांत
कुशवाहा कांत का उपन्यास 'काला भूत' पढा। यह एक सस्पेंश -थ्रिलर उपन्यास है।
जून माह में 'अकेला' के बाद कुशवाहा का यह दूसरा उपन्यास है जो मैंने पढा है और इसके बाद तृतीय उपन्यास 'अपना पराया' क्रम में है।
एक पर्वताकार काला भूत बीच सड़क पर चुपचाप खड़ा था।
भूत के शरीर पर कपड़े बिलकुल नहीं थे। वह एकदम नंगा तथा उसके शरीर का रंग आबनूस की तरह काला था। बदन तथा मुँह पर लम्बे लम्बे बाल थे।
उसके हाथों तथा पैरों में एक एक बालिश्त के नाखून थे। उसकी आंखें अंधेरे में भी दहकते अंगारे की तरह जल रही थी।
वहीं शहर में एक अपराधी संगठन सक्रिय था जो लड़कियों का अपहरण करता था।
मिर्जापुर में गोल्डन गैंग नामक एक बदमाशों का गिरोह था, जो लड़कियों का अपहरण करता था। (पृष्ठ-15)
पुलिस हैरान थी।
डिटेक्टिव परेशान थे।
कोतवाल, दरोगा सब पर हवाइयां उड रही थी, परंतु सब विवश थे।
दिनों दिन 'गोल्डन गैंग' का आतंक बढता जा रहा था। अब स्थिति यहाँ तक हो ग ई थी कि लोग अपनी लड़कियों को बाहर तक न निकलने देते। (पृष्ठ-16)
उपन्यास में तृतीय पक्ष है वह है ब्रजेश नामक एक विद्यार्थी का।
ब्रजेश कुमार की अवस्था केवल बीस वर्ष है अभी। वह नेटिव काॅलेज मिर्जापुर के बी. ए. क्लास का विद्यार्थी है।
इन तीनों पर आधारित है उपन्यास 'काला भूत'।
-आखिर कौन था काला भूत?
- क्या मकसद था उसका?
- 'गोल्डन गैंग' क्या था?
- 'गोल्डन गैंग' लड़कियों का अपहरण क्यों करता था?
'काला भूत' कथानक के आधार पर काफी रोचक उपन्यास है। जब जब भी काला भूत का किरदार सामने आता है एक अदभुत रोमांच पैदा होता है, हो भी क्यों ना वह है ही इतना शक्तिशाली। गाड़ी के बराबर रफ्तार, गोली उस पर असरहीन है और भयानक शक्ल है।
उपन्यास में जो कमी है वह विशेष कमी है। वह है कथानक में बहुत से छेदों का होना। हालांकि लेखक महोदय ने एक अच्छा कथानक, अच्छे पात्रों का चुनाव किया है पर उन पात्रों से क्षमता अनुसार काम नहीं लिया गया।
गोल्डन गैंग को खत्म करने के बहुत से अवसर आते हैं पर खत्म नहीं किया गया और जब खत्म किया तो पाठक तक को आभास न हुआ, बस दो चार पंक्तियों में कहानी निपटा दी गयी।
उपन्यास को अभी और मजबूत किया जा सकता था। हां, इन कमियों के बाद में भी प्रस्तुतीकरण के आधार पर उपन्यास नीरस नहीं है, पढते वक्त अच्छा मनोरंजन करने मं सक्षम है।
उपन्यास में काव्यमयी पंक्तियां बहुत हैं, जो काफी रोचक भी है। उन्हीं में से एक यहाँ प्रस्तुत है।
'मुझे सब न्यामतें दुनिया की,
मिल जाएँ, जो मिल जाएँ,
तेरी जादू भरी आँखें,
मेरे हसरत भरे दिल से। (पृष्ठ-79)
कुशवाहा कांत जी का उपन्यास 'काला भूत' एक मध्यम श्रेणी का थ्रिलर-सस्पेंश उपन्यास है। उपन्यास में कुछ कमियां अवश्य खटकती हैं लेकिन रोचकता की दृष्टि से मनोरंजक उपन्यास कहा जा सकता है।
उपन्यास- काला भूत
लेखक - कुशवाहा कांत
प्रकाशक- भारत पॉकेट बुक्स, वाराणसी
- चिंगारी प्रकाशन, वाराणसी
पृष्ठ- 142
मूल्य- 03₹ (तात्कालिक)
प्रकाशन वर्ष-
काला भूत- कुशवाह कांत
कुशवाहा कांत का उपन्यास 'काला भूत' पढा। यह एक सस्पेंश -थ्रिलर उपन्यास है।
जून माह में 'अकेला' के बाद कुशवाहा का यह दूसरा उपन्यास है जो मैंने पढा है और इसके बाद तृतीय उपन्यास 'अपना पराया' क्रम में है।
एक पर्वताकार काला भूत बीच सड़क पर चुपचाप खड़ा था।
भूत के शरीर पर कपड़े बिलकुल नहीं थे। वह एकदम नंगा तथा उसके शरीर का रंग आबनूस की तरह काला था। बदन तथा मुँह पर लम्बे लम्बे बाल थे।
उसके हाथों तथा पैरों में एक एक बालिश्त के नाखून थे। उसकी आंखें अंधेरे में भी दहकते अंगारे की तरह जल रही थी।
वहीं शहर में एक अपराधी संगठन सक्रिय था जो लड़कियों का अपहरण करता था।
मिर्जापुर में गोल्डन गैंग नामक एक बदमाशों का गिरोह था, जो लड़कियों का अपहरण करता था। (पृष्ठ-15)
पुलिस हैरान थी।
डिटेक्टिव परेशान थे।
कोतवाल, दरोगा सब पर हवाइयां उड रही थी, परंतु सब विवश थे।
दिनों दिन 'गोल्डन गैंग' का आतंक बढता जा रहा था। अब स्थिति यहाँ तक हो ग ई थी कि लोग अपनी लड़कियों को बाहर तक न निकलने देते। (पृष्ठ-16)
उपन्यास में तृतीय पक्ष है वह है ब्रजेश नामक एक विद्यार्थी का।
ब्रजेश कुमार की अवस्था केवल बीस वर्ष है अभी। वह नेटिव काॅलेज मिर्जापुर के बी. ए. क्लास का विद्यार्थी है।
इन तीनों पर आधारित है उपन्यास 'काला भूत'।
-आखिर कौन था काला भूत?
- क्या मकसद था उसका?
- 'गोल्डन गैंग' क्या था?
- 'गोल्डन गैंग' लड़कियों का अपहरण क्यों करता था?
'काला भूत' कथानक के आधार पर काफी रोचक उपन्यास है। जब जब भी काला भूत का किरदार सामने आता है एक अदभुत रोमांच पैदा होता है, हो भी क्यों ना वह है ही इतना शक्तिशाली। गाड़ी के बराबर रफ्तार, गोली उस पर असरहीन है और भयानक शक्ल है।
उपन्यास में जो कमी है वह विशेष कमी है। वह है कथानक में बहुत से छेदों का होना। हालांकि लेखक महोदय ने एक अच्छा कथानक, अच्छे पात्रों का चुनाव किया है पर उन पात्रों से क्षमता अनुसार काम नहीं लिया गया।
गोल्डन गैंग को खत्म करने के बहुत से अवसर आते हैं पर खत्म नहीं किया गया और जब खत्म किया तो पाठक तक को आभास न हुआ, बस दो चार पंक्तियों में कहानी निपटा दी गयी।
उपन्यास को अभी और मजबूत किया जा सकता था। हां, इन कमियों के बाद में भी प्रस्तुतीकरण के आधार पर उपन्यास नीरस नहीं है, पढते वक्त अच्छा मनोरंजन करने मं सक्षम है।
उपन्यास में काव्यमयी पंक्तियां बहुत हैं, जो काफी रोचक भी है। उन्हीं में से एक यहाँ प्रस्तुत है।
'मुझे सब न्यामतें दुनिया की,
मिल जाएँ, जो मिल जाएँ,
तेरी जादू भरी आँखें,
मेरे हसरत भरे दिल से। (पृष्ठ-79)
कुशवाहा कांत जी का उपन्यास 'काला भूत' एक मध्यम श्रेणी का थ्रिलर-सस्पेंश उपन्यास है। उपन्यास में कुछ कमियां अवश्य खटकती हैं लेकिन रोचकता की दृष्टि से मनोरंजक उपन्यास कहा जा सकता है।
उपन्यास- काला भूत
लेखक - कुशवाहा कांत
प्रकाशक- भारत पॉकेट बुक्स, वाराणसी
- चिंगारी प्रकाशन, वाराणसी
पृष्ठ- 142
मूल्य- 03₹ (तात्कालिक)
प्रकाशन वर्ष-
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