जुर्म का चक्रव्यूह टाइगर का थ्रिलर उपन्यास है। जैसा की नाम से पता चलता है, इसमें कोई षडयंत्र रचा जा रहा है, ठीक होता भी यही है। जूर्म के चक्रव्यूह में एक शरीफ युवक फस भी जाता है।
उपन्यास की कहानी की बात करें तो कहानी कोई ज्यादा लंबी नहीं है। कहानी भारतीय सेना से जुङे कुछ विशेष फाइलों से संबंधित है। जिसे कुछ विदेशी लोग गायब करना या चोरी करना चाहते हैं, इसके लिए वे एक चक्रव्यूह की रचना करते हैं और उसमें उपन्यास का नायक मुकेश गाँधी फस जाता है।
मुकेश गाँधी का संरक्षक है ब्रिगेडियर लाल है, वही मुकेश गाँधी का पालन पोषण कर उसे एक योग्य व्यक्ति बनाता है। विदेश से प्रशिक्षण प्राप्त कर मुकेश एक एक वाॅल्ट/तिजोरी/सेफ आदि को सुरक्षित बनाने की एजेंसी खोल लेता है।
शाहजहाँपुर, पर भारतीय सेना के पास कुछ महत्वपूर्ण दस्तावेज आते हैं और उन दस्तावेज को सुरक्षित रखने के लिए जिस वाल्ट को और भी सुरक्षित बनाने का काम मुकेश गाँधी की एजेंसी को मिलता है। मुकेश को यह कार्य ब्रिगेडियर लाल साहब की मध्यस्थता से मिलता है, क्योंकि लाल साहब मुकेश की प्रतिभा को पहचाने हैं दूसरा लाल साहब की बेटी मोनिका की शादी भी मुकेश से होने वाली है। मुकेश की एजेंसी इस कार्य को पूरी दक्षता के साथ संपन्न करती है।
वहीं जब देशद्रोही या खलनायक टीम को इस बात का पता चलता है की मुकेश गाँधी ने इस वाल्ट को अभेद्य बना दिया तो खलनायक टीम एक जूर्म का चक्रव्यूह रचाती है और जिसमें मुकेश गाँधी उलझ कर रह जाता है।
अतः में मुकेश गाँधी खलनायक टीम को ही उस अभेद्य वाल्ट में कैद कर देता है। यहीं से कहानी में तीव्रता आती है। मुकेश गाँधी एक -एक जाल को काटता चला जाता है और देशद्रोहियों का पर्दाफाश करता है।
उपन्यास का अंत पाठक की सोच के विपरीत निकलता है।
उपन्यास बहुत ही धीमी गति से चलती है जिसके कारण पाठक को पढनें में आनन्द नहीं आता। थ्रिलर कहानी का आनन्द तभी आता है जब कथानक तीव्र गति वाला हो। इस उपन्यास का 75प्रतिशत भाग तो मुकेश गाँधी को वाल्ट लूटने के लिए तैयार करने में बीत जाता है।
उपन्यास के अंतिम कवर पृष्ठ लिखी चंद पंक्तियाँ पढ लीजिएगा-
"आर्मी हैडक्वार्टर के उस वाल्ट में क्या था- जिसे हासिल करने की खातिर बहुत से लोग मारे जा रहे थे?
उस वाल्ट की खातिर षङयंत्रों का एक ऐसा सिलसिला शुरु हुआ जिसमें मुकेश गाँधी जैसे खुद्दार व देशभक्त इंसान को भयानक ' जुर्म के चक्रव्यूह' में फंसा दिया।"
उपन्यास में कई प्रसंग अनावश्यक प्रतीत होते हैं, जिनके बिना भी कहानी आगे बढ सकती थी और उपन्यास की गति भी बनी रहती।
कहानी के 75 प्रतिशत भाग पर जहाँ नायक मुकेश गाँधी छाया रहता वहीं अंत में शेष भाग पर माला चौधरी।
माला चौधरी जहां एक तरफ अपने पति के होते हुए भी विवाहेतर संबंध रखती वहीं वह अंत में अपने पति की रक्षार्थ खून- खराबे पर उतर जाती है, और यही उपन्यास का अंतिम भाग माला चौधरी पर केन्द्रित है।
उपन्यास का अंत पाठक की सोच के विपरीत होने पर भी उपन्यास को कोई विशेष नहीं बना सकता क्योंकि उपन्यास का प्रारंभिक 75 भाग बहुत ही धीमी गति से चलता है।
उपन्यास में पृष्ठ 79 पर मुकेश गाँधी को माला चौधरी के कुछ शब्द याद आते हैं, "तुम नहीं जानते मुकेश- वह आदमी विक्षिप्त है और विक्षिप्तता के दौर में वह किसी इंसान को हलाल करके उसका खून तक पी सकता है।"
ये पंक्तियाँ माला ने मुकेश को बहुत बाद में कही थी, लेकिन लेखक गलती से इन पंक्तियाँ का जिक्र पहले कर बैठा।
उपन्यास में कोई भी प्रभावी कथन या पात्र नहीं जो पाठक पर असर छोङ सके।
यह एक औसत श्रेणी का उपन्यास है।
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उपन्यास- जूर्म का चक्रव्यूह
लेखक-टाइगर
प्रकाशन- राजा पाॅकेट बुक्स
पृष्ठ- 231
मेरा मानना है कि हर आईडिया उपन्यास नहीं बन सकता. आपके लेख से जाहिर होता है इस उपन्यास का आईडिया भी उसी श्रेणी में है. कुछ आईडिया एक कहानी या लघु उपन्यास के लिए होते हैं. जिस हिसाब से आपने लिखा है उस हिसाब से इसे भी एक लघु उपन्यास रहने दिया जाता तो गति धीमी की बजाय तेज हो जाती और यहीं लेखक से चूक हो गयी. कई बार लेखक एक निश्चित पृष्ठ संख्या तक पहुँचने के लिए कथानक में अनावश्यक बातें ठूँस देते हैं जिससे पृष्ठों की संख्या तो बढ़ जाती है लेकिन उपन्यास की गति धीमी हो जाती है और उपन्यास बोरिंग हो जाता है.
ReplyDeleteलेख के लिए धन्यवाद.
ब्लॉग के विषय में एक दो बातें हैं जिन्हे आप से बोले बिना नहीं रहा जा रहा. टेक्स्ट का फॉन्ट साइज़ काफी छोटा है. शायद 12px है. लेआउट में जाकर इसे बढ़ा दीजियेगा क्योंकि इतना छोटा फॉन्ट पढने में दिक्कत होती है. इसके इलावा अभी साइड बार में आर्काइव नहीं आता है. अगर वो हो जाए तो पुराने पोस्ट्स तक पहुँचने में सुलभता हो जाएगी.
इसके इलावा दो पैराग्राफ के बीच में एक लाइन का स्पेस हो तो टेक्स्ट पढने में आसानी होगी.
आशा है इसे आप अन्यथा नहीं लेंगे. अगर आपको बुरा लगा तो छोटा समझ कर माफ़ कर दीजियेगा.
आप रिलेटेड पोस्ट्स के लिए कौन सा विजेट इस्तमाल कर रहे हैं थोडा प्रकाश डालें तो आपका आभारी रहूँगा.
ReplyDeleteनमस्कार भाई विकास।
ReplyDeleteमैं ब्लॉग को मोबाइल एप से चलाता हूँ, इसलिए फाॅन्ट का साइज निश्चित ही रहेगा। समय मिला तो कम्प्यूटर से फाॅन्ट साइज बढा करता हूँ ।
प्रत्येक पैराग्राफ में एक दो पक्ति वाली आपने सही कही, इस पर ध्यान रखुंगा।
धन्यवाद।