Sunday, 28 December 2025

698. सफेदपोश गुण्डा- अंजुम अर्शी

मास्टर ब्रेन का कारनामा
सफेदपोश गुण्डा- अंजुम अर्शी

वह मर मर गया था और उसकी अंतिम इच्छा थी इसके हड्डियों के ढांचे को उस द्वारा बनाई गयी संस्था की मीटिंग में  प्रधान की कुर्सी पर रखा जाये और वही उस मिटिंग का प्रधान होगा।
      प्रधान की पुत्री ने अपने पिता के हड्डियों के ढांचे को अखबार पढते देखा था और 'मास्टर ब्रेन' तो उस वक्त बौखला उठा जब उसने हड्डियों के ढांचे को प्रयोगशाला में कार्य करते देखा।

   लोकप्रिय कथा साहित्य में जासूसी और थ्रिलर उपन्यासों की शृंखला में एक से बढकर एक हैरत जनक उपन्यासों की कतार में आज पढें अंजुम अर्शी जी के उपन्यास 'सफेदपोश  गुण्डा' की समीक्षा ।

वह इन्सानी हड्डियों का भयानक ढाँचा ही था जिसके शरीर पर पुरानी किस्म का लिबास था और सिर पर फैल्ट कैप पहना दी गई थी। उसके दोनों हाथ मेज पर फैले हुए थे और हड्डियों की उंगलियाँ बहुत भयानक और खौफनाक लग रही थीं ।


यह ढाँचा एक ऊंची कुर्सी पर बैठा हुआ था और हड्डियों वाले चेहरे पर आंखों के खाली पलकों के अन्दर से उसकी गैबी आंखें घूर- घूर कर मेज के गिर्द बैठे हुए इन्सानों को जैसे घूर रही थीं ।
     मेज के गिर्द इस समय दस आदमी थे उनमें दो औरतें थीं। एक बुढ़िया और दूसरी खूबसूरत । इस समय वह सब खामोश थे और बार-बार उनकी निगाहें इस ढांचे की तरफ चली जातीं थीं जिसकी हड्डियों को तारों की सहायता से एक दूसरे के साथ उसके उचित स्थान पर जोड़ दिया गया था। उसका हड्डियों का सिर भी उसकी गर्दन पर लगा दिया गया था। सिर पर फेल्ट कैप था और शरीर पर कमीज, पतलून, कोट और टाई और यह सब कुछ हड़ियों के ढाँचे के ऊपर पहनाया गया था और अब वह एक ऊंची सी कुर्सी पर बैठा था। उसके हाथ मेज पर फैले थे ।
उस ढाँचे के सामने मेज पर एक तख्तो रखा था जिस पर लिख था 'प्रधान ।
' (सफेदफोश गुण्डा- अंजुम अर्शी, प्रथम पृष्ठ से)
     नमस्ते पाठक मित्रो,
जासूसी उपन्यास साहित्य में अंजुम अर्शी जी अपने विशेष पात्र 'मास्टर ब्रेन' के लिए जाने जाते हैं। इनके उपन्यास जासूसी-थ्रिलर होते थे और इनका पात्र 'मास्टर ब्रेन' हथियार के रूप में एक 'गेंद' का प्रयोग करता है।
    अब बात करते हैं प्रस्तुत उपन्यास 'सफेदपोश गुण्डा' की, जिसका शीर्षक देख कर ही कहानी के पात्र का अनुमान हो जाता है पर यह सफेदपोश गुण्डा कौन है यह जानने के लिए उपन्यास पढना ही होगा।
    प्रस्तुत उपन्यास की कहानी एक मीटिंग से होती है, जैसा की आप ऊपर पढ चुके हैं। इस मीटिंग की अध्यक्षता मर चुका एक वैज्ञानिक शोरी करता है। यह संस्था शोरी ने बनाई थी तो नियम भी उसके के लिए चलेंगे और नियम यह था प्रत्येक मीटिंग की अध्यक्षता मिस्टर शोरी की हड्डियों का ढांचा करेगा।
    मिस्टर पटेल ने जब इस बात का विरोध किया तो उसकी मृत्यु हो गयी। शोरी साहब की पुत्री रूप भी इस संस्था और मीटिंग में भागीदार है। और वह भी अपने पिता ने ढांचे को अखबार पढते और चलते-फिरते देखती है तो हैरान रह जाती है।
रविन्द्र वह लड़का था जिसे रूप पसंद करती थी । और एक मिनिस्टर का पुत्र प्राणनाथ जो एक आवारा, बदलचलन, स्मग्लर और न जाने क्या-क्या था वह रूप को पाने की चाहत रखता है और रूप को तंग भी करता है।
अपने पिता के ढांचे का मिटिंग में उपस्थित होने तक तो रूप सहमत थी लेकिन मिस्टर पटेल की मृत्यु और डाक्टर शोरी के ढांचे का अखबार पढना आदि रूप को विचित्र लगा और एक दिन वह रविन्द्र की सलाह पर अपराधियों के दुश्मन मास्टर ब्रेन से मिलने का विचार बनाती है।
'अगर तुम कोशिश करो तो वह जरूर सहायता करेगा । मुसीबतजदा लड़कियों की सहायता अवश्य करता है ।
"मगर उससे भेंट कैसे होगी। कोई नहीं जानता कि वह कहां रहता है, क्या करता है और उसकी शक्ल क्या है। ऐसी हालत में मैं उससे कैसे मिल सकती हूँ ।"

    मास्टर ब्रेन से मिलने गयी रूप की मुलाकात प्राण से होती है जो रूप को बहकाने और धमकाने का काम करता है लेकिन निडर रूप प्राण को ही खरीखोटी सुनाती है। यह वर्तमान समय का सत्य भी है। आजकल के नेतागण का चरित्र ऐसा ही हो गया है।
'बकवास ।' रूप ने जोर से कहा- 'दुनिया जानती हैं कि राज नीति के क्षेत्र में आने से पहले तुम्हारा खानदान भूखा और नंगा था । और देश इस खानदान के नाम से परिचित तक नहीं । और फिर तुम्हारे डैडी ने भूख - बेरोजगारी और गरीबी से तग आकर ट्रेड यूनियन के लिए काम करना शुरू कर दिया । तुम्हारे बाप को इसलिए नौकर रखा गया था कि आवश्यकता अनुसार वह यूनियन के जेल जा सके । तुम्हारा बाप यूनियन की तरफ से कई बार जेल गया और उसे उसका पैसा मिला। और तुम्हारा बाप मजबूरी में मशहूर व मकबूल होता गया ।"
      यहां प्राण, होटल मैंनेजर, इंस्पेक्टर गिरधारी लाल आदि का मास्टर ब्रेन के साथ संघर्ष और उसके पश्चात्‌ घटित घटनाएं काफी रोचक और हास्यजनक हैं।
    बाद में जब मास्टर ब्रेन और रूप की मुलाकात होती है तो रूप मास्टर ब्रेन से मिलने का अपना उद्देश्य स्पष्ट करती है।
'वास्तव में मैं यह मालूम करना चाहती है कि यह सब क्या है । मैं अपनी संस्था को समाप्त करना चाहती हूँ ताकि रविन्द्र से शादी कर सकू वरना वसीहत के अनुसार अभी मैं पाँच छह वर्ष तक शादी नहीं कर सकती और अब मैं रविन्द्र के बिना जीवित भी नहीं रह सकती ।'
     रूप को आश्वासत कर मास्टर ब्रेन वैज्ञानिक शोरी के हड्डियों के ढांचे की वास्तविकता जानने के लिए निकलता है और साथ में उसका संघर्ष मिनिस्टर और उसके पुत्र प्राणनाथ से भी चलता रहता है और वह दोनों को मात देता है।
    जब मास्टर ब्रेन प्रयोगशाला पहुंचता है और वहाँ के जो कुछ देखता है तो स्वयं भी चकित रह जाता है।
मास्टर ब्रेन एक बार फिर-बौखला गया- बौखलाने की बात भी थी। डाक्टर शोरी काफी पहले मर चुका था -और अब उसकी हड्डियों का ढांचा प्रयोगशाला में तजुर्बा करता फिर रहा था ।'
         क्या यह संभव था एक मृत्यु आदमी की हड्डियों का ढांचा ऐसे कार्य करता फिरे जबकि रूप का भी यही दावा है उसने अपने पिता के मृत्यु शरीर को अखबार पढते देखा है। यह बात है तो हैरान जनक पर वास्तविकता कैसे हो सकती है। इसी बात की जांच करने के लिए मास्टर ब्रेन को उतरना पड़ा मैदान में और वह ढूंढ कर लाया एक ऐसा रहस्य जिस सुनकर रूप भी हैरान रह है।

           प्रस्तुत उपन्यास बात करता है मनुष्य ने लालच की और मनुष्य जब लालच में आता है तो वह देश, परिवार और रिश्ते-नाते कुछ नहीं देखता । उसके लिए स्वार्थ प्रथम हो जाता है। प्रस्तुत उपन्यास की कहानी भी ऐसे ही लोगों है जिन्होंने धन के लिए अपने रिश्तों को भी खत्म कर दिया।

मास्टर ब्रेन के विषय में कुछ बातें-
- मास्टर ब्रेन को लड़कियां बहुत पसंद करती हैं और उसे  Prince of Night कहती हैं।
लडकियाँ मुझको प्रिंस आफ नाईट भी कहती हैं।
- मास्टर ब्रेन अपराधियों का दुश्मन और जरूरतमंद का मददगार है।
- उसके विषय में बहुत कम लोगों को जानकारी है।
- मास्टर ब्रेन से मिलने के लिए अखबार में विज्ञापन देना पड़ता है, तब मास्टर ब्रेन संपर्क करता है।
- 'दोस्त' नामक अखबार मास्टर ब्रेन के विषय में विश्वसनीय खबरें प्रकाशित करता है।
- लोगों का मानना है 'दोस्त' अखबार स्वयं मास्टर ब्रेन का है। वहीं मास्टर ब्रेन का कहना है यह अखबार उसके मित्र का है।
- मास्टर ब्रेन जरूरतमंद लोगों की आर्थिक मदद भी करता है। जैसे इंस्पेक्टर गिरधारी लाल व उसके साथियों की मदद की।
- मास्टर ब्रेन जानलेवा हथियारों का इस्तेमाल नहीं करता ।
-मास्टर ब्रेन अपराधी को खत्म करने की बजाये अपराध को खत्म करने और अपराधी के सुधार पर बल देता है।
'मतलब एक कातिल को फांसी देने से क्या कत्ल रुक जाते हैं नहीं । अगर ऐसा होता तो अब तक लाखों इन्सानों को फांसी दे दी गई है मगर अब भी कत्ल हो रहे हैं। और इस बात से सिद्ध हो जाता है कि कत्ल या फांसी अपराध का इलाज नहीं ।'
उपन्यास में कोई विशेष संवाद तो नही है पर एक जगह प्राण नाथ का डायलॉग मुझे अच्छा लगा जो उसने अति उत्साह में कहा था-
जब गीदड़ की मौत आती है तो वह शहर की तरफ भागता है और जब अपराधियों की मौत आती है तो वह मिनिस्टरों और उनके बेटों से टकराते हैं ।'
    अंजुम अर्शी जी का उपन्यास 'सफेदपोश गुण्डा' ऐसे लोगों की कहानी है जिनका चाल और चरित्र अलग- अलग है और ऐसे लोग स्वार्थ के चलते राष्ट्र और परिवार तक को दांव पर लगा देते हैं।
कहानी में ज्यादा विस्तार न होना खटकता है। कुछ घटनाओं का स्पष्टीकरण होना था पर नहीं हो पाया। फिर भी उपन्यास एक बार मनोरंजन की दृष्टि से पढा जा सकता है।

उपन्यास- सफेदपोश गुण्डा
लेखक -  अंजुम अर्शी
पृष्ठ-        145
प्रकाशक- बुद्धिमान प्रकाशन, दिल्ली

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