Sunday, 17 November 2024

ਰਾਣੀ ਖਾਂ ਦੇ ਜੀਜੇ- ਗੁਰਪ੍ਰੀਤ ਸਹਿਜੀ

'ਪਿਸਤੌਲਾਂ ਆਲ਼ੇ ਵੀ ਅਸੀਂ ਤਾਂ ਡਾਂਗ ਨਾਲ਼ ਘੇਰ ਲਈਦੇ ਨੇ'
ਰਾਣੀ ਖਾਂ ਦੇ ਜੀਜੇ- ਗੁਰਪ੍ਰੀਤ ਸਹਿਜੀ
अक्टूबर 2024 के अंतिम सप्ताह में अमृतसर की धार्मिक यात्रा पर था। अमृतसर ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण शहर है।
लेकिन एक और बात ने मुझे विशेष रूप से प्रभावित किया वह है यहां पुस्तक बाजार का होना । यहां प्रसिद्ध सड़क 'हाॅल रोड़' पर काफी सारी किताबों की दुकान मिल जायेंगी। बड़ी दुकान Book lovers retreat से लेकर सबसे पुरानी 'आजाद बुक डिपो'(लाहौर-1942) के अतिरिक्त और बहुत सी छोटी-बड़ी, On Road, Off Road दुकानें हैं।
  जहां आज बड़े-बड़े शहरों में किताबों की दुकाने सिमट रही हैं वहीं एक छोटी सी सड़क पर बहुत सारी दुकानों का होना राहत की बात है। यहीं नहीं इसके अलावा भी अमृतसर में बहुत सी किता‌बों दुकाने हैं। वहीं आजाद बुक के मालिक ने बाताया कि कभी अमृतसर में किराये पर काॅमिक्स देने वाली सौ से ऊपर दुकाने होती थी। लेकिन आज ऐसी एक भी दुकान नहीं । समय -समय की बात है। फिर भी अमृतसर शहर में पाठकों के लिए समृद्ध साहित्य की उपलब्धता है।
   यहीं से एक Off Road दुकान से (बस दुकान मुख्य से थोड़ी सी हटकर थी) पंजाबी की एक चर्चित पुस्तक 'रानी खां दे जीजे'(ਰਾਣੀ ਖਾਂ ਦੇ ਜੀਜੇ- ਗੁਰਪ੍ਰੀਤ ਸਹਿਜੀ) खरीदी थी।
वहीं आजाद बुक्स से छह: लोकप्रिय साहित्य की‌ किताबें भी खरीदी थी ।
अमृतसर- हरमंदिर गुरुद्वारा परिसर


  यहाँ हमारा विषय है गुरप्रीत सहिजी द्वारा लिखित उपन्यास 'रानी खां दे जीजे' ।

यह कहानी है एक छोटे से गांव की जहां एक चौधरी है और चौधरी है तो स्वाभाविक सी बात है वह चाहेगा गांव में बस उसी की 'चौधर' हो । और कभी -कभी ऐसे चौधरी छोटी-छॊटी बातों को इतना महत्वपूर्ण बना लेते है और उसे अपने जीने मरने का प्रश्न मान लेते हैं।।


अब इस चौधरी की एक विशेषता थी और विशेषता यह थी की दीपावली की रात को चौधरी अपनी बंदूक से हवाई फायर करता था और उस फायर का खाली कारतूस  जो भी व्यक्ति  ढूंढकर सुबह चौधरी को लाकर देता तब चौधरी खूशी में इनामस्वरूप उस आदमी को गेहूँ और एक गाय दान देता था ।
छोटा सा गांव था, गांव के लोगों ने बंदूक सिर्फ फिल्मों में ही देखी थी‌ इसलिए चौधरी द्वारा हवाई फायर और उस से मिलने वाले इनाम के लिए गांव के आदमी सारी-सारी रात अलाव जलाकर बैठे रहते थे ।

ਕਈ ਬੰਦੇ ਤਾਂ ਧੂਣੀ ਦੀ ਅੱਗ ਨੂੰ ਡੋਲੂ ਵਿੱਚ ਪਾ ਕੇ ਨਾਲ ਲੈ ਜਾਂਦੇ ਤੇ ਹੱਥ ਵਿੱਚ ਕਰਕੇ ਸੇਕੀ ਜਾਂਦੇ। ਚੌਧਰੀ ਚੁਬਾਰੇ ਵਿੱਚ ਅੱਧੀ ਰਾਤ ਨੂੰ ਬਾਹਰ ਆਉਂਦਾ ਤਾਂ ਅੱਧ-ਸੁੱਤੇ ਲੋਕ ਫ਼ਾਇਰ ਦਾ ਖੜਾਕ ਚੰਗੀ ਤਰ੍ਹਾਂ ਸੁਣਨ ਲਈ, ਕੰਨਾਂ ਉੱਤੋਂ ਪੱਗ ਦਾ ਲੜ ਦੂਰ ਕਰ ਲੈਂਦੇ। ਜੇ ਕਿਸੇ ਦੇ ਪੈਰ ਦਾ ਖੜਾਕ ਵੀ ਹੁੰਦਾ ਤਾਂ ਉਹਨੂੰ ਘੂਰਦੇ। ਫ਼ਾਇਰ ਕਰਨ ਤੋਂ ਬਾਦ ਚੌਧਰੀ ਏਹ ਖੋਲ ਚੱਕ ਕੇ ਥੱਲੇ ਗਲੀ ਵਿੱਚ ਖੜ੍ਹੇ ਲੋਕਾਂ ਵਿੱਚ ਸੁੱਟ ਦਿੰਦਾ।
ਕਿਸੇ ਹੀਰੇ ਵਾਂਙ ਚੱਲਿਆ ਕਾਰਤੁਲ ਲੱਭਣ ਲਈ ਸਭ ਵਿੱਚ ਹਫ਼ੜਾ-ਦਫੜੀ ਮੱਚ ਜਾਂਦੀ।
ਇੱਕ ਦੂਜੇ ਨਾਲ ਲੜਦੇ...
ਕਦੇ ਕੋਈ ਮੁੱਕੀ ਮਾਰ ਦਿੰਦਾ।
ਏਹ ਚੱਲੇ ਕਾਰਤੂਸ ਲਈ ਹੀ ਪਿੰਡ ਦੇ ਲੋਕ ਆਉਂਦੇ ਸੀ...!!
ਕਿਉਂਕਿ...!!
ਜਿਸ ਬੰਦੇ ਕੋਲ ਇਹ ਕਾਰਤੂਸ ਹੁੰਦਾ, ਉਹਨੂੰ ਸਵੇਰੇ ਹਵੇਲੀ ਦੀ ਬਣੀ ਰਸਮ-ਰਿਵਾਜ ਅਨੁਸਾਰ ਸਵਾ ਮਣ ਕਣਕ ਤੇ ਇੱਕ ਰਾਮ ਗਾਂ ਦਿੰਦਾ ਸੀ । ਕਈ ਲੋਕਾਂ ਨੇ ਗਲਾਂ ਵਿੱਚ ਉਹਦੇ ਚਲਾਏ ਕਾਰਤੂਸ ਤਵੀਤ ਬਣਾ ਕੇ ਪਾਏ ਸੀ।
ਪਰ ਅੱਜ ਦੀ ਦੀਵਾਲੀ 'ਤੇ ਕੁਝ ਹੋਰ ਵਾਪਰ ਗਿਆ...!!

पर इस दीपावली कुछ और ही घटित हुआ ।
         इसी गांव का एक गरीब और अत्यंत दयनीय स्थिति का आदमी है चड़त सिंह । वह आर्थिक और मानसिक दोनों दृष्टि से ही कमजोर हो चुका है। एक पुत्र की चाह में उमर गुजर गयी और जब एक पुत्र हुआ तो वह भी चंद दिनों का मेहमान रहा और इसी वियोग में चड़त सिंह की पत्नी में स्वर्गसिधार गयी । अब घर में चड़त सिंह और उसकी पुत्री रानी है।
चड़त सिंह को जवानी होती पुत्री के विवाह की चिंता है। उसके दहेज की चिंता है। इसीलिए वह एक बैंक में गार्ड की नौकरी करता है।
रानी के रिश्ते बात चली और लड़के वालों की मांग मोटरसाइकिल थी । लेकिन चड़त सिंह के लिए मोटरसाइकिल की व्यवस्था करना असंभव कार्य था । लेकिन चड़त सिंह के पड़ोसी अपना पुराना मोटरसाइकिल बेचना चाहते थे (अपने पुराने और खराब मोटरसाइकिल से छुटकारा चाहते थे) और चड़त सिंह को मोटरसाइकिल की आवश्यकता थी। और इन्हीं मोटरसाइकिल वालों के लड़के जोगी से रानी की आशनाई थी ।
और इसलिए रानी जोगी को कहती भी है अब से मोटरसाइकिल ध्यान से चलाना मेरे पिताजी ने यही मोटरसाइकिल दहेज में देना है।
        देश में इन दिनों स्थिति ठीक नहीं । किसान आंदोलन कर रहे हैं और सरकार मूक है। इसी किसान आंदोलन के दौरान दंगों में कुछ असामाजिक तत्व लूट पाट आरम्भ कर देते हैं।
           उधर चड़त सिंह भी कभी-कभार अपनी बैंक वाली बंदूक घर ले आता है। और गांव के लोगों को एक उम्मीद होती है इस बार दीपावली पर चड़त सिंह अपनी बंदूक से हवाई फायर करेगा ।
        और जब चौधरी के बार यह बात पहुंचती है तो उस से ऐसा प्रतीत होता है जैसे गांव में उसका प्रतिद्वंद्वी पैदा हो गया ।

यहाँ चड़त सिंह और चौधरी में टकराव की स्थिति है। (चड़त सिंह को नहीं पता), रानी का प्रेम त्रिकोण है, पिता कहीं और रिश्ता देख रहा है। चड़त सिंह को पुत्री के साथ-साथ बैंक की चिंता है कहीं दंगाई बैंक ना लूट ले । और यही सोच उसे आधी रात को बैंक ले जाती है ।

चड़त सिंह के कर्तव्य सर्वोपरि है। वह चाहे अशिक्षित है पर अपने कर्तव्य के लिए जान देने वाला व्यक्ति है। दंगों के दौरान भी अपने कर्तव्य का ईमानदारी से पालन करता है ।

उपन्यास के कमजोर पक्ष की बात करें तो मेरी दृष्टि में बहुत से ऐसे घटनाक्रम है जो कहानी को प्रभावित करते हैं।
एक तो इस कहानी में जो दृश्य दिखाये गये हैं वह किसान आंदोलन से संबंधित हैं और उसी समय यह भी दिखाया गया है कि एक बैंक के लिए गार्ड नहीं मिलता । इसलिए एक अनपढ आदमी को गार्ड रखा गया है।
- उपन्यास में जो समय वर्णित है उस के अनुसार कुछ ऐअए घटनाक्रम दर्शाये गये हैं जो संभव प्रतीत नहीं होते ।जैसे आज के समय में लोगों का एक घर में एकत्र होकर, नीचे बैठकर टेलीविजन देखना ।
उपन्यास का कहानी अपने शीर्षक के साथ न्याय नहीं करती । दर असल यह कहानी रानी की न होकर उस के पिता की कहानी है । रानी का प्रसंग उपन्यास में अपूर्ण है ।

          उपन्यास भावनात्मक दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। लेखक महोदय ने बहुत से ऐसे दृश्य रचे हैं जो सहज ही आंखों में आंसू ले आते हैं। पाठक उपन्यास बंद कर सोचने को विवश हो उठता है।
जैसे- चड़त सिंह के पुत्र की मृत्यु का वर्णन । बड़ी आश- उम्मीद से एक पुत्र हुआ और वह भी काल में समा गया । चड़त सिंह की पत्नी का यह विलाप अत्यंत मार्मिक है। पुत्र को कब्र से पुन: निकाल लाना, उसे घर के आंगन में दफन करना और फिर उस पुत्र के साथ रोटियां रखना । ऐसे दृश्य इतने मार्मिक/ भावुक है कि पाठक अपने आंसू रोक नहीं पाता ।
- एक और दृश्य है जब चड़त सिंह अपनी पुत्री के लिए दुकान की दुकान पर जाता है।

कुछ रोचक दृश्य-
'ਤੁਹਾਨੂੰ ਇੱਜ਼ਤ ਦਿੱਤੀ ਐ.. ਜੀ ਕਹਿ ਕੇ...'
'ਖ਼ਬਰਦਾਰ ਜੇ ਅੱਜ ਤੋਂ ਬਾਅਦ ਮੈਨੂੰ ਪੁੱਛੇ ਬਿਨਾ ਇੱਜ਼ਤ ਦਿੱਤੀ ਤਾਂ ਮੈਥੋਂ ਬੁਰਾ ਕੋਈ ਨ੍ਹੀਂ ਹੋਣਾ....

उपन्यास की महत्वपूर्ण पात्र है रानी । जो अपने चाहने वालों के साथ बहुत ही दबंग तरीके से पेश आती है ।
यहां रानी के साथ दो पात्र और हैं एक है निका और जोगी । जोगी और निका दोनों दोस्त थे/ है। निका रानी को बहुत पसंद करता था और वह जोगी के मार्फत रानी को पत्र भेजता था । दोनों का प्रेम प्रसंग चला भी लेकिन शीघ्र ही रानी का झुकाव अपने पड़ोसी जोगी की तरफ हो गया और इसी दुख में निका शराब पीने लगा ।
          जब दबंग रानी को यह पता चला तो वह आधी रात को जोगी का हाथ पकड़कर निके के घर पहुंची ।और निके को स्पष्ट चेतावनी दी की आज से मेरा नाम लेकर शराब मत पीना ।
ਗੜਕੇ ਨਾਲ ਬੋਲੀ, 'ਜੋ ਹੋਣਾ ਸੀ ਹੋ ਗਿਆ, ਪਰ ਏਹ ਚੇਤੇ ਰੱਖੀ, ਜੇ ਮੇਰਾ ਨਾਂ ਲੈ ਕੇ ਦਾਰੂ ਪੀਤੀ ਤਾਂ ਵੇਖ ਲੀ... ਗਲੀਆਂ ਵਿੱਚ ਧੂਹ ਕੇ ਤੈਨੂੰ ਸ਼ਗਨ ਪਾਊਂਗੀ... ਏਥੇ ਮੂੰਹ ਵਖਾਉਣ ਜੋਗਾ ਨੀ ਰਹਿਣਾ...'
यहाँ रानी जब निके प्रेम स्वरूप लाये हुये गहने देखती है तो वह विचलित हो जाती है। प्रेम और गहने...निका और गहने...जोगी और गहने...जोगी और निका...वह कुछ देर असमंजस की स्थिति में रहती है और फिर निके के गहने उठा और जोगी का हाथ पकड़ वहा से निकल जाती है।

  उपन्यास कहानी में तारतम्यता हो सकता है न बने या आप इसे मात्र रानी की कहानी समझ कर पढना आरम्भ करे तो निराश हो सकते हैं लेकिन आप इसे पात्रों का जीवन परिचय समझे उके स्वभाव को समझे तो यह आपको रुचिकर लगेगा । रानी और चड़त सिंह जैसे पात्र आपका मन मोह लेंगे। चौधरी और लूटपाट वाले पात्र आपको अपने परिवेश में सहज ही नजर आ जायेंगे ।

कहानी का एक -एक संवाद आपके मन में उतरता जायेगा । एक एक पात्र आपके साथ मानसिक संबंध स्थापित कर लेगा ।

 अगर आप पंजाबी साहित्य पढना पसंद करते हैं, आप एक धरातल से जुड़ी कहानी पसंद करते हैं, अगर आप कुछ नया पढना पसंद करते हैं तो यह उपन्यास आप अवश्य पढें । 
उपन्यास-    राणी खां दे जीजे
लेखक -     गुरप्रीत सहिजी
प्रकाशक-   ऊडा पब्लिकेशन, मोहाली
पृष्ठ
-        141
मूल्य-        250

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