नीले फीते के शिकारी
भटके हुये- चंदर
अपराधी दुनिया में 'ब्लू फ़िल्मों' का एक देशव्यापी व्यापार चल रहा है । चन्दर का पहला उपन्यास 'नीले फ़ीते का जहर' जो पाठक पढ़ चुके हैं, वे अपराधी संसार की इस महामारी से अच्छी तरह परिचित हैं। अब इस उपन्यास में दिल थाम कर, थ्रिल-पर-थ्रिल का आनन्द लेते हुए, इसके नायक आनन्द और आशा के साथ डूबते-उतराते चले चलिए अपराधों के उस बड़े अड्डे पर, जहां हत्या, बलात्कार और वासना के नग्न नृत्यों के बीच निर्दोषों की आत्माओं को सताया जाता है, और जहां कभी-कभी यह भी प्रतीत होता है कि अनवर जैसे सच्चे दोस्त की जांफ़िशानी से पाप का घड़ा अचानक फूट जाता है । (उपन्यास के आवरण पृष्ठ से)
प्रसिद्ध बाल पत्रिका 'पराग' के संपादक श्री आनंद प्रकाश जैन जी ने 'चंदर' के नाम से उपन्यास लेखक किया है।नवम्बर माह में मैंने चंदर के कुछ उपन्यास पढे हैं जिनमें 'भटके हुये' उपन्यास शामिल है। यह एक थ्रिलर उपन्यास है जिसमें पूर्व स्थापित कोई नायक नहीं है।
यह उपन्यास लेखक महोदय ने क्यों लिखा है इसका विवरण भी देख लीजिएगा-
बहनो और भाइयो,
मेरे सबसे पहले उपन्यास 'नीले फीते का जहर' के बाद मेरे अनेक पाठक और पाठिकाओं ने मुझे पत्र लिखे कि मैं उसी थीम पर एक और उपन्यास उनके लिए लिखूं, जो उस से भी ज्यादा रोचक हो । अब यह कहना तो बड़ा मुश्किल है कि रोचक से भी ज्यादा रोचक किस तरह का उपन्यास होता हैं-मगर मैंने अपने कुपालु पाठकों का मान रखना चाहा । (लेखकीय से)
उपन्यास का आरम्भ आनंद नामक एक अनाथ युवक से होता है। जिसे गलतफहमी के चलते बुलाकी राम नामक व्यक्ति अधिकारी समझ लेता है।
"नमस्कार, भगवान् !"
आनंद ने चौंक कर उस आदमी की तरफ देखा । वह दीनता की मूरत बना, हाथ जोड़े इस तरह खड़ा था, मानो साक्षात् हनुमान ही राम के सामने आ खड़े हुए हों।
चिढ़कर आनंद ने पूछा - "आप क्या बेचते हैं ?"
"ह ह ह ह हः !” - वह आदमी मगन हो कर हंसा, और हाथ जोड़े-जोड़े आंखें बंद करके बोला, "हजूर, गरीबों से बच कर कहां जाइयेगा ? जहां जायेइगा हमें पाइयेगा ! इस दासानुदास का नाम बुलाकीराम है। आपकी दुआ से ठेकेदारी का छोटा-सा काम लड़के को करवा दिया था । नालायक निकला, हजुर। नहीं तो मेरी जगह वह आपकी चरण-सेवा कर रहा होता। कई बार कहा कि हजुर की - कोठी पर हुइया, मगर तंग मोहरी की पैंट पहन के नाचने से फुरसत मिले तो राम जानी। हजूर, जरा उस तरफ को चलेंगे, उस पेड़ के पीछे, हजूर !"
आनंद को सख्त गुस्सा आया। फिर भी वह मुसकरा कर बोला, "देखिए, आप शायद किसी गलतफहमी के शिकार हैं !"
“गलतफहमी ! हजूर, पुरखों तक से गलतफहमी नहीं हुई।"
कुछ समय पूर्व मिली अजनबी आशा नामक युवक के साथ आनंद को मेरठ छोड़ कर, अपनी जान बचाकर मुम्बई में शरण लेनी पड़ती है।
बम्बई बहुत बड़ी नगरी है। इस नगरी में भी बहुत से. उपनगर हैं । बम्बई सेंट्रल की तरफ दौड़ती हुई ट्रेन ने दादर पर हाल्ट लिया और आनंद अटैची लेकर वहीं उतर पड़ा। उसने आशा को समझा दिया था कि अगर पुलिस वहां सतर्क हो, और उसे पहचान ले, तो उसके टोकने पर वह पहले अनजान बन जाए। पुलिस ने जाने दिया तो ठीक, वरना वह अपने साथ किसी के होने की जानकारी पुलिस को कतई न दे, वरना बम्बई में खैर खबर लेने वाला कोई भी नहीं रहेगा। आनंद किसी तरह बाहर रह कर ही उसके लिए कुछ कर सकेगा । आशा ने हामी भर ली थी ।
मुम्बई में पहुंचते ही आनंद के जीवन का सब आनंद खत्म हो जाता है।
आनंद संघर्ष के समय के मित्र अनवर की तलाश में निकलता है पर उसकी अनवर से मुलाकात नहीं होती।
मिस्टर तिपतिया जो अश्लील फिल्म निर्माता का एजेंट है जो भोले-भाले लोगों को इस जाल में उलझा देता है। और यहाँ तो आनंद उनका एक विशेष टारगेट था। (जैसे 'रन' फिल्म में कौवा बिरयानी फंसा था) वह टारगेट क्यों था यह तो उपन्यास पढने पर ही जाना जा सकता है।
मिस्टर तिपतिया के जाल में उलझा आनंद बहुत कोशिश के पश्चात भी बाहर नहीं निकल पाता।
वहीं जब अनवर को यह पता चलता की उसका दोस्त आनंद उससे मिलने आया था तो वह भी आनंद की तलाश में निकल पड़ता है।
वहीं मुम्बई में रहने वाला आनंद का दोस्त अनवर (सी. आई.डी. अस्थायी) जब आनंद की तलाश में निकलता है तो शीघ्र ही वह सी. आई.डी. इंस्पेक्टर खालिद के सहयोग से खोज निकालता है। और वह आनंद और आशा का जीवन बचा लेता है।
यह एक छोटी सी और सामान्य कहानी है। हां, कहानी बहुत ही तेज रूप से घटित होती है, जिसके कारण पाठक उस उपन्यास से जुड़ा रहता है।
लेखक 'चंदर' ने अपने प्रसिद्ध उपन्यास 'नीले फीते का जहर' जैसा ही एक और उपन्यास लिखने का प्रयास किया, पर यह उपन्यास कोई विशेष नहीं बन पाया।
कथा अच्छी है, विषय भी अच्छा है पर अंत में लेखक महोदय मात खा गये। उपन्यास के अंत को अत्यंत भारतीय फिल्मों जैसा बना दिया, जिनमें जुड़वा भाई आखिर मिल जाते हैं।
लेखक महोदय दो व्यक्तियों को हमशक्ल दिखा सकते थे, दिखाया भी लेकिन अंत में उनको जुड़वा और बिछड़े दिखाना सही नहीं लगा। और यह बिछड़ने की कथा भी अंत में कैसे पता चली इसका कोई भी तर्क नहीं है।
वहीं उपन्यास में एक कत्ल दिखाया गया है उसका रहस्य खुलना भी तर्कसंगत नहीं है।
उपन्यास में जहाँ जो भी तर्क हैं, वहीं तर्कसंगत नहीं हैं।
उपन्यास में अनवर का किरदार बहुत अच्छा है। उसके कुछ टिप्स देखें-
अनवर ने अपने उस्ताद का स्मरण किया। उस्ताद ने कान में चुपके से कहा - "बदन को ढीला छोड़ दो। दिमाग से डर को निकाल फेंको । पहला वार तुम करो। खुदा पर भरोसा रखो। मौका न चूको ! - बस, ये पांच असूल तुम्हें किसी भी लड़ाई में जिताने के लिए काफी हैं। दुनिया में कोई इतना ताकतवर इनसान पैदा नहीं हुआ, जो हाथी की तरह चींटी से न मर सकता हो ।"
उपन्यास में जितने भी खलपात्र है, वह चाहे बाॅस हो, तिपतिया हो या अन्य गौण खलपात्र, सभी के सभी प्रभावित करते हैं।
बाॅस की हँसी, तिपतिया के संवाद, गौण पात्रों की मूर्खता इत्यादि।
चंदर द्वारा लिखित 'भटके हुये' एक मध्य स्तर का हल्का- फुल्का उपन्यास है। कहानी सामान्य है, कुछ विशेष, स्मरणीय कुछ भी नहीं है।
बस, एक बार पढा जा सकता है।
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