Monday, 1 August 2022

526. सबसे बडा़ जासूस - वेदप्रकाश शर्मा, भाग-01

आखिर कौन बनेगा - सबसे बड़ा जासूस?
 
सबसे बड़ा जासूस - वेदप्रकाश
 शर्मा
अंतरराष्ट्रीय समस्याओं से निपटने के लिए एक अंतरराष्ट्रीय सीक्रेट सर्विस बनाने का विचार विश्वमंच पर आया, इसके लिए विश्व के श्रेष्ठ जासूस एकत्र हुये और फिर यह मंच स्वयं में एक समस्या बन गया। क्योंकि वहाँ उपस्थित जासूस वर्ग में सभी स्वयं को मानते थे 'सबसे बड़ा जासूस'।
  जासूसी साहित्य में वेदप्रकाश शर्मा का नाम अद्वितीय है। उन जैसा लेखन अन्यत्र दुर्लभ है। उन्होंने विजय के साथ स्वयं का मौलिक पात्र 'विकास' सर्जित कर उपन्यास साहित्य में जो 'एंग्रीयंग मैन' वाले उपन्यास रचे हैं वह पाठकवर्ग में एक समय विशेष में अति चर्चित रहे हैं। 
   विकास एक युवा जासूस है, जो अधिकाश मसले ताकत से सुलझाने में विश्वास रखता है लेकिन वहीं विजय दिमाग का ज्यादा इस्तेमाल करता है। विजय-विकास के अनोखे कारनामे पाठकों बहुत रोचक लगते हैं। एक समय था जब उपन्यास साहित्य में अंतरराष्ट्रीय जासूस वर्ग के एक्शन युक्त कारनामें दिखाये जाते थे।     ऐसा ही एक उपन्यास है 'सबसे बड़ा जासूस'। जिसमें जासूसवर्ग के रोचक, हैरत और मनोरंजक कारनामे उपस्थित हैं।
  रूस में अंतरराष्ट्रीय जासूसों की एक गुप्त मिटिंग बुलाई गयी। जिसका उद्देश्य था एक अंतरराष्ट्रीय सीक्रेट सर्विस गठन का। ताकि भविष्य में विश्व पर होने वाले बाहरी आक्रमणों या दुश्मनों का मिलकर मुकाबला किया जा सके।
       इस मिटिंग में अमेरिकन माईक, रूस का बागारोफ, पाकिस्तानी चंगेज खां, चीनी त्वांग ली, ब्रिटेनी बाण्ड, जर्मनी क्लार्क राबर्ट, बंगाली रहमान, आस्ट्रेलियाई जार्ज हेम्बर, लंका का सिम्बोलिया इत्यादि उपस्थित थे।
   लेकिन यह मिटिंग स्वयं में एक समस्या बन गयी। और समस्या यह थी की अंतरराष्ट्रीय सीक्रेट सर्विस का चीफ कौन बनेगा।
सुझाव आया जो होगा सबसे बड़ा जासूस।
अब सबसे बड़ा जासूस किसे माने, वहां उपस्थित प्रत्येक देश का जासूस स्वयं को सबसे बड़ा जासूस ही मानता था।
मिटिंग की अध्यक्षता करते रूसी जासूस बागारोफ ने पूछा।
- "क्या कोई ऐसा तरीका बता सकता है जिससे यह सिद्ध हो सके कि सबसे बड़ा जासूस कौन....।"
तड़ाक
तभी बागारोफ की गंजी चांद पर एक चपत पड़ा।
बागारोफ की आंखों के सामने लाल-पीले तारे नाच उठे। उसकी खोपड़ी घूम गयी।
- "ये क्या तरीका बताएंगे श्रीमान बूढ प्रसादजी?" वातावरण में ऐसी आवाज गूंजी मानो फुल पॉवर पर चलता हुआ रेडियो एकदम खराब हो गया हो - "ये सब अज्ञानी बालक हैं। तरीका मैं तुम्हें बता सकता हूं।"
खोपड़ी घूम गयी बागारोफ की।

    
           वेदप्रकाश शर्मा जी के पाठक समझ गये होंगे इस पात्र को, यह है चाँद का भगोड़ा अपराधी टुम्बकटू। टुम्बकटू स्वयं में एक अजूबा है, खतरनाक है और उसका दावा है उसके पास विश्व का सबसे बड़ा खजाना है। वहीं टुम्बकटू ने दावा किया कि जो जासूस उसे पकड़ेगा वही होगा सबसे बड़ा जासूस।
  वहीं अंतरराष्ट्रीय सीक्रेट सर्विस ने भी निर्णय लिया- - "हम इस बात पर लड़ते रहें कि हममें सबसे बड़ा जासूस कौन है और टुम्बकटू नामक अजीब कार्टून न केवल हमारे एक साथी जासूस को मार गया बल्कि सैनिकों की लाशों से सारे हॉल को पाट गया। यह खूनी छलावा - दिन पर दिन विश्व के लिये भयानक खतरा भी बन चुका है। वह जानता है कि अन्तरराष्ट्रीय सीक्रेट के नाम से कोई संस्था बन रही है। मेरा मतलब अपराधी जगत के लोगों से है। मैं समझता हूं कि हमारी इस सीक्रेट सर्विस का सबसे पहले अभियान यही होना चाहिये टुम्बकटू किसी एक देश के लिए नहीं बल्कि सम्पूर्ण विश्व के लिये एक खतरा है, क्यों ना हमारा सबसे पहला अभियान विश्व को टुम्बकटू के खतरे से मुक्त करना हो।" कहकर बागारोफ ने एक एक जासूस का चेहरा देखा।
  और फिर आरम्भ होता है टुम्बकटू को पकड़ने का अभियान शुरु। जो भी जासूस टुम्बकटू को पकड़ेगा वही होगा सबसे बड़ा जासूस। और सबसे बड़ा जासूस बनने के लिए सभी जासूस परस्पर घात-प्रतिघात के एक ऐसे जाल में उलझ जाते हैं जहाँ दोस्त और दुश्मन को कोई पता नहीं चलता। सबसे बड़ा जासूस बनने के लिए कौन, कब किसका दोस्त बन जाये और कौन, कब किसका दुश्मन।
इस घात- प्रतिघात के खेल में बाण्ड जैसे प्रसिद्ध और तेजतर्रार जासूस की बुद्धि भी थम गयी- बाण्ड की खोपड़ी घूम रही थी परन्तु वह यह नहीं समझ पा रहा था कि ये सब चक्कर क्या है?
   
इसके अतिरिक्त उपन्यास में कुछ जासूस मित्र विकास से पुरानी दुश्मनी निकालना चाहते हैं, इसलिए वे विकास को मारने का प्लान भी बनाते हैं। 
    उपन्यास में विजय की भूमिका प्रत्यक्ष में बहुत कम है, पर जहाँ भी उसकी उपस्थिति है वहाँ दमदार है। विजय की एक ही इच्छा है- मैंने तुम्हें भारत के एक ऐसे जासूस के रूप में देखा है कि मैं तुम्हें सबसे बड़ा जासूस बनाऊंगा। तुम जितनी प्रगति करोगे विकास, मुझे उतनी ही खुशी होगी।
     मेरा दिल चाहता है कि तुम तरक्की करके उस सीढ़ी तक पहुंच जाओ जहां लोग कहें कि विकास से ऊँचा कोई नहीं है। अन्तरराष्ट्रीय सीक्रेट सर्विस के निर्माण का विचार सर्वप्रथम तुम्हारे दिमाग में आया है, मैं तुम्हारे दिमाग की इन नई उपज की प्रशंसा करता हूँ। यह विचार तुम्हारा है, इसलिये इस रास्ते पर आगे बढ़कर बुलन्दियों तक पहुंचने का भी हक तुम्हारा है। अब हमें आगे बढ़कर करना ही क्या है प्यारे दिलजले, अब तो तुम्हें आगे बढ़ाने में ही हमें गर्व है।" यह सब कुछ कहता – कहता विजय न जाने क्यों थोड़ा भावुक हो गया।

     अच्छा, अभी एक और महत्वपूर्ण पात्र रह गया और वह है अंतरराष्ट्रीय अपराधी अलफांसे। अलफांसे को जानने वालों को पता है- अलफांसे कभी भी, कहीं भी पाया जा सकता है। तो फिर जब बात हो विश्व के सबसे बड़े खजाने की तो अलफांसे कहां पीछे रहने वाला था। वह भी टुम्बकटू की खोज में सक्रिय हो गया।
   और टुम्बकटू, वह तो छलावा है किसी के हाथ आने वाला नहीं। और टुम्बकटू का कहना था जो भी उस खजाने तक पहुँच जायेगा वह बनेगा 'चीते का दुश्मन'।
    अब यह 'चीते का दुश्मन' क्या है? तो इस रहस्य को जानने के लिए 'सबसे बड़ा जासूस' उपन्यास का द्वितीय भाग 'चीते का दुश्मन' पढना होगा।
    
वेदप्रकाश शर्मा जी द्वारा लिखित 'सबसे बड़ा जासूस' अंतरराष्ट्रीय जासूस वर्ग के परस्पर संघर्ष की रोचक और पठनीय कहानी है। 
   उनके आपसी संघर्ष, द्वेष और मित्रता के मध्य महाबली टुम्बकटू भी है। जिसे पकड़ना भी एक चुनौती है।
उपन्यास-   सबसे बड़ा जासूस
लेखक   -  वेदप्रकाश शर्मा
प्रकाशक - राजा पॉकेट बुक्स
उपन्यास का द्वितीय भाग - चीते का दुश्मन

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