एक खूनी तीन कत्ल
तीसरा खून - प्रकाश भारती
#अजय_सीरीज- 1983
Hindi Pulp Fiction में यथार्थ के धरातल पर उपन्यास लिखने वाले लेखकों में से एक हैं -प्रकाश भारती। प्रकाश भारती एक सौ आठ उपन्यास लेखन के पश्चात लेखन से विराम ले लिया है। पर उनके लिखे उपन्यास आज भी पाठकों की पसंद में शामिल हैं।
प्रकाश भारती जी का उपन्यास 'तीसरा खून' पढा। मुझे यह रोचक उपन्यास लगा। अब चर्चा इसी उपन्यास की।"रामलाल!''- अजय हांफता हुआ बोला-" समझने की कोशिश करो। विक्रम सिंह की हत्या के जुर्म में पुलिस तुम्हें ढूंढ रही है। तुम्हारे खिलाफ इतना तगड़ा केस बन चुका है कि सीधे फांसी के फंदे में ही झूलते नजर आओगे।"
अजय की ओर झपटता भीमकाय रामलाल यूं झटका सा खाकर रुका मानो एकाएक किसी मजबूत दीवारसे टकरा गया था। उसके खूंखार चेहरे पर घोर आश्चर्य एवं अविश्वास के भाव उत्पन्न हो गये।
"क्या बक रहे हो?"- वह दहाडा़
"मैं बिलकुल सच कह रहा हूँ। पुलिस किसी भी क्षण यहाँ पहुँच सकती है।"
रामलाल ने अनिश्चय भाव से पल भर कुछ सोचा, फिर जोरदार अट्टहास लगा दिया।
प्रस्तुत कहानी विक्रम सिंह ट्रांस्पोर्ट की है। और अजय का विक्रम सिंह ट्रांस्पोर्ट कम्पनी पहुँचना महज एक इत्तिफाक था। एक शोर्टकट के चक्कर में अजय जब विक्रम ट्रांस्पोर्ट के आगे से निकला तो वहाँ एक एम्बुलेंस और पुलिस गाड़ी देख कर उसका पत्रकार दिमाग सक्रिय हो गया।
विक्रम ट्रांस्पोर्ट के मालिक विक्रम सिंह की किसी ने हत्या कर दी थी। देखने में यह हत्या और लूटपाट का केस नजर आ रहा था। और पुलिस ने अपनी सक्रियता के चलते अपराधी को जेल के पीछे पहुंचा दिया। लेकिन अजय का पत्रकार मस्तिष्क कहता था कि असली अपराधी कोई और है।
इस घटना के लम्बे अर्से पश्चात विक्रम ट्रांस्पोर्ट से संबंधित एक और व्यक्ति की हत्या हो गयी। पुलिस की कार्यवाही से एक और अपराधी को जेल हो गयी। लेकिन वहीं 'थंडर' के पत्रकार अजय का कहना था कि इन हत्याओं के पीछे को और अपराधी है। जेल की सजा भुगत रहे लोग निर्दोष हैं और असली अपराधी दो-दो हत्या करने के पश्चात स्वतंत्र घूम रहा है। लेकिन पुलिस इंस्पेक्टर रविशंकर अजय की बातों से सहमत नहीं था।
लेकिन इस शृंखला में जब तीसरा खून हुआ तो सब हैरान रह गये। क्योंकि जिन लोगों पर हत्यारा होने का शक था वह तो जेल में थे, फिर हत्या कौन कर रहा था।
जब अजय ने इस हत्या की शृंखला को गौर किया तो उसे सब हत्याओं में एक समानता नजर आयी। यही तीसरा खून अपराधी के लिए फंदा बन गया।
फिर अपनी खोजबीन तथा तीव्र मस्तिष्क के बल पर अजय ने असली अपराधी को जेल में पहुंचा कर ही दम लिया।
'तीसरा खून' एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। उपन्यास में एक ट्रांस्पोर्ट कम्पनी से संबंधित व्यक्तियों का क्रमशः कत्ल होता रहता है। और अपराधी भी इतना चालाक है की वह अपने पिछे कॊई सबूत नहीं छोड़ता। और यह भी स्मरणीय है की उस चालाक कातिल के जाल में उलझकर पुलिस किन्हीं अन्य व्यक्तियों को अपराधी साबित कर देती है।
वहीं समाचार पत्र 'थंडर' के पत्रकार अजय को इन हत्याओं में कहीं न नहीं यह आभास होता है की असली अपराधी कोई और ही है। इसलिए वह पुलिस की थ्योरी पर विश्वास न करके अपने स्तर पर अन्वेषण करता है। हालांकि उपन्यास का काल बहुत विस्तृत है। उपन्यास कथा लगभग आठ-दस माह तक विस्तृत है। हालांकि यह विस्तार कहीं खटकता तो नहीं है, पर जिस हिसाब से लोग आठ माह पुरानी बात का जिक्र करते हैं तो लगता है जैस कल की बात हो। आठ माह पहले की साधारण सी बात याद रखना मेरे विचार से थोड़ा कठिन होता है। उपन्यास का फलक इतना विस्तृत नहीं होना चाहिए था।
उपन्यास के पात्रों की बात करें तो उपन्यास के अधिकांश पात्र तेज-तर्रार किस्म के हैं। लेकिन हर पात्र एक-दूसरे से स्वयं को चालाक ही समझता है।
उपन्यास के कुछ विशेष पात्र
अजय- समाचार पत्र थंडर का पत्रकार
रविशंकर- पुलिस इंस्पेक्टर
विक्रम सिंह- विक्रम ट्रांस्पोर्ट का मालिक
सुरजीत कौर - विक्रम सिंह की पत्नी
अमरजीत सिंह- ट्रास्फोर का मैनेजर
रजनी- विक्रम सिंह की सेक्रेट्री
देवराज - ट्रक ड्राइवर
रामलाल - पूर्व ट्रक ड्राइवर, कम्पनी का चपरासी
उपन्यास में एक जगह पुलिस इंस्पेक्टर रविशंकर और अजय का चरित्र-चित्रण किया गया है। यह दोनों पात्रों को समझने में सहायक है।
- रविशंकर अजय को बेहतरीन दोस्त, जिम्मेदार नागरिक, कुशल रिपोर्टर, कानून का हामी और एक जिंदादिल आदमी समझता है। दोनों में किसी किस्म की कोई प्रतिद्वन्द्विता भी नहीं थी। लेकिन एक पुलिस इंस्पेक्टर की हैसियत से वह अपने फर्ज को न सिर्फ तरजीह देता था बल्कि उसे अपने ढंग से अंजाम देने का भी हामी था। इसके विपरीत अजय खुराफाती था, हर बात को अपने अलग नजरीये से देखता व सोचता था। कानून की हिफाजत के लिए गैरकानूनी तरीका इस्तेमाल करने में भी नहीं हिचकता था। जबकि अपने पद की मर्यादा और फर्ज अदायगी के दायरे में बंधे रविशंकर को उसकी इन्हीं बातों से सख्त चिढ थी। यही वजह थी कि एक-दूसरे की नेक नीयती से अच्छी तरह वाकिफ होने के बावजूद भी उनमें प्रतिद्वंद्विता का सा भाव पैदा हो जाता था। जो कि सही मायनों में उनके अपने-अपने दृष्टिकोणों और स्वभाव का अंतर था।
प्रकाश भारती द्वारा लिखित 'तीसरा खून' अजय सीरीज का एक एक मर्डर मिस्ट्री आधारित रोचक उपन्यास है। कहानी एक कत्ल से आरम्भ होकर तीन कत्लों तक पहुँच जाती है और कहानी का विस्तार लगभग आठ-दस माह तक विस्तृत है।
उपन्यास शुरू से अंत तक पाठक को स्वयं में बांधने में सक्षम है और पाठक को यह भी कहीं अहसास नहीं होता की वास्तविक अपराधी कौन है।
उपन्यास- तीसरा खून
लेखक- प्रकाश भारती
प्रकाशक - साधना पॉकेट बुक्स, दिल्ली
सन् - 1983
तीसरा खून - प्रकाश भारती
#अजय_सीरीज- 1983
Hindi Pulp Fiction में यथार्थ के धरातल पर उपन्यास लिखने वाले लेखकों में से एक हैं -प्रकाश भारती। प्रकाश भारती एक सौ आठ उपन्यास लेखन के पश्चात लेखन से विराम ले लिया है। पर उनके लिखे उपन्यास आज भी पाठकों की पसंद में शामिल हैं।
प्रकाश भारती जी का उपन्यास 'तीसरा खून' पढा। मुझे यह रोचक उपन्यास लगा। अब चर्चा इसी उपन्यास की।"रामलाल!''- अजय हांफता हुआ बोला-" समझने की कोशिश करो। विक्रम सिंह की हत्या के जुर्म में पुलिस तुम्हें ढूंढ रही है। तुम्हारे खिलाफ इतना तगड़ा केस बन चुका है कि सीधे फांसी के फंदे में ही झूलते नजर आओगे।"
अजय की ओर झपटता भीमकाय रामलाल यूं झटका सा खाकर रुका मानो एकाएक किसी मजबूत दीवारसे टकरा गया था। उसके खूंखार चेहरे पर घोर आश्चर्य एवं अविश्वास के भाव उत्पन्न हो गये।
"क्या बक रहे हो?"- वह दहाडा़
"मैं बिलकुल सच कह रहा हूँ। पुलिस किसी भी क्षण यहाँ पहुँच सकती है।"
रामलाल ने अनिश्चय भाव से पल भर कुछ सोचा, फिर जोरदार अट्टहास लगा दिया।
प्रस्तुत कहानी विक्रम सिंह ट्रांस्पोर्ट की है। और अजय का विक्रम सिंह ट्रांस्पोर्ट कम्पनी पहुँचना महज एक इत्तिफाक था। एक शोर्टकट के चक्कर में अजय जब विक्रम ट्रांस्पोर्ट के आगे से निकला तो वहाँ एक एम्बुलेंस और पुलिस गाड़ी देख कर उसका पत्रकार दिमाग सक्रिय हो गया।
विक्रम ट्रांस्पोर्ट के मालिक विक्रम सिंह की किसी ने हत्या कर दी थी। देखने में यह हत्या और लूटपाट का केस नजर आ रहा था। और पुलिस ने अपनी सक्रियता के चलते अपराधी को जेल के पीछे पहुंचा दिया। लेकिन अजय का पत्रकार मस्तिष्क कहता था कि असली अपराधी कोई और है।
इस घटना के लम्बे अर्से पश्चात विक्रम ट्रांस्पोर्ट से संबंधित एक और व्यक्ति की हत्या हो गयी। पुलिस की कार्यवाही से एक और अपराधी को जेल हो गयी। लेकिन वहीं 'थंडर' के पत्रकार अजय का कहना था कि इन हत्याओं के पीछे को और अपराधी है। जेल की सजा भुगत रहे लोग निर्दोष हैं और असली अपराधी दो-दो हत्या करने के पश्चात स्वतंत्र घूम रहा है। लेकिन पुलिस इंस्पेक्टर रविशंकर अजय की बातों से सहमत नहीं था।
लेकिन इस शृंखला में जब तीसरा खून हुआ तो सब हैरान रह गये। क्योंकि जिन लोगों पर हत्यारा होने का शक था वह तो जेल में थे, फिर हत्या कौन कर रहा था।
जब अजय ने इस हत्या की शृंखला को गौर किया तो उसे सब हत्याओं में एक समानता नजर आयी। यही तीसरा खून अपराधी के लिए फंदा बन गया।
फिर अपनी खोजबीन तथा तीव्र मस्तिष्क के बल पर अजय ने असली अपराधी को जेल में पहुंचा कर ही दम लिया।
'तीसरा खून' एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। उपन्यास में एक ट्रांस्पोर्ट कम्पनी से संबंधित व्यक्तियों का क्रमशः कत्ल होता रहता है। और अपराधी भी इतना चालाक है की वह अपने पिछे कॊई सबूत नहीं छोड़ता। और यह भी स्मरणीय है की उस चालाक कातिल के जाल में उलझकर पुलिस किन्हीं अन्य व्यक्तियों को अपराधी साबित कर देती है।
वहीं समाचार पत्र 'थंडर' के पत्रकार अजय को इन हत्याओं में कहीं न नहीं यह आभास होता है की असली अपराधी कोई और ही है। इसलिए वह पुलिस की थ्योरी पर विश्वास न करके अपने स्तर पर अन्वेषण करता है। हालांकि उपन्यास का काल बहुत विस्तृत है। उपन्यास कथा लगभग आठ-दस माह तक विस्तृत है। हालांकि यह विस्तार कहीं खटकता तो नहीं है, पर जिस हिसाब से लोग आठ माह पुरानी बात का जिक्र करते हैं तो लगता है जैस कल की बात हो। आठ माह पहले की साधारण सी बात याद रखना मेरे विचार से थोड़ा कठिन होता है। उपन्यास का फलक इतना विस्तृत नहीं होना चाहिए था।
उपन्यास के पात्रों की बात करें तो उपन्यास के अधिकांश पात्र तेज-तर्रार किस्म के हैं। लेकिन हर पात्र एक-दूसरे से स्वयं को चालाक ही समझता है।
उपन्यास के कुछ विशेष पात्र
अजय- समाचार पत्र थंडर का पत्रकार
रविशंकर- पुलिस इंस्पेक्टर
विक्रम सिंह- विक्रम ट्रांस्पोर्ट का मालिक
सुरजीत कौर - विक्रम सिंह की पत्नी
अमरजीत सिंह- ट्रास्फोर का मैनेजर
रजनी- विक्रम सिंह की सेक्रेट्री
देवराज - ट्रक ड्राइवर
रामलाल - पूर्व ट्रक ड्राइवर, कम्पनी का चपरासी
उपन्यास में एक जगह पुलिस इंस्पेक्टर रविशंकर और अजय का चरित्र-चित्रण किया गया है। यह दोनों पात्रों को समझने में सहायक है।
- रविशंकर अजय को बेहतरीन दोस्त, जिम्मेदार नागरिक, कुशल रिपोर्टर, कानून का हामी और एक जिंदादिल आदमी समझता है। दोनों में किसी किस्म की कोई प्रतिद्वन्द्विता भी नहीं थी। लेकिन एक पुलिस इंस्पेक्टर की हैसियत से वह अपने फर्ज को न सिर्फ तरजीह देता था बल्कि उसे अपने ढंग से अंजाम देने का भी हामी था। इसके विपरीत अजय खुराफाती था, हर बात को अपने अलग नजरीये से देखता व सोचता था। कानून की हिफाजत के लिए गैरकानूनी तरीका इस्तेमाल करने में भी नहीं हिचकता था। जबकि अपने पद की मर्यादा और फर्ज अदायगी के दायरे में बंधे रविशंकर को उसकी इन्हीं बातों से सख्त चिढ थी। यही वजह थी कि एक-दूसरे की नेक नीयती से अच्छी तरह वाकिफ होने के बावजूद भी उनमें प्रतिद्वंद्विता का सा भाव पैदा हो जाता था। जो कि सही मायनों में उनके अपने-अपने दृष्टिकोणों और स्वभाव का अंतर था।
प्रकाश भारती द्वारा लिखित 'तीसरा खून' अजय सीरीज का एक एक मर्डर मिस्ट्री आधारित रोचक उपन्यास है। कहानी एक कत्ल से आरम्भ होकर तीन कत्लों तक पहुँच जाती है और कहानी का विस्तार लगभग आठ-दस माह तक विस्तृत है।
उपन्यास शुरू से अंत तक पाठक को स्वयं में बांधने में सक्षम है और पाठक को यह भी कहीं अहसास नहीं होता की वास्तविक अपराधी कौन है।
उपन्यास- तीसरा खून
लेखक- प्रकाश भारती
प्रकाशक - साधना पॉकेट बुक्स, दिल्ली
सन् - 1983
दिलचस्पी जगा दी सर।
ReplyDeleteJude hmare sath apni kavita ko online profile bnake logo ke beech share kre
ReplyDeletePub Dials aur agr aap book publish krana chahte hai aaj hi hmare publishing consultant se baat krein Online Book Publishers