Friday, 21 August 2020

367. नायक - बसंत कश्यप

सन् 1993 मुंबई सीरियल बम ब्लास्ट पर आधारित
नायक- बसंत कश्यप, थ्रिलर

   
सन् 1993 में मुंबई में हुये सीरियल वार बम धमाके तो आपको पता ही होंगे। कहीं पढा होगा, देखा होगा या फिर इसके विषय में कहीं सुना होगा।
    इन धमाकों में दो नाम चर्चा में रहे थे एक थे अंडरवर्ल्ड के डाॅन दाउद इब्राहिम और दूसरा नाम चर्चा में रहा वह था फिल्म स्टार संजय दत्त।
          प्रस्तुत उपन्यास 'नायक' लेखक बसंत कश्यप जी ने मुंबई बम धमाकों को आधार बना कर लिखा है। सत्य और कल्पना का इतना अच्छा मिश्रण मिलता है की पाठक के सामने एक-एक दृश्य साकार हो उठता है। इनका एक और उपन्यास है 'घायल आबरू' वह अजमेर के ब्लैकमेलिंग काण्ड पर आधारित है। 

कहानी का आरम्भ मुंबई दंगों से होता है। जहाँ अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यको के मध्य दंगे होते हैं। इसका कारण है अयोध्या की बाबरी मस्जिद का ढहना। मुंबई में अल्पसंख्यक लोग 'देव-दल' और उसके प्रमुख बल्लू वागले को को दंगों का आरोपी मानते हैं।
साम्प्रदायिकता की आग में झुलसते उस शहर की सड़क पर एक भी आदमी दूर दूर तक नजर नहीं आ रहा था।  (पृष्ठ-07) 

      लेकिन 'देव-दल' स्वयं को राष्ट्रवादी मानता है। सांसद सामवन्त जो की एक अभिनेता भी है। इन दंगों से आत्मिक रूप से परेशान रहते हैं।

    सामवन्त साहब हिन्दुस्तान में स्टार लीडर के साथ-साथ एक सच्चे देशभक्त और अच्छे इंसान के रूप में मशहूर थे। (पृष्ठ-89)
   सामवन्त साहब का पुत्र है सारंग, जो की एक फिल्म अभिनेता है। लेकिन नशे की आदत और भावनाओं के चलते वक्त गलत लोगों की संगत में जा बैठता है।
पर्दे का नायक, हकीकत की दुनिया में अपराधियों का मजा लूटने वाला खलनायक बन चुका था। हां...खलनायक। (पृष्ठ-80)
     यही गलती उसके जीवन की सबसे बड़ी गलती साबित होती है।
    
     वह था माफिया किंग दारुल स्माइल। वह था तस्कर सम्राट जो एशिया में अपनी ताकत की धाक जामकर दुबई के सरकारी तंत्र को अपना गुलाम बनाकर वहाँ बादशाह जैसा जीवन जी रहा था। (पृष्ठ-09)
     दारूल इस्माइल-जिसकी पीठ पर पाकिस्तान का हाथ है। वह कहता है- "आज की तारीख में हमारी काली दुनिया ही हमारी ताकत नहीं है। पाकिस्तान जैसा समर्थक देश हमारी पीठ पर है। (पृष्ठ-100,101)
   दारूल इस्माइल पाकिस्तान का पालित-पोषित और कुछ भ्रष्ट भारतीय नेताओं से मिल कर मुंबई में एक श्रृंखलाबद्ध विस्फोट की योजना बनाता है। लेकिन उसे तलाश थी एक ऐसे व्यक्ति की जो उसके हथियारों को सुरक्षित रखे सके, तब उसकी नजर जाती है बाबा उर्फ सारंग।
सुपर स्टार सारंग।
हिन्दुस्तान के करोड़ों दिलों का हीरो- सारंग।

     अल्पसंख्यकों पर हुये कथित अत्याचारों का प्रतिशोध लेने के लिए दारूल इस्माइल मुंबई में सिलसिले वार विस्फोट करवाता है।
      लेकिन नायक बाबा उर्फ सारंग को जब वास्तविक का पता चलता है तो उसकी रुह कांप उठती है और पुलिस भी सारंग की तलाश में निकल पड़ती है।
   आगे क्या हुआ....?
  आप 'नायक' उपन्यास पढे और जाने वास्तविकता और कल्पना के रंग से मिश्रित एक तेज रफ्तार उपन्यास जो आपकी धड़कने तेज करने में सक्षम है।

   लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में बहुत कम उपन्यास हैं जो वास्तविक घटनाओं को आधार बना कर लिखे गये हैं। प्रस्तुत उपन्यास में‌ लेखक महोदय ने जो प्रयोग किया है वह प्रशंसनीय है।  

उपन्यास में मुख्य घटनाक्रम के अतिरिक्त भी कुछ ऐसे तथ्य हैं जो हमें सोचने के लिए विवश करते हैं।
  पंजाब के आतंकवाद पर एक टिप्पणी देखें-
"पाकिस्तान के हथकण्डे आखिर में उसी पर चोट करते हैं, जिनकी पीठ की ताकत बनते हैं वो"-टोपीवाला बोला-" आज पंजाब की हालत देखो। पाकिस्तान की वजह से पंजाब के गाँव के गाँव, गबरु नौजवानों से खाली हो गए हैं। पीठ पीछे खड़े पाकिस्तान के भ्रम में पड़कर वे हजारों-हजारों की तादाद में आतंकवादी बनकर, मर खप गए, मगर उनके रहनुमाओं को खालिस्तान नहीं मिला। आज पंजाब के हर घर में पाकिस्तान को कोसा जाता है।"(पृष्ठ-101)

भारतीय राजनीति पर लेखक महोदय ने गहरी चोट की है। वर्तमान राजनीति की वास्तविकत उजागर करता एक संवाद देखें-
"....आज की सरकार चूहों की उस पंचायत की तरह है, जो किसी भी साम्प्रदायिक दल के खिलाफ कदम उठाना किसी के गले में घण्टी बांधने जैसा खतरनाक समझती है।" (पृष्ठ-122)

    उपन्यास में एक जगह प्रसिद्ध अभिनेत्री प्रिया भारती की मृत्यु का वर्णन भी तात्कालिक एक अभिनेत्री की ओर इशारा करता है।

उपन्यास में कहीं-कहीं संवाद बहुत लंबे खींच दिये गये हैं। उपन्यास के बीस-तीस पृष्ठ कम किया जा सकता था। पुलिस कमिश्नर का संवाद दो पृष्ठ का है। ऐसा एक दो जगह और भी मिलता है।

लेखक ने कुछ पात्रों का इतना अच्छा वर्णन किया है की वे सजीव हो उठते हैं‌। रेखाचित्र की तरह पात्रों को प्रस्तुत करना, प्रशंसनीय है। वह चाहे सारंग का चित्रण हो या फिर माधुरी का।
एक उदाहरण देखें।
           लम्बी सुतवां नाक, झील सी गहराई लिए आँखों की पुतलियों की चंचलता, कुदरती सुर्ख कमल की पंखुड़ियों जैसे होंठ, अण्डाकार चेहरे पर भरे हुए सुर्ख गालों को छूती सोने की बड़ी बड़ी बालियां, सादगीपूर्ण ढंग से संवारे ग ए बालों में वह स्वर्ग से उतरी मेनका का भान करती थी। ......केवल उन्नीस बरस की उम्र थी उसकी, जिसका नाम था माधुरी बागले।
  माधुरी बागले मामूली लड़की नहीं थी। शहर के देव दल नाम के पार्टी अध्यक्ष  बल्लू बागले की भतीजी थी माधुरी बागले।
(पृष्ठ-68)

उपन्यास के पात्र
    लेखक महोदय ने उस घटना से संबंधित आदमियों का ही इस उपन्यास में चित्रण किया है। बस नाम बदल दिये गये हैं। उपन्यास पढते ही पाठक को वास्तविक चेहरों का आभास हो जाता है।
सामवन्त-  सांसद, अभिनेता
विल्किश-  सामवन्त की पत्नी
सारंग, बाबा - सामवन्त का पुत्र, अभिनेता
प्रियंका-    सामवन्त की पुत्री
बल्लू वागले- देव दल का अध्यक्ष
माधुरी-    बल्लू वागले की भतीजी
विलास पावर-  एक नेता
टीनू टोपीवाला- विधायक
राहुल-  टीनू टोपीवाला का पुत्र
प्रिया भारती-    एक अभिनेत्री
नासिर- प्रिया का पति, फाईनेंसर
कंवल-  प्रिया भारती की सहेली
दारुल इस्माइल- अंडरवर्ल्ड का डाॅन , D company
आलमजेब-     दारूल का विशेष व्यक्ति
जाॅनी दुग्गल- दारूल के सहयोगी
नूरा मस्तान-  दारूल के सहयोगी
कदीर रब्बानी-  सहयोगी
मोमिन -    एक तश्कर, बम ब्लास्ट में सक्रिय
सब्बीर, शाहरुख- मोमिन के भाई
कादम्बिनी- एक हिरोईन
मंजु श्री- एल हिरोईन
ए.सी. पी. मुरली देवड़ा
मुश्ताक अली- पाकिस्तानी
रंजन श्रीवास्तव- पुलिस कमिश्नर
रामचन्द्र सासने- एस. आई.
आसमां- एक विशेष बच्ची
  और अंत में एक संवाद-
कम्पनी के असूल कहते हैं कि खतरा बाप के रूप में भी हो तो उसे रास्ते से हटा दो। (पृष्ठ-75)

वास्तविक घटना को आधार बना कर लिखा गया 'नायक' उपन्यास कल्पना और वास्तविक को एक साथ प्रस्तुत करता है। लेखक ने एक एक घटना को अच्छे से प्रस्तुत किया है। उपन्यास का समापन भी बहुत रोचक और उपन्यास के कथानक के अनुरूप है।
एक रोचक और पठनीय उपन्यास है।

उपन्यास-   नायक
लेखक-      बसंत कश्यप
प्रकाशक-   गौरी पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-         287

बसंत कश्यप के अन्य उपन्यासों की समीक्षा

मोहब्बत का जाल
तिरंगा तेरे हिमालय का

1 comment:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। मिलेगा तो जरूर पढ़ना चाहूँगा।

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