खजाने के चक्कर में......मौत की घाटी में।
हिमालय की चीख- बसंत कश्यप, हाॅरर-थ्रिलर, रोचक, पठनीय।
हिमालय सीरिज का प्रथम भाग।
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कई वर्ष पूर्व एक उपन्यास पढा था 'डंके की चोट'। उपन्यास तिलिस्म, हाॅरर, जासूसी और थ्रिलर का इतना जबरदस्त मिश्रण था की मैं उसके आकर्षण से एक दशक बाद तक भी बाहर न निकल सका। उस उपन्यास का आगामी भाग भी लंबे समय पश्चात मिला था। और अब पता चला की डंके की चोट उपन्यास का भी एक पूर्व भाग है 'हिमालय की चीख'।
चार भागों में बिखरी एक अदभुत दास्तान है बसंत कश्यप के ये उपन्यास। इन उपन्यासों की एक विशेषता ये भी है की कहानी एक उपन्यास में पूर्ण लगती है, लेकिन वह पूरी होती नहीं।
बसंत कश्यप का उपन्यास 'हिमालय की चीख' जहां पर खत्म होता है, इस उपन्यास के पात्र तक मर जाते हैं लेकिन कहानी यथावत और पहले से भी ज्यादा रोचकता लिए हुए आगे चलती है। यह क्रम डंके की चोट में भी है।
मुझे अभी तक इस कहानी के दो भागों के नाम याद हैं दो के नहीं और लगभग चार भाग में से तीन भाग अलग-अलग समय पढ चुका हूँ।
अगर बात करें बसंत कश्यप के उपन्यास 'हिमालय की चीख' की तो यह स्वयं में पूर्ण होते हुए भी आगे कहानी के लिए बहुत स्पेश छोङ देता है और उसी पर आगे लगभग तीन पार्ट लिख गये हैं।
नेशनल लाइब्रेरी एशिया के संग्रह में एक दुर्लभ पाण्डुलिपि है। जो सन् 1820ई. में लिखी गयी थी। जिसमें विवरण है हिमालय क्षेत्र में एक दुर्लभ खजाने का। इसी खजाने की तलाश में कलकत्ता के कुछ बुद्धिजीवी वर्ग वहां जाते हैं।
हिमालय का वह स्थान जहां वह दुर्लभ खजाना है उस जगह स्थित है मौत की घाटी और उस घाटी में है लुईंग की आत्मा। खून की प्यासी आत्मा।
हिमालय की चीख- बसंत कश्यप, हाॅरर-थ्रिलर, रोचक, पठनीय।
हिमालय सीरिज का प्रथम भाग।
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कई वर्ष पूर्व एक उपन्यास पढा था 'डंके की चोट'। उपन्यास तिलिस्म, हाॅरर, जासूसी और थ्रिलर का इतना जबरदस्त मिश्रण था की मैं उसके आकर्षण से एक दशक बाद तक भी बाहर न निकल सका। उस उपन्यास का आगामी भाग भी लंबे समय पश्चात मिला था। और अब पता चला की डंके की चोट उपन्यास का भी एक पूर्व भाग है 'हिमालय की चीख'।
चार भागों में बिखरी एक अदभुत दास्तान है बसंत कश्यप के ये उपन्यास। इन उपन्यासों की एक विशेषता ये भी है की कहानी एक उपन्यास में पूर्ण लगती है, लेकिन वह पूरी होती नहीं।
बसंत कश्यप का उपन्यास 'हिमालय की चीख' जहां पर खत्म होता है, इस उपन्यास के पात्र तक मर जाते हैं लेकिन कहानी यथावत और पहले से भी ज्यादा रोचकता लिए हुए आगे चलती है। यह क्रम डंके की चोट में भी है।
मुझे अभी तक इस कहानी के दो भागों के नाम याद हैं दो के नहीं और लगभग चार भाग में से तीन भाग अलग-अलग समय पढ चुका हूँ।
अगर बात करें बसंत कश्यप के उपन्यास 'हिमालय की चीख' की तो यह स्वयं में पूर्ण होते हुए भी आगे कहानी के लिए बहुत स्पेश छोङ देता है और उसी पर आगे लगभग तीन पार्ट लिख गये हैं।
नेशनल लाइब्रेरी एशिया के संग्रह में एक दुर्लभ पाण्डुलिपि है। जो सन् 1820ई. में लिखी गयी थी। जिसमें विवरण है हिमालय क्षेत्र में एक दुर्लभ खजाने का। इसी खजाने की तलाश में कलकत्ता के कुछ बुद्धिजीवी वर्ग वहां जाते हैं।
हिमालय का वह स्थान जहां वह दुर्लभ खजाना है उस जगह स्थित है मौत की घाटी और उस घाटी में है लुईंग की आत्मा। खून की प्यासी आत्मा।
मौत की घाटी-
हिमालय की दुर्गम पहाड़ियों में एक निर्जन स्थान पर एक महल है और वह क्षेत्र कहलाता है मौत की घाटी। जहां खजाने की तलाश में हजारों लोग मारे गये। अब अब कलकत्ता के 14 लोग और पहुंचे हैं।
हिमालय की दुर्गम पहाड़ियों में एक निर्जन स्थान पर एक महल है और वह क्षेत्र कहलाता है मौत की घाटी। जहां खजाने की तलाश में हजारों लोग मारे गये। अब अब कलकत्ता के 14 लोग और पहुंचे हैं।
लुईग की आत्मा-
लुईंग की आत्मा जो की उस दुर्लभ खजाने की रक्षक है। जिसने मौत की घाटी में प्रवेश करने वाले किसी भी शख्स को जिंदा नहीं छोङा।
लुईंग की आत्मा जो की उस दुर्लभ खजाने की रक्षक है। जिसने मौत की घाटी में प्रवेश करने वाले किसी भी शख्स को जिंदा नहीं छोङा।
हा, अगर इस गुङिया को इंसान हाथों में लेता है तो उसके खून की गर्मी से सोने के पत्थर में कैद यह आत्मा बाहर हो जायेगी। अपने विषाक्त प्रभाव से यह सोने को भी राख बनाकर अपने छूने वाले इंसान के जिस्म में प्रवेश कर जायेगी। इसके अलावा अगर इस गुङिया के ऊपर ताजे खून की बूंद गिर जाती है तो यह सोने के पत्थर को राख में बदल कर बाहर आ जायेगी।"(पृष्ठ-190-91)
और एक जब लुइंग की आत्मा इस गुङिया से बाहर आयी तो इसने वो कहर मचाया जिसका वर्णन भी मुश्किल है। एक -एक कर सारे खजाने लालची मारे गये।
आलम खान जीता-जागता पिशाच का रूप धारण कर चुका था। उसके सिर के बाल एकदम जंगली चूहे के ऊपर के कांटों की भांति खङे थे। उसके खुले मुँह के ऊपर के दो दांत बाहर निकल चुके थे, जिनसे फटे मसूढों से रिसकर खुन टपक रहा था। उसके गालों की चमङी फट चुकी थी, जहां से मांस बाहर की तरफ उबल रहा था। आँखें कटोरियों से बाहर निकलती प्रतीत हो रही थी.....
...उसके हलक से भयानक गुर्राहटें उबल रही थी, जिससे समूचे गलियारे का वातावरण गूंज रहा था। (पृष्ठ-)
और एक जब लुइंग की आत्मा इस गुङिया से बाहर आयी तो इसने वो कहर मचाया जिसका वर्णन भी मुश्किल है। एक -एक कर सारे खजाने लालची मारे गये।
आलम खान जीता-जागता पिशाच का रूप धारण कर चुका था। उसके सिर के बाल एकदम जंगली चूहे के ऊपर के कांटों की भांति खङे थे। उसके खुले मुँह के ऊपर के दो दांत बाहर निकल चुके थे, जिनसे फटे मसूढों से रिसकर खुन टपक रहा था। उसके गालों की चमङी फट चुकी थी, जहां से मांस बाहर की तरफ उबल रहा था। आँखें कटोरियों से बाहर निकलती प्रतीत हो रही थी.....
...उसके हलक से भयानक गुर्राहटें उबल रही थी, जिससे समूचे गलियारे का वातावरण गूंज रहा था। (पृष्ठ-)
लुईंग की आत्मा वह रक्तबीज थी जिसे छूने वाला पिशाच का रुप धारण कर लेता था और वह बहुत भी भयानक मौत मरता था।
उपन्यास के एक-एक पात्र मौत के घाट उतरता चला गया। बची तो सिर्फ एक ज्योत्सना श्राफ। ज्योत्सना श्राफ ही एक मात्र वह पात्र है जो मौत के मुँह से जिंदा लौट आती है। लेकिन वह भी हिमालय की बेटी बन कर वहीं रह जाती है।
लेकिन इतना रक्तपात होने के बाद भी लोगों का खजाने के प्रति मोह कम नहीं होता और मौत की घाटी में कुछ और लोग भी पहुंचते हैं।(डंके की चोट)
उपन्यास के एक-एक पात्र मौत के घाट उतरता चला गया। बची तो सिर्फ एक ज्योत्सना श्राफ। ज्योत्सना श्राफ ही एक मात्र वह पात्र है जो मौत के मुँह से जिंदा लौट आती है। लेकिन वह भी हिमालय की बेटी बन कर वहीं रह जाती है।
लेकिन इतना रक्तपात होने के बाद भी लोगों का खजाने के प्रति मोह कम नहीं होता और मौत की घाटी में कुछ और लोग भी पहुंचते हैं।(डंके की चोट)
उपन्यास बहुत ही खौफनाक है जो पाठक को पृष्ठ दर पृष्ठ बदलने को मजबूर करता है। कहानी बहुत ही रोचक है।
आखिर वह दुर्लभ खजाना है क्या और कौन लोग हैं जो उस खजाने के लिए अपनी जान तक देने को भी तैयार हैं। ऐसे लोगों की दिलचस्प गाथा है 'हिमालय की चीख'।
आखिर वह दुर्लभ खजाना है क्या और कौन लोग हैं जो उस खजाने के लिए अपनी जान तक देने को भी तैयार हैं। ऐसे लोगों की दिलचस्प गाथा है 'हिमालय की चीख'।
निष्कर्ष-
बसंत कश्यप का उपन्यास 'हिमालय की चीख' बहुत ही रोचक उपन्यास है। इसकी कहानी पाठक को स्वयं में बांधने में सक्षम है।
हालांकि इस उपन्यास की कथा इस में पूर्ण होती प्रतीत होती है। लेकिन कहानी का यहीं समापन नहीं है। 'हिमालय की चीख' तो इस महागाथा की भूमिका मात्र कह सकते हैं।
यह श्रृंखला बहुत ही रोचक और पठनीय है। इसमें तिलस्म, हाॅरर, जासूसी, हास्य आदि का समुचित मिश्रण है जो पाठक को वर्षों तक याद रहेगा।
बसंत कश्यप का उपन्यास 'हिमालय की चीख' बहुत ही रोचक उपन्यास है। इसकी कहानी पाठक को स्वयं में बांधने में सक्षम है।
हालांकि इस उपन्यास की कथा इस में पूर्ण होती प्रतीत होती है। लेकिन कहानी का यहीं समापन नहीं है। 'हिमालय की चीख' तो इस महागाथा की भूमिका मात्र कह सकते हैं।
यह श्रृंखला बहुत ही रोचक और पठनीय है। इसमें तिलस्म, हाॅरर, जासूसी, हास्य आदि का समुचित मिश्रण है जो पाठक को वर्षों तक याद रहेगा।
प्रथम भाग- हिमालय की चीख
द्वितीय भाग- डंके की चोट ( समीक्षा पढने के लिए शीर्षक पर क्लिक करें)
तृतीय भाग- तिरंगा तेरे हिमालय का (अप्रकाशित)
चतुर्थ भाग- द लीजैण्ड आॅफ भारता
यह उपन्यास पढने के लिए मित्र विक्रम चौहान से मिली।
इस सीरिज पर 'बेव सीरिज' की चर्चा चल रहे है। (लेखक मतानुसार)
द्वितीय भाग- डंके की चोट ( समीक्षा पढने के लिए शीर्षक पर क्लिक करें)
तृतीय भाग- तिरंगा तेरे हिमालय का (अप्रकाशित)
चतुर्थ भाग- द लीजैण्ड आॅफ भारता
यह उपन्यास पढने के लिए मित्र विक्रम चौहान से मिली।
इस सीरिज पर 'बेव सीरिज' की चर्चा चल रहे है। (लेखक मतानुसार)
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उपन्यास- हिमालय की चीख
लेखक - बसंत कश्यप
प्रकाशक- गौरी पॉकेट बुक्स
उपन्यास- हिमालय की चीख
लेखक - बसंत कश्यप
प्रकाशक- गौरी पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 202
बहुत अच्छी समीक्षा कहा मिलेगी
ReplyDeleteआशीष रंजन