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Monday, 25 June 2018

122. जगत और चंपा डकैत- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक

चंपा नामक डकैत की कहानी ?
जगत और चम्पा डकैत- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक, जासूसी उपन्यास, अपठनीय।
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     जासूस जगत को एक काम मिला। दिल्ली से एक कार मुंबई गोपाली के पास पहुंचाने का। यह भी एक संयोग था की दिल्ली की एक पत्रकार किरण भी मुंबई जा रही थी।
"अगर आप पसंद करें तो मैं साथ चलूं?"
"नहीं बिलकुल पसंद नहीं करुंगा।"
"क्यों?"
......
"......नंबर एक तो मेरे पांवों में चक्कर है, नंबर दो हर सफर में मेरे साथ कुछ न कुछ गड़बड़ हो जाती है।" (पृष्ठ-15)
      और अनंतः दोनों एक साथ मुंबई को चल दिये।
            और गड़बड़ हुयी, रास्ते में हुयी।  रास्ते में एक शहर था सरूरपुर।
तीसरा पहर था, सामने बोर्ड लगा था- सरूरपुर नगरपालिका आपका स्वागत करती है। कोई साधारण सा शहर। (पृष्ठ-28)
         क्या हुआ उस शहर में। गड़बड़ हो गयी और जगत का सफर यहाँ से एक नयी दिशा को हो गया।
       शहर के इस तरफ सात किलोमीटर पर सरूरपुर किले और महल के खण्डहर हैं, तकरीबन दो सौ साल पुराने। अब वो जगह अजीब ही है, पहले वहाँ हुआ करता था बल्लू काने का चोर दल। इसी नगर में गांव से ब्याही आयी चम्पा। यूं तो उसका घरेलु नाम कल्लो है। अब वहां कल्लो अर्थात् चम्पा का डकैत गिरोह रहता है.........इस बार उसने रिश्ते में अपनी जेठानी का चार बरस का लङका उठवा लिया है, और एक लाख फिरौती की मांग की है। (पृष्ठ-29)
                 सरुरपुर पहुंचे जगत को जब इस घटना का पता चला तो उसने चम्पा डकैत से उस बच्चे को छुड़वा लेने का वायदा किया। यहाँ पर लगा की अवश्य ही चम्पा और जगत की लङाई होगी और उपन्यास कुछ रोचक बनेगा लेकिन जगत ने एक छोटी सी चालाकी से चम्पा को मूर्ख बना कर बच्चे को आजाद करवा लिया और स्वयं चम्पा को भी अपने साथ ग्वालियर ले चला।
             तब लगा की कहानी में कुछ रोचक मोङ आयेगा। मोङ तो अवश्य आता वह न तो रोचक था और न ही कहानी से संबंधित। ग्वालियर के रास्ते में‌ शिवपुरी में जगत को जासूस जगन और बंदूक सिंह मिल गये और  शेष कथा यही पर सिमट गयी।
     ‌‌‌‌शिवपुरी में अजब सिंह नाम का एक बहुत बङा स्मगलर है। जगन और बंदूक सिंह उसी को पकङने के लिए यहाँ उपस्थित हैं। ‌अपने  जासूस महोदय भी मुंबई और चम्पा डकैत को भूल कर अजब सिंह के अजीब से चक्कर में‌ फंस कर उपन्यास की कहानी को ही अजब -गजब बना देते हैं।
   ‌‌‌       अजब सिंह की एक सहयोगी है रसभरी। पहले रसभरी को पकङा जाता है और कोशिश होती है की मानवता के नाते रसभरी को कुछ नुकसान न हो। दूसरी तरफ अजब सिंह को भी मानवता के नाते तब तक गिरफ्तार नहीं करना जब तक उसकी बेटी की शादी न हो जाये।
      जगत भी चम्पा को अपने साथ इसीलिए चिपकाए हुए है की वह डकैत का जीवन छोङ कर एक अच्छे नागरिक का जीवन जीये।
      तीनों जासूस और इनके सहयोगी उपन्यास में‌ जासूस कम‌ और  समाज सेवक ज्यादा नजर आते हैं।
         उपन्यास ना कोई अच्छा अंत भी नहीं है। कहानी के स्तर पर भी उपन्यास अच्छा नहीं  है। पूरा उपन्यास 'कहीं की ईंट, कहीं‌ का रोङा' वाली पंक्ति को सार्थक करता नजर आता है।

  निष्कर्ष-    
प्रस्तुत उपन्यास किसी भी स्तर पर पठनीय नहीं है। कहानी का कहीं को तालमेल नहीं है और न ही कोई समापन। उपन्यास में कहीं कहानी है भी नहीं। यह उपन्यास पढना समय की बर्बादी है।
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उपन्यास- जगत और चम्पा डकैत
लेखक- ओमप्रकाश शर्मा जनप्रिय लेखक
प्रकाशक- रजत प्रकाशन
पृष्ठ -235
मूल्य-20₹

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