'नया ज्ञानोदय' का जनवरी-2019 अंक हस्तगत हुआ। यह पत्रिका साहित्य, समाज, संस्कृति और कलाओएपर केन्द्रित एक सार्थक पत्रिका है।
किसी भी पत्रिका को पढने का सुखद पहलू ये है की आप समाज और साहित्य के विभिन्न पक्षों की जानकारी मिलती है।
इस अंक में भी साहित्य और समाज के विभिन्न रंग देखने को मिलते हैं।
इस अंक में 06 हिन्दी की कहानियाँ है और इसके अतिरिक्त एक-एक जापानी और बांग्ला भाषा की भी कहानी है।
मुझे कहानियों में ज्यादा दिलचस्पी है इस लिए इस अंक की कहानियाँ पहले पढी, जो ठीक ही है लेकिन प्रभाव पैदा करने वाली नहीं है।
इस अंक में मुझे रोचक लगा फणीश सिंह का यात्रा वृतांत 'यूरोप और एशिया के संगम की कहानी-आर्मीनीया'। आर्मीनीया एक छोटा सा देश है। जो रूस और इरान की सीमाओं से संबद्ध है। आर्मीनीया का संबंध भारत से भी रहा है। कोलकाता में सन् 1821 ई. में स्थापित एक आर्मीनियाई काॅलेज भी है।
स्वयं प्रकाश का आलेख 'मेरे थोड़े से फिल्मी दिन' भी रोचक संस्मरण है। एक आलेख 'रजिया सज्जाद जहीर' पर केन्द्रित है जिसके लेखक जाहिद खान है। रजिया जहीर की प्रसिद्ध कहानी 'नमक' जिसने पढी है वह पाठक समझ सकता है इनकी रचनाओं में संवेदना का क्या स्तर था। एक बहुत ही मार्मिक कहानी है नमक।
अशोक ओझा का एक आलेख है जो बहुत ही महत्वपूर्ण विषय पर है। आलेख का शीर्षक है 'सेंटिनल द्वीप के सांस्कृतिक अस्तित्व'। भारतीय आदिवसायों को किसी तरह ईसाई धर्मप्रचारक अपने बहकावे में ले रहे हैं, इस विषय को इंगित करता यह आलेख सार्थक है।
नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला-2019 के दौरान यह पत्रिका ज्ञानपीठ प्रकाशन की स्टाॅल से ली थी।
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पत्रिका- नया ज्ञानोदय
अंक- जनवरी-2019
प्रकाशक- भारती ज्ञानपीठ
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रोचक है। मेरे पास भी है ये पत्रिका लेकिन अभी पढ़ नहीं पाया हूँ। जल्द ही पढ़कर अपने विचार दूंगा।
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