Friday, 22 April 2022

515. महल - चन्द्रप्रकाश पाण्डेय

कहानी एक नर भेड़िये की
महल - चन्द्रप्रकाश पाण्डेय

कामरान हुसैन अव्वल दर्जे का मुसव्विर था लेकिन उसके हुनर पर एक बदनुमा दाग ये था कि कभी-कभी उसके बनाए हुए चित्र किसी की मौत का फरमान बन जाते थे। जिन बदकिस्मत लोगों की शक्लें उसके कैनवास पर नुमाया होती थीं, उनके साथ अगले ही रोज़ से अजीबोगरीब वाकयात होने लगते थे। उन्हें न समझ आने वाली आवाजें सुनाई देने लगती थीं और अंत में एक काला साया उन्हें लेकर किसी रहस्यमयी महल में चला जाता था।
(kinlde से) 
        लोकप्रिय उपन्यास साहित्य (Hindi Pulp Fiction) में युवा लेखक चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी एक हाॅरर कथा में एक सशक्त हस्ताक्षर बन कर उभरे हैं। इनकी रचनाएँ परम्परा से चली आ रही अतार्किक कथाओं से इतर कुछ नया, तार्किक विश्वसनीय  और धार्मिक मान्यताओं से संबंधित होती हैं।
    चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी का नया उपन्यास 'महल' (प्रकाशन- अप्रैल-2022) किंडल‌ पर पढा जो एक रोचक हाॅरर कथा पर आधारित है।    उपन्यास की कथा साकेत नगर नामक एक शहर से संबंध रखती है जहां कामरान नामक एक चित्रकार रहता है। कभी-कभी कामरान किसी अज्ञात शक्ति के अधीन किसी अज्ञात व्यक्ति का चित्र बना देता है और कुछ समय पश्चात उस व्यक्ति की मौत हो जाती है- “मैं नहीं जानता कि मैं अल्लाह के किस जलाल की नुमाईश हूँ लेकिन ये जो कुछ भी है, मेरे लिए बद्दुआ है, एक शाप है। मुझे बुरा लगता है, जब मेरी कूची, जो मेरे दो वक्त की रोटी कमाने का जरिया है, कभी-कभी कैनवास पर किसी निर्दोष की मौत का फरमान लिख देती है। बहुत बुरा लगता है मुझे।”
         चेतना अपार्टमेंट के बी ब्लॉक की बिल्डिंग के एक फ्लैट में किसी के मरने की खबर है। और जब यह खबर सुनकर इंस्पेक्टर फाह्याज़ अपने साथी सुबोध साथ वहाँ पहुंचाता है तो वहाँ उसे एक लाश मिलती है जिसकी बाॅडी पर एक अजीब सा निशान था। इंस्पेक्टर फाह्याज़ को लगता है उसने यह निशान कहीं और भी देखा है।
    कहानी का दूसरा पक्ष 1975 हसीनाबाद से संबंध रखता है। जहाँ पशुपति नामक एक रहस्यमयी व्यक्ति 'महल' की तलाश में जंगलों में भटकता है।
    “लोग कहते हैं कि यहाँ के जंगलों में एक महल छिपा हुआ है, जो केवल जुम्मे की रात यानी कि शुक्रवार की रात दिखाई देता है।”
   पशुपति स्वयं भी एक खतरनाक शख्सियत है। पशुपति के लिए काम करने वाला तांगेवाला जमुना तो उससे डरता ही अधिक है।
एक संवाद देखें-
“क...कौन...हो तुम...? तुम...इंसान नहीं हो सकते।” जमुना कुहनी के बल पीछे सरकता हुआ घिघियाया।
“तूने उस रात पूछा था न कि नरभेड़िये होते हैं या नहीं?” पशुपति धीमी चाल से उसकी ओर बढ़ा।

   वहीं इंस्पेक्टर फाह्याज़ जब उस रहस्यमयी निशान‌ की खोज में आगे बढता है तो उसे चेतावनी मिलती है-
            “जो भी उस निशान में हद से ज्यादा दिलचस्पी लेगा, उसके राज़ को तलाशने की कोशिश करेगा उसकी जिंदगी जहन्नुम बन जायेगी। बुरे सपने उसका जीना हराम कर देंगे।” आदमी ने जबड़े भींचते हुए रहस्यमय लहजे में कहा।
अंत में उस शख्स का जिक्र कर लिया जाये जिसके कारण यह कहानी बनी है, जिसके लिए पशुपति भटक रहा है, जिसका संबंध 'महल' से है-
        “वह अँधेरी दुनिया के रहस्यों का इतना बड़ा ज्ञाता था कि काला लिबास पहनकर, अँधेरे की काली स्याही खुद पर उड़ेलकर अँधेरे का ही एक हिस्सा बन गया था।”
यह कहानी कामरान नामक चित्रकार की जो फिर कहानी को संभालते हैं इंस्पेक्टर फाह्याज़। इंस्पेक्टर फाह्याज़ को जहाँ एक कत्ल का केस हल करना है, वहीं उसे अज्ञात निशान और नरभेडिये के सपनों कॊ भी समझना है।
- आखिर वह सपने क्यों आते हैं?
- क्यों मरने वाले के शरीर पर रहस्यमय निशान बन‌ जाते हैं?
- कामरान के चित्रों का क्या रहस्य है?
- इंस्पेक्टर फाह्याज़ को धमकी कौन देता है?

इन सब प्रश्नों के उत्तर पाने के किए जब इंस्पेक्टर फाह्याज़ आगे बढता है जो उसके परिवार के सदस्य भी मौत की चपेट में आ जाते हैं। लेकिन इंस्पेक्टर फाह्याज़ अपने कदम पीछे नहीं हटाता।
  वहीं पशुपति की कहानी जो सन् 1975 से संबंध रखती है वह भी वर्तमान में आकर इंस्पेक्टर फाह्याज़ से जुड जाती है।
      उपन्यास की कहानी अच्छी है, रहस्य का ताना बाना अच्छा है‌, जिज्ञासा प्रबल रहती है की कहानी में आगे क्या होगा।
लेखक महोदय का शब्द प्रयोग भी प्रशंसनीय है। कथा मुस्लिम धर्म के पात्रों से संबंध रखती है तो भाषा का चयन भी उसी अनुरूप किया गया है। हालांकि कहीं-कहीं यह शब्द क्लिष्ट प्रतीत होते हैं।
जैसे-  मुतमईन, ताकीद,मखलूक, मुसव्विर, मशरूफ़, मयस्सर,शोहबत,  मुसलसल, तवज्जो,राबता।
  
         चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी हाॅरर पैरानाॅर्मल साहित्य में वर्तमान समय में श्रेष्ठ लेखक के रूप में अपनी पहचान स्थापित कर चुके हैं। मैंने पाण्डेय जी के लगभग उपन्यास पढें हैं जिनमें से 'रक्ततृष्णा' मेरा पसंदीदा उपन्यास है। लेकिन प्रस्तुत उपन्यास 'महल' उम्मीद पर खरा नहीं उतरा। कहानी अच्छी है, लेकिन नीरस ज्यादा प्रतीत होती है। बहुत से प्रश्न तर्कसंगत दृष्टि से स्पष्ट होते नजर नहीं आते।
        उपन्यास का शीर्षक 'महल' पढकर प्रतीत होता है कि कहानी किसी महल से संबंधित है, लेकिन ऐसा है नहीं।
फिर भी हाॅरर साहित्य में कुछ अच्छा पढने की दृष्टि से उपन्यास पढा जा सकता है।
उपन्यास - महल
लेखक -    चन्द्रप्रकाश पाण्डेय

चन्द्रप्रकाश पाण्डेय जी के अन्य उपन्यासों की समीक्षा।

आवाज
रक्ततृष्णा

1 comment:

  1. जिस राइटर को देखो खाली मुस्लिम पात्र ही रखता है अपने उपन्यासों मे,😡😡😡😡

    ReplyDelete

शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज

गिलबर्ट सीरीज का प्रथम उपन्यास शिकारी का शिकार- वेदप्रकाश काम्बोज ब्लैक ब्वॉय विजय की आवाज पहचान कर बोला-"ओह सर आप, कहिए शिकार का क्या...