मार्मिक कहानियों का संग्रह
स्वयंसिद्धा- मंजरी शुक्ला
हमारे दैनिक जीवन में दिन प्रतिदिन कुछ न कुछ विशेष घटित होता रहता है। एक लेखक इसी दैनिक जीवन की घटनाओं को एक कहानी का रूप देता है। सामान्यतः वह घटनाएं चाहे हमें इतनी प्रभावित न करें या हम उस घटना के मात्र एक पक्ष को जानते हैं, लेकिन एक संवेदनशील कहानीकार उस घटना को एक जीवंत रूप देता है और फिर वही घटना इतनी प्रभावशाली हो जाती है कि हमारे मर्म को भावनाओं में बहा ले जाती है।
मानवीय संवेदनाओं को छू लेने वाला एक कहानी संग्रह है 'स्वयंसिद्धा- एक टुकड़ा धूप'- डाॅक्टर मंजरी शुक्ला। मंजरी शुक्ला जी का नाम मेरे लिए नया था, लेकिन जब फेसबुक पर इस कहानी संग्रह की चर्चा सुनी तो पढने की इच्छित जागृत हुयी।
इस संग्रह की अपवाद स्वरूप एक दो कहानियों को अलग कर दे तो बाकी सब कहानियाँ इतनी मार्मिक है कि आँखें पढते-पढते नम हो जाती हैं। मैं स्वयं इस कहानी संग्रह को पढते वक्त हार्दिक रूप से टूट हुआ था, मनुष्य जीवन में कुछ न कुछ परेशानियां आ जाती हैं। कुछ लोग परेशानियों की वजह से और भी दृढ हो जाते हैं और कुछ मेरी तरह आंसु बहाकर मन को हल्का कर लेते हैं। ऐसे समय में पढा गया यह कहानी संग्रह मेरे आंसुओं में वृद्धि करने में सहायक रहा।
चाँद को क्या मालूम... कि उसे कुछ ही घंटों बाद चाँदनी से जुदा होना पड़ेगा, या फिर वह नादान काली बदली भला कहाँ जानती है कि बहती हवा के साथ कितनी बूँदें बरसाकर, अपना आँचल खाली कर देने के बाद भी, वह मुस्कुराते हुए अपनी तन्हाई किसी पर ज़ाहिर नहीं कर पाएगी। मासूम रातों में टिमटिमाता दिया, अपने मद्धिम प्रकाश के साथ कब तक डटा खड़ा रहेगा, ये ना उसने जाना और ना ही कभी जानेगा। (चेहरा)
उक्त कथन कहानी 'चेहरा' का है। लेकिन यह चांदनी किसी एक से जुदा नहीं होती....यहाँ अंधेरा किसी एक के जीवन में नहीं आता...यह तो हर एक के जीवन की कहानी है वह चाहे 'स्वयंसिद्धा' कहानी की नायिका हो या फिर 'अम्मा' कहानी की माँ हो वह चाहे 'पार्वती आंटी' कहानी का 'अंकित' हो या फिर कोई और।
बस किसी के जीवन में चांदनी फिर आ जाती है और किसी के जीवन में सिर्फ और सिर्फ काली रात शेष रहती है।
हर कहानी एक वेदना है, एक व्यथा है, एक प्रश्न है। यह प्रश्न हमारे समाज के लिए वह उपर से चाहे कितना अच्छा नजर आता है लेकिन अंदर से बहुत कुरूप है। जब आप कहानी 'पार्वती आंटी' पढते हैं तो आपको किन्नर समाज की कटु सच्चाई का पता चलता। सबको दुआ देने वाला यह समाज अंदर से कितना दुखी है।
एक कहानी है 'विदाई' समाज में व्याप्त जातिवाद और प्रेम को आधार बना कर लिखी गयी कहानी हमें प्रेम और मानवता का संदेश देती है।- मैं भगवान से मन ही मन प्रार्थना करती कि दुनिया में कोई भी किसी के बारे में सिर्फ उसके नाम से ही अपने मन में कोई धारणा ना बनाये। क्या पता जिन्हें हम गैर समझते है वे हमारे खून के रिश्तों से भी ज़्यादा पवित्र रिश्ते निकल जाए।...(कहानी 'विदाई)
यही मानवीय दृष्टिकोण कहानी 'चेहरा' में भी नजर आता है। और स्वयं दर्द से लिपटी समाज से नकारी गयी पार्वती आंटी में भी और 'अम्मा' कहानी के मोहन मेें भी।
कहानी 'गुरू दक्षिणा' एक प्रतिभाशाली लड़की सुरभि की कहानी है और यह प्रतिभा मात्र बौद्धिक ही नहीं भावनात्मक भी है। इसी भावना के वशीभूत होकर वह अपने गुरू के लिए एक ऐसी दक्षिणा प्रस्तुत करती है कि स्वयं गुरू भी स्तब्ध रह जाता है।- सुरभि ने झुककर तुरंत उनके पैर छूए। उन्होंने बोलना चाहा ‘मुझ जैसा पतित इंसान तुझे आशीर्वाद देने के लायक भी नहीं है बेटी…’ पर शब्द जैसे आँसुओं के साथ गूंथकर उनके गले में ही फँस गए।
'क्रेश' कहानी वर्तमान तथाकथित सभ्य समाज की कहानी है। आजकल बच्चों को छोटी सी उम्र में ही माँ-बाप स्वयं से दूर कर 'क्रेश', 'बाॅर्डिंग' या 'हॉस्टल' में डाल देते हैं और एक बात कहते हैं 'यह सब बच्चे के भविष्य के लिए है।'
हम स्वयं से अलग कर उसका भविष्य कैसे बना सकते हैं। अगर यह भविष्य है तो वह एक यांत्रिक मनुष्य होगा न कि संवेदनशील मनुष्य।
मैं लेखिका महोदया को इस कहानी के लिए विशेष धन्यवाद देता हूँ।
कई बार रिश्तों को संभालने के लिए बहुत सारी बातों को नज़रअंदाज़ करना ही पड़ता है। प्यार के धागों को इतनी मजबूती से बाँधना है कि घर के सदस्य तिनकों की तरह बाहर की तेज आंधी में उड़कर अपना ही आशियाना तितर-बितर ना कर दे। (गीला तौलिता)
रिश्तों को बचाने की कहानी है 'गीला तौलिता'। हालांकि कहानी में रिश्ते को बचाने का तर्क तर्कसंगत नहीं है। ऐसी ही कहानी 'मिलन' लगी।
हालांकि सभी कहानियाँ रिश्तों की कहानी ही हैं लेकिन कहानी 'सौदा' वह कहानी है जहाँ रिश्तों को रूपयों पर तौला जाता है। जैसे रूपयों पर सौदा कहानी का पात्र बिक गया क्या वैसे 'गीला तौलिया' की स्मिता नहीं बिक सकती थी।
इस कहानी संग्रह की शेष कहानियाँ भी अपने आप में एक विशेष महत्व रखती हैं। हर कहानी एक मजबूत पक्ष की तरह उपस्थित है।
अगर पाठक सहृदय है तो वह प्रत्येक कहानी के साथ स्वयं का एक ऐसा तारतम्य स्थापित कर लेगा जो उसे कहानीबके पात्रों की उस दुनिया में ले जायेगा। जहाँ आंसु हैं, अपने दर्द से जुझते लोग हैं, रिश्तों को संभालते और रिश्तों का व्यापार करते लोग हैं। दर्द का प्रतिनिधित्व करता कोई न कोई पात्र आपको अपना सा लगेगा जो इस कहानी संग्रह में मिलेगा।
अगर लेखन शैली की बात करे तो लेखिका महोदया की परिपक्व शैली के दर्शन होते हैं। एक एक शब्द और वाक्य अपना विशिष्ट अर्थ रखते हैं।
एक बिम्ब देखें कैसे शब्दों से एक दृश्य उभरता है-
सुलगती धूप को कड़ी टक्कर देता हुआ डाकिया, पुरानी सी साइकिल पर तेज पैडल मारते हुए अम्माँ के पास आ पहुँचा था।
किसी भी कहानी में महत्वपूर्ण होते हैं कथन। कथन कहानी को आगे बढाने के साथ-साथ पात्र के विचारों को प्रकट भी करते हैं। कुछ कथन तो सूक्ति नुमा हैं।
- खून से बढ़कर भी सगा रिश्ता दुःख का होता है जो पल भर में ही गैरों को भी अपना बना लेता है।
- प्रेम जब तक बलिदान की कसौटी पर ना खरा उतरे तो भला वो प्रेम कहाँI
-जिन्हें हम गैर समझते है वे हमारे खून के रिश्तों से भी ज़्यादा पवित्र रिश्ते निकल जाए।
'स्वयंसिद्धा' कहानी संग्रह चाहे काल्पनिक कहानियों का संग्रह है लेकिन यह कल्पना वास्तविक से ज्यादा दूर नहीं है। अगर हम तीक्ष्ण दृष्टि से देखे तो यह सब हमारे समाज में घटित होता है जिसे लेखिका महोदया ने कहानी का रूप दे दिया है।
कहानी संग्रह- स्वयं सिद्धा
लेखिका- डाक्टर मंजरी शुक्ला
प्रकाशक - flydreams publication
पृष्ठ- 130
किंडल लिंक- स्वयंसिद्धा- डाक्टर मंजरी शुक्ला
प्रथम संस्करण: मई 2020
कवर : निशांत मौर्य
संपादक : आर्यप्रकाश ‘राम’
मूल्य: INR 49
प्रकाशक: FlyWings (An imprint of Flydreams Publications)
ईमेल: teamflywings@gmail.com
किताब यहाँ से खरीद सकते हैं :- www.flydreamspublications.com
WhatsApp: +919660035345
स्वयंसिद्धा- मंजरी शुक्ला
हमारे दैनिक जीवन में दिन प्रतिदिन कुछ न कुछ विशेष घटित होता रहता है। एक लेखक इसी दैनिक जीवन की घटनाओं को एक कहानी का रूप देता है। सामान्यतः वह घटनाएं चाहे हमें इतनी प्रभावित न करें या हम उस घटना के मात्र एक पक्ष को जानते हैं, लेकिन एक संवेदनशील कहानीकार उस घटना को एक जीवंत रूप देता है और फिर वही घटना इतनी प्रभावशाली हो जाती है कि हमारे मर्म को भावनाओं में बहा ले जाती है।
मानवीय संवेदनाओं को छू लेने वाला एक कहानी संग्रह है 'स्वयंसिद्धा- एक टुकड़ा धूप'- डाॅक्टर मंजरी शुक्ला। मंजरी शुक्ला जी का नाम मेरे लिए नया था, लेकिन जब फेसबुक पर इस कहानी संग्रह की चर्चा सुनी तो पढने की इच्छित जागृत हुयी।
इस संग्रह की अपवाद स्वरूप एक दो कहानियों को अलग कर दे तो बाकी सब कहानियाँ इतनी मार्मिक है कि आँखें पढते-पढते नम हो जाती हैं। मैं स्वयं इस कहानी संग्रह को पढते वक्त हार्दिक रूप से टूट हुआ था, मनुष्य जीवन में कुछ न कुछ परेशानियां आ जाती हैं। कुछ लोग परेशानियों की वजह से और भी दृढ हो जाते हैं और कुछ मेरी तरह आंसु बहाकर मन को हल्का कर लेते हैं। ऐसे समय में पढा गया यह कहानी संग्रह मेरे आंसुओं में वृद्धि करने में सहायक रहा।
चाँद को क्या मालूम... कि उसे कुछ ही घंटों बाद चाँदनी से जुदा होना पड़ेगा, या फिर वह नादान काली बदली भला कहाँ जानती है कि बहती हवा के साथ कितनी बूँदें बरसाकर, अपना आँचल खाली कर देने के बाद भी, वह मुस्कुराते हुए अपनी तन्हाई किसी पर ज़ाहिर नहीं कर पाएगी। मासूम रातों में टिमटिमाता दिया, अपने मद्धिम प्रकाश के साथ कब तक डटा खड़ा रहेगा, ये ना उसने जाना और ना ही कभी जानेगा। (चेहरा)
उक्त कथन कहानी 'चेहरा' का है। लेकिन यह चांदनी किसी एक से जुदा नहीं होती....यहाँ अंधेरा किसी एक के जीवन में नहीं आता...यह तो हर एक के जीवन की कहानी है वह चाहे 'स्वयंसिद्धा' कहानी की नायिका हो या फिर 'अम्मा' कहानी की माँ हो वह चाहे 'पार्वती आंटी' कहानी का 'अंकित' हो या फिर कोई और।
बस किसी के जीवन में चांदनी फिर आ जाती है और किसी के जीवन में सिर्फ और सिर्फ काली रात शेष रहती है।
हर कहानी एक वेदना है, एक व्यथा है, एक प्रश्न है। यह प्रश्न हमारे समाज के लिए वह उपर से चाहे कितना अच्छा नजर आता है लेकिन अंदर से बहुत कुरूप है। जब आप कहानी 'पार्वती आंटी' पढते हैं तो आपको किन्नर समाज की कटु सच्चाई का पता चलता। सबको दुआ देने वाला यह समाज अंदर से कितना दुखी है।
एक कहानी है 'विदाई' समाज में व्याप्त जातिवाद और प्रेम को आधार बना कर लिखी गयी कहानी हमें प्रेम और मानवता का संदेश देती है।- मैं भगवान से मन ही मन प्रार्थना करती कि दुनिया में कोई भी किसी के बारे में सिर्फ उसके नाम से ही अपने मन में कोई धारणा ना बनाये। क्या पता जिन्हें हम गैर समझते है वे हमारे खून के रिश्तों से भी ज़्यादा पवित्र रिश्ते निकल जाए।...(कहानी 'विदाई)
यही मानवीय दृष्टिकोण कहानी 'चेहरा' में भी नजर आता है। और स्वयं दर्द से लिपटी समाज से नकारी गयी पार्वती आंटी में भी और 'अम्मा' कहानी के मोहन मेें भी।
कहानी 'गुरू दक्षिणा' एक प्रतिभाशाली लड़की सुरभि की कहानी है और यह प्रतिभा मात्र बौद्धिक ही नहीं भावनात्मक भी है। इसी भावना के वशीभूत होकर वह अपने गुरू के लिए एक ऐसी दक्षिणा प्रस्तुत करती है कि स्वयं गुरू भी स्तब्ध रह जाता है।- सुरभि ने झुककर तुरंत उनके पैर छूए। उन्होंने बोलना चाहा ‘मुझ जैसा पतित इंसान तुझे आशीर्वाद देने के लायक भी नहीं है बेटी…’ पर शब्द जैसे आँसुओं के साथ गूंथकर उनके गले में ही फँस गए।
'क्रेश' कहानी वर्तमान तथाकथित सभ्य समाज की कहानी है। आजकल बच्चों को छोटी सी उम्र में ही माँ-बाप स्वयं से दूर कर 'क्रेश', 'बाॅर्डिंग' या 'हॉस्टल' में डाल देते हैं और एक बात कहते हैं 'यह सब बच्चे के भविष्य के लिए है।'
हम स्वयं से अलग कर उसका भविष्य कैसे बना सकते हैं। अगर यह भविष्य है तो वह एक यांत्रिक मनुष्य होगा न कि संवेदनशील मनुष्य।
मैं लेखिका महोदया को इस कहानी के लिए विशेष धन्यवाद देता हूँ।
कई बार रिश्तों को संभालने के लिए बहुत सारी बातों को नज़रअंदाज़ करना ही पड़ता है। प्यार के धागों को इतनी मजबूती से बाँधना है कि घर के सदस्य तिनकों की तरह बाहर की तेज आंधी में उड़कर अपना ही आशियाना तितर-बितर ना कर दे। (गीला तौलिता)
रिश्तों को बचाने की कहानी है 'गीला तौलिता'। हालांकि कहानी में रिश्ते को बचाने का तर्क तर्कसंगत नहीं है। ऐसी ही कहानी 'मिलन' लगी।
हालांकि सभी कहानियाँ रिश्तों की कहानी ही हैं लेकिन कहानी 'सौदा' वह कहानी है जहाँ रिश्तों को रूपयों पर तौला जाता है। जैसे रूपयों पर सौदा कहानी का पात्र बिक गया क्या वैसे 'गीला तौलिया' की स्मिता नहीं बिक सकती थी।
इस कहानी संग्रह की शेष कहानियाँ भी अपने आप में एक विशेष महत्व रखती हैं। हर कहानी एक मजबूत पक्ष की तरह उपस्थित है।
अगर पाठक सहृदय है तो वह प्रत्येक कहानी के साथ स्वयं का एक ऐसा तारतम्य स्थापित कर लेगा जो उसे कहानीबके पात्रों की उस दुनिया में ले जायेगा। जहाँ आंसु हैं, अपने दर्द से जुझते लोग हैं, रिश्तों को संभालते और रिश्तों का व्यापार करते लोग हैं। दर्द का प्रतिनिधित्व करता कोई न कोई पात्र आपको अपना सा लगेगा जो इस कहानी संग्रह में मिलेगा।
अगर लेखन शैली की बात करे तो लेखिका महोदया की परिपक्व शैली के दर्शन होते हैं। एक एक शब्द और वाक्य अपना विशिष्ट अर्थ रखते हैं।
एक बिम्ब देखें कैसे शब्दों से एक दृश्य उभरता है-
सुलगती धूप को कड़ी टक्कर देता हुआ डाकिया, पुरानी सी साइकिल पर तेज पैडल मारते हुए अम्माँ के पास आ पहुँचा था।
किसी भी कहानी में महत्वपूर्ण होते हैं कथन। कथन कहानी को आगे बढाने के साथ-साथ पात्र के विचारों को प्रकट भी करते हैं। कुछ कथन तो सूक्ति नुमा हैं।
- खून से बढ़कर भी सगा रिश्ता दुःख का होता है जो पल भर में ही गैरों को भी अपना बना लेता है।
- प्रेम जब तक बलिदान की कसौटी पर ना खरा उतरे तो भला वो प्रेम कहाँI
-जिन्हें हम गैर समझते है वे हमारे खून के रिश्तों से भी ज़्यादा पवित्र रिश्ते निकल जाए।
'स्वयंसिद्धा' कहानी संग्रह चाहे काल्पनिक कहानियों का संग्रह है लेकिन यह कल्पना वास्तविक से ज्यादा दूर नहीं है। अगर हम तीक्ष्ण दृष्टि से देखे तो यह सब हमारे समाज में घटित होता है जिसे लेखिका महोदया ने कहानी का रूप दे दिया है।
कहानी संग्रह- स्वयं सिद्धा
लेखिका- डाक्टर मंजरी शुक्ला
प्रकाशक - flydreams publication
पृष्ठ- 130
किंडल लिंक- स्वयंसिद्धा- डाक्टर मंजरी शुक्ला
प्रथम संस्करण: मई 2020
कवर : निशांत मौर्य
संपादक : आर्यप्रकाश ‘राम’
मूल्य: INR 49
प्रकाशक: FlyWings (An imprint of Flydreams Publications)
ईमेल: teamflywings@gmail.com
किताब यहाँ से खरीद सकते हैं :- www.flydreamspublications.com
WhatsApp: +919660035345
संग्रह पढ़ने की इच्छा जगाता आलेख। मौका मिलते ही इस संग्रह को पढूँगा।
ReplyDeleteप्रख्यात लेखिका डॉ मञ्जरी शुक्ला का कहानी संग्रह स्वयंसिद्धा की सभी कहानियों का प्रस्तुत आलेख जिज्ञासा पैदा करता है कि कहानी की गहराईयों में प्रवेश किया जाय। किताब और समय की उपलब्धता होते ही इन कहानियों से नजदीकियां हो पायेंगी।
ReplyDeleteआपकी समीक्षा के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, आपने बहुत सुंदरता से हर कहानी के विषय में विस्तार से बताया है
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