अंधेरे को जीती भारतीय स्त्री
डार्क रूम- आर. के. नारायण
मालगुडी की कहानियाँ
चर्चित लेखक आर. के नारायण का 'मिस्टर बी.ए.' के पश्चात मेरे द्वारा पढा गया यह 'डार्क रूम' द्वितीय उपन्यास है। हमारे दैनिक परिवेश में घटित होने वाली घटनाओं को बहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत करने में आर. के. नारायण जी सिद्धहस्त नजर आते हैं।
'डार्क रूम' उपन्यास भी एक परिवार में पति-पत्नी के बनते-बिगड़ते सम्बन्धों का चित्रण है। परिवार में बहुत से कारण होते हैं और उन्हीं कारणों से परिवार के सदस्यों में कलह हो जाती है। रमानी और सावित्री में भी कुछ विशेष कारणों से अनबन हो जाती है।
अगर देखा जाये तो परिवार में स्त्रियों का काम ज्यादा होता है लेकिन उन्हें महत्व कम दिया जाता है। पुरूष प्रधान समाज में स्त्री की जो स्थिति है उसका प्रतिनिधित्व सावित्री करती नजर आती है। किसी भी स्त्री के लिए यह सहन करना बहुत मुश्किल होता है कि उसके पति का अन्य स्त्री से संबंध है। सावित्री यह सब कुछ जानते हुए भी सिर्फ इसलिए सहन करती है कि अगर वह चली गयी तो बच्चों का क्या होगा?
अपने बच्चों के लिए वह हर दुख को सहन करती है। एक औरत अपने परिवार को सबकुछ मान कर चलती है लेकिन पुरूष प्रधान समाज उसे उसका वह अधिकार भी नहीं देना चाहता जिसकी वह हकदार है। सावित्री भी इसी दुख को व्यक्त करती हुयी कहती है।
‘मैं भी मनुष्य हूँ। तुम पुरुष लोग कभी यह नहीं समझोगे। हमें तो तुम लोग खिलौना समझते हो जब मन किया सीने से लगा लिया, बाकी वक्त गुलाम हैं तुम्हारी। यह मत सोचना कि जरूरत पड़ने पर तुम हमारा इस्तेमाल कर सकते हो और इसके बाद लात मार कर बाहर कर सकते हो।’
हमारे समाज में स्त्री की जो दयनीय स्थिति है, उसका कोई अस्तित्व स्वीकार को तैयार नहीं, पति भी उसे पराये घर की मानता है, पति को लगता है यह उस पर निर्भर है। इन सब बातों को सावित्री जानती है और वह कहती है-
‘तुम सोचते हो कि मैं यहां रहूँगी? हम तुमसे खाना, घर और दूसरे आराम पाते हैं और उस पर निर्भर हैं। इसलिए तुम सोचते हो कि मैं तुम्हारे घर में रहूँगी, तुम्हारी घर की हवा में साँस लूँगी, तुम्हारा पानी पियूँगी और तुम्हारे पैसों से खरीदा अन्न खाऊँगी? नहीं, मैं खुले आसमान के नीचे, उस छत के नीचे जिस पर सबका अधिकार है, भूखी मर जाऊँगी।’
स्त्री तब तक कमजोर है जब तक वह अपनी दृढता नहीं दिखाती। जब यही स्त्री 'अबला' से 'सबला' बनती है तो लोग उसे डराते नहीं बल्कि खुद उस से डरने लगते हैं।
मन्दिर का पुजारी सबका शोषण करता है लेकिन वह भी मारी की पत्नी पोन्नी से डरता है। उसने टिप्पणी की, ‘बड़ी खतरनाक औरत है, इससे पार पाना आसान नहीं है।’
समाज में धर्म का या कहें मन्दिर जाने का महत्व कम हो रहा है। क्योंकि मन्दिर भी शोषण गृह होने लग गये। मन्दिर का पुजारी सभी का शोषण करता है, वह चाहे मारी हो या सावित्री। वह शोषण भी करना चाहता है और यह भी चाहता है कि समाज में उसका सम्मान हो और लोग उसके शोषण का विरोध भी न करें।
‘तुम लोग अब देवता को भेंट भी नहीं चढ़ाते। तुम्हारे बाप-दादा के जमाने में मैं मंदिर के लिए ऐसे दस नौकर रख सकता था, लेकिन आजकल तुम लोग फोकट में भगवान की पूजा करना चाहते हो, न कोई भेंट, न नारियल का टुकड़ा।’
उपन्यास में स्त्री की स्थिति को लेकर बहुत मार्मिक कथन हैं, जो सत्य के करीब भी हैं।
- औरत के पास उसके बदन के अलावा अपना और क्या है? इसके अलावा सब कुछ उसके बाप का है, पति का है, बेटे का है।
- वेश्या और शादीशुदा औरत में फ़र्क ही क्या है?—सिर्फ यह कि वेश्या आदमी बदलती रहती है और बीवी एक से ही चिपकी रहती है
- ईश्वर ने हमें इतना दुर्बल क्यों बनाया है कि किसी के सहारे के बिना हम जिंदा नहीं रह सकते।
सामान्य परिवारों में पति-पत्नी के बनते- बिगड़ते रिश्तों पर आधारित एक रोचक उपन्यास है। हालांकि यह उपन्यास मुख्य घटना को पूर्ण तो नहीं करता या यू कह सकते हैं। जिन्दगी की यह एक छोटी सी घटना है, अभी उसके परिणाम बाकी हैं।
उपन्यास- डार्क रूमलेखक- आर. के. नारायण
प्रकाशन- राजकमल
पृष्ठ-
फॉर्मेट- ebook on kindle
लिंक- डार्क रूम- R.K. NARAYAN
डार्क रूम- आर. के. नारायण
मालगुडी की कहानियाँ
चर्चित लेखक आर. के नारायण का 'मिस्टर बी.ए.' के पश्चात मेरे द्वारा पढा गया यह 'डार्क रूम' द्वितीय उपन्यास है। हमारे दैनिक परिवेश में घटित होने वाली घटनाओं को बहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत करने में आर. के. नारायण जी सिद्धहस्त नजर आते हैं।
'डार्क रूम' उपन्यास भी एक परिवार में पति-पत्नी के बनते-बिगड़ते सम्बन्धों का चित्रण है। परिवार में बहुत से कारण होते हैं और उन्हीं कारणों से परिवार के सदस्यों में कलह हो जाती है। रमानी और सावित्री में भी कुछ विशेष कारणों से अनबन हो जाती है।
अगर देखा जाये तो परिवार में स्त्रियों का काम ज्यादा होता है लेकिन उन्हें महत्व कम दिया जाता है। पुरूष प्रधान समाज में स्त्री की जो स्थिति है उसका प्रतिनिधित्व सावित्री करती नजर आती है। किसी भी स्त्री के लिए यह सहन करना बहुत मुश्किल होता है कि उसके पति का अन्य स्त्री से संबंध है। सावित्री यह सब कुछ जानते हुए भी सिर्फ इसलिए सहन करती है कि अगर वह चली गयी तो बच्चों का क्या होगा?
अपने बच्चों के लिए वह हर दुख को सहन करती है। एक औरत अपने परिवार को सबकुछ मान कर चलती है लेकिन पुरूष प्रधान समाज उसे उसका वह अधिकार भी नहीं देना चाहता जिसकी वह हकदार है। सावित्री भी इसी दुख को व्यक्त करती हुयी कहती है।
‘मैं भी मनुष्य हूँ। तुम पुरुष लोग कभी यह नहीं समझोगे। हमें तो तुम लोग खिलौना समझते हो जब मन किया सीने से लगा लिया, बाकी वक्त गुलाम हैं तुम्हारी। यह मत सोचना कि जरूरत पड़ने पर तुम हमारा इस्तेमाल कर सकते हो और इसके बाद लात मार कर बाहर कर सकते हो।’
हमारे समाज में स्त्री की जो दयनीय स्थिति है, उसका कोई अस्तित्व स्वीकार को तैयार नहीं, पति भी उसे पराये घर की मानता है, पति को लगता है यह उस पर निर्भर है। इन सब बातों को सावित्री जानती है और वह कहती है-
‘तुम सोचते हो कि मैं यहां रहूँगी? हम तुमसे खाना, घर और दूसरे आराम पाते हैं और उस पर निर्भर हैं। इसलिए तुम सोचते हो कि मैं तुम्हारे घर में रहूँगी, तुम्हारी घर की हवा में साँस लूँगी, तुम्हारा पानी पियूँगी और तुम्हारे पैसों से खरीदा अन्न खाऊँगी? नहीं, मैं खुले आसमान के नीचे, उस छत के नीचे जिस पर सबका अधिकार है, भूखी मर जाऊँगी।’
स्त्री तब तक कमजोर है जब तक वह अपनी दृढता नहीं दिखाती। जब यही स्त्री 'अबला' से 'सबला' बनती है तो लोग उसे डराते नहीं बल्कि खुद उस से डरने लगते हैं।
मन्दिर का पुजारी सबका शोषण करता है लेकिन वह भी मारी की पत्नी पोन्नी से डरता है। उसने टिप्पणी की, ‘बड़ी खतरनाक औरत है, इससे पार पाना आसान नहीं है।’
समाज में धर्म का या कहें मन्दिर जाने का महत्व कम हो रहा है। क्योंकि मन्दिर भी शोषण गृह होने लग गये। मन्दिर का पुजारी सभी का शोषण करता है, वह चाहे मारी हो या सावित्री। वह शोषण भी करना चाहता है और यह भी चाहता है कि समाज में उसका सम्मान हो और लोग उसके शोषण का विरोध भी न करें।
‘तुम लोग अब देवता को भेंट भी नहीं चढ़ाते। तुम्हारे बाप-दादा के जमाने में मैं मंदिर के लिए ऐसे दस नौकर रख सकता था, लेकिन आजकल तुम लोग फोकट में भगवान की पूजा करना चाहते हो, न कोई भेंट, न नारियल का टुकड़ा।’
उपन्यास में स्त्री की स्थिति को लेकर बहुत मार्मिक कथन हैं, जो सत्य के करीब भी हैं।
- औरत के पास उसके बदन के अलावा अपना और क्या है? इसके अलावा सब कुछ उसके बाप का है, पति का है, बेटे का है।
- वेश्या और शादीशुदा औरत में फ़र्क ही क्या है?—सिर्फ यह कि वेश्या आदमी बदलती रहती है और बीवी एक से ही चिपकी रहती है
- ईश्वर ने हमें इतना दुर्बल क्यों बनाया है कि किसी के सहारे के बिना हम जिंदा नहीं रह सकते।
सामान्य परिवारों में पति-पत्नी के बनते- बिगड़ते रिश्तों पर आधारित एक रोचक उपन्यास है। हालांकि यह उपन्यास मुख्य घटना को पूर्ण तो नहीं करता या यू कह सकते हैं। जिन्दगी की यह एक छोटी सी घटना है, अभी उसके परिणाम बाकी हैं।
मोबाइल पर 'डार्क रूम' |
प्रकाशन- राजकमल
पृष्ठ-
फॉर्मेट- ebook on kindle
लिंक- डार्क रूम- R.K. NARAYAN
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