Sunday, 1 August 2021

448. शैतान‌ की मौत - सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक

शैतान की मौत- सुरेन्द्र मोहन‌ पाठक, 1966
सुनील-08 
आरती भंडारी की मां उसके लिये अपनी सारी सम्पत्ति एक ऐसे ट्रस्ट के रूप में छोड़ कर मरी थी जिसका कि उसके इक्कीस साल के होने पर उसके कंट्रोल में आने का प्रावधान था। फिर ज्यों ही ट्रस्ट का संचालन आरती के काबू में आया, उसमें से कुछ निश्चित रकम गायब होने लगी जिसके बारे में उसके पिता का खयाल था कि उसे कोई शैतान ब्लैकमेल कर रहा था। 
      लोकप्रिय साहित्य में मर्डर मिस्ट्री लेखन में सुरेन्द्र मोहन पाठक अद्वितीय प्रतिभा के धनी हैं। उन्होंने सुनील चक्रवर्ती नामक अपने एक पात्र के माध्यम से उपन्यास जगत में पदार्पण किया। सुनील के उपन्यास मर्डर मिस्ट्री पर आधारित होते हैं। सुनील 'ब्लास्ट' नामक समाचार पत्र में खोजी पत्रकार है। 
    यूथ क्लब का मालिक रमाकांत सुनील का घनिष्ठ मित्र है। सुनील अपने अन्वेषण के दौरान रमाकांत की मदद लेता रहता है।
    एक दिन रमाकांत अपने मित्र भंडारी के साथ सुनील से मिलता है।
“सुनील।” - परिचय कराता हुआ बोला - “इनसे मिलो, यह मिस्टर भंडारी हैं। मेरे अच्छे मित्रों में से हैं। यह यूथ क्लब की स्थापना में इनका भारी सहयोग रहा है और मिस्टर भंडारी यह सुनील है जिसका मैंने आपसे जिक्र किया था ।” 
“बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर।” - भंडारी सुनील के हाथ को थाम कर बोला।     भंडारी की बेटी आरती के अकाउंट में तीस लाख रुपये थे। जो की वह पिछले पांच माह में चालीस हजार खर्च कर चुकी थी। 
भंडारी का कहना है- कोई लड़की पांच महीने में चालीस हजार रुपया फिजूल खर्ची में नहीं उड़ा सकती।
   और निकाली गयी रकम बीस-बीस हजार चैक द्वारा थी।
     चालीस हजार रुपये की रकम केवल दो चैकों की सूरत में बैंक से निकाली गई है। दोनों चैक बीस-बीस हजार रुपये के थे और पिछले दो महीनों में कैश करवाये गये थे।
  वहीं मिस्टर भंडारी की के घर में भी एक और समस्या थी।‌ भंडारी ने अपनी बेटी की उम्र की लड़की रतना से शादी की थी, और आरती भंडारी रतना को पसंद नहीं करती।
      अभी एक बात और बाकी, जो सुनील के उपन्यास में विशेष तौर पर होती है, जिसके लिए सुरेन्द्र मोहन पाठक जी जाने जाते हैं। वह है एक हत्या। एक होटल में हत्या होती है और जिसका शक भंडारी के परिवार पर आता है।
      लेकिन इन सब  घटनाओं का सुनील चक्रवर्ती अपने हिसाब से विश्लेषण करता है।
- उसे यह पता लगना है कि आरती भंडारी ने वह रुपय कहां खर्च किये?
- उसे यह भी पता लगाना है कि होटल में हुयी हत्या का जिम्मेदार कौन है?
    बस कहानी यही नही और भी बहुत कुछ है। जो आपको पढने पर पता चलेगा। 
   मूलतः यह ब्लैकमेलिंग जैसे विषय पर आधारित है। सुनील सीरीज का पांचवां उपन्यास 'ब्लैकमेलर की हत्या' भी ब्लैकमेलिंग पर आधारित है पर दोनों का कथानक अलग-अलग है। 
      इस उपन्यास का पूर्व में नाम 'बेनकाब चेहरा' था और फिर नाम बदल कर 'शैतान की मौत' कर दिया गया। क्योंकि ब्लैकमेलर एक शैतान ही होता है जो आर्थिक और मानसिक शोषण दोनों करता है। ऐसे शैतान की मौत को यही नाम दिया जा सकता है जो उपन्यास का शीर्षक है।
      वहीं उपन्यास में डॉक्टरी पेशे में घुस बैठे शैतानों लोगों को भी बेनकाब किया गया है।
उपन्यास का एक दृश्य है-
वह चार सौ तैंतीस के रास्ते चार सौ बत्तीस में घुस जाता है और रोशनलाल की एक-एक चीज की तलाशी लेने लगता है।
      यह मुझे कुछ सही नहीं लगा। क्योंकि कमरा नंबर चार सौ तैंतीस तो बाहर से बंद था। फिर 'वह' अंदर कैसे घुसता है। 
- ब्लैकमेलिंग का जो आधार है वह इतना मजबूत नहीं था कि आरती उसका घर पर जिक्र ही नहीं ना कर पाये। 
हालांकि यह भी हो सकता है, उसे ब्लैकमेलिंग की यह शुरुआत बड़ी न लगी हो और वह अपने स्तर पर ही निपटाना चाहती हो। 
ब्लैकमेलिंग और हत्या पर लिखा गया यह उपन्यास रोचक है। उपन्यास की कहानी में हालांकि नयापन तो नहीं है, पर रोचकता यथावत है। यही रोचकता उपन्यास के आरम्भ से अंत तक है।
उपन्यास- शैतान‌ की मौत (बेनकाब चेहरा)
लेखक-    सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन-  1966
सुनील सीरीज-08

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