मैथिल कोकिल विद्यापति का जीवन वृतांत
लखिमा की आँखें - रांगेय राघव
हिंदी के प्रख्यात साहित्यकार रांगेय राघव ने विशिष्ट कवियों, कलाकरों और चिंतकों के जीवन पर आधारित उपन्यासों की एक शृंखला लिखकर साहित्य की एक बड़ी आवश्यकता को पूर्ण किया है। प्रस्तुत उपन्यास महाकवि विद्यापति के जीवन पर आधारित अत्यंत रोचक मौलिक रचना है।
विद्यापति का काव्य अपनी मधुरता, लालित्य तथा गेयता के कारण पूर्वोत्तर भारत में बहुत लोकप्रिय हुआ और आज भी लोकप्रिय है। लेखक ने स्वयं मिथिला जाकर कवि के गांव की यात्रा करके गहरे शोध के बाद यह उपन्यास लिखा है। मिथिला के राजकवि, विद्यापति ठाकुर कुछ समय मुसलमानों के बंदी भी रहे। उन्होंने संस्कृत में भी बहुत कुछ लिखा परन्तु अपनी मैथिल भाषा में जो लिखा वह अमर हो गया।
आदि से तक अत्यंत रोचक यह उपन्यास उस युग के समाज, राजनीति और धार्मिक जीवन का भी सजीव चित्रण करता है। (किंडल से- लखिमा की आँखें- रांगेय राघव)
सम्पूर्ण उपन्यास में मुख्य तीन पात्र हैं एक विद्यापति, राजा सिव सिंह और उनकी पत्नी लखिमा देवी।इस उपन्यास का आरम्भ मैथिली कवि विद्यापति की मृत्यु के लगभग सौ साल पश्चात आरम्भ होता है। समाज में हाहाकार मचा है, तुर्क भारत देश में लूट मचा रहे हैं और बेबस जनता बस बेबस है।
ऐसे ही एक घटनाक्रम के दौरान एक बंगवासी मैथिल की यात्रा पर निकलता। उसका उद्देश्य है विद्यापति के साहित्य का संरक्षण करना। हालांकि विद्यापति की मृत्यु को लगभग सौ वर्ष बीत चुके है। इतने समय पश्चात क्या उनकी कृतियाँ सुरक्षित होंगी? इसी संशयात्मक प्रश्न के साथ वह अपनी यात्रा पर निकलता है और रास्ते में उसका सामना लूटेरे तुर्कों से होता है।
भारत के पर हो रहे विदेशी आक्रमण और भारतीय की सोच पर एक गहरा व्यंग्य देखें-
शूद्र को ब्राह्मण मारता है, बौद्ध अपना राज्य चाहता है। वह तुर्क को ब्राह्मण के विरुद्ध बुलाता है। और ब्राह्मण स्वदेश के इन शुत्राओं से भी लड़ता है और विदेशी लुटेरों से भी। और इस सबका परिणाम क्या होता है सब पिसते हैं, तुर्क जीतते हैं। कहते हैं पहले समय में पृथ्वीराज चैहान ने युद्ध किया था किन्तु उसे भी विश्वासघातियों ने हरवा दिया। राजा गण्ड भी विश्वासघात के कारण ही सोमनाथ के लुटेरे गज़नवी के हाथों मारा गया था। (उपन्यास अंश)
आखिर कथा सूत्रधार विद्यापति के गाँव पहुंच ही जाता है और उसे वहाँ विद्यापति के विषय में विभिन्न दंतकथाएं सुनने को मिलती हैं। इन्हीं दंतकथाओं के माध्यम से ही विद्यापति, राजा सिव सिंह और रानी लखिमा का वर्णन उपन्यास में किया गया है।एक तरह विद्यापति के सरस गीतों का भावपूर्ण चित्रण है वहीं देश पर आये संकट को भी रेखांकित किया गया है।
राजा सिव सिंह विद्यापति के गीतों पर रसिक हैं और वहीं विद्यापति को भी पता है की राजा सिव सिंह उनके कद्रदान हैं, कला की समझ रखने वाले हैं। लेकिन युद्ध के समय स्वयं कवि आगे प्रस्तुत होता है राजा के मान करने के पश्चात भी युद्ध का साक्षी बनता है।
आज हम विद्यापति के जो भी गीत पढते हैं उनका सृजन कैसे हुआ, किन घटनाओं के दौरान हुआ लेखक ने इनका अच्छा चित्रण किया है।
उपन्यास का समापन बहुत ही मार्मिक है जो एक कसक छोड़ जाता है।
विद्यापति की एक प्रसिद्ध पंक्ति देखें-
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