Wednesday, 17 April 2019

184. कवि बौड़म डकैतों के चंगुल में- अरविन्द कुमार साहू

कवि फंस गये डकैतों के चंगुल में...
बाल उपन्यास, अरविन्द कुमार साहू


अरविन्द कुमार साहू द्वारा लिखित 'कवि बौड़म डकैतों के चंगुल में' एक बाल उपन्यास है। यह एक ऐसे कवि की कथा है जो अपनी बेतुकी कविताओं से सभी को परेशान करता है।


उन दिनों डकैतों के मामले में चम्बल घाटी अपने चरम पर थी और बकैतों के मामले में कवि बौड़म अपने चरम पर था
। (पृष्ठ-13)
             एक तरफ कवि की कविताओं से जनता परेशान है और दूसरी तरफ डकैत से। कवि जहाँ सिर्फ रुपये लेना जनाता है तो डाकू सिर्फ रुपये लूटना जानते हैं। एक बार डकैतों से कवि बौडम का अपहरण कर लिया। कवि सिर्फ रुपया लेना जानता था और डकैत कवि से रुपया लूटना चाहते थे।
अब कवि सफल हुआ या डकैत यही उपन्यास का मूल है। यहीं से उपन्यास में रोचकता पैदा होती है। जैसे -जैसे कथा आगे बढती है वैसे -वैसे हास्य रस पैदा होता जाता है और डकैत तथा कवि की हास्य वार्ता भी।

अब देखना यह है की क्या डाकू खूंखार सिंह कवि बौड़म से फिरौती की रकम‌ वसूल पाया और कवि बौडम ने अपनी बेतुकी कविताएँ सुना-सुना कर डाकुओं का क्या हाल किया।

कवि बौड़म की एक कविता भी देख लीजिएगा ।
वह बकैत है, लेकिन चतुर व होशियार है
किसी भी परिस्थिति से निपटने से निपटने को तैयार है।
उसकी कविता ही उसकी उसका हथियार है
जो भी उससे पंगा लेगा, उसका बंटाधार है।

              उपन्यास एक हास्य कथा है लेकिन पढते समय ऐसा कम ही अहसास होता है की यह एक हास्य कथा है। कवि बौड़म की जो हास्य व अटपटी कविताएँ हैं वह भी कोई विशेष प्रभाव नहीं जमा पाती।
उपन्यास पढते वक्त मुझे 'बालहंस' पत्रिका के 'कवि आहत' बहुत याद आये। कवि आहत की कविताओं से लोग इतना परेशान होते थे की वे अपना सिर धुनने लगते थे, पर कवि आहत की तीन-चार पंक्तियों की कविताएँ वास्तव में रोचक होती थी। हालांकि कवि आहत और कवि बौड़म की तुलना मेरा उद्देश्य नहीं है। पर उपन्यास की नीरसता ने कवि आहत की याद दिला दी।
                आरम्भिक पृष्ठों से तो ऐसा लगता है जैसे उपन्यास को अनावश्यक विस्तार दिया गया हो। उपन्यास आरम्भ में सामान्य सी बातों को ज्यादा विस्तार देकर उपन्यास के पृष्ठ बढाने जैसी कोशिश लगती है।
यह एक बाल उपन्यास है तो हो सकता है बाल पाठकों को रूचिकर लगे। लेकिन अनावश्यक विस्तार वहाँ भी खटकेगा।

उपन्यास पात्र-
कवि बौड़म- उपन्यास नायक, एक कवि।
खूंखार सिंह- एक खतरनाक डाकू
जोहार सिंह- खूंखार सिंह का मुख्य साथी
सेंघमरवा- एक डाकू
चोरवा - एक डाकू

निष्कर्ष-
           यह एक बाल उपन्यास है। एक हास्य कवि कैसे डकैतों के चंगुल से स्वयं को आजाद करवाता है। दोनों के मध्य उत्पन्न हास्य पाठक को कुछ हद तक प्रभावित करता है।
बच्चों के लिए एक बार पठनीय रचना है।

उपन्यास- कवि बौड़म डकैतों के चंगुल में
लेखक-  अरविन्द कुमार साहू
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ-
मूल्य- 80₹


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