प्रकाश भारती का अजय सीरीज उपन्यास 'स्लीपिंग पिल्स' अर्थात् 'नींद की गोलियाँ' अपने शुरुआत के पांच-सात पृष्ठ के पश्चात पाठक पर भारी पङता चला जाता है। उपन्यास के मध्यांतर में तो उपन्यास इस कदर हो जाता है जैसे आगे सरक ही नहीं रहा। पृष्ठ दर पृष्ठ एक जैसी वार्ता दिखाई देती है जिससे पाठक ऊब जाता है।
अपने क्लाइमैक्स में उपन्यास अच्छा है और क्लाइमैक्स (समापन) पाठक की सोच से भी बहुत दूर जा निकलता है। लेकिन इतनी बोरियत के पश्चात पाठक का उपन्यास से मोह भंग हो जाता है की वह मात्र उपन्यास का समापन चाहता है।
उपन्यास की कहानी- उपन्यास की कहानी नायक अजय से प्रारंभ होती है। उसे समुद्र के तट पर एक असहाय सी लङकी मिलती है। अजय उसे अपने घर ले आता है। लङकी उसके घर से स्लीपिंग पिल्स चुरा के निकल जाती। जब अजय को इस बात का पता चलता है तो वह लङकी तलाश में घर से निकल पङता है।
अजय को लङकी तो नहीं मिलती लेकिन लङकी के परिचय लोगों से नयी-नयी जानकारी अवश्य मिलती है। इस दौरान एक एक कर तीन हत्याएं हो जाती है तथा दूसरी तरफ लङकी के अपहरणकर्ता फिरौती की रकम मांगते हैं।
- लङकी सीमा का किस्सा क्या था?
- उसका अपहरण किसने किया?
- हत्या का क्या रहस्य था?.
- हत्यारा कौन था?
ये सब रहस्य तो इस उपन्यास को पढ कर ही पता चलेंगे।
लेकिन उपन्यास में इतनी गलतियाँ है और तर्कहीन बातें है की उपन्यास का स्वाद ही खत्म हो जाता है।
- अजय अपने बाथरूम में स्लीपिंग पिल्स (नींद की गोलियाँ) क्यों रखता था?
- क्या एक तीन साल की बच्ची, लगभग तीस साल बाद किसी को पहचान लेगी?
- सीमा क्या अपहरण किसने किया या सीमा गायब कहां रही?
- अंत में अमन का कहीं जिक्र तक नहीं?
ऐसे एक नहीं अनेक प्रश्न है जो पाठक को ढूंढने पर भी नहीं मिलते और उस पर उपन्यास की अनावश्यक लंबाई भी पाठक को परेशान कर देती है।
उपन्यास में सबसे अनोखी बात ये है की इस में जितने भी परिवार दिखाये गयें है सब के सब परिवारों में बिखराव है। पति- पत्नी अलग रहते हैं अगर कोई साथ है तो उनमें कोई प्यार नहीं ।
थोङा अजीब सा लगता है वह भी तब जब उपन्यास में एक नहीं कई परिवारों का जिक्र हो।
मेरे विचार से इस उपन्यास को पढना पाठक द्वारा अपना समय खराब करने जैसा है। उपन्यास में कोई भी संवाद या दृश्य याद रखने लायक नहीं है।
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उपन्यास- स्लीपिंग पिल्स
लेखक- प्रकाश भारती
प्रकाशक- गौरी पाॅकेट बुक्स
मूल्य- 25₹ (सन् 2004)
पृष्ठ- 276.
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Friday, 5 May 2017
40. स्लीपिंग पिल्स- प्रकाश भारती
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हिंदी पल्प में मैंने ये कमी देखी है। जो चीज एक अच्छा लघु उपन्यास हो सकती थी वो उसे एक बेकार उपन्यास में तब्दील कर देते हैं अनाव्शय्क प्रसंग डाल कर। ऐसे में ये होता है कि कुछ सवालों एक जवाब ही लेखक दे नहीं पाता क्योंकि न तो अपनी कहानी लिखी कहानी खुद पड़ रहा है और न ही प्रकाशक ने कोई सम्पादक इसके लिए रखा है। मुझे हैरत होती है कि ये सब छप कैसे जाता है। यही पल्प के गायब होने का कारण भी है।
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