एक प्रेम कहानी, एक दर्द कहानी।
भंवरा- कुशवाहा कांत, उपन्यास, सामाजिक, पठनीय।
भंवरा- कुशवाहा कांत, उपन्यास, सामाजिक, पठनीय।
कुशवाहा कांत के उपन्यास स्वयं में एक अलग दुनिया होते हैं। इनकी शैली रोचक व मन को छू लेने वाली होती है।
इनका उपन्यास भंवरा एक साथ कई कहानियाँ कह जाता है। एक तरफ जहाँ प्रेम कथा है, वहीं दूसरी तरफ देश-प्रेम और मानवता की चर्चा भी है। धर्म भी है और मनुष्य का मनुष्य के प्रति दायित्व भी है।
उपन्यास एक साथ कई आदर्श प्रस्तुत करता है लेकिन कहीं से बोझिल प्रतीत नहीं होता। पाठक को स्वयं में बांधे रखने में उपन्यास सक्षम है और यही एक सफल उपन्यास की विशेषता होती है।
इनका उपन्यास भंवरा एक साथ कई कहानियाँ कह जाता है। एक तरफ जहाँ प्रेम कथा है, वहीं दूसरी तरफ देश-प्रेम और मानवता की चर्चा भी है। धर्म भी है और मनुष्य का मनुष्य के प्रति दायित्व भी है।
उपन्यास एक साथ कई आदर्श प्रस्तुत करता है लेकिन कहीं से बोझिल प्रतीत नहीं होता। पाठक को स्वयं में बांधे रखने में उपन्यास सक्षम है और यही एक सफल उपन्यास की विशेषता होती है।
भंवरा कहानी है करमपुर गांव के बङे ठाकुर/ बङे राजा चन्द्र किशोर नारायण सिंह के पुत्र कमल किशोर नारायण सिंह के प्रेम की कहानी सिर्फ प्रेम कथा ही नहीं है इसके अलावा करमपुर गांव में आयी बेरोजगारी और धार्मिक उन्माद की कहानी और उनके पीछे शैतानी सोच की भी है।
कमल को प्रेम है अपने ही गांव के एक ग्वाले की पुत्री मेहंदी से लेकिन यह प्रेम बङे राजा को पसंद नहीं।
अमिलहा के ठाकुर जगदीश सिंह एक दिन बङे राजा के यहाँ कमल हेतु अपनी पुत्री राजमणि का रिश्ता लेकर आते हैं लेकिन यह रिश्ता ठकुराइन को पसंद नहीं है।
लेकिन कमल और राजमणि के बीच प्रेम पनप जाता है और वहीं बङे राजा और जगदीश सिंह के बीच दुश्मनी पनप जाती है।
एक तरफ मेहंदी है और एक तरफ राजमणि। कमल को दोनों से प्रेम है। मेहंदी को ठाकुर पसंद नहीं करते और राजमणि को ठकुराइन।
कमल को प्रेम है अपने ही गांव के एक ग्वाले की पुत्री मेहंदी से लेकिन यह प्रेम बङे राजा को पसंद नहीं।
अमिलहा के ठाकुर जगदीश सिंह एक दिन बङे राजा के यहाँ कमल हेतु अपनी पुत्री राजमणि का रिश्ता लेकर आते हैं लेकिन यह रिश्ता ठकुराइन को पसंद नहीं है।
लेकिन कमल और राजमणि के बीच प्रेम पनप जाता है और वहीं बङे राजा और जगदीश सिंह के बीच दुश्मनी पनप जाती है।
एक तरफ मेहंदी है और एक तरफ राजमणि। कमल को दोनों से प्रेम है। मेहंदी को ठाकुर पसंद नहीं करते और राजमणि को ठकुराइन।
करमपुर गांव में एक अंग्रेज टाॅमसन व्यापारिक उद्देश्य से आता है और अपनी निकृष्ट मानसिकता से हिंदू-मुस्लिमों में धार्मिक विद्वेष पैदा करता है।
गांव में बेरोजगारी भी टाॅमसन के कारण पैदा हो जाती है।
जब से करमपुर में टामसन का पदार्पण हुआ था, तब से वहाँ के हिंदू-मुसलमानों का आपसी वैमनस्य बढता जा रहा था। (पृष्ठ-187)
और इन सब परिस्थितियों से बङे राजा निपटते है।
गांव में बेरोजगारी भी टाॅमसन के कारण पैदा हो जाती है।
जब से करमपुर में टामसन का पदार्पण हुआ था, तब से वहाँ के हिंदू-मुसलमानों का आपसी वैमनस्य बढता जा रहा था। (पृष्ठ-187)
और इन सब परिस्थितियों से बङे राजा निपटते है।
- कमल की शादी किससे हुयी, मेहंदी से राजमणि से?
- राजमणि को ठकुराइन क्यों पसंद नहीं करती थी?
- मेहंदी को बङे राजा क्यों पसंद नहीं करते?
- टाॅमसन ने गाँव में धार्मिक विद्वेष क्यों फैलाया?
- क्यों हो गया गांव बेरोजगार?
- बङे राजा इन सब परिस्थितियों से कैसे निपट सके?
यह सब इस रोचक उपन्यास में उपस्थित है।
- राजमणि को ठकुराइन क्यों पसंद नहीं करती थी?
- मेहंदी को बङे राजा क्यों पसंद नहीं करते?
- टाॅमसन ने गाँव में धार्मिक विद्वेष क्यों फैलाया?
- क्यों हो गया गांव बेरोजगार?
- बङे राजा इन सब परिस्थितियों से कैसे निपट सके?
यह सब इस रोचक उपन्यास में उपस्थित है।
उपन्यास के पात्र-
उपन्यास में पात्रों का परिचय।
1. मेहंदी- मेहंदी उस अल्हङ युवती का नाम है, जो करमपुर के ग्वाले देवी चौधरी की एकमात्र बेटी है।(पृष्ठ-01)
2. देवी चौधरी- मेहंदी का पिता।
3. राजा चन्द्रकिशोर नारायण सिंह- करमपुर गांव का प्रमुख।
4. कमल किशोर नारायण सिंह- चन्द्र किशोर का पुत्र
5. ठकुराइन नीलमुखी- कमल की माँ।
6.
7. कल्लन मियाँ- गांव के एक धार्मिक व्यक्ति।
8. ठाकुर जगदीश- अमिलहा गांव के प्रमुख
9. गोपाल- जगदीश का पुत्र।
10. राजमणि- जगदीश की पुत्री और कमल की प्रेयसी।
11. ठाकुर विजय बहादुर सिंह- अमिलहा गांव का पूर्व प्रमुख।
12. जंगी- जगदीश का साथी। खलनायक ।
13. शिवप्रसाद- भजनपुर गांव का पटवारी।
14. टामसन- एक अंग्रेज व्यापारी।
अन्य पात्र- मुनीम, कारिंदा, लठैत, किसान, ग्रामीण आदि।
उपन्यास में पात्रों का परिचय।
1. मेहंदी- मेहंदी उस अल्हङ युवती का नाम है, जो करमपुर के ग्वाले देवी चौधरी की एकमात्र बेटी है।(पृष्ठ-01)
2. देवी चौधरी- मेहंदी का पिता।
3. राजा चन्द्रकिशोर नारायण सिंह- करमपुर गांव का प्रमुख।
4. कमल किशोर नारायण सिंह- चन्द्र किशोर का पुत्र
5. ठकुराइन नीलमुखी- कमल की माँ।
6.
7. कल्लन मियाँ- गांव के एक धार्मिक व्यक्ति।
8. ठाकुर जगदीश- अमिलहा गांव के प्रमुख
9. गोपाल- जगदीश का पुत्र।
10. राजमणि- जगदीश की पुत्री और कमल की प्रेयसी।
11. ठाकुर विजय बहादुर सिंह- अमिलहा गांव का पूर्व प्रमुख।
12. जंगी- जगदीश का साथी। खलनायक ।
13. शिवप्रसाद- भजनपुर गांव का पटवारी।
14. टामसन- एक अंग्रेज व्यापारी।
अन्य पात्र- मुनीम, कारिंदा, लठैत, किसान, ग्रामीण आदि।
संवाद-
उपन्यास के संवाद अच्छे और सूक्तिनुमा हैं। संवाद पात्रों की स्थिति का भी अच्छा चित्रण करने में सक्षम हैं।
- स्वार्थपरायणता स्त्री के लिए कलंक है और त्याग ही स्त्री का आभूषण है।(पृष्ठ-08)
- प्रेम का स्तर, सामाजिक बंधन के बांधे नहीं बंध सकता। (पृष्ठ-19)
- स्वतंत्रता अनुभवी के लिए वरदान है और नादान के लिए अभिशाप। (पृष्ठ-20)
- औरतों पर कुदृष्टि डालने वाले, पशु से भी निकृष्ट होते हैं। (पृष्ठ- 95)
- शुद्रप्रेम का क्षणिक तूफान इतना तीव्रतर होता है कि मनुष्य अपने को सम्हाल ही नहीं सकता। (पृष्ठ-89)
- पवित्र प्रेम में उपासना की भावना रहती है, विद्वेष की नहीं....। (पृष्ठ-123)
- पुरुष हमेशा स्त्री को छलते आये हैं भँवरे....(पृष्ठ-202)
- स्त्री के हृदय की ममता पुरुष नहीं समझ सकता। (पृष्ठ-125)
उपन्यास के संवाद अच्छे और सूक्तिनुमा हैं। संवाद पात्रों की स्थिति का भी अच्छा चित्रण करने में सक्षम हैं।
- स्वार्थपरायणता स्त्री के लिए कलंक है और त्याग ही स्त्री का आभूषण है।(पृष्ठ-08)
- प्रेम का स्तर, सामाजिक बंधन के बांधे नहीं बंध सकता। (पृष्ठ-19)
- स्वतंत्रता अनुभवी के लिए वरदान है और नादान के लिए अभिशाप। (पृष्ठ-20)
- औरतों पर कुदृष्टि डालने वाले, पशु से भी निकृष्ट होते हैं। (पृष्ठ- 95)
- शुद्रप्रेम का क्षणिक तूफान इतना तीव्रतर होता है कि मनुष्य अपने को सम्हाल ही नहीं सकता। (पृष्ठ-89)
- पवित्र प्रेम में उपासना की भावना रहती है, विद्वेष की नहीं....। (पृष्ठ-123)
- पुरुष हमेशा स्त्री को छलते आये हैं भँवरे....(पृष्ठ-202)
- स्त्री के हृदय की ममता पुरुष नहीं समझ सकता। (पृष्ठ-125)
उपन्यास में जहाँ एक तरफ बङे ठाकुर जैसे सज्जन व्यक्ति हैं तो वहीं जंगी जैसे शैतान भी। जो स्पष्ट कहते हैं- - विश्वासघात हमारा पेशा है ठकुराइन। (पृष्ठ-150)
- उपन्यास में तात्कालिक परिस्थितियों का अच्छा चित्रण है। भारत की दुर्दशा का चित्रण टामसन नामक अंग्रेज के माध्यम से दर्शाया गया है। कैसे एक व्यापारी बन कर अंग्रेज भारत आये और भारत को लूटा। इसका समाधान भी उपन्यास में है। वह समाधान है गांधी जी का सहयोग आंदोलन।
याद रखो ! इन अंग्रेजों को मार भगाने का सबसे सरल उपाय असहयोग है। (पृष्ठ-199)
वर्तमान में बढते धार्मिक उन्माद को एक ही शब्द से स्पष्ट कर दिया- आधुनिक धार्मिकता(पृष्ठ12)।
आधुनिक धार्मिकता कितनी खतरनाक है। यह भी उपन्यास में दर्शाया गया है।
याद रखो ! इन अंग्रेजों को मार भगाने का सबसे सरल उपाय असहयोग है। (पृष्ठ-199)
वर्तमान में बढते धार्मिक उन्माद को एक ही शब्द से स्पष्ट कर दिया- आधुनिक धार्मिकता(पृष्ठ12)।
आधुनिक धार्मिकता कितनी खतरनाक है। यह भी उपन्यास में दर्शाया गया है।
उपन्यास में एक- दो जगह शाब्दिक गलतियाँ नजर आयी।
- कमल के मुख से अपना नाम सुन कर, राजमणि के नेत्र हलाहल से भर उठे। (पृष्ठ-59)
यह एक प्रेम प्रसंग के दौरान का वाक्य है। हलाहल शब्द का अर्थ जहर होता है। अब प्रेम के दौरान नेत्र जहर से कैसे भर गये।
- कमल के मुख से अपना नाम सुन कर, राजमणि के नेत्र हलाहल से भर उठे। (पृष्ठ-59)
यह एक प्रेम प्रसंग के दौरान का वाक्य है। हलाहल शब्द का अर्थ जहर होता है। अब प्रेम के दौरान नेत्र जहर से कैसे भर गये।
- किसी दिन! आधी रात के समय. (पृष्ठ-134)
जब वर्णन आधी रात का है तो किसी दिन शब्द उपयुक्त नहीं लगता।
जब वर्णन आधी रात का है तो किसी दिन शब्द उपयुक्त नहीं लगता।
कुशवाहा कांत का प्रस्तुत उपन्यास भंवरा मूलतः एक प्रेम कथा है। यह प्रेम कथा होने के साथ -साथ समाज में बढती धार्मिक कट्टरता, अंग्रेजी शासन, अंग्रेजी शासन से उपजी बेरोजगारी का भी चित्रण करता है।
उपन्यास रोचक और पठनीय है।
उपन्यास रोचक और पठनीय है।
उपन्यास में एक विरह गीत है।
प्रीति की ज्योति जला कर चुप हैं।
मन में आग लगा कर चुप हैं।
नैनन नीर बहा कर चुप हैं।
रोकर चुप, मुसका कर चुप हैं।
एक तमाशा नित होता है।
हम हँसते हैं, चित रोता है।
घर में आग लगा कर चुप हैं।
रो कर चुप, मुसका कर चुप हैं।
निर्मोही को मीत बनाया,
दिल में यह तूफान बसाया।
अपना आप लुटाकर चुप हैं।
मधुकर हूक दबा कर चुप हैं।
मन में आग लगा कर चुप हैं।
नैनन नीर बहा कर चुप हैं।
रोकर चुप, मुसका कर चुप हैं।
एक तमाशा नित होता है।
हम हँसते हैं, चित रोता है।
घर में आग लगा कर चुप हैं।
रो कर चुप, मुसका कर चुप हैं।
निर्मोही को मीत बनाया,
दिल में यह तूफान बसाया।
अपना आप लुटाकर चुप हैं।
मधुकर हूक दबा कर चुप हैं।
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इस उपन्यास को 17.07.1978 में भी किसी ने पहले पढा है। ऐसा विवरण उपन्यास में दिनांक सहित मिलता है।
उपन्यास उपलब्ध है- सरस्वती पुस्तकालय।
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय- माउंट आबू- सिरोही, राजस्थान।
इस उपन्यास को 17.07.1978 में भी किसी ने पहले पढा है। ऐसा विवरण उपन्यास में दिनांक सहित मिलता है।
उपन्यास उपलब्ध है- सरस्वती पुस्तकालय।
राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय- माउंट आबू- सिरोही, राजस्थान।
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उपन्यास- भंवरा
लेखक- कुशवाहा कांत
पृष्ठ-220
प्रकाशक- चौधरी एण्ड संस, बनारस
उपन्यास- भंवरा
लेखक- कुशवाहा कांत
पृष्ठ-220
प्रकाशक- चौधरी एण्ड संस, बनारस
उपन्यास रोचक लग रहा है। जल्द ही पढ़ें पड़ेगा। विस्तृत समीक्षा के लिए धन्यवाद।
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