Wednesday, 20 September 2017

61. सिंह मर्डर केस- रमाकांत मिश्र

पुलिस के दबंग डी.एस. पी. प्रशांत सिंह के पुत्र समर्थ सिंह की उसके शादी के दिन उसी के बंगले में उसी की गाङी से कुचल कर हत्या कर दी गयी।
हत्यारे को किसी ने नहीं देखा। स्थानीय पुलिस के असफल रहने पर यह केस 'सिंह मर्डर केस' सी बी आई को सौंप दिया जाता है।
- कौन था हत्यारा?
- क्यों हुयी यह हत्या?
- क्या हत्यारा पकङा गया?
रमाकांत मिश्र की सशक्त कलम से निकली एक जबरदस्त मर्डर मिस्ट्री है - सिंह मर्डर केस।
रमाकांत मिश्र एक स्थापित व प्रसिद्ध लेखक है इससे पूर्व वे विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए लिखते रहें हैं। विभिन्न विधाओं में हाथ आजमाने के पश्चात पहली बार उपन्यास क्षेत्र में आये व सफल रहे।

संपूर्ण उपन्यास 16 खण्डों में विभक्त है।
कहानी-
              अगर उपन्यास की कहानी के बात करें तो यह एक जबरदस्त मर्डर मिस्ट्री है। पुलिस के DSP के पुत्र की शादी के दिन, उसी के घर में दिन दहाङे कार से कुचल कर नृशंस तरीके से हत्या कर दी जाती है और कार चालक फरार हो जाता है। बहुत कोशिश करने के पश्चात भी पुलिस हत्यारे का पता तक नहीं लगा पाती। तब सिंह मर्डर केस की फाईल CBI को सौंप दी जाती है।
   जहां एक और DSP के पुत्र की हत्या होती है वहीं दूसरी तरफ एक अजनबी शख्स इस हत्या से पहले भी कुछ लोगों की सिलसिले वार हत्या कर रहा है।
पुलिस को जांच में कभी एक शख्स की हल्की सी पहचान मिलती है तो कभी मृतक के साथ किसी महिला का जिक्र।
- आखिर कौन है जो सिलसिलेवार हत्या कर रहा है?
- हत्यारे का क्या उद्देश्य है?
- सिलसिलेवार हत्या और DSP के पुत्र की हत्या में क्या संबंध है?
   ऐसे ही एक नहीं अनेक अनसुलझे प्रश्नों के उत्तर रमाकांत मिश्र के उपन्यास सिंह मर्डर केस से ही मिलेंगे।
संवाद-
              उपन्यास के संवाद मध्यम स्तर के हैं और लगता भी है की लेखक ने सभी पात्रों को सामान्य ही रखा है लेकिन फिर भी कुछ जगहों पर याद रखने लायक संवाद उपस्थित हैं।
- क्षमा इंसान को किया जाता है, शैतानों  को नहीं ।"- (पृष्ठ- 88)
- पुलिस की ट्रेनिंग और ..लंबी नौकरी के बाद पुलिस वाला दरिंदा तो हो सकता है, पर दीवाना नहीं
"-(105)
- वो न्याय का दरबार था। पर वहाँ झूठ का बोलबाला था। सच अकेला था, असहाय था, निर्धन था और उससे किसी की सहानुभूति नहीं थी (पृष्ठ-124)
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उपन्यास की विशेषता-
- उपन्यास की कहानी रोचक व संस्पेंशपूर्ण है, पाठक को बांधे रखने में सक्षम है।
- भाषा के स्तर पर उपन्यास बहुत अच्छा है। लेखक ने प्रचलित जासूसी उपन्यासों की भाषा की जगह सार्थक हिंदी शब्दावली काम में ली है।
- आवरण चित्र के लिए हनुमेन्द्र मिश्र भी बधाई के पात्र हैं।
- कागज व मुद्रण भी अच्छे स्तर का है। वैसे भी सूरज पॉकेट बुक्स अपने उपन्यासों में अच्छी किस्म का कागज इस्तेमाल करता है।

उपन्यास में कमियाँ
उपन्यास में कुछ खामियां जो पाठक को थोङा झुंझला देती हैं।
- लेखक ने उपन्यास को ऋतुओं के आधार पर विभाजित किया है जो थोङा अजीब सा लगता है।
- तो ये गजेन्द्र सिंह का संपर्क विजय वर्मा से है जो कि वास्तव में विनोद सिंह है।- (पृष्ठ- 28)
यहाँ अकस्मात ही गजेन्द्र, विजय और विनोद सिंह का जिक्र होता है और पाठक समझ नहीं पाता की ये दो नये पात्र कहां से पैदा हो गये।
-विनोद सिंह कभी पाठक को  पुलिस वाला नजर आता है और कहीं एक बैंककर्मी।
- एक बात समझ में नहीं आती जब कत्ल वर्ष 2014, दशहरे को होता है, लेकिन विवाह की विडियोग्राफी वर्ष 2015, शिशिर (प्रथम) को सी बी आई देखती है।(पृष्ठ -109)
- उपन्यास में पृष्ठ संख्या 147 पर कातिल द्वारा कार खरीद- बेच का जिक्र सी बी आई करती है, लेकिन पूरे उपन्यास में पहले ऐसा कोई जिक्र ही नहीं आता की सी बी आई ने ऐसा प्रयास किया हो। बाद में अकस्मात भी कार क्रय-विक्रय का वर्णन आ गया। अब पता नहीं जांच कब की गयी व उनको पता कैसे चला।
 
   हालांकि प्रत्येक पाठक का दृष्टिकोण अलग-अलग होता है, और किसी एक पाठक के दृष्टिकोण को सभी पाठकों पर लागू नहीं किया जा सकता। उपन्यास के प्रति यह मेरा व्यक्तिगत दृष्टिकोण है।
   लेकिन फिर भी यह उपन्यास पाठक को किसी स्तर पर निराश नहीं करेगा ऐसा मेरा विश्वास है, उपन्यास पठनीय है।
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कुछ खास-
प्रस्तुत उपन्यास एक रोचक व संस्पेंशफुल उपन्यास है, भाषा के स्तर पर भी इसमें अच्छा प्रयोग हुआ है जो पाठक को भी अच्छा लगेगा।
  जैसे-जैसे पाठक उपन्यास को पढता है उसके सामने रहस्य खुलते जाते हैं और वहीं नये रहस्य जुङते भी जाते हैं।
उपन्यास का समापन भावुक पर रोचक है।
- समर्पित-
रमाकांत मिश्र महान उपन्यासकार जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा के उपन्यासों के संकलन के लिए अच्छा प्रयास कर रहें हैं प्रस्तुत उपन्यास जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा को समर्पित है।


- प्रस्तुत उपन्यास की भूमिका उपन्यासकार जितेन्द्र माथुर ( कत्ल की आदत) ने लिखी है, वे लिखते हैं- "पाठक के ह्रदय तल को स्पर्श कर लेने वाला यह उपन्यास सामाजिक कथानकों को पढने में रुचि रखने वालों तथा रहस्य -रोमांच के शौकीनों, दोनों ही पाठकवर्ग की पसंद की कसौटी पर खरा उतरता है।"
       "A very powerful storyline which offers strong dialogue, details and back story in digestible chunks that don't take readers out of the story. Very good book indeed."-
                        Dr. Jyotirmany Dubey (Senior Editor and Author)
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उपन्यास - सिंह मर्डर केस
लेखक- रमाकांत मिश्र
ISBN- 978-1-944820-56-5
संस्करण- प्रथम (जून 2016)
प्रकाशक- सूरज पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 176
मूल्य- 199₹
संपर्क-
लेखक- ramakant63@gmail.com
प्रकाशक- soorajpocketbooks@gmail.com
www.fb.com/soorajpocketbooks

2 comments:

  1. सुन्दर लेख। काफी बारीकी से बातों को रखा है आपने।

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  2. सर्वप्रथम तो मैं श्री गुरप्रीत जी को मेरे उपन्यास को पढने और फिर उसकी इतनी सुंदर और सार्थक समीक्षा लिखने के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करना चाहूँगा.

    किताब उनको पसंद आई ये मेरे लिए संतोष की बात है,मेरा परिश्रम पुरस्कृत हुआ.

    उनके द्वारा उल्लिखित कमियों के लिए भी मैं आभारी हूँ क्योंकि कमियों को जान कर ही भविष्य में लेखन में परिष्कार कर सकूँगा.
    इस विषय में मैं कतिपय चर्चा करना चाहूँगा-
    - गजेन्द्र-विजय- विनोद के वर्णन में किताब को सम्पादित करते समय मुझ से हुई लापरवाही मेरे लिए लज्जा का विषय है. इस विषय में मैं शर्मिंदा हूँ कि मुझसे इतनी बड़ी लापरवाही हुई और इस बाबत मैं सुधि पाठकों से क्षमाप्रार्थी हूँ. इस विषय में उल्लेखनीय है कि पुस्तक की इस कमी को द्वितीय संस्करण में सुधार लिया गया है.
    - ऋतुओं के नामों का उल्लेख मैंने पुस्तक के पाठकों के एतद्विषयक जानकारी को समृद्ध करने के उद्देश्य से किया. ये अनेक पाठकों के लिए उलझन अवश्य बनी लेकिन आप भी मानेंगे कि इसी बहाने आपकी जानकारी ताज़ा हुई. इसके लिए मुझे कोई खेद नहीं.
    - शिशिर प्रथम अर्थात जनवरी में शादी की रिकॉर्डिंग देखना कोई देर नहीं है क्योंकि दशहरे पर तो हत्या ही होती है, जिस पर पहले लोकल पुलिस काम करती है और फिर कोई परिणाम न आता देखकर इसे सीबीआई को दिया जाता है. मैंने यह भी दिखाया है कि मदन मिश्र के पास और भी मामले हैं केवल यही नहीं.
    - कार की बिक्री के विषय में जिस बैठक में पृष्ट १४७ पर जिक्र आया है वो बैठक काफी तफ्तीश हो चुकने के बाद हो रही है, ऐसा दर्शाया है. मेरी कोशिश रही है कि पाठक और नायक दोनों को बातें एक साथ ही पता चलें. मैंने यथा संभव विस्तार से बचने की कोशिश की है. इसी लिए उस बैठक में जो कुछ कहा जा रहा है वह तफ्तीश के परिणामों पर ही कहा जा रहा है. याद कीजिये उसी पृष्ठ १४७ पर एक संवाद -"डोभाल के केस में तो अपहरण के दो घंटे बाद ही गाड़ी बेच दी गई." अब ये कैसे पता चला? जाहिर है तफ्तीश से, जो उनका काम ही है.

    श्री गुरप्रीत जी का कथन -"उपन्यास के संवाद मध्यम स्तर के हैं और लगता भी है की लेखक ने सभी पात्रों को सामान्य ही रखा है" शतप्रतिशत सही है.
    जी हाँ, मैंने जान बूझ कर पात्रों और संवादों को सामान्य रखा है. क्योंकि यही इस कहानी की मांग थी.

    एक बार पुनः इतनी गहन समीक्षा के लिए बधाई देते हुए, हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ.आशा है इसी प्रकार कृपा बनाये रखेंगे.

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