Friday 29 May 2020

323. शम्भाला- अनुराग अग्निहोत्री

तीन रोचक कथाएं, हाॅरर, मर्डर मिस्ट्री, सामान्य कहानी
शंभाला-  अनुराग अग्निहोत्री

चूंकि वो उस जलती चिता से निकल कर आई थी इसलिये उसके शरीर का ज्यादातर मांस जल चुका था और उसमें से मांस के जलने की बदबू अब भी आ रही थी.. चेहरे और हाँथ की खाल जलने के कारण गल गल के नीचे टपक रही थी, चेहरे पर आंख के नाम पर सिर्फ एक आंख थी और वो भी ऐसी लग रही थी कि अब नीचे गिरी की तब और दूसरी आंख की जगह पर सिर्फ एक गड्ढा नज़र आ रहा था... नाक के नाम पर सिर्फ दो छेद थे और होंठ भी चूंकि आग से जल चुके थे तो वहाँ से सिर्फ दांत दिख रहे थे और देखने में बड़े ही भयानक लग रहे थे।
यह दृश्य है उपन्यास 'शम्भाला' का जिसके लेखक है अनुराग अग्निहोत्री जी। यह दृश्य है 'शम्भाला' नामक एक चुड़ैल का। जब ठाकुर साहब ने यह सुना की शम्भाला लौट आयी है तो उनके मुँह से एक ही आवाज निकली-
"न न नहीं... वो वो लौटकर नहीं आ सकती, श शशम्भाला फिर से लौटकर नहीं आ सकती..न न नहीं आ सकती"
- कौन थी शम्भाला?
- ठाकुर साहब उससे इतना क्यों डरते थे?
- शम्भाला के लौट आने का क्या अर्थ था?
- और जब शम्भाला लौट आयी तो उसने क्या किया?
तो आपको ये सब जानने के लिए अनुराग अग्निहोत्री ही का लघु हाॅरर उपन्यास 'शम्भाला' पढना होगा।


         यह एक हाॅरर-प्रतिशोध की कथा है। इस 'प्रतिशोध' शब्द में जो घूमाव है वह सबको आश्चर्यचकित करने वाला है। पाठक को, शम्भाला को, ठाकुर साहब को और तो और तत्वदर्शी कुलगुरू भी इस प्रतिशोध को समझने में असफ़ल रहते हैं। अगर देखे तो यही कहानी की मुख्य विषय वस्तु है।

         शम्भाला आयी तो यह कुछ न कुछ तो बुरा घटित होगा ही होगा- कहते हैं बातों के, शब्दों के, अफवाहों के पैर नहीं होते वो हवा में घुल मिल कर बड़ी दूर तक पहुंच जाते हैं, इसी तरह ठाकुर वीर प्रताप की हवेली में हुआ वो दर्दनाक हादसा दूर दूर तक आसपास के गाँवों में फैल चुका था और साथ ही वो रहस्यमय शब्द 'शम्भाला '। हर कोई उस भयानक हादसे के बारे में चर्चा कर रहा था और साथ ही उस शब्द के बारे में। गांवों के युवा तो उस शब्द से अनभिज्ञ थे परंतु जिस भी बुजुर्ग ने वो शब्द सुना उसने बाकियों को उस शब्द को ज़बान पर लेने से भी मना कर दिया.. ये कहकर की शापित शब्द मुँह से बोलना अपशकुन होता है और साथ ही ये भी बोल रहे थे कि अब भूलकर भी उस हवेली की ओर मत जाना... क्योंकि अब वो शापित हो चुकी है।

एक परिचय शम्भाला का- शम्भाला…. अंधेरी दुनिया की स्वामिनी, जिससे स्वयं अंधकार डर कर छिप जाता हो,
शम्भाला तो इंसान न हो कर एक दुष्टात्मा थी जो कि अपने आप को महाशक्तिशाली बनाने और सम्पूर्ण पृथ्वी पर राज करने के उद्देश्य को पूरा करने के लिए..... वर्ष की प्रतीक्षा की।


उपन्यास का एक दिल दहला देने वाला दृश्य देखें-
-सिर जिसकी कटते समय आँखें बंद थी... एकदम अचानक से उसकी आँखें खुल गई और उन खुली आँखों से ठाकुर को देखते हुए वो कटा सिर ज़ोर ज़ोर से हंसने लगा... लेकिन वो हंसी की आवाज़ किसी पुरुष की ना होकर एक औरत की थी, बड़ा ही डरावना दृश्य था वो... एक कटा हुआ सिर ज़ोर ज़ोर से अट्टहास लगा रहा था।

उपन्यास के पात्र
ठाकुर साहब- मुख्य पात्र
शांति देवी- उनकी पत्नी
वीरेन्द्र सिंह- ठाकुर साहब का ज्येेेेष्ठ पुत्र
नैना      - वीरेेेन्द्र की पत्नी
देवेन्द्र सिंह- 
ठाकुर साहब का द्वितीय पुत्र
दिव्या- देवेन्द्र की पत्नी
प्रताप- 
ठाकुर साहब का तृतीय पुत्र
वैष्णवी- 
ठाकुर साहब की पुत्री
कुलगुरू-  एक सिद्ध पुरुष
शेर सिंह- ठाकुर साहब का नौकर
शम्भाला- एक खतरनाक चुड़ैल

उपन्यास का घटनाक्रम बहुत जल्दी में समेटा गया है। आरम्भ में तीव्र गति से घटनाएं घटित होती है, एक के बाद एक हत्याएं होती हो थोड़ा अजरज होता है कि लेखक आखिर दर्शाना क्या चाहता है। यहाँ लेखक महोदय घटनाओं को विस्तार दे सकते थे, एक- दो पात्रों को बचाया जा सकता था लेकिन ऐसा हुआ नहीं, यही थोड़ा अखरता है। जब कुलगुरु के लिए कुछ होना ही नहीं था तो कुलगुरु का अर्थ क्या रहा, बस यही की उनके माध्यम से अतीत के घटनाक्रम सामने आये।
          लेखक महोदय यहाँ उपन्यास का अलग ट्विस्ट दे सकते थे और उपन्यास की शब्द सीमा भी विस्तार पाती और घटनाक्रम भी अलग दिशा ले सकता था।
फिर भी उपन्यास का रोचक और पठनीय है। उपन्यास का आकार छोटा है तो आसानी से पढा जा सकता है।
अधिकांश उपन्यासों में एक भूत या चुड़ैल लोगों को मारती है लेकिन यहाँ तो दो शक्तियाँ आपस में टकराती है। एक सात्विक और तामसिक शक्ति। इन दो शक्तियों का टकराव मेरड लिए हाॅरर श्रेणी में पाठन रोचक था।

'सम्भाला' एक प्रतिशोध पर आधारित हाॅरर उपन्यास है। उपन्यास का घटनाक्रम तीव्र गति का है। उपन्यास रोमांच और हाॅरर का अच्छा मिश्रण है।

उपन्यास- सम्भाला
लेखक - अनुराग अग्निहोत्री
पृष्ठ- 122
फॉर्मेट- ebook on kindle


2. एक करोड़ का मुर्दा- अनुराग अग्निहोत्री

क्या कोई मुर्दा भी एक करोड़ का हो सकता है? लेकिन जब यह लघु उपन्यास पढा तो पता चला की वास्तव में कोई मुर्दा भी इतना कीमती हो सकता है।
यह एक मर्डर मिस्ट्री है। एक औरत और उसकी नन्हीं बच्ची के कत्ल पर आधारित उपन्यास में इतने चौंकाने वाले ट्विस्ट हैं‌ की पता ही नहीं चलता कब कहानी कौनसा मोड़ ले लेती है।

3. ऋण
दो लघु उपन्यासों के साथ एक कहानी 'ऋण' शीर्षक से भी शामिल है। यह एक भावुक कथा है। एक ऐसे पुलिसकर्मी की कहानी है जो अपना ऋण उतारने के लिए 'किसी' को तलाश करता है।

लेखक महोदय का प्रयास सराहनीय है, तीनों कहानियाँ रोचक है। एक हाॅरर, एक मर्डर मिस्ट्री और अंतिम एक मार्मिक कहानी।
दोनों लघु उपन्यास अभी और विस्तार पा सकते थे। और मेरे विचार से उनको विस्तृत रूप देना ही चाहिए था।
फिर भी अच्छी रचनाओं के लिए धन्यवाद।

लेखक- अनुराग अग्निहोत्री
लिंक-  शम्भाला- अनुराग अग्निहोत्री

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