Sunday 10 May 2020

313. कण कण केदार- देवेन्द्र पाण्डेय

केदारनाथ पैदल यात्रा का वर्णन
कण कण केदार- देवेन्द्र पाण्डेय

ऋषिकेश से चोपता तक का लगभग 200 कि.मी. का अंतर मानो कटने का नाम ही नही ले रहा था, मैंने अनुमान लगाया था कि 50 किमी प्रतिघन्टा भी यदि कैब चली तो भी अधिकतम 5 घण्टो में हम चोपता में रहेंगे, लेकिन सारा गणित तब बिगड़ गया जब गाड़ी 30 किमी प्रतिघन्टा के हिसाब से चलने लगी। ऊपर से चार धाम योजना सड़क निर्माण के कारण जगह जगह कटिंग चल रही थी, जिस कारण हमें उकीमठ पहुंचने तक ही अच्छी खासी रात हो गयी, रास्ते मे जब थकान अधिक हो गयी तब एक छोटे से होटल में रुक कर गरमागरम चाय और मैगी का नाश्ता किया, मैंने इतनी स्वादिष्ट मैगी आज तक नही खायी थी, मन प्रफुल्लित हो गया, इस समय तक हवा में ठंडक भी काफी हो चुकी थी। (किताब के अंश)
मनुष्य में आदिकाल घूमने की प्रवृत्ति पायी जाती है। वह कभी भी एक जगह पर स्थिर होकर नहीं बैठ सकता, अगर एक जगह उसे बैठा रह जाना पड़े तो उसका जीवन नीरस हो जाता है। इसी नीरसता को दूर करने के लिए वह अक्सर  यात्राओं पर निकल जाता है। 


          वर्तमान भौतिक समय में मनुष्य अर्थ के पीछे इतना दीवाना हो गया है कि वह यात्रा पर नहीं निकलता अगर कभी निकलता है तो एक तय यात्रा होती है और उसमें भी उसे घर वापसी की जल्दी होती है। कहते हैं असली यायावर वही होता है जिसकी कोई तय मंजिल नहीं, तय रास्ता नहीं, जहां मन किया सो गया और जब मन किया आगे सफर पर निकल गया। वर्तमान में लोग सिर्फ यात्राएं ही करते हैं उनमें कोई यायावरी नहीं होती। ये यात्राए ऐसी होती हैं जैसे एक शहर से दूसरे शहर की यात्रा। एक गांव से दूसरे गांव की या किसी शहर-गांव से दूसरे गांव -शहर की।
              यात्रा करना और उस यात्रा वर्णन को लिपिबद्ध करना दोनों कार्य ही श्रमसाध्य हैं। सिर्फ रास्ते पर चलना और भौतिकता का वर्णन करना यात्रा वृतांत नहीं हो सकता। एक सही यात्रा वर्णन वह है जिसे लेखक जीता है, लेखक वहाँ के प्राकृतिक सौंदर्य, समाज, लोगों के परिवेश, भाषा- बोली के साथ साथ अपनी मंजिल और रास्ते का जीवंत वर्णन करता है।
      लेखक देवेन्द्र पाण्डेय जी का एक यात्रा वर्णन 'कण कण केदार' किंडल पर पढने को मिला। यह उनके दो अलग-अलग यात्राओं का संयुक्त संकलन है। पहली यात्रा दिसंबर 2018 की 'चोपता-तुंगनाथ'(उतराखण्ड) की है। यह यात्रा तब की है जब यहाँ बर्फ गिरती है और यह क्षेत्र चारों तरफ से बर्फ से ढका जाता है। - हमारे चारों ओर केवल बर्फ की सफेद चादर ही दिखाई दे रही थी। एक ओर जंगल तो दूसरी ओर बर्फ से ढंकी पर्वत शृंखलाये।
यहाँ की बर्फ और उस पर घूमने का मनोहारी चित्रण लेखक ने किया है।
          लेखक का द्वितीय यात्रा वर्णन केदारनाथ का है। मुख्यतः लेखक ने इसी यात्रा का वर्णन किया है।
लेखक महोदय लिखते है- ऐसा पहली बार हुआ था जब मै बिना किसी गन्तव्य के कहीं निकला हुआ था।
       यह एक सच्चे यायावर की पहचान है। अकेले चले, लोग मिले और कारवां बनता गया। केदरा नाथ की पैदल यात्रा का लेखन ने विस्तृत वर्णन किया है। एक-एक घटना, एक-एक पल को शब्दों में बांध दिया है‌। रास्ते में आने वाले दृश्यों का वर्णन भी किया है।
          रास्ते में आने वाले मंदिर, नदियों आदि का वर्णन भी इस यात्रा के रोमांच में वृद्धि करता है।
मंदाकिनी यहां से रास्ता बनाते हुए बही होगी कि यहां सम्पूर्ण जीवन का नामोनिशान मिटते हुए यु निकल गयी कि उसके अवशेष तक शेष नहीं रहे।
केदारनाथ जल प्रलय का वर्णन पाठक को स्तब्ध कर सकता है।
         किसी यात्रा के दौरान कोई जनश्रुति न मिले यह तो हो ही नहीं सकता, इस यात्रा के दौरान भी कुछ दिलचस्प पढने को मिलेगा। एक उदाहरण देखें-"धारी देवी को चार धाम की रक्षक देवी कहा जाता है, जैसे बनारस में कालभैरव को काशी के कोतवाल कहा जाता है उसी प्रकार इनकी महत्ता भी हैं, इनके बारे में किवदंती है कि देवी की प्रतिमा पर उम्र का प्रभाव दिखाई देता है, किसी समय प्रतिमा पर बच्ची का सा तेज होता है, किसी समय युवती सा तो कभी किसी वृद्धा जैसा।"

        लेखक महोदय सिर्फ रास्ते का वर्णन करने में ज्यादा व्यस्त रहे इस कारण से अन्य घटनाएं/ संवेदनाए लिखने से चूक गये।

        यात्रा वृतान्त में तुंगनाथ मन्दिर का वर्णन ही नहीं है। इस यात्रा वृतांत का जो मुख्य लक्ष्य था उसका वर्णन न होना बहुत अजीब सा लगता है। मंदिर के लिए एक पंक्ति है- मैं मंदिर के समक्ष जा खड़ा हुआ, कपाट बंद थे।
यही गलती केदार नाथ मंदिर के विषय में है। वहाँ भी मन्दिर का वर्णन नहीं मिलता।
        भारत और विशेष कर धार्मिक स्थलों पर असंख्य कहानियाँ, किवदन्तियां बिखरी पड़ी हैं। लेकिन केदरानाथ वर्णन में पाण्डव कथा के अतिरिक्त कुछ रोचक जानकारी नहीं है। एक और रोचक बात थी वहाँ, वह था मन्दिर का चार सौ साल तक बर्फ में दबे रहना। लेखक ने इसका नाम मात्र वर्णन किया है जैसे यह कोई विशेष बात न हो- मंदिर चार सौ साल तक बर्फ में दबा हुआ था, ग्लेशियर का ही हिस्सा बना रहा, आदि शंकराचार्य जी ने मंदिर को खोज निकाला।
        यह एक अच्छी और बहुत अच्छी यात्रा थी। लेखक को धन्यवाद जो उन्होंने इस सौन्दर्य से परिपूर्ण क्षेत्र की यात्रा की, लेकिन वे इसे शब्दों में बांधने में चूक गये। ज्यादातर वर्णन उन्होंने रास्ते का किया है।
         एक बात लेखक ने बहुत अच्छी लिखी है वह है रास्ते का वर्णन, आदि से अंत तक। एक एक कदम का वर्णन है, चाय-पानी, उठने बैठने, चलने -भागने का सब का वर्णन है। अगर आप केदारनाथ पैदल जाना चाहते हैं तो यह रास्ते का वर्णन आपके लिए उपयोगी साबित होगा।
           मैं एक उम्मीद के साथ अपनी बात को विराम देता हूँ, वज है लेखक का आगामी यात्रा वृतांत मात्र भौतिकता का वर्णन न हो वह वहाँ के परिवेश का जीवंत वर्णन हो, ताकि पाठक वहाँ के भौगोलिक वातावरण के साथ-साथ,वहाँ की सभ्यता-संस्कृति को भी समझ सकें।

यात्रा वृतांत- कण कण केदार
लेखक- देवेन्द्र पाण्डेय

पृष्ठ-      121
फॉर्मेट- ebook on kindle
लिंक-    कण कण केेेेदार - देवेन्द्र पाण्डेय

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