Tuesday 5 May 2020

308. अवैध- एम. इकराम फरीदी

अवैध रिश्तों की रक्त गाथा
अवैध- एम. इकराम फरीदी

मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। उसे समाज के नियमों के अन्तर्गत चलना पड़ता है। मनुष्य और पशु में यही एक बड़ा अंंतर है और वह है बौद्धिक क्षमता का। इसी बौद्धिक क्षमता के चलते मनुष्य ने आज प्रगति की राह चला है।
        लेकिन कभी कभी मनुष्य अपने स्वार्थ के चलते अपनी बौद्धिकता का अवैध प्रयोग कर समाज के बनाये नियमों की अवहेलना करना आरम्भ कर देता है। जब वह समाज नियमों के विरुद्ध अवैध कार्य में रत होता है तो वहाँ से कोई न कोई 'अवैध' जैसी कहानी पनप जाती है।
         एम. इकराम फरीदी जी का प्रस्तुत उपन्यास 'अवैध' हमारे समाज में कुछ ऐसे लोगों की कहानी कहता है जो अपनी मर्यादा का उल्लंघन करते हैं, जो निति सम्मत राह की जगह कुराह पर चलते हैं, जो सामाजिक बंधनों, रक्त सम्बन्ध की जगह 'अवैध' सम्बन्धों को महत्व देते हैं।



       फरीदी जी का हर उपन्यास एक नयी कहानी पर आधारित होता है। अधिकांश कहानियाँ समाज के किसी न किसी विसंगति पर आधारित होती है। 'अवैध' उपन्यास भी एक ऐसी ही विसंगति पर आधारित है और यह फरीदी जी का प्रथम इरोटिक उपन्यास भी है। हालांकि आजकल बहुत से लेखक 'इरोटिक' के लिए ही 'इरोटिक' लिखते हैं, लेकिन         प्रस्तुत में कहानी की आवश्यकता के अनुसार ही कुछ ऐसे दृश्य लिखे गये हैं और वह भी एक हद से आगे नहीं बढे।
एक लेखक का सामाजिक दायित्व भी है कि वह अश्लील न लिखे, चाहे वह सत्य घटना और प्रचलित समय का सच भी लिख रहा हो लेकिन वह अपनी कलम‌ को दागदार न करे और उसी बात को किसी विशिष्ट ढंग से कहे।

        जवान खूबसूरत लड़की यदि किसी मर्द को अपने हुस्न के फंदे में फँसाकर रखना चाहे, तो मर्द की क्या बिसात है जो वह मुक्त हो सके।
        उक्त पंक्तियाँ 'अवैध' उपन्यास की हैं और पूरा घटनाक्रम इन्हीं पंक्तियों पर ही बुना गया है।
      कहानी है सनम नामक एक ऐसी कच्ची उम्र की लड़की की जो घर से मिले गलत संस्कारों की वजह से गलत राह पर चल देती है। उसके लिए शारीरिक अय्याशी और धन ही सब कुछ हो जाता है।
         सनम अपने इन सपनों को पूर्ण करने के लिए एक ऐसे शादीशुदा व्यक्ति के साथ 'अवैध' रिश्ते की नींव रखती है जो उस से भी दोगुनी उम्र का होता है। कारण दौलत....
“लेकिन अब मुझे उससे ज्यादा उसकी दौलत से प्यार हो गया है, मुझे लगता है वह मुझ पर खूब दौलत लुटाएगा।"
“इस लालच में कभी मत रहना-मैंने जीवन भर कभी लालच नहीं किया-बस यही गलत है, यहीं से अपराध का जन्म होता है।“
“मैं तो उसके साथ अजीब-अजीब सपने देखने लगी हूँ।"
“क्या?"
“उससे शादी करके उसके घर जाने की, पैसे वाला है, सोच रही हूँ उससे एक फ्लैट ले लूं।"

       जब समाज से, परिवार से अलग छुपकर ऐसे 'अवैध' रिश्तों की नींव रखता है तो तय वह छुपा नहीं रहता। और जब 'सनम और उसके प्रिय' का यह रिश्ता सामने आता है तो एक रक्त गाथा बन जाता है।
       समाज के पनपे ऐसे अवैध सम्बन्धों पर लिखा गया यह अपनी तरह का पहला उपन्यास है। उपन्यास का आरम्भ चाहे बहुत धीमा है लेकिन अंत इतना चौकाता है की पाठक हत्प्रभ सा रह जाता है। हालांकि यह श्रृंखलाबद्ध उपन्यास है और इसके बाकी भाग अभी अप्रकाशित हैं। या यू कहें 'अवैध' उपन्यास तो अभी भूमिका है बाकी महागाथा तो शेष है।
         जहाँ ऐसा लगता था की यह एक सामान्य सी घटना है और एक सामान्य से अंत के साथ खत्म हो जायेगी लेकिन लेखक महोदय ने अंत में इतना अजरच करने वाला घटनाक्रम प्रस्तुत किया है की उपन्यास के पात्र तो पात्र स्वयं पाठक भी चौंक उठता है।
         उपन्यास के पात्रों की बात करें तो सभी पात्र एक ऐसी दलदल में डूबे हुये हैं जिस से बाहर निकलना उनके लिए संभव ही नहीं है।
सनम और सनम की माँ मोना दोनों का रिश्ता 'माँ-बेटी' का न होकर दो मित्रों का है जो 'सबकुछ' परस्पर शेयर कर लेते हैं।
         सनम‌ की दोस्त पारू भी सनम से कम नहीं है। वह भी अपने प्रतिशोध के लिए हद से नीचे गिर जाती है।
श्याम भी एक ऐसा पात्र है जो शारीरिक वासना पूर्ति ले लिए झूठ पर झूठ बोलता है
          पौधीना और धनिया भी ऐसे ही किरदार हैं। हालांकि अभी धनिया का नाम ही आया है स्वयं वह उपस्थित नहीं हुयी लेकिन पौधीना तो पूरा हरामी है।
सभी पात्र उपन्यास में एक दूसरे को 'ओवरटेक' करते नजर आते हैं।
         उपन्यास में उर्दू शब्दावली का प्रयोग बहुत ज्यादा है और उपन्यास की गति भी बहुत धीमी है।‌ कुछ शब्द इतनी बार प्रयुक्त होते हैं की एक खीज सी उत्पन्न होती है। लेखक को उपन्यास की कसावट पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
अगर आप सामाजिक-इरोटिक थ्रिलर पढना पसंद करते हैं तो यह उपन्यास एक बार पढ कर देखें।

उपन्यास के भाग
1. अवैध
2. जुर्म का ओवरटेक
3. अनंत:


उपन्यास- अवैध
लेखक- एम. इकराम फरीदी
प्रकाशन- थ्रिल वर्ल्ड
पृष्ठ-
फॉर्मेट- ebook on kindle

लिंक-     अवैैध- एम. इकराम फरीदी

2 comments:

  1. भाई इकराम फरीदी की कई बुक्स पढ़ी है।रोचकता और मनोरंजन भरपूर होता है। ये भी पढ़ता मगर हार्ड कॉपी का इंतेज़ार है। शुभकामनाओं के साथ।
    जिन मुद्दों पर लोग बात भी नहीं करना चाहते। उनपर उपन्यास लिखना बहुत बड़ा काम है।
    आ टेरोरिस्ट भी ऐसे ही मुद्दे पर लिखी गयी थी।
    हार्डकॉपी का इंतजआर है

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  2. लेख उपन्यास पढ़ने की इच्छा जगाता है। आभार।

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