Tuesday 26 May 2020

321. लाल किला- आचार्य चतुरसेन शास्त्री

मुगल सल्तनत का इतिहास
लाल किला- आचार्य चतुरसेन शास्त्री, उपन्यास

       इतिहास की किताबें पढना मुझे रोचक लगता है। लेकिन इस रोचकता का रोमांच इतिहास की तिथियों, राजाओं की संधियों, वंशावली को याद करने के चक्कर में खत्म हो जाता है। क्योंकि इतिहास तथ्यों के बिना अधूरा है, और तथ्यों कोबयाद रखना थोड़ा मुश्किल काम है।

        मैं तो कभी कभी यह भी भूल जाता है कि 'हुमायूँ पहले था या बाबर, बाबर का पुत्र कौन था, शाहजहाँ और जहांगीर में से बाप कौन और बेटा कौन था?", और उस पर भी अगर वर्ष, संधियाँ, युध्द और वंशावली याद करनी हो तो......।
       अगर इतिहास को सरल तरीके से, रोचकता के साथ प्रस्तुत किया जाये तो हर पाठक दिलचस्प के साथ पढ सकता है, क्योंकि उसे युद्धों और संधियों की तिथियाँ याद रखने में कोई दिलचस्पी न होगी।
      इसी सिलसिले में आचार्य चतुरसेन शास्त्री जी की रचना 'लाल किला' एक पठनीय रचना के रूप में किंडल पर उपलब्ध है। उन्होंने इतिहास को बहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत किया है। हालांकि यह इतिहास लाल किले को आधार बना कर लिखा गया है, जिसमें हुमायूँ से लेकर अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर तक का वर्णन मिलता है, यह मुगल काल का इतिहास है‌।

        उपन्यास में युद्ध, राजनीति, षड्यंत्र के साथ-साथ और भी बहुत से रोचक प्रसंग पढने को मिल जायेंगे।
कुछ उदाहरण देखें
- वह मस्त हाथियों से अपराधियों को कुचलवा दिया करता था, पर कोई-कोई ओहदेदार ऐसे उस्ताद होते थे कि बादशाह को चकमा दे ही देते थे। एक मुकदमे में एक काजी ने बीस हजार रुपये मुद्दई से और तीस हजार मुद्दालह से वसूल कर लिए। मुद्दालह झूठा था। काजी ने बादशाह के सम्मुख तीस हजार रुपये रखकर कहा- ‘‘हुजूर, यह आदमी मुझे रिश्वत देकर इन्साफ से हटाना चाहता है।’’ बादशाह ने काजी की पीठ ठोंकी और वह निहायत मजे से बीस हजार रुपये पचा गया।

- औरंगजेब- उसने गाने-बजाने के विरुद्ध भी हुक्म दिया कि जहां गाने-बजाने की आवाज आए, घुसकर बाजों को तोड़ डालो। इस पर कुछ गवैयों ने मिलकर एक तरकीब की। जब बादशाह जुमे की नमाज को जा रहा था, तब पांच हजार आदमी तीस-पैंतीस जनाजे बनाकर खूब रोते-पीटते, चिल्लाते उधर से निकले।
बादशाह ने देखकर पूछा- ‘‘यह क्या है?’’
तब उन्होंने हाजिर होकर कहा- ‘‘हुजूर, शायरी मर गई है, उसी का जनाजा है।’’
बादशाह ने हुक्म दिया कि उसे इतना गहरा गाड़ो कि फिर न निकल सके। अब उसने रंडियों की शादी करने का हुक्म दिया। शाहजहां के जमाने में उनकी बड़ी वृद्धि हो गई थी। जो रंडी शादी न करती थी, उसे देश-निकाले की सजा थी।


- एक शायर था औरंगजेब के समय उसकी भी एक रचना देख लीजिएगा-
सिर मेरा उस माशूक ने जुदा किया, जो मेरा बहुत दोस्त था, चलो, किस्सा खत्म हुआ, वरना बड़ी सिरदर्दी थी।’

इतिहास सिर्फ मुगलों का ही नहीं बल्कि उन योद्धाओं का भी वर्णित है जिनके डर से मुगल शासकों की नींद हराम हो गयी थी। वह चाहे महाराणा प्रताप, राज सिंह, शिवाजी हो या फिर बंदा बैरागी जैसा कर्मठ योद्धा।
बंदा बैरागी का परिचय मेरे लिए महत्वपूर्ण रहा। जो जितना आध्यात्मिक था उतना बड़ा ही योद्धा।
      बंदा बैरागी/माधोदास/लक्ष्मनदेव-‘‘देश-सेवा सर्वोपरि है, वीरों के लिए भी और साधुओं के लिए भी, फिर अपने तो सिद्धि प्राप्त की है, आप धर्म की रक्षा कीजिए।’’
लेकिन यहाँ भी बंदा को अपने साथियों के कारण मात खानी पड़ी- सुन्दरी ने बन्दा को पत्र लिखा कि तुम्हारी वीरता से हम प्रसन्न हैं। तुम गुरु के बच्चे सेवक हो, लेकिन अब युद्ध बन्द करो, क्योंकि बादशाह तुम्हें जागीर देने को तैयार हैं। ​
बन्दा ने उत्तर दिया- ‘‘मैं वैरागी साधु हूं, गुरु का सिक्ख नहीं हूं। अपने बल से गुरु- पुत्रें का बदला लेने के लिए मैंने युद्ध जय किए हैं। मैं जागीर या दया का भिखारी नहीं हूं।’’

- बंदा बैरागी का बलिदान अविस्मरणीय है।

अब कुछ चर्चा मुहम्मद शाह रंगीले की-
बादशाह मुहम्मद बूढ़ा और सनकी था। कविता करने, गाने- बजाने में उसे कमाल हासिल था। भरे दरबार में अब बड़े- बड़े राजनैतिक मसले हल नहीं होते थे, बल्कि गजलें और शेर पढ़े जाते थे।

मुहम्मद शाह का एक रोचक किस्सा भी पढ लीजिएगा और उम्मीद है यह किस्सा आपको किताब पढने के किए प्रेरित कर देगा। आपको भगवती चरण वर्मा की कहानी 'मुगलों ने सल्तनत बख्श दी' भी याद हो आयेगी।
        - वजीर ने खत पढ़कर सुना दिया। खत में लिखा था कि अगर दो करोड़ रुपये फौरन नहीं दाखिल किये जाएंगे तो दिल्ली की ईंट-से-ईंट बजा दी जाएगी। ​सुनकर बादशाह ने क्रोध नहीं किया। आश्चर्य से उनकी भौंहे चढ़ गयी।
एक अमीर की ओर उन्मुख होकर उन्होंने कहा- ‘‘क्या यह मुमकिन है कि यह शख्स दिल्ली की ईंट- से- ईंट बजा देगा?’’
​अमीर ने अत्यन्त आश्चर्य का भाव प्रकट करके कहा- ‘‘जहांपनाह, यह कतई नामुमकिन है।’’ ​
बादशाह ने फिर एक बार अमीरों पर नजर दौड़ाकर कहा- ‘‘यह अर्जी शराब की सुराही में डुबो दी जाए और एक- एक प्याला इस मूजी के नाम पर पिया जाए।’’

अब नादिरशाह ने भारत पर आक्रमण किया। यह खुरासान का एक गड़रिया था, जिसने अपने बाहुबल से ईरान का राज्य प्राप्त था और अब दिल्ली ।
         मुगल काल का इतिहास वर्णित करती यह एक रोचक रचना है। मुगलों का संघर्ष, आपसी द्वेष, भारतीय राजाओं की वीरता और आपसी टकराव, मुगलों का अन्य विदेशी शासकों के समक्ष नतमस्तक होना और अंत में अंतिम मुगल शासक का पराजय स्वीकार कर लेना आदि बहुत रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया है।
रचना ऐतिहासिक है, पर इतिहास की किताब की तरह नीरस नहीं है।

रचना- लाल किला
लेखक- आचार्य चतुरसेन शास्त्री
प्रकाशन- book cafe
फॉर्मेट- eBook on kindle
लिंक-   लाल किला- आचार्य चतुरसेन शास्त्री

No comments:

Post a Comment

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...