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Friday, 22 May 2020

320. नास्तिकों‌ के देश में- प्रवीण कुमार झा

हाॅलैण्ड की दिलचस्प यात्रा
नास्तिकों के देश में, नीदरलैण्ड- प्रवीण कुमार झा

      प्रवीण कुमार झा पेशे से चिकित्सक हैं। लेकिन इसके साथ-साथ वे यायावर भी हैं। समय समय पर घूमते रहते हैं। हालांकि उनका घूमना कुछ उद्देश्यवश होता है लेकिन इस उद्देश्य के साथ-साथ वे अपनी मनमौजी प्रवृत्ति के चलते कुछ रोचक घटनाओं को भी देख जाते हैं और पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर देते हैं।- दरअसल मैं इस यात्रा में एक शोध की वजह से आया था। मैं गिरमिटिया इतिहास के कुछ अंश तलाश रहा था, जो यहीं कहीं बिखरे पड़े थे।
लेखक प्रवीण झा शहरों और देशों के विचित्र पहलूओं में रुचि रखते हैं। आईसलैंड के भूतों के बाद यह अगला सफर नीदरलैंड के नास्तिकों की तफ़्तीश में है। इस सफर में वह नास्तिकों, गंजेड़ियों और नशेड़ियों से गुजरते वेश्याओं और डच संस्कृति की विचित्रता पर आधी नींद में लिखते नजर आते हैं। किताब का ढाँचा उनकी चिर-परिचित खिलंदड़ शैली में है, और विवरण में सूक्ष्म भाव पिरोए गए हैं। यह एक यात्रा-संस्मरण न होकर एक मन में चल रहा भाष्य है। भिन्न संस्कृतियों के साम्य और द्वंद्व का चित्रण है। इसी कड़ी में उनका सफर एक खोई भारतीयता का सतही शोध भी करता नजर आता है।


पुस्तक ‘भूतों के देश में: आईसलैंड’ की शृंखला रूप में ‘नास्तिकों के देश में: नीदरलैंड’ शीर्षक से लिखी गयी है, लेकिन दोनों की शैली में स्वाभाविक अंतर है। ख़ास कर नीदरलैंड की गांजा संस्कृति और वेश्यावृत्ति पर लेखन नवीनता लिए है। इन विषयों पर अनुभव जीवंत रूप से दर्शाए गए हैं। वहीं दूसरी ओर, नीदरलैंड की नास्तिकता पर एक अलग दृष्टिकोण से विवरण है।

किताब की ख़ासियत यह भी है कि नीदरलैंड के भिन्न-भिन्न शहरों और नहरों से उनकी नाव गुजरती है। वह देश की राजधानी एम्सटरडम में सिमटे नहीं रहते, बल्कि एक देश को भटक-भटक कर टटोलते हैं। और इस भटकाव में लेखक के अपने पूर्वाग्रह और अंतर्द्वंद्व भी जुड़ जाते हैं। लेखक सूफ़ियाना हो चलता है, और बह कर किसी द्वीप पर जा बसता है। वान गॉग की आखिरी तस्वीर में खो जाता है। जब वह कुछ दिन गुजारता है- नास्तिकों के देश में।
( किताब अंश)
         गिरमिटिया (ब्रिटिश काल में गये भारतीय मजदूर) शोध के लिए नीदरलैंड गये। और वहाँ इस शोध के दौरान उन्होंने जो देखा और अनुभव किया और इतने अच्छे तरीके से प्रस्तुत किया है की प्रस्तुत रचना को बार-बार पढने का मन करता है।
       बकहते हैं नीदरलैंड (हाॅलैण्ड) नास्तिकों का देश है पर यस नास्तिका में भी आस्तिकता है।- नास्तिकों के देश सॆ लौटते कुछ यूँ लगा कि आस्था की परिभाषा में लोचा है। गिरजाघर बिक गए लेकिन प्रकृति की रक्षा कर रहे है। वेश्यालय खुल गए लेकिन स्त्री का सम्मान है। गांजा खुले-आम बिक रहा है लेकिन नशाखोड़ी नहीं। इनकी नास्तिकता में छुपी शायद आस्तिकता है।
        इसके अतिरिक्त भी इस यात्रा वर्णन में बहुत कुछ पढने को मिल जायेगा। स्थानीय लोगों से बातचीत, बाॅट पर वेश्यावृत्ति, गांजा पीते लोग और गिरिजाघर में मधुशाला और इससे भी बढकर लेखक का रोचक प्रस्तुतीकरण।

इस किताब को क्यों पढें-
एक तो यह किताब हमें नीदरलैण्ड की जानकारी देती है। यह जानकारी को भौगोलिक या साहित्यिक नहीं है यह तो वह जानकारी है जो गली- मोहल्ले के मोड़ पर, नाई की दुकान पर रोचक तरीके से प्रस्तुत की जाती है।
लेखक की भाषा शैली के कारण इस किताब को पढा जा सकता है।
    एक उदाहरण देखें- गंजेड़ी मानव-योनि में जन्मे पशु हैं; सजीव संरचना में निर्जीव हैं; भावरंजित हृदयों वाले भावहीन हैं; बुद्धि से लबालब अज्ञानी हैं; सौंदर्य की कुरूप प्रतिमा हैं; विजयघोष करते पराजित हैं। उनकी मुस्कुराहटों में मर्म है और उनके अश्रुपूरित नयनों में हास है। गंजेड़ी एक चलते-फिरते विरोधाभास हैं।


किताब लघु आकार की है, पढने में ज्यादा समय नहीं लगेगा।
बाकी आप एक बार पढकर देखें, दिलचस्प लगेगी।

पुस्तक- नास्तिकों के देश में
लेखक- प्रवीण झा
पृष्ठ-      88
फॉर्मेट- eBook on kindle
लिंक-  नास्तिकों के देश में- प्रवीण कुमार झा

2 comments:

  1. प्रवीण जी के लेख रोचक रहते हैं। उनकी यह किताब भी उसी तरह रोचक होगी इसका यकीन है। आभार।

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    Replies
    1. हां यह एक रोचक किताब है।

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