Friday 23 October 2020

393. शतरूपा- यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र'

औरत का घर कहां है...
शतरूपा- यादेवन्द्र शर्मा 'चन्द्र'

'शतरूपा' हिंदी व राजस्थानी के प्रख्यात लेखक यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' का ऐसा उपन्यास है जो पुरुष मानसिकता की दुर्बलताओं को व्यस्त करता है और नारी के संघर्ष और उत्थान को प्रकट करता है। आज नारी विमर्श के बारे में खूब हो-हल्ले हो रहे हैं। यह ऐसा उपन्यास है जो नये जीवन के आयामों के यथार्थ को प्रकट करता है। भाषा सरल और शिल्प शैली रोचक है। - प्रकाशक
शतरूपा उपन्यास स्त्री के दर्द को उकेरती एक मार्मिक रचना है। घर और समाज में विभिन्न दुष्कर परिस्थितियों में निर्वाह करती स्त्री को कई रूपों में जीना पड़ता है।  और ऐसे ही एक घिनौने घर में जी रही थी शतरूपा। 

     लालची सास और शकी मिजाज पति के साथ शतरूपा का जीवन बहुत ही कठिन था। इस दर्द को वह अपनी सखी बन्नो के पास व्यक्त करती है- जब मनुष्य बिना किसी अपराध के दंड भोगता है तब वह उसे पूर्व जन्म के पापों का फल ही मानता है, बन्नों, मेरा पति मुझे चरित्रहीन समझता है। (पृष्ठ-38)      वास्तव में शतरूपा चरित्र ऐसा न था। यह तो उसकी लालची सास द्वारा दिया गया एक दाग था। अच्छे संस्कारों का समर्थन करती शतरूपा सास के तानों और पति की मार को सहन करती है लेकिन जब पति के घर के दरवाजे उसके लिए बंद हो गये और माँ-बाप ने तथाकथित लोकलाज के डर से बेटी को पति का घर अंतिम घर मानने का आदेश दे दिया।
तब
- तब शतरूपा कहां जाती?
- आखिर किसे उसका अपना घर मानती?  
- आखिर औरत किस घर को अपना घर माने? 

'शतरूपा' हमारे समाज के उस घिनौने चेहरे को उजागर करता है जो कई पर्तों के पीछे छुपा हुआ है। जहाँ आदमी तो अय्याश भी हो सकता है लेकिन औरत का उसे हँसना भी सहन नहीं होता।
   वहीं आरती जैसी सास है जो अपने स्वार्थ के लिए अपने बेटे की गृहस्थी में आग लगाने से नहीं चूकती। औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है इस कथन को आरती सत्य साबित करती है।
  मंगल जैसा पति है जो औरत का घर से बाहर निकलना और उसका हँसना भी सहन नहीं कर सकता। वह औरत को बंद घर में देखना पसंद करता है उसके लिए पत्नी जीवन साथी नहीं नौकरानी है।
    प्रस्तुत उपन्यास स्त्री की स्थिति को उजागर करता एक मार्मिक उपन्यास है।
उपन्यास से कुछ रोचक पंक्तियाँ-
- लोकनिंदा में‌ बड़ी शक्ति होती है। उस शक्ति से सामना करना कठिन है। (पृष्ठ-48)
- ईश्वर भी सत्य का सहारा नहीं है। (पृष्ठ-50)
अंत लेखक का कथन-
'शतरूपा' उपन्यास मेरा लघु उपन्यास है। यह उपन्यास नारी विमर्श से संबंधित है। नारी जीवन की विषमताएं, विद्रूपताएं और आंतरिक पीड़ाओं को दिग्दर्शित करने वाला यह उपन्यास नारी संघर्ष और जीवन की वास्तविक स्थितियों को प्रकट करता है। अक्सर जहाँ आज का पुरूष नारी को भले ही दोयम न होने के लिए बड़ी-बड़ी बातें करता हो पर वास्तविकता उनके मंतव्यों के विरुद्ध है। आज स्वयं विश्लेषण करके देखिए। - यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र'

उपन्यास- शतरूपा
लेखक-   यादेवन्द्र शर्मा 'चन्द्र'
पृष्ठ-      96
प्रकाशक- आशा बुक्स, दिल्ली

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