Thursday 8 October 2020

389. गुप्त गोदना- देवकीनंदन खत्री

 एक अधूरी कहानी...

गुप्त गोदना- देवकीनंदन खत्री, उपन्यास

जहाँ तक मेरी जानकारी है हिन्दी में तिलिस्मी साहित्य का आरम्भ देवकीनन्दन खत्री जी के उपन्यासों से ही माना जाता है। इनके लिए तिलिस्म, रहस्य-रोमांच से परिपूर्ण उपन्यास हिन्दी पाठकों के मध्य बहुत प्रसिद्ध रहे हैं और आज भी इनकी मांग बनी हुयी है।

गुप्त गोदना- देवकीनंदन खत्री
    मेरे विद्यालय के पुस्तकालय में देवकीनंदन खत्री जी के कई उपन्यास उपलब्ध हैं, उन में से मैनें 'गुप्तगोदना' पढा, उसी पर हम चर्चा करते हैं।  

    यह एक अर्द्ध ऐतिहासिक रहस्य-रोमांच से परिपूर्ण उपन्यास है। इसमें एक तरफ जहाँ शाहजहाँ के पुत्रों के मध्य सत्ता संघर्ष का चित्रण है वही नायक उदय सिंह और उसके दोस्त रवि दत्त की बहादुरी की कहानी भी है।
     उपन्यास की कहानी मुख्यतः उदय सिंह पर ही केन्द्रित है, और साथ में उसके दोस्त रवि दत्त का चित्रण है।

उपन्यास का आरम्भ उदय सिंह और रवि दत्त से होता है। एक जंगल में दोनों बिछड़ जाते हैं और उदय सिंह अपने मित्र को तकाश करता है। तलाश के पश्चात उसे रवि दत्त एक पेड़ के नीचे बेहोश मिलता है। उदय सिंह जब रवि दत्त के लिए पानी लेकर लौटता है तो वहाँ रवि दत्त की जगह एक नवयौवना को पाता है।
   "सर और मुँह पर पानी पड़ने से ही इसकी बेहोशी जाती रहेगी" यह सोचकर उदय सिंह नदी की तरफ बढा जो वहाँ से लगभग दो सौ कदम दूर होगी। अपनी कमर से चादर खोलकर, खूब तर  किया  और तेजी के साथ चलता हुआ फिर उसी जगह पहुँचा जहां रवि दत्त बेहोश पड़ा हुआ था। बडे़ आश्चर्य की बात थी कि इस दफे उसने रविदत्त को उस पेड़ के नीचे न देखा उसके बदले में एक बहुत ही हसीन और नौजवान औरत पर नजर पड़ी जो रवि दत्त की जगह जमीन के ऊपर बेहोश पड़ी थी।(पृष्ठ-03)
वह औरत कौन थी?
- रवि दत्त कहां गायब हो गया?
- रवि दत्त बेहोश कैसे हुआ?
- उदय सिंह से औरत का क्या संबंध रहा?

ऐसे अनेक प्रश्नों के लिए देवकीनंदन खत्री जी का उपन्यास 'गुप्त गोदना' पढना होगा। 

     उपन्यास का रचना काल सन् - हमारा किस्सा सन् 1006 हिजरी से शुरु होता है। यह वह जमाना था जब हिन्दुस्तान का नामी बादशाह शाहजहाँ कड़ी बिमारी का शिकार होकर महल के अंदर पड़ा हुआ था। उसके मरने की झूठी खबरें चारों तरफ मशहूर हो रही थी, उसके चारों लड़के दाराशिकोह, शुजा, औरंगजेब और मुरादबख्श तख्त सल्तनत पर कब्जा करने की नीयत से तरह-तरह की चालबाजियां कर रहे थे। (पृष्ठ-03,04)
      इस समय में उदय सिंह और रवि दत्त भी इनके संपर्क में आते हैं लेकिन वे अपने उद्देश्य के लिए ही सैनिक छावनियों में जाते हैं।
  वहीं एक और कहानी भी समान्तर चलती है जो की अधूरी ही रह जाती है वह कहानी एक औरत और एक महंत की है। वह कहानी भी बहुत रोचक है।
उदयसिंह और अज्ञात नवयौवना के मिलन की कहानी तो उपन्यास में खत्म हो जाती है लेकिन अभी भी इनसे संबंधित कुछ प्रश्नों के और कुछ अन्य घटनाओं का विवरण अधूरा रह जाता है।
   उपन्यास के सम्पादकीय में इस उपन्यास के अधूरेपन पर चर्चा की गयी है और उसका कारण भी लिखा है- ...उपन्यास में जो गुत्थियां अनसुलझी रह गई हैं, उसका कारण उनका (देवकीनंदन खत्री) का निधन ही रहा है। (उपन्यास अंश)
राजनैतिक षड्यंत्र, प्रेम, जासूसी और तात्कालिक घटनाक्रम पर लिखा गया यह उपन्यास बहुत ही रोचक है।

उपन्यास- गुप्तगोदना
लेखक-    देवकीनन्दन खत्री
प्रकाशक- साहित्यागार, जयपुर
पृष्ठ-          100

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