Tuesday 20 October 2020

392. पागल कातिल- इंस्पेक्टर गिरीश

क्यों हुआ एक कातिल पागल?
पागल कातिल - इंस्पेक्टर गिरीश
इतनी देर में अटैची के ताले टूट गये। कांस्टेबलों ने ढक्कन हटाया और फिर वे दोनों हड़बड़ाकर पीछे हट गये । अटैची में एक नवजात शिशु का शव था। शव भी ऐसा कि बच्चे का सर अलग रखा हुआ था। छोटी छोटी मासूम आखें खुली रह गई थीं और निर्जीव हाथों की मुट्ठियाँ भी मिची हुई थीं। मेहता का समूचा अस्तित्व कपकपा गया, और उसने तुरन्त आदेश दिया...।
पागल कातिल - उपन्यास में से
उपन्यास साहित्य में एक समय ऐसा था जब Ghost लेखन में कैप्टन, मेजर, कर्नल जैसे नाम से लेखन हुआ था। इसी समय सस्पेंश पॉकेट सीरीज के अंतर्गत Ghost लेखक इंस्पेक्टर गिरीश पदार्पण हुआ।'पागल कातिल' कहानी है एक अय्याश युवक अरुण की।
अरुण एक खाते-पीते घराने से था। बी. ए. के अन्तिम वर्ष का छात्र था। घर में नौकर चाकर सब ही कुछ थे और घूमने-फिरने और कालिज आने-जाने के लिए कार भी थी। पिता से न सही मगर माता से अच्छा खासा जेब खर्च मिल जाता था। अब जिस नवयुवक को इतनी ढेर सारी सुविधायें अपने जीवन में उपलब्ध हों और जीवन भी वह जो अभी तक किसी भी प्रकार के जीवन-संघर्ष की परिधि में प्रविष्ट न हुआ हो तो वह नवयुवक जो भी न करे वह थोड़ा है।
     यह तो परिचय हुआ अरुण का। अरुण का काम था काॅलेज जाना और युवतियों को अपने मोहजाल में फंसाकर अपनी वासना पूर्ति करना। जब काॅलेज की लड़कियां उसकी मनोवृत्ति को समझ गयी और उसके जाल में फंसने से रह गयी तो मिस्टर अरुण ने नये-नये ठिकानों पर अपना शिकार खोजना आरम्भ कर दिया।
ऐसे ही एक दिन- अरुण ने जब प्लेटफार्म पर कदम रखा था तब ही उसने उस लड़की को देख लिया था और उस लड़की ने भी एक उचटती सी निगाह अरुण पर डाली थी।
     कुछ समय पश्चात इसी प्लेटफार्म पर अरुण  को एक सूटकेस के साथ गिरफ्तार कर लिया जाता है। क्योंकि उस सूटकेस में एक बच्चे की लाश थी। साक्ष्य अनुसार वह सूटकेस अरुण का था, और कुछ समय पहले दो यात्रियों और दो काॅनस्टेबल के समक्ष अरुण ने यह स्वीकार भी किया था। लेकिन बच्चे की लाश मिलते ही अरुण ने इंकार कर दिया की वह सूटकेस (अटैची) उसका नहीं है।
-   आखिर अरुण अपने कथन से क्यों बदल रहा था?
-    सूटकेस में किसका शव था?
-    मृतक बच्चा कौन था?
-  अरुण को प्लेटफार्म पर मिलने वाली लड़की कौन थी?
-   क्या अरुण ही हत्यारा था?

   यह सब जानने के लिए इंस्पेक्टर गिरीश का उपन्यास 'पागल कातिल' पढना होगा।
    इस केस को सुलझाने का कार्य करते हैं - इंस्पेक्टर वी. के. मेहरा (विनय मेहरा) और जी. आर. पी. सब इंस्पेक्टर मेहता।
     कथानक में आगे दोनों पुलिसकर्मी अरुण से संबंधित लोगों के बयान लेते हैं ताकि अरुण के चरित्र को समझा जा सके। लेकिन अरुण का चरित्र पूर्णतः दागदार निकलता है। अरुण के पिता शहर के प्रसिद्ध सेठ घनश्याम दास तो  यहाँ तक मानते हैं की यह कृत्य उनके बेटे ने ही किया है और उसे सजा मिलनी चाहिए। लेकिन पुलिस पूरे घटनाक्रम का पता लगाना चाहती है। वह बच्चा कौन था, उसकी माता कौन थी, कब और कहां हत्या हुयी, अरुण घर से कहां-कहां गया?
    इस तहकीकात के दौरान दोनों पुलिसकर्मियों को कुछ रहस्य और चौंकाने वाली बाते पता चलती हैं। और उन्हीं बातों को आधार बनाकर दोनों एक सही निर्णय पर पहुँचते हैं और केस को हल करते हैं।।
      उपन्यास में पुलिसकर्मियों की कार्यशैली बहुत अच्छे से चित्रित की गयी है। एक के बाद एक व्यक्ति का बयान और फिर उसी बयान के आधार पर थ्योरी कायम करना फिर उस थ्योरी को परखना और फिर नये व्यक्ति के बयान लेना और फिर थ्योरी बनाना और फिर अपने निष्कर्ष निकालना यह बहुत रोचक और विश्वसनीय प्रतीत होता है। कभी -कभी तो सब इंस्पेक्टर मेहता यह भी कहता है की हमने जो पहले निष्कर्ष निकाले थे वह नये बयान के आधार पर खरे नहीं उतरते। विनय मेहरा का कहना है की पुलिस बयान के आधार पर ही निष्कर्ष निकालकर वास्तविकता का पता लगाती है। और उपन्यास पढने के दौरान यह तथ्य स्पष्ट भी होता है की कैसे बयान लिये जाते हैं और केस फिर एक सार्थक निर्णय लिया जाता है।
    उपन्यास का शीर्षक उपन्यास के साथ पूर्णतः न्याय करता है। और जब पाठक इस शीर्षक की तह तक पहुंचता है तो वह उदासी से घिर जाता है।
प्यार और वासना के जाल में उलझी यह कहानी काफी रोचक है जो आदि से अंत तक पठनीय है।
इंस्पेक्टर गिरीश द्वारा रचित 'पागल कातिल' एक मर्डर मिस्ट्री रचना है। उपन्यास का आधार अरुण से संबंधित लोगों के बयान को बनाया गया है। दोनों पुलिसकर्मी बयानों के माध्यम से ही केस को हल करते हैं, उनका यह तरीका भी काफी रोचक लगता है।
   उपन्यास पठनीय है।
उपन्यास -  पागल कातिल
लेखक -    इंस्पेक्टर गिरीश
प्रकाशक-  सस्पेंश पॉकेट सीरीज, दिल्ली
पृष्ठ-         110

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