Sunday 27 December 2020

406. रंगरलियां- राजवंश

 कहानी मूर्ति चोर गिरोह की

रंगरलिया- राजवंश

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में सामाजिक उपन्यास लेखक की धाराएं एक नाम काफी चर्चित रहा और वह नाम है 'राजवंश'।   
मैंने इन दिनों राजवंश के दो उपन्यास पढे। एक 'सपनों‌ की दीवार' और दूसरा 'रंगरलियां'।
यहाँ हम 'रंगरलियां' उपन्यास के कथानक पर चर्चा करते हैं।
         उपन्यास की कहानी अशोक नामक एक शिक्षित, एथलेटिक्स और बेरोजगार युवक पर केन्द्रित है। जो मजबूरी में एक मूर्तिचोर गिरोह के संपर्क में आ जाता है और वहाँ आने पर उसे पता चलता है कि इसी गिरोह ने उसके भाई की जान ली थी।
   अपने भाई की हत्या का बदला लेने की चाह में अशोक की माँ और बहन की जान भी दांव पर लग जाती है।
  तब अशोक  महारानी जी के संपर्क में आता है। महारानी की एक कीमती मूर्ति चोरी हो गयी थी, जो कभी अशोक ने गिरोह में काम करते वक्त चोरी की थी। 
अशोक के भाई की हत्या क्यों हुयी?
- अशोक का भाई चोर क्यों बना?
- मूर्ति चोर गिरोहकार कौन था?
- अशोक ने मूर्ति क्यों चोरी की?
महारानी और अशोक परस्पर मिले तो क्या परिणाम आया?
- क्या अशोक अपने भाई की हत्या का बदला ले पाया?
- गिरोह अशोक को क्यों मारना चाहता था?
इन प्रश्नों के उत्तर राजवंश जी द्वारा रचित एक छोटे से उपन्यास 'रंगरलियां' में मिलेंगे।  उपन्यास का कलेवर लघु है, पर कहानी के स्तर पर उपन्यास रोचक है। कैसे कोई गिरोह किसी की मजबूरियों का फायदा उठाते हैं, कैसे कोई शिक्षित युवा गलत राह पर चलने को मजबूर हो जाते हैं, यह उपन्यास में वर्णित है।
आर्थिक परेशानियों के चलते अशोक का बड़ा भाई राजन कुछ अपराधिक गतिविधियों में शामिल हो जाता है और एक दिन..
"मिस्टर राजन का वारंट है गिरफ्तारी का।"
"वारंट...।"- अशोक भौचका रह गया।
गीता और निरुपा देवी के चेहरे एकदम सफेद पड़ गये। अशोक ने कहा,-"लेकिन किस अपराध में यह वारंट निकला है?"
"रात शहर के सबसे बड़े जौहरी हरनाम दास की सेफ से पांच लाख रुपये की एक सोने की मूर्ति उठ गयी। हरनाम दास के बंगले में राजन की उपस्थिति का प्रमाण मिला है।"
  यहीं से अशोक के परिवार की जिंदगी बदल जाती है। एथलेटिक्स अशोक अपने परिवार के भरण पोषण कर लिए जब घर से निकलता है तो संयोग से वह मूर्ति चोर गिरोह से जा टकराता है।
गिरोह का एक सदस्य टीकमचंद से अशोक की वार्तालाप देखें
"...लेकिन आप इतनी कीमती मूर्ति खरीद कर करेंगे क्या?"
"मुझे सोने की मूर्तियों से प्रेम है...आप मेरा म्युजियम देखेंगे तो चकित रह जायेंगे।"
     बेरोजगारी और अपने भाई के दुश्मनों से बदला लेने के लिए अशोक इस गिरोह में शामिल हो जाता है। लेकिन यह सब इतना आसान काम न था।
    उपन्यास के सभी पात्र प्रसंगानुसार कहानी के अनुसार अपनी भूमिका से न्याय करते नजर आते हैं। उपन्यास के अंत में दो पात्रों का अकस्मात मिलन कुछ फिल्मी ड्रामा सा प्रतीत होता है।
    उपन्यास बुराई पर अच्छाई की जीत दर्शाता एक आदर्शवादी उपन्यास है।
शीर्षक-
           उपन्यास का शीर्षक देख कर यह लगता है की उपन्यास किसी अय्याश वर्ग की कथा होगा, पर ऐसा नहीं है।
  उपन्यास का शीर्षक उपन्यास की कहानी के अनुकूल नहीं है। शीर्षक और कथानक में कहीं कोई साम्यता नहीं है।
एक समय था जब मशाला फिल्में और उपन्यास खूब चलते थे। तब कुछ परम्परागत घटनाएं दिखाई जाती थी, कुछ नयापन नहीं होता था।
   अपराधी भी अक्सर घटनास्थल पर ऐसे-ऐसे सबूत छोड़ जाते थे जिनकी कल्पना भी अनुचित सी जान पड़ती है।
प्रस्तुत उपन्यास का एक दृश्य देखें।
"रात शहर के सबसे बड़े जौहरी हरनाम दास की सेफ से पांच लाख रुपये की एक सोने की मूर्ति उठ गयी। हरनाम दास के बंगले में राजन की उपस्थिति का प्रमाण मिला है।"
यह प्रमाण होता है राशन कार्ड। रात को चोरी करते वक्त राजन से वहाँ गिर जाता है।
  अब भला वह कैसा चोर होगा जो रात को, चोरी के वक्त राशनकार्ड साथ लेकर घूमता है।

    मुझे एक जिल्द में राजवंश के दो उपन्यास मिले थे। एक 'सपनों‌ की दीवार' द्वितीय 'रंगरलियां' दोनों उपन्यासों का संयुक्त संस्करण सन् 1978 में प्रकाशित हुआ है। एकल संस्करण की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
उपन्यास 'रंगरलियां' शीर्षक के साथ तो न्याय नहीं करता पर कहानी के स्तर पर रोचक है। एक बार पढा जा सकता है।
धन्यवाद।
उपन्यास- रंगरलियां
लेखक-    राजवंश
प्रकाशक- स्टार पॉकेट/स्टार पब्लिकेशन, दिल्ली

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