Tuesday 1 December 2020

399. बदसूरत चेहरे- सुरेन्द्र मोहन पाठक

 कुबड़ों की दहशत
बदसूरत चेहरे- सुरेन्द्र मोहन पाठक, उपन्यास 
सुनील सीरीज-04

इस माह मेरे द्वारा पढे जाने वाला यह पांचवा उपन्यास है। और सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का इस माह पढे जाने वाला यह चौथा उपन्यास है। और प्रस्तुत उपन्यास 'बदसूरत चेहरे' के साथ 'स्वामी विवेकानंद पुस्तकालय' ब्लॉग पर मेरे द्वारा पढी गयी चार सौ रचनाओं पर समीक्षक पूर्ण हो जायेगी।

जहां गत वर्ष 2019 मैं मैंने सौ रचनाएँ पढी और उन पर समीक्षाएं प्रस्तुत की वहीं इस वर्ष 2020 में यह लक्ष्य 150 रचनाओं का है। जिस से मैं मात्र 10 कदम दूर हूँ। यह लक्ष्य दिसंबर 2020 तक पूर्ण जायेगा।
   मेरे ब्लॉग के पाठकों का हार्दिक धन्यवाद मेरी समीक्षाओं को पढते हैं और उन पर अपने विचार व्यक्त करते हैं। हालांकि कुछ रचनाएँ पढने के बाद भी समयाभाव के कारण समीक्षा से वंचित रह जाती हैं।
   अब चर्चा करते हैं सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास 'बदसूरत चेहरे' पर।
      शहर में इन दिनों कुछ रहस्यमय घटनाएं घटित होती हैं। एक रहस्यमय कत्ल और उस कत्ल के पश्चात शहर का कोई धनाढ्य व्यक्ति गायब हो जाता है।
     पुलिस और प्रशासन घटनाओं से बहुत परेशान है और आमजन दहशत में है। लेकिन संयोग से एक कुबड़ा और एक लाश घटना का साक्षी 'ब्लास्ट' का रिपोर्टर सुनील चक्रवर्ती बन गया।
यह रहस्यमयी कत्ल क्या थे?
- शहर से धनाढ्य व्यक्ति क्यों गायब हो जाते थे?
- कुबड़े व्यक्ति का रहस्य क्या था?
- क्या सुनील इस रहस्य को जान पाया?

    इन दहशत भरी घटनाओं‌ को जानने के लिए सुरेन्द्र मोहन पाठक जी का सुनील सीरीज का उपन्यास 'बदसूरत चेहरे' पढें।
   

सुनील का मित्र है जुगल किशोर जिसे सब बंदर ही कहते हैं। लड़कियों और पार्टियों का शौकीन है जुगल किशोर।बंदर मेडिकल काॅलेज का विद्यार्थी था। उसका वास्तविक नाम तो जुगल किशोर था लेकिन वह काॅलेज में भी अपनी मित्र मणडली में बंदर के नाम से प्रसिद्ध था। वह बेहद दुबला पतला तीखे नाक नक्श वाला सुंदर युवक था, आँखें‌ इतनी कमजोर थी कि बिना चश्में के उसे दो फुट पर स्थित वस्तु भी धुंधली दिखाई देती थी और चेहरे पर चश्मा वह लगाता था उसके शीशे और फ्रेम दोनों इतने मोटे थे कि हैरानी होती थी कि उसकी नाजुक सी नाक इतना बोझ संभाल कैसे पाती थी। केवल करोड़पति बाप कि सिफारिस के कारण ही उसे मेडिकल कालेज में प्रवेश मिल पाया था।
        बंदर की एक पार्टी में सुनील भी शामिल था। सुनील पार्टी से हटकर समुद्र के किनारे घूमने चला गया। संयोग से सुनील ने वहाँ एक समुद्र में लाश और एक कुबड़े को देखा। 
"यह...यह!" -बंदर हकलाया- "यह पांचवी हत्या है। इससे पहले भी इसी दशा में चार शरीर मिल चुके हैं। जिनमें से धमनियां और दिल गायब था।"
  सुनील को खूब याद था। पहली चार घटनाओं की रिपोर्ट भी उसी ने 'ब्लास्ट' में दी थी। अंतर केवल इतना था कि पांचवी घटना घटित उसी के सामने हुयी थी। पहली चार घटनाएं भी बिलकुल इसी ढंग से हुयी थी। सबके शरीर में से दिल और दिल से जुड़ी हुई मुख्य-मुख्य रक्त वाहिनी नलिकाये ‌निकाल ली गयी थी। 

    फिर तलाश शुरू होती है खतरनाक कुबडे़ की और साथ ही यह रहस्यमय यथावत रहता है की मृतक के शरीर से दिल और धमनियां क्यों गायब कर ली जाती हैं।
     उपन्यास का मुख्य रहस्य यही है की इन घटनाओं के पीछे कौन है और वह ऐसी हरकते क्यों कर रहा है। सुनील और पुलिस प्रशासन अभी इस रहस्य को सुलझा भी नहीं पाते की उनकी नाक के नीचे से एक और महत्वपूर्ण व्यक्ति गायब हो जाता है। और फिर तलाश आरम्भ होती है गायब व्यक्तियों की, रहस्यमय कुबडों की और लाश से गायब हृदय के कारणों की। पत्रकार सुनील और पुलिस विभाग इस रहस्य से पर्दा हटाकर ही दम लेता है।

      उपन्यास में पात्रों की बात करें तो इसमें पत्रकार सुनील और कुबड़ा डाक्टर प्रमुख पात्र है। इसके अतिरिक्त दोनों के सहायक और कुछ गौण पात्र हैं।
        उपन्यास का एक महत्वपूर्ण पात्र डाक्टर राबर्ट फिच है। जो कुछ ऐसा करना चाहता है किससे मनुष्य की जिंदगी ही बदल सकती है लेकिन उसके प्रयोग जहाँ कुछ लोगो के लिए लाभदायक हैं तो कुछ लोगों के लिए मौत से खिलवाड़ भी है। 
   उपन्यास में सुनील की कुछ कार्यविधि तर्कसंगत नजर नहीं आती। बाकी उपन्यास अच्छा और पठनीय है। 

सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के उपन्यास अतिकाल्पनिक नहीं होते, यथार्थ को छूते हुये और विश्वसनीय घटनाओं से परिपूर्ण होते हैं। वैसे भी सुनील सीरीज के उपन्यास मर्डर मिस्ट्री के लिए जाने जाते हैं। प्रस्तुत उपन्यास पाठक जी के अन्य उपन्यासों से कुछ अलग हटकर है। इस उपन्यास में विज्ञान गल्प का सुंदर प्रयोग किया गया है। ऐसे प्रयोग उपन्यासों में मैगजीन समय में खूब होते थे। 
    'बदसूरत चेहरे' मुझे रोचक और दिलचस्प लगा क्योंकि यह उपन्यास कुछ अलग हटकर है।

उपन्यास- बदसूरत चेहरे
लेखक-     सुरेन्द्र मोहन पाठक
शृंखला-     सुनील सीरीज- 04

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