Sunday 27 December 2020

408. प्रतिशोध- जगदीशकृष्ण जोशी

पचास के दशक का जासूसी उपन्यास
प्रतिशोध- पण्डित जगदीशकृष्ण जोशी

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य की समृद्ध परम्परा में कुछ उपन्यास समय की धूल में लुप्तप्राय से हो गये। और जब जब उस धूल को हटाकर कुछ खोजने का प्रयास किया गया है तो कुछ अनमोल मोती हाथ लगे हैं।
    मेरे इस समीक्षा ब्लॉग के अतिरिक्त, साहित्य संरक्षण ब्लॉग www.sahityadesh.blogspot.com पर ऐसे लेखकों और उपन्यास का वर्णन उपलब्ध है। 
गंगा ग्रंथागार- लखनऊ से प्रकाशित ऐसा ही एक उपन्यास मुझे मिला जो जासूसी उपन्यास साहित्य के आरम्भ के दौर का एक रोचक मर्डर मिस्ट्री युक्त उपन्यास है। 

    पण्डित जगदीशकृष्ण जोशी द्वारा लिखित 'प्रतिशोध' जो सन् 1949 में प्रकाशित हुआ था।

   जयनारायण एक प्रतिष्ठित धनी व्यक्ति था। लेकिन उसे जान का खतरा था, इसलिए उसने अपने घर की पूर्ण सुरक्षा करवा रखी थी लेकिन एक रात वह घर के बाहर सड़क पर मृत पाया गया।
- जयनारायण कौन था?
- जयनारायण को किस से खतरा था?
- उसकी हत्या किसने की?
- वह सड़क पर मृत कैसे पाया गया?

आदि प्रश्नों के लिए आप पण्डित जगदीशकृष्ण जोशी जी का जासूसी उपन्यास 'प्रतिशोध' पढें।

    लेखक महोदय का नाम मेरे लिए इस उपन्यास से पूर्व नितांत अपरिचित था। इस उपन्यास को पढने के पश्चात पता लगा की ऐसे रोचक उपन्यास वक्त ने गुम कर दिये हैं। संयोग से यह उपन्यास मिल गया।
प्रभास लंबे कद का एक सुंदर नवयुवक था। (पृष्ठ-11) प्रभास एक बैंककर्मी है और वह मंजरी नामक युवती से प्रेम करता है। लेकिन उसे मंजरी के व्यवहार पर कुछ आशंका भी है।
   शहर के प्रतिष्ठित धनी जयनारायण एक दिन अपने वकील बनवारी लाल दीक्षित और जासूस गोपलाराम को अपने घर बुलाते हैं।
सर्दी का मौसम है, बर्फ गिर रही है और अंधेरा अपने पांव पसार रहा है। ऐसे मौसम में वकील को जयनारायण की लाश बर्फ से भरी सड़क पर मिलती है।
"क्या मामला है?"- मोटर चालक ने चिल्लाकर प्रश्न किया, और तब उसकी दृष्टि जमीन पर गिरे हुये व्यक्ति पर पड़ी। वह एक बोरे की भांति फैला हुआ था, और पहली निगाह में मनुष्य जैसा नहीं जान‌ पड़ता था। ड्राइवर मोटर से बाहर कूद पड़ा, और जमी हुयी बर्फ पर पैर रखता हुआ उसकी ओर बढा। (पृष्ठ-19)
उसी समय जासूस गोपालराम का आगमन होता है- "...वृद्ध था, और उसका शरीर कुछ झुका हुआ था, और उसके गले में एक बहुत बड़ा पीले रंग का मफलर लिपटा था। उसके जूते खूब बड़े थे, और वह एक छाता लिये था, वह बंद था, यद्यपि उस समय भी खूब बर्फ गिर रही थी। (पृष्ठ-24)
    अब दोनों के लिए यह रहस्य बन जाता है की जयनारायण ने उनको घर क्यों बुलाया था और यहाँ सड़क पर जयनारायण को किस ने मार गिराया।
इन सब रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए वृद्ध जासूस गोपालराम सक्रिय होता है।
वहीं बैक में पांच हजार रूपये के जालसाजी का आरोप प्रभास पर लगता है। जासूस गोलाराम बैंक के जालसाजी केसों की कार्यवाही हेतु स्थायी रूप से नियुक्त होता है।
   जासूस गोपाल को अब हत्यारे का पता लगाना था और रूपयों‌ के जालसाज को पकड़ना था।
 
     अपने अपराधी मस्तिष्क के बल पर गोपालराम अंततः इस रहस्य को सुलझा लेता है।
  उपन्यास के कथानक के विषय में ज्यादा चर्चा करने का अर्थ है की इसकी रसास्वादन का आनंद खोना है। 

जासूस गोपालराम की यह विशेषता है की वह अपराधी को पकड़ने के लिए अपराधी की तरह ही सोचता है। इसलिए वह कहता है की उसका दिमाग अपराधी की तरह है।
मुझे यह उपन्यास रोचक लगा। हां, कहीं-कहीं भाषा शैली अखरती है और कहीं-कहीं यह भी आभास होता है कुछ जगहों पर कुछ पंक्तियों की कमी रह गयी है।
   फिर भी यह सब उपन्यास के कथानक को ज्यादा प्रभावित नहीं करता।

वृद्ध जासूस- उपन्यास साहित्य में विशेष कर जासूसी उपन्यास साहित्य में जासूस हमेशा युवा ही दिखाये जाते हैं। कभी किसी उपन्यासकार ने किसी वृद्ध व्यक्ति को जासूस रूप में प्रस्तुत नहीं किया। इस क्षेत्र में अगर कहीं कोई वृद्ध जासूस दृष्टिगत हुये हैं तो वह सहायक के रूप में ही नजर आये हैं।
वृद्ध जासूस के रूप में एक नाम आता है जनप्रिय लेखक ओमप्रकाश शर्मा जी के 'गोपाली' का और दूसरा नाम जो मैंने पढा/सुना है वह है पण्डित जगदीशकृष्ण जोशी जी के जासूस 'गोपालराम' का।
    अगर किसी पाठक मित्र को इस विषय में कोई अतिरिक्त जानकारी हो तो अवश्य शेयर करें,कमेंटबाॅक्स में कमेंट करें।
उपन्यास पात्र
   यहाँ उपन्यास के पात्रों का संक्षिप्त परिचय दिया जा रहा है।
गोपालराम- जासूस
बलभद्र सिंह- पुलिस इंस्पेक्टर
प्रभासचन्द्र- एक बैंककर्मी युवक
मंजरी-      प्रभास की प्रेयसी
कृष्ण लाल- प्रभास का मित्र
सोहन लाल- प्रभास का पिता
जयनारायण- मृतक
सईद खान - एक पुलिस कर्मी
बनवारी लाल दीक्षित-   एक वकील
रामदीन- वकील का क्लर्क
अन्य पात्र- फिरोजा, जगन्नाथप्रसाद, कासीबाई, अब्दुल हनीफ, पुलिसकर्मी, नौकर आदि।

प्रस्तुत उपन्यास कहानी के स्तर पर मुझे काफी रोचक लगा।
   कहानी पढने योग्य और दिलचस्प है।
उपन्यास- प्रतिशोध
लेखक- पण्डित जगदीशकृष्ण जोशी
प्रकाशक- गंगा ग्रंथागार
सन् - 1949

1 comment:

  1. आप भी कहाँ कहाँ से नगीने ढूँढकर लाते हैं। यह उपन्यास रोचक लग रहा है। पढ़ने को मिला तो जरूर पढूँगा।

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