Friday 4 December 2020

400. होटल में खून- सुरेन्द्र मोहन पाठक

 तलाश एक कातिल की
होटल में खून- सुरेन्द्र मोहन पाठक
सुनील सीरीज-03


लोकप्रिय उपन्यास साहित्य में सुरेन्द्र मोहन पाठक जी को सर्वश्रेष्ठ मर्डर मिस्ट्री लेखक का पद प्राप्त है। उन्होंने सुनील और सुधीर सीरीज के मर्डर मिस्ट्री उपन्यास लिखे हैं।
      होटल में खून पाठक जी द्वारा लिखा गया सुनील सीरीज का एक मर्डर मिस्ट्री उपन्यास है। सुनील चक्रवर्ती 'ब्लास्ट' नामक समाचार पत्र का एक खोजी पत्रकार है। जो पत्रकारिता के माध्यम से कुछ पुलिस केस भी हल करता है।
     अब चर्चा करते हैं प्रस्तुत उपन्यास 'होटल में खून' की। जैसा की शीर्षक से ही स्पष्ट होता है कि एक होटल में खून होता है और उसी के अन्वेषण पर कथा का क्रमिक विकास होता है।
   ढलती हुई रात के साथ होटल ‘ज्यूल बाक्स’ की रंगीनियां भी बढती जा रही थी । होटल का आर्केस्ट्रा वातावरण में पाश्चात्य संगीत की उत्तेजक धुनें प्रवाहित कर रहा था । जवान जोड़े एक दूसरे की बांहों में बांहें फंसाये संगीत की लय पर थिरक रहे थे । जो लोग नृत्य में रूचि नहीं रखते थे, वे डांस हाल के चारों ओर लगी मेजों पर बैठे अपने प्रिय पेय पदार्थों की चुस्कियां ले रहे थे। (उपन्यास अंश)
    ऐसी चर्चा है की इस होटल में गुप्त रूप से अवैध जुआघर संचालित होता है।- सुनील को विश्वस्त सूत्रों से मालूम हुआ था कि ज्यूल बाक्स का मालिक माइक गुप्त रूप से एक जुआघर का संचालन कर रहा था।
     इसी होटल में सुनील की आँखों‌ के सामने एक कत्ल होता है लेकिन लेकिन सुनील के अतिरिक्त कोई और उस कत्ल की गवाही देने को तैयार नहीं। जब सुनील इस कत्ल के अपराधी तक पहुंचने की कोशिश करता है तो वह स्वयं एक खून के अपराध में मुजरिम बना दिया जाता है। 

होटल ज्यूल बाॅक्स में जुआघर चल रहा था?
- क्या सुनील उस जुआघर का पता लगा पाया?
- होटल में किसका खून हुआ?
- होटल में खून किसने और क्यों किया?
- क्या असली अपराधी पकड़ा गया?
- सुनील पर किसके कत्ल का आरोप लगा?

ऐसे अनेक प्रश्नों के उत्तर सुरेन्द्र मोहन पाठक जी द्वारा रचित उपन्यास 'होटल में खून' पढने पर मिलेंगे।

      ब्लास्ट का रिपोर्टर सुनील चक्रवर्ती ज्यूल बाॅक्स होटल में संचालित अवैध जुआघर के सत्यता परखने के लिए होटल में पहुंचता है तो वहाँ सुनील के सामने एक कत्ल होता है। जहाँ पुलिस और होटलकर्मी इस कत्ल को डकैती के दौरान हुयी दुर्घटना मानते हैं वहीं सुनील का मानना है की वह एक कत्ल था।
    होटल का मालिक माइक इस बात से सुनील से खफा हो जाता है। माइक का पार्टनर है रामपाल और माइक की पत्नी है कैरोल। होटल में हुये खून के इल्जाम में सुनील माइक के विरुद्ध तथ्य एकत्र करने की कोशिश करता है और उसी दौरान उस पर एक कत्ल का आरोप लग जाता है।
     अभी पहले कत्ल के अपराधी को पकड़ा नहीं गया और दूसरा कत्ल भी हो गया। इंस्पेक्टर प्रभुयाल एक ईमानदार पुलिस वाला है पर वह सुनील के काम करने के तरीके से उससे चिढता है। प्रभुदयाल सुनील को इस कत्ल अपराध में मुजरिम मानता है। लेकिन सुनील का कहना है की यह उसे फसाने की साजिश है-  मेरी सूरत पर मत जाओ, प्यारे भाई ! इतिहास गवाह है कि यह पहली बार नहीं है जबकि क्राइम ब्रांच के इन्स्पेक्टर प्रभू दयाल ने सुनील कुमार चक्रवर्ती स्पेशल कारसपोन्डेंट ब्लास्ट की सूरत देखकर धोखा खाया है।
अब सुनील 
को स्वयं को निर्दोष साबित करना है और असली कातिल का पता लगाने का कार्य भी है। 

उपन्यास में पात्रों की बात करें तो पात्र संख्या ज्यादा नहीं है। कुछ महत्वपूर्ण पात्रों के साथ-साथ कुछ गौण पात्र भी हैं।

उपन्यास में होटल में खून की घटना का वर्णन समाचार पत्र में प्रकाशित होता है। लेकिन समाचार पत्र में जिस तरह से उपन्यास का घटनाक्रम दर्शाया गया है उस तरह से समाचार नहीं लिखा जाता। मैं स्वयं पत्रकारिता में सैद्धांतिक और व्यवहारिक कार्य कर चुका हूँ। इसलिए यह मुझे अजीब सा लगा।

प्रस्तुत उपन्यास मध्य स्तर का एक रोचक उपन्यास है। घटनाक्रम छोटा है लेकिन तेज रफ्तार है। उपन्यास एक बार पढा जा सकता है। पाठक को कहीं से निराश नहीं करेगा।
उपन्यास - होटल में खून
लेखक - सुरेन्द्र मोहन पाठक
प्रकाशन वर्ष- 1965
किंडल लिंक- 

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