Monday 27 July 2020

357. दस बजकर दस मिनट- अनिल गर्ग

जासूस अनुज का कारनामा
दस बजकर दस मिनट- अनिल गर्ग

दिल्ली निवासी अनिल गर्ग जी मर्डर मिस्ट्री लिखने में सिद्धहस्त नजर आते हैं। उनकी अभी तक की रचनाएं किंडल पर eBook के रूप में ही उपलब्ध हैं। मेरे द्वारा पढे जाने वाला यह इनका द्वितीय उपन्यास है इससे पूर्व इनका उपन्यास 'मुर्दे की जान खतरे में' में पढा था। दोनों उपन्यास ही मुझे रूचिकर लगे।
       अब चर्चा करते हैं 'दस बजकर दस मिनट' उपन्यास की। इस उपन्यास का आरम्भ एक मर्डर से होता है और यह भी संयोग था की जहाँ यह कत्ल होता है वहीं पर अपना उपन्यास नायक जासूस अनुज भी उपस्थित था। लेकिन अनुज ने कभी कल्पना भी न की थी अपने शहर से सैकड़ों किलोमीटर दूर इस कत्ल का संबंध उसके शहर से होगा और उसकी इंवेस्टीगेशन भी उसे करनी होगी। 

        दिल्ली का घनी आबादी वाला कृष्णानगर का इलाका। इसी इलाके में भल्ला ग्रुप के मालिक सुदर्शन भल्ला अपने भरे पूरे परिवार के साथ रहते थे। परिवार में सुदर्शन भल्ला की धर्म पत्नी विमला देवी, उनके तीन सुपुत्र और दो पुत्रियाँ और उनके दो बड़े लड़कों की पत्नियां उस कृष्णा नगर की कोठी में रहते हैं। सुदर्शन भल्ला का व्यापार देश ही नहीं विदेश तक फैला था। .........भल्ला साहब के बड़े लड़के का नाम था गुलशन भल्ला और उसकी पत्नी का नाम था वैशाली। उनके दूसरे लड़के का नाम था अखिल भल्ला और उसकी पत्नी का नाम था कंचन और तीसरा लड़का था मानव।
मानव की लाश दिल्ली से लगभग 1100 किलोमीटर दूर भरूच नाम के उस छोटे से शहर की रेल पटरियों पर पड़ी थी।
       जासूस अनुज मानव के कत्ल का अन्वेषण करता है और अभी वह एक कत्ल की कड़ी को भी खोल नहीं पाता की यह कत्ल का सिलसिला आगे बढ जाता है। लेकिन इस बार कत्ल दिल्ली में हुआ, कभी प्रत्यक्ष और कभी अप्रत्यक्ष रूप से अनुज और उसके सहयोगी इस कत्ल के गवाह थे।
ये एक ऐसा केस था जिसकी जड़े गुजरात से लेकर दिल्ली के कृष्णा नगर और पहाड़गंज थाने तक फैली थी। और वारदात इतनी तेजी से घट रही थी कि हमें (अनुज और सहयोगी) कुछ करने का मौका नहीं मिल रहा था।
      जहाँ अनुज इन रहस्यमयी हत्याओं से परेशान है वहीं भल्ला साहब का परिवार भी अपनी सुरक्षा के लिए ईश्वर की शरण में है।
        ये एक के बाद एक मुसीबत हमारे घर में ही क्यों आ रही है?, हे भगवान मम्मी पापा की रक्षा करना।"- कंचन ने हाथ जोडकर भगवान से प्रार्थना की।
      वहीं भल्ला साहब भी जल्दी से जल्दी हत्यारे को गिरफ्तार देखना चाहते हैं- "मैं बस अपने बेटे के हत्यारे को फांसी पर चढते हुए देखना चाहता हूँ। मैं देखना चाहता हूँ कि ऐसा कौन है वो, जिसने मेरे बेटे का ये हाल किया?"-
       यह एक उलझी हुयी मर्डर मिस्ट्री है। जहाँ एक के बाद कत्ल होते हैं और कत्ल भी जासूस अनुज की आंखों के सामने हो जाता है। एक दक्ष जासूस भी समझ नहीं पाता की आखिर इस परिवार के पीछे कौन लगा है।
     कहानी बहुत रोचक और घुमावदार है। वर्तमान घटनाक्रम से लेकर अतीत की जड़ों तक फैली एक हैरत जनक कहानी है जो किसी भी पाठक को सम्मोहित कर सकती है।
        उपन्यास का कलेवर लघु है, इसलिए संवाद की संभावनाएँ कम हो जाती हैं लेकिन फिर भी स्मरणीय कथन यहाँ प्रस्तुत है।- इस दुनिया में एक मौत ही ऐसी शै है जिससे आजतक कोई धनवान कोई राजा, कोई महाराज नहीं जीत सका।
        प्रस्तुत मर्डर मिस्ट्री आधारित एक रोचक उपन्यास है। उपन्यास आरम्भ से ही पाठक को अपनी तरफ आकृष्ट कर लेता है और पाठक एक सम्मोहन में चलते उपन्यास में खो जाता है।
लघु, रोचक और पठनीय रचना।
उपन्यास- दस बजकर दस मिनट
लेखक- ‌  अनिल गर्ग
फार्मेट-   eBook on kindle

Kindleलिंक- दस बजकर दस मिनट- अनिल गर्ग

2 comments:

  1. उपन्यास रोचक लग रहा है। जल्द ही पढ़ना पड़ेगा। आभार।

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  2. इस उपन्यास के बारे में काफी सुना है. आपकी समीक्षा ने उत्सुकता बढ़ा दी. जल्द ही इसे पढ़कर देखूंगा. रोमांचक मर्डर मिस्ट्री बहुत अच्छी लगती हैं, जिनमें अंत तक हत्यारे का अंदाजा लगाना मुश्किल होता है.

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