Sunday 26 July 2020

356. आखरी गोली- अकरम इलाहाबादी

खान-बाले सीरीज का रोचक कारनामा
आखरी गोली- अकरम इलाहाबादी

अकरम इलाहाबादी अपने समय के प्रसिद्ध उपन्यासकार रहे हैं। ये मूलतः उर्दू के लेखक थे, हालांकि इनकी प्रसिद्धि हिन्दी में अनुवादित उपन्यासों के कारण ज्यादा रही है।
यह कहानी है सार्जेंट बाले के दोस्त शौकत की। शौकत एक हास्य किस्म का व्यक्ति है। एक यात्रा के दौरान उसके साथ बहुत अजीब घटित होता है।
        हालांकि मस्तमिजाज का शौकत इन बातों को गंभीरता से न लेने वाला शख्स है। लेकिन जब एक कत्ल का इल्जाम उसके सिर पर आया तो वह स्वयं हैरान रह गया की आखिर कौन उसका दुश्मन है जो उसके साथ खेल खेल रहा है।

शौकत के बुलावे पर सार्जेंट बाले इस केस को हल करता है।
- शौकत के रूपये कहां गायब हुये?
- किसके कत्ल का आरोप शौकत पर लगा?
- शौकत के पीछे कौन लोग थे?
- खान-बाले ने केस कैसे हल किया?

इन सब प्रश्नों के उत्तर तो अकरम इलाहाबादी के उपन्यास ' आखरी गोली पढने पर ही मिलेंगे।
    ठेकेदारी के सिलसिले में शौकत इस समय काशी एक्सप्रेस के एक फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहा था। उसके साथ उसकी सेक्रेटरी जोहरा भी थी। इसी यात्रा के दौरान उसके तीन लाख रूपये गायब हो गये। मेरा वह सूटकेस गायब हो गया है, जिसमें तीन‌ लाख रूपये थे। 
        शौकत प्रसन्न हृदय का व्यक्ति है। इसलिए वह इन बातों की ज्यादा चिंता नहीं करता लेकिन एक बार फिर यही घटना उसके साथ पुनः घटित होती है और इस बार पुलिस उसे ही अपराधी मान लेती है।
         जहां तक में मियां शौकत साहब का संबंध है। मैं उन्हें मुंबई से ही जानता हूँ। वह काफी प्रभावशाली और साहब हैसियत लोगों में हैं और मैं नहीं समझता कि कोई ऐसी हरकत करेंगे। दो चार लाख उनके लिए कुछ बहुत नहीं है।"- बाले ने एक जर्नलिस्ट की हैसियत से शौकत की वकालत की।
          लेकिन मुसीबत थी की शौकत का पीछा छोड़ने को तैयार न थी। शौकत एक कत्ल के केस में पकड़ा गया।
सार्जेंट बाले इस केस का अन्वेषण करता है और सत्य का पता लगाता है। उपन्यास में शौकत मुख्य भूमिका में है, सार्जेंट बाले का किरदार दमदार जासूसी की तरह है, खान का कारण किरदार बहुत कम है।
         उपन्यास में कहानी मध्य स्तर की है लेकिन कहीं कहीं हास्य रंग अच्छे हैं। विशेष कर प्रिंस नरसिंह गढ ला कारण किरदार बहुत रोचक है और इसका स्वभाव भी।
पत्रकार के लिए की गयी एक टिप्पणी मुझे बहुत रूचिकर लगी। आप भी देखें-
"....वह किसी अखबार का रिपोर्टर है और अखबारों के रिपोर्टर सी.आई. डी. से भी खतरनाक होते हैं।" 

'आखरी गोली' खान-बाले शृंखला का एक मध्यम स्तर का उपन्यास है। हालांकि उस दौर में ऐसे उपन्यास प्रचलन में थे।
अकरम इलाहाबादी के नाम पर उपन्यास एक बार पढा जा सकता है।
उपन्यास- आखरी गोली
लेखक- अकरम‌ इलाहाबादी
प्रकाशक- वीनस प्रकाशन, गफ्फार मार्केट, नई दिल्ली

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