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Monday, 20 April 2020

298. मुर्दे की जान खतरे में- अनिल गर्ग

जासूस अनुज का कारनामा
मुर्दे की जान खतरे में- अनिल गर्ग, मर्डर मिस्ट्री उपन्यास

लोकप्रिय उपन्यास साहित्य के अन्तर्गत अपराध पर बहुत रोचक कहानियाँ लिखी गयी हैं। जिसमें मर्डर मिस्ट्री का एक अलग ही स्थान है।
      प्रस्तुत उपन्यास भी एक मर्डर मिस्ट्री पर आधारित है और लेखक अनिल गर्ग जी का मेरे द्वारा पढा जाने वाला यह प्रथम उपन्यास है। किंडल पर लेखक के और भी उपन्यास उपलब्ध हैं।
      शहर के प्रसिद्ध व्यसायी बंसल के कत्ल से उपन्यास का आरम्भ होता है। - जिन बंसल साहब का क़त्ल हुआ था, उनका पूरा नाम अशोक बंसल था। दिल्ली शहर की नामीगिरामी हस्तियों में उनका नाम शुमार होता था। काफी बड़े उद्योगपति थे। मैंने सुना था कि कई स्कूल भी उनके दिल्ली जैसे शहर में चलते थे। (उपन्यास अंश)
पुलिस को शक सभी पर है पर किसी निर्णय तक नहीं पहुँच पाती तब उपन्यास में प्राइवेट डिटेक्टिव अनुज का प्रवेश होता है।

     "मै अनुज! एक प्राइवेट डिटेक्टिव हूँ। मै जासूसी के उस दुर्लभ धंधे से ताल्लुक रखता हूँ जो भारत में दुर्लभ ही पाया जाता है। हमारे धंधे को कुछ चौहान जैसे पुलिसिये अपने काम।में रुकावट मानते है जबकि कुछ शर्मा जी जैसे लोग हमारे धंधे की कद्र करते है। एक बात और मै उस शक,धोखा,तलाक, पीछा वाली कैटगिरी का जासूस नही हूँ । आपका सेवक सिर्फ कत्ल जैसे जघन्य केस को ही सॉल्व करने में ज्यादा इंटरेस्ट रखता है।"
        अनुज अभी किसी निर्णय पर पहुँच भी नहीं पाया की एक के बाद एक कत्ल होने आरम्भ हो गये। -एक ही हफ्ते में एक ही परिवार के....लोगों की मौत ! किसी बड़ी साजिश की और इशारा कर रही थी।
आखिर वह साजिश क्या थी?
इसी साजिश को पता लगाने के लिए जासूस अनुज उपस्थित था, लेकिन उसके हाथ भी कुछ नहीं आ रहा था।
-आखिर कत्ल क्यों हो रहे थे?
- कातिल कौन था?

इन प्रश्नों के उत्तर इस रोचक उपन्यास पढने पर ही मिलेंगे।
लेखक ने एक अच्छी कहानी का चुनाव किया है और उसे बहुत अच्छे तरीके से प्रस्तुत भी किया है। कहानी का प्रवाह अच्छा है पाठक के लिए रहस्य यथावत रहता है।


उपन्यास के पात्र
अनुज - डिटेक्टिव
रागिनी- अनुज की सेक्रेटरी
अशोक बसंल- दिल्ली के प्रसिद्ध व्यवसायी
सोनिया- अशोक बंसल की पत्नी
नेहा- अशोक की पुत्री
राजीव बंसल -‌अशोक का पुत्र
सौम्या- राजीव की पत्नी
नौकर- राधा, सुरेश, रामु, कन्हैया
चपरासी- प्यारे लाल, राकेश
शर्मा- इंस्पेक्टर
चौहान- सब इंस्पेक्टर
अभिनव- एक वकील
मेघना- बंसल की एक कर्मचारी
विवेक- एक पात्र

उपन्यास की एक रोचक पंक्ति प्रस्तुत है-
जहां पैसा होता है वहां जवानी भी बुढ़ापे के पैर दबाती है।
      उपन्यास में सुरेन्द्र मोहन पाठक जी के कारण किरदार सुधीर की झलक मिलती है। लेखक के पास जब अच्छी कहानी है तो उसे अपने पात्रों को अपने अंदाज में‌ लिखना चाहिए।
डिटेक्टिव अनुज का व्यवहार थोड़ा अजीब सा है वह श्मशान घाट के दौरान गममीन परिस्थितियों में अपनी जासूसी झाडता नजर आता है।
उपन्यास की महिला पात्र सभी हवस के मारे दिखाये गये हैं और वह भी उस रात को जब दिन में कत्ल हुआ है।
लेखक को इन विसंगतियों से बचना चाहिए था।

   उपन्यास का शीर्षक 'मुर्दे की जान खतरे में' तर्क संगत नहीं है।

      मर्डर मिस्ट्री युक्त यह उपन्यास रोचक और घुमावदार है। उपन्यास के अंत से पूर्व तक यह रहस्य यथावत रहता की कातिल कौन।
एक रोचक मर्डर मिस्ट्री जो पठनीय है।

उपन्यास- मुर्दे की जान खतरे में
लेखक- अनिल गर्ग
फाॅर्मेट- ebook on kindle
पृष्ठ- 100+
किंडल लिंक- मुर्दे की जान खतरे में

1 comment:

  1. जी यह उपन्यास मैने प्रतिलिपि पर पढ़ी थी।
    आपकी अधिकतर बातों से सहमत हूँ।
    अनिल गर्ग जी की अन्य कुछ कहानियो मे भी औरते थोड़ी बहुत हवस की प्यासी सी होती है। उनके पाठको को यह सब पसंद है शायद।

    उनकी लेखनी अच्छी है, मगर काफी हद तक SMP से प्रभावित लगती है। थोड़ी कोशिश करेंगे वह तो खुदका नया स्टाइल बना सकते है।

    रहस्य की बात करूँ तो मुझे अंदाज़ा हो गया था कातिल के बारे मे। अनिल साहब एक सा फॉर्मूला ही प्रयोग करते है।

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