Wednesday 3 June 2020

327. अपना पराया- कुशवाहा कांत

एक जमींदार के अत्याचार की कथा
अपना पराया- कुशवाहा कांत

धन के बल पर अक्सर मनुष्य उच्छृंखल हो जाता है। उसके लिए संबंध इतने महत्वपूर्ण नहीं रह जाते जाते जितना की वह धन को महत्वपूर्ण देने लग जाता है।
समाज सामाजिक संबंधों का समूह है और यह संबंध विश्वास और प्रेम पर आधारित हैं। लेकिन कुछ लोगों धन और ताकत को ही सबकुछ मानकर चलते हैं उनके लिए बाकी सब कुछ गौण हो जाता है। इन्हीं संबंधों पर आधारित है 'अपना-पराया'.
        'अपना -पराया' कुशवाहा कांत जी द्वारा लिखा गया एक सामाजिक उपन्यास है जो समाज की कुछ गलत बातों का विरोध करता है। अकसर यह भी देखा गया है समाज की गलत बातों का विरोध हमेशा निर्धन वर्ग ने ही क्या है। यहाँ भी समाज के धनी वर्ग का प्रतिनिधित्व करने वाले जमींदार साहब स्वयं गलत होते भी गलत का विरोध नहीं करते।

       दीपनारायण ठाकुर साहब दाढीराम गांव के जमींदार थे। दाढीराम मिर्जापुर शहर से चौदह मील पूर्व की ओर जंगलों और पहाड़ों से घिरा हुआ एक गांव है। आसपास के सभी गांव ठाकुर साहब के ही हैं। ठाकुर साहब का व्यवहार अपने आसामियों से अत्यंत निर्मम था। सभी डर से कांपते रहते थे। जिस समय ठाकुर साहब की सवारी आने लगती, उस समय कोई भी उनके सामने पड़ने का साहस न करता था। ठाकुर साहब बड़े ही क्रोधी एवं जिद्दी स्वभाव के थे। (पृष्ठ-09) 
      यह उपन्यास मूलतः जमींदार दीपनारायण पर ही केन्द्रित है। जिसमें वैदराज, आलोक, राज, भीखम, शास्री जी और जैकरन जैसे लोग सहायक हैं।
      ठाकुर साहब जहाँ निर्मम व्यवहार के हैं वहीं उनका पुत्र सहृदय है। युवराज का नाम ठाकुर आलोक नारायण सिंह था। ठाकुर दीप नारायण का एकमात्र पुत्र था वह। पिता और पुत्र के विचारों में जमीन-आसमान का अंतर था।
यही विचार धारा कभी-कभी दोनों को एक दूसरे के आमने-सामने खड़ा कर देती है।
     वहीं रामरक्षाशास्त्री जैसे लोग हैं‌ जो धर्म‌ की रक्षा के लिए कठोर निर्णय लेते हैं लेकिन बलशाली ले सामने वह भी लाचार हैं। लेकिन जैकरन जैसे गरीब पर मानो सब धर्म टिका है- मैं गरीब हूँ, पण्डित जी"- जैकरन हाथ जोड़कर बोला-"भला इतना भारी प्रायश्चित्त कैसे करूंगा?" (पृष्ठ-54)
      यही हाल ठाकुर साहब का है धनहीन पर हर नियम लागू और जब स्वयं की वही स्थिति आती है तो सब नियम-बंधन टूट जाते हैं।
     भीखम चौधरी जैसे लोग भी इस समाज में है जो हर अत्याचार का सामना धीरता से करते हैं लेकिन वहीं वैदराज जैसे लोग भी शामिल है जो समय आने पर वह चोट मारते हैं सामने वाला तिलमिलाने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं कर सकता-
      सेहटा गांव में रहने वाले वैदराज बदबद का नाम दूर दूर तक प्रसिद्ध था। वे जड़ी-बूटियों के अच्छे जानकार थे। उनके दरवाजे पर दस बीस रोगी सदा बैठे रहते थे। ...वैदराज का शरीर मोटा और थुलथुल था। मुँह पर सदैव मुस्कान बिखरी रहती थी। (पृष्ठ-11)
       आलोक और राज दो महत्वपूर्ण पात्र है उपन्यास के जो देशरक्षार्थ सर्वस्व त्यागने को तैयार हैं। पता नहीं स्वतंत्रता की आग उस छोकरे के दिमाग में कहां से प्रवेश कर गयी। (पृष्ठ-18)
वहीं घटा जैसी लड़की भी है जो प्रेम के लिए सर्वस्व त्यागने को तैयार है।- जवानी के दिन तूफान के होते हैं। (पृष्ठ-62)

      उपन्यास में देशप्रेम, धर्म के नाम पर अत्याचार, दोहरा व्यक्तित्व, जातिगत भेदभाव, दैहिक प्रेम आदि का बहुत अच्छे से चित्रण किया गया है।

  आलोक और राज का 'समरुपता' का चित्रण अच्छी तरह से नहीं हो पाया। यह एक महत्वपूर्ण बिंदु था लेकिन लेखक इसे अच्छी तरह से नहीं उभार सके।
      उपन्यास अपनी मूल कथा से बहुत से भटकाव लिये हुये हैं। हां, उपन्यास को कहानी की दृष्टि से पढने पर निराशा हाथ लगेगी लेकिन समाज में व्याप्त गलत प्रथाओं, जमींदारों के शोषण, धर्म अत्याचार आदि विसंगतियों को देखना हो तो उपन्यास में ऐसी बहुत सी घटनाएं है जो आँखें खोल देने के लिए पर्याप्त है।
- ठाकुर साहब जमींदार वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं और गरीब वर्ग पर अत्याचार।
- पण्डित रामरक्षा धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके नियम अमीर-गरीब के लिए अलग-अलग हैं।
- वैदराज- सामानता के पक्षधर हैं।
- भिखम चौधरी- शोषित वर्ग के प्रतीक हैं।
- आलोक और राज- क्रांति, देशप्रेम के समर्थक हैं।

      ‌धन, धर्म और ताकत के दम पर समाज पर अधिकार जमाने वाले लोगों को केन्द्रित कर लिखा गया 'अपना-पराया' एक रोचक-सामाजिक उपन्यास है।
हालांकि उपन्यास में कुछ कमियां है, पर समाज को समझने की दृष्टि से उपन्यास काफी उपयोगी है।

उपन्यास- अपना पराया 

लेखक-   कुशवाहा कांत
प्रकाशक- डायमंड पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 151

1 comment:

  1. बहुत शानदार उपन्यास। कुशवाहा कांत हिंदी के जाने माने लेखक थे। आज भी लोग उनके उपन्यास ढूंढ ढूंढकर पढ़ते हैं। समाज और जीवन का यथार्थ चित्रण उनके उपन्यासों में मिलता है।

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