Monday 1 June 2020

325. अकेला- कुशवाहा कांत

एक अकेला शहर में...
अकेला- कुशवाहा कांत


 कुशवाहा कांत मेरे प्रिय लेखकों में से एक हैं। कुशवाहा कांत मुझे इसलिए प्रिय हैं कि इनकी लेखन शैली अपने समकालीन लेखकों से अलग श्रेणी की रही है। इनके उपन्यास लोकप्रिय साहित्य की श्रेणी के होने के बाद भी भाषा शैली और प्रस्तुतीकरण के आधार पर गंभीर साहित्य को स्पर्श करते नजर आते हैं।
इनके कलम से निकली 'लाल रेखा', 'आहूति' जैसे कालजयी रचनाएँ आज भी पाठकवर्ग को सम्मोहित करती हैं।
सन् 2020 के जून माह में मैं कुशवाहा कांत के उपन्यास ही पढूंगा। कुशवाहा कांत मे 35 उपन्यास लिखे हैं जिनमें से लगभग बीस मेरे पास हैं। कुशवाहा कांत के अतिरिक्त इनकी पत्नी गीतारानी कुशवाहा, भाई जयंत कुशवाहा और भतीजे सजल कुशवाहा ने भी उपन्यास लेखन किया है। मेरे विचार से एक ही परिवार के चार सदस्य उपन्यास लेखन में अन्यत्र मिलना दुर्लभ है।
कुशवाहा कात के उपन्यास पढन में जो प्रथम उपन्यास आरम्भ किया वह है एक सामाजिक उपन्यास 'अकेला।'


"अकेला हूँ बाबूजी।"
रिक्शेवाले के इस कथन‌ में मार्मिक वेदना अन्तर्निहित थी, उसे बाबूजी न समझ सके। (पृष्ठ-प्रथम, प्रथम पंक्ति)
यह कहानी है विकल नामक एक नौजवान की जो परिस्थितियों से लाचार और हार मानकर सब कुछ छोड़ कर एक 'बनारस' चला आता है। यहाँ उसकी मुलाकात होती है अफजल से। जहाँ विकल एक स्वच्छ हृदय का व्यक्ति लेकिन वह जिस व्यक्ति के साथ वह उतना ही खतरनाक है- "हुजूर मैं अफजल हूँ, जिसके नाम से बनारस कांपता है।" (पृष्ठ-48) 


          मिर्जापुर के सेठ रायबहादुर निहालचंद अपनी पारिवारिक परिस्थितियों के चलते एक षड्यंत्र में फंस जाते हैं।
        रसना और पण्डित दो ऐसे पात्र हैं जो अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए किसी भी हद तक गिर जाने को तैयार हैं।
अनूप कुमार और कांता दोनों प्रेम के अभिलाषी पक्षी हैं लेकिन परिस्थितियों को कुछ और ही स्वीकार था।
कुछ परिस्थितियां बदलती हैं और सब पात्र एक-एक कर बनारस पहुंचते हैं और एक दूसरे के संपर्क में आते हैं और कहानी आगे बढती है और अपने अंजाम को प्राप्त होती है।

      



          'अकेला' चाहे विकल के व्याकुल हृदय की कहानी है, पर सत्य यह है कि यह हर एक पात्र के प्रेम, विश्वासघात, त्याग और प्रतिशोध की कहानी है। हर एक मनुष्य के मन में किसी न किसी के प्रति प्रेम अवश्य होता है लेकिन जब यह प्रेम अपनी मंजिल को प्राप्त न कर विश्वासघात में बदल जाता है तो या तो वह त्याग करता है या फिर प्रतिशोध पर उतर आता है।
          'अकेला' उपन्यास का हर एक पात्र कहीं न कहीं प्यार में बंधा है। किसी को वह प्यार मिल गया और किसी को न मिला। वह प्यार चाहे विकल के प्रति अफजल का हो, गुलाब का हो, कांता का हो या फिर सेठ रायबहादुर निहालचंद का हो।
       इधर प्यार कांता का प्रेम है वह अनूप और विकल के मध्य असमंजस की स्थिति पैदा करता है। रसना का प्यार भी प्यार की हद से आगे वासना के क्षेत्र में प्रवेश कर जाता है।
'अकेला' का एक एक पात्र प्यार के क्षेत्र में स्वयं को अकेला ही अनुभव करता है, इसलिए तो विकल कांता को कहता है- "गरीब केवल स्नेह और सहानुभूति का अभिलाषी है।" (पृष्ठ-122)

         'अकेला' एक मार्मिक सामाजिक रचना है, लेकिन सामाजिक के साथ-साथ थ्रिलर का भी पुट शामिल है। यही थ्रिलर उपन्यास को रोमांच प्रदान करता है। यह उपन्यास सामाजिक और जासूसी दोनों श्रेणी के पाठकों की उम्मीद पर खरा उतरती है। यह उस दौर का उपन्यास है जब दुखांत उपन्यासों का समय था।
कुशवाहा कांत की कलम से निकली यह एक पठनीय और भावुक रचना है।

उपन्यास- अकेला
लेखक- कुशवाहा कांत
प्रकाशक- डायमंड पॉकेट बुक्स
पृष्ठ- 149

कुशवाहा कांत, जयंत कुशवाहा, सजल कुशवाहा कांत के कुछ उपन्यास

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