काल कलंक - साबिर खान पठान
#हाॅरर_उपन्यास
अतीत के परदे को संभलकर हटाना चाहिए क्योंकि कभी-कभी जिसे हम कालिख समझ रहे होते हैं, वो असल में एक दीवार होती है, वर्तमान और अतीत के बीच।
वर्तमान में झांकता अतीत लगता तो अपना है, पर होता नहीं। मिट्टी और वक़्त की गहराइयों में दफन रहस्यों को बाहर लाना कभी-कभी प्रलय का कारण भी बन जाता है।
अक्सर भूकंप के साथ तबाही आती है, पर उस रोज असल तबाही भूकंप के बाद आई। धरती के झूलने से गांव तो तबाह हुआ, लेकिन अतीत का एक रास्ता भी खुल गया।
एक अनदेखा रास्ता जो किसी प्राचीन मंदिर के तहखाने तक जाता था। आश्चर्य यह भी कि जिस भूकंप ने इंसानी घरौंदों को उजाड़ दिया, उससे मंदिर की मूर्ति का बाल भी बांका न हुआ। अनजान तहखाने से आती रहस्यमयी टर्र-टर्र की आवाजों ने खोजकर्ता टेंसी और उसकी टीम को बरबस ही खींच लिया था।
यह सिर्फ एक शुरुआत थी रहस्य, खौफ और एक के बाद एक घटती अजीबोगरीब घटनाओं की।
क्या कुछ संबंध था इस जगह का टेंसी से या यह सिर्फ एक संजोग था!?
समय के चक्र से छूटती कालिख और उससे तबाह होती ज़िंदगियों की रहस्यमयी कहानी है काल कलंक।
साबिर खान पठान मूलतः गुजराती के लेखक हैं। 'काल कलंक' उनका प्रथम हिंदी उपन्यास है। यह एक हाॅरर उपन्यास है। वर्तमान में Flydreams Publication नये लेखकों और नये कथानकों के साथ अपनी सशक्त उपस्थित दर्ज करवा रहा है।
'काल कलंक' वर्तमान और अतीत को एक साथ लेकर चलती है। उपन्यास का आरम्भ एक भूकंप से होता है। भूकम्प के कारण जमीन के अंदर दफन एक मंदिर बाहर निकल आता है। सिर्फ मंदिर ही नहीं, वह तो साक्षात् काल का रूप बन कर उभरता है।
टैंसी को उस मंदिर के प्रति विशेष खिचाव महसूस होता है और उसी खिचाव के कारण वह उस अज्ञात मंदिर में चली जाती है।
यह कथा तो है वर्तमान की वहीं कथा का द्वितीय पक्ष अतीत से संबंध रखता है। एक शैतान औघड़ एक आदमखोर मेंढक और एक भैरवी के माध्यम से अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है और के लिए वह राजा मान सिंह के पुत्र कुमार को चुनता है।
लेकिन कुमार की पत्नी मल्लिका औघड़ के लिए एक चुनौती थी।
मल्लिका औघड़ की मंशा को समझ गई थी। वह मन ही मन सोच रही थी, “अगर सब कुछ समझने के बावजूद भी मैं औघड़ को उसके नापाक इरादों में कामयाब होने देती हूँ तो मेरे स्त्रीत्व को लांछन लगेगा। आज की रात का समय इतिहास में काले अक्षरों से लिखा जाएगा। इतिहास में 'काल-कलंक' के नाम से काला दिन बनकर जाना जाएगा। किंतु मैं हरगिज ऐसा नहीं होने दूँगी। मैं उस कपटी को मार डालूँगी!”
लेकिन औघड़ के पास शैतानी शक्तियाँ थी, भैरवी थी और आदमखोर मेंढको की सेना। उस से टकराना कोई सरल कार्य न था। औघड़ शैतान था और राज्य पर अपना प्रभुत्व स्थापित करने के लिए किसी भी हद तक जा सकता था।
वहीं कहानी के वर्तमान पक्ष में - टेंसी को ऐसा लगा, जैसे किसी अगम-काल की घटनाओं से उसका सीधा संबंध था। आखिर वह क्या राज था जो उसे अंदर से तक झकझोर रहा था?
इसी रहस्य को जानने के लिए टेंसी जा टकराती है खतरनाक औघड़ और आदमखोर मेढकों की सेना से।
और फिर जो घटित होता है वह तो और भी खतरनाक था।
उपन्यास का कथानक चाहे एक खतरनाक औघड़ और उसकी लिप्सा पर आधारित है। पर है यह वास्तव में दहशत भरा। विशेष कर आदमखोर मेंढकों का वर्णन उपन्यास में दहशत पैदा करने में सक्षम है। वहीं औघड़ की वर्तमान समय में चली गयी चाले सभी के लिए मुसीबतें पैदा करती है।
उपन्यास की गति बहुत तीव्र है। प्रथम पृष्ठ से ही कहानी में इतनी तीव्रता है की उपन्यास पाठकों को कुछ अतिरिक्त सोचने का समय ही नहीं देता। बहुत बार ऐसा देखने में आता है की उपन्यास की गति धीम होती है जो नीरसता पैदा करती है। लेकिन इस विषय में लेखन ने प्रशंसनीय कार्य किया है।
हालांकि इस तीव्रता के चलते कुछ घटनाक्रम ऐसे भी प्रतीत होते हैं मानो उनको शीघ्रता से समेटा गया हो। अभी कुछ घटनाएं और दृश्य विस्तार मांगते हैं।
इसी तीव्रता के चलते किसी भी पात्र को पूर्ण विकसित होने का अवसर ही नहीं मिला। उपन्यास का कोई भी पात्र अपना प्रभाव स्थापित नहीं कर कर पाया। इंस्पेक्टर अनुराग चरित्र विवरण से यह प्रतीत होता था कि यह पात्र कुछ करेगा पर वह भी अन्य पात्रों की तरह ही रहा।
उपन्यास का मुख्य खल पात्र औघड़ है। लेकिन उसका विवरण उपन्यास में मात्र दो जगह ही आता है। शेष समय वह नेपथ्य में ही रहा। औघड़ और इंस्पेक्टर अनुराग को अभी और विकसित और प्रभावशाली होना चाहिए था।
कोई भी रचना अगर वह किसी काल खण्ड विशेष से संबंधित है तो यह आवश्यक हो जाता है की भाषा शैली उसी के अनुरुप होनी चाहिए। वह का अपना विशेष महत्व होता है उस समय को परिभाषित करने में। उपन्यास में एक दो जगह ऐसे शब्द हैं तो तात्कालिक समय के अनुकूल नहीं है।
जैसे- कैंसर, टाॅर्च, फीट, घण्टे इत्यादि।
आदमखोर मेंढक- प्रथम बार किसी उपन्यास में आदमखोर मेंढकों को वर्णित किया गया है। जहाँ-जहाँ मॆढकों का वर्णन है वह दृश्य उपन्यास में रोंगटे खड़े करने वाले हैं। यह दृश्य इस उपन्यास के श्रेष्ठ दृश्य हैं।
“ड्राऊ... ड्राऊ... ड्राऊ...”
- नजारा बहुत ही खौफनाक और हैरतअंगेज था। सैकड़ों की संख्या में लाल मेंढक के छोटे-छोटे बच्चे खून के सैलाब की तरह आगे बढ़ रहे थे। उनका एक साथ उठने वाला शोर, शैली के कान के पर्दे चीरता गया।
एक अच्छे हाॅरर उपन्यास की यह विशेषता होनी चाहिए की वह डर पैदा करे, तो यहाँ आदमखोर मॆंढक उपस्थित है।
उपन्यास का समापन उपन्यास की कहानी को कमजोर बनाता है। बिना किसी तर्क के, अचानक एक घटना घटित होती है और उपन्यास समाप्त।
भैरवी का चरित्र अंत तक कन्फूजन पैदा करता है। जहाँ एक बार औघड़ कहता है की ''यह सब उलझने भैरवी की वजह से हुई हैं।''
यह उलझन अंत में पाठक के साथ भी होती है।
अगर आप हाॅरर उपन्यास पढना चाहते हैं तो यह उपन्यास एक बार पढकर देखें। आपको कुछ विसंगतियों के साथ-साथ बहुत कुछ हाॅरर पढने को मिलेगा।
उपन्यास- काल कलंक
लेखक - साबिर खान पठान
प्रकाशक - Flydreams publication
उपन्यास के प्रति रुचि जगाता आलेख। जल्द ही पढ़ने की कोशिश होगी।
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