Thursday 6 June 2019

203. विधवा का पति- वेदप्रकाश शर्मा

क्या कोई विधवा का पति हो सकता है?
विधवा का पति- वेदप्रकाश शर्मा, उपन्यास

'विधवा का पति' उपन्यास का शीर्षक जितना आश्चर्यचकित करने वाला है उतना ही आश्चर्यजनक उपन्यास की कहानी है। एक ऐसी कहानी जहाँ पाठक बार-बार चौंकता हैं, जहाँ पाठक का मस्तिष्क रुक सा जाता है की आखिर यह क्या हो रहा है। और जो हो रहा उसे पढकर तो पाठक वेद जी की लेखनी का मुरीद बन जाता है।

  यह कहानी एक सिकंदर की,...अरे...अरे...नहीं... नहीं ...यह कहानी तो जाॅनी की है....अरे यार फिर गलती हो गयी....यह कहानी तो सर्वेश की है...क्या....क्या कहा...यह कहानी उसकी भी नहीं, तो फिर यह कहानी किसकी है....कुछ भी पता नहीं। हां, यह बात ठीक है... जैसे उपन्यास नायक को भी कुछ पता नहीं की वह 'कौन' है। ठीक वैसे ही यह कहानी है।

एक युवक है, जो की 'विधवा का पति' उपन्यास का नायक। उससे खुद की पहचान गायब हो जाती है और कुछ लोग उस पर अपना हक जताते हैं।
एक पिता उसे अपना बेटा कहता है।
एक लड़की उसे अपना पति कहती है।
एक बच्चा उसे अपना पिता कहता है।
पुलिस उसे 'विधवा का पति' कहती है।
और स्वयं वह असमंजस में है की आखिर वह कौन है?
युवक स्वयं के बारे में यही सोचता है।


यह सच्चाई है कि मैं खुद को नहीं जानता—मेरा नाम क्या है, मैं कौन हूं…क्या हूं—ऐसे किसी भी सवाल का जवाब खुद मुझे नहीं मालूम है—दुनिया का कोई भी दूसरा आदमी शायद मेरी उलझन, कसमसाहट और विवशता को नहीं समझ सकेगा—स्वयं आपने किसी ऐसे आदमी की मानसिकता की कल्पना की है, जो खुद ही अपने लिए एक पहेली हो—जो खुद ही इनवेस्टिगेशन करके यह पता लगाने की कोशिश कर रहा हो कि वह कौन है? शायद मेरी कसमसाहट को कोई नहीं समझ सकेगा जी, क्योंकि मैं खुद ही वह आदमी हूं।"


           उस युवक की परिस्थितियाँ कुछ और ही रंग लेती हैं। जैसे किसी खूबसूरत युवती को देखकर उसके मन में बस एक ही ख्याल आता है।
       बड़े ही विस्फोटक ढंग से युवक के दिमाग में विचार टकराया कि—'अगर वह .... की गर्दन दबा दे तो क्या होगा।'
वह मर जाएगी।
युवक पर जुनून सवार होने लगा।
एकाएक ही वह सोचने लगा कि यदि .... के जिस्म से सारे कपड़े उतार दिए जाएं तो यह बहुत खूबसूरत लगेगी।
उसके दिलो-दिमाग में बैठा कोई चीखा—उतार दे—'इसके जिस्म से कपड़े का एक-एक रेशा नोंचकर फेंक दे—गर्दन दबा दे इसकी—मार डाल—फर्श पर पड़ी इसकी निर्वस्त्र लाश बहुत सुन्दर लगेगी।'

- कौन था वह युवक?
- क्या था उसका रहस्य?
- क्या था उसका असली नाम?
- कैसे उसने अपनी पहचान खो दी?
- क्यों उसे हर कोई अपना कहता था?
- क्यों उस युवक के मन में युवतियों को मारने के विचार आते थे?
- आखिर वह 'एक विधवा का पति' कैसे था?


'विधवा का पति' एक ऐसे युवक की कहानी है जो स्वयं की पहचान खो चुका है और लोग जो उसे पहचान दे रहे हैं वह स्वयं उससे संतुष्ट नहीं। क्योंकि अलग-अलग लोग उसे अलग-अलग पहचान दे रहे हैं। और एक दिन वह स्वयं अपनी पहचान की तलाआ में निकल पड़ता। इस तलाश में उसके साथ ऐसे ऐसे हादसे पेश आते हैं की वह स्वयं अचंभित हो उठता है। हर कोई उस पर अपना हक जताता है।
         कहानी मकड़ी के जाले सी उलझी हुयी है। हर किरदार एक नयी कहानी के साथ पेआ होता है और उस युवक पर अपना हक जताता। दूसरी तरफ युवक स्वयं नयी-नयी पहचान से परेशान है।
            तीन इंस्पेक्टर हैं जो युवक की तीन अलग-अलग पहचान के कारण एकत्र होते हैं, उन्हें कहानी कुछ और ही नजर आती है। इनमें एक इंस्पेक्टर है चटर्जी जी।‌ जिसे उलझे हुए मामले सुलझाने में बहुत आनंद आता है। वह स्वयं के बारे में कहता है।- ये पुलिस की आंखें हैं—एक बार जिसे देख लेती हैं, वह दोबारा इंसान के स्थान पर अगर जानवर बनकर भी सामने आए तो तुरन्त पहचान लेती हैं।"
            उपन्यास की कहानी बहुत रोचक है। पाठक को पृष्ठ दर पृष्ठ एक नया रोमांच मिलता है।‌ सोचा भी नहीं जा सकता ऐसे स्तर पर जाकर कहानी कुछ नया रंग ले लेती है।

उपन्यास के कुछ कथन जो मुझे रोचक लगे। एक उदाहरण देखें-
सच ही कहा है किसी ने—अपने प्राण हर व्यक्ति को हर कीमत से कहीं ज्यादा प्यारे होते हैं…अगर किसी को यह पता लग जाए कि सारी दुनिया में आग लगाने से उसके अपने प्राण बच सकते हैं तो वह सारी दुनिया को जलाकर राख करने में एक पल के लिए भी नहीं हिचकेगा।


         उपन्यास में एक युवक का की हत्या होती है लेकिन पता नहीं क्यों पुलिस उसका पोस्टमार्टम नहीं करती।
"....जहर देकर मारा गया था, क्या पोस्टमार्टम की रिपोर्ट से यह बात छुपी रह सकी होगी?"
“उनका पोस्टमार्टम ही नहीं हुआ था।"

कुछ दृश्य उपन्यास में बहुत रोचक हैं। वैसे वेद जी जहां सस्पेंश क्रियेट करते हैं वहाँ का दृश्य वास्तव में प्रशंसनीय बन जाता है। इस उपन्यास में भी एक ऐसा दृश्य है जहाँ पाठक स्तम्भित सा रह जाता है।
वह दृश्य एक बिल्ली के माध्यम से दर्शाया गया है। वैसे वेद जी सस्पेंश के मामले में बादशाह हैं। यह दृश्य तो पाठक के रोंगटे खड़े करने वाला वै।
वेद जी की लेखनी से निकला एक जबरदस्त उपन्यास ।

निष्कर्ष-
‌‌‌‌ रहस्य की पर्तों में लिपटा यह उपन्यास हर पृष्ठ पर एक नया सस्पेंश लिये है। अपनी पहचान ढूंढने निकले युवक की रहस्य से भरी जीवनगाथा।
रहस्य और रोमांच से भरा यह उपन्यास पाठक का भरपूर मनोरंजन करने में सक्षम है। उपन्यास पठनीय है। अवश्य पढें।

उपन्यास- विधवा का पति
लेखक -  वेदप्रकाश शर्मा
प्रकाशक- रवि पॉकेट बुक्स

1 comment:

आयुष्मान - आनंद चौधरी

अमर होने की चाह.... आयुष्मान- आनंद चौधरी ये अजीबोगरीब दास्तान मोर्चरी के पोस्टमार्टम रूम में पोस्टमार्टम टेबल पर रखी गई एक लाश से शुरू होती...